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भगवान् सूर्यने नेत्र - ज्योति प्रदान की

चक्षुदाता श्रीभुवन-भास्करकी अद्भुत कृपासे अब लिखना पढ़ना मेरे लिये आसान हो गया है। सूर्यभगवान्की मुझपर विलक्षण कृपा ही नहीं हुई है, बल्कि उन्होंने मेरे लिये अन्धकारसे प्रकाशकी ओर जानेका मार्ग भी सुगम बना दिया है।

बात सन् १९८८ई० की है। मैं चक्षुरोगसे इतना परेशान और चिन्तित था कि मुझे रातको नींद भी नहीं आती थी। दिनको अपने परिजन एवं पूज्य जनोंका भी ध्यान नहीं रहता था। वे यदि मेरे नजदीक से गुजरते थे तो मैं उन्हें पहचान नहीं सकता था, अतः मेरे लिये प्रणाम अभिवादन करना या कुशल क्षेम पूछना भी कठिन हो गया था।

इस प्रकार तीन वर्षोंतक लगातार दुःखोंका पहाड़ ढोते हुए व्यतीत हो गये। कुछ दिनोंतक मन्दसौर क्षेत्रके एक अनुभवी नेत्र चिकित्सकसे दवा कराता रहा, किंतु कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। और अन्तमें चिकित्सक महोदयने तो यहाँतक कह दिया कि अब आँखोंमें रोशनी आना सम्भव नहीं है, क्योंकि रोशनी प्रदान करनेवाली नस सूख गयी है। उनके निर्णयको सुनकर मैं स्तब्ध सा रह गया। दुखी मनसे किसी तरह वापस अपने घर माण्डवी चला आया।

मैं तथा मेरे गुरुजी पुनः रतलाम गये । वहाँके चक्षुरोग विशेषज्ञसे इलाज करवानेकी इच्छा थी। उन विशेषज्ञ महोदयने डॉक्टरी रिपोर्ट देखी एवं मेरे रोगका निरीक्षण किया और उन्होंने भी नकारात्मक निर्णय दिया। उनका परामर्श था कि किसी मस्तिष्क रोग विशेषज्ञसे ऑपरेशन करानेपर सम्भव है कि रोशनी मिल जाय, लेकिन नेत्र परीक्षकसे रोशनी वापस ला पाना कठिन क्या, असम्भव ही है। इसके बाद मैं मन्दसौर में ही आधुनिक मशीन जो कि रोगीको जाँचकर चश्मा आदि बनानेकी रिपोर्ट प्रदान करती है, वहाँ गया, परंतु उस यन्त्रसे भी नकारात्मक जवाब मिला।

मैं पूर्णतः निराश हो चुका था मुझे चारों ओरअन्धकार-ही-अन्धकार मालूम पड़ता था। कोई सहारा नहीं दीख रहा था। मैं हारकर थक चुका था। मुझे जीवनसे मृत्यु ही अधिक सुहाने लगी। मेरी दयनीय दशा देखकर मेरे आदरणीय गुरुजीने मुझे अन्ततः चाक्षुषोपनिषद्की साधना करनेकी आज्ञा प्रदान की, परंतु मुझे पुस्तक पढ़ना हिमालयकी चोटीपर चढ़नेके समान महसूस हो रहा था। फिर भी मैंने गुरुजीकी आज्ञा शिरोधार्य की; क्योंकि आपने भगवान्‌के प्रति ऐसा विश्वास दिलाया कि मुझे भी यह लगने लगा कि भगवान्की एक कृपा-कोर भी मिल जाय तो मेरा जीवन सफल हो जायगा, उनके लिये तो असम्भव कुछ भी नहीं, सभी कुछ सम्भव है। गुरुजीने मुझे समझाते हुए कहा-'देखो बेटा! मनुष्यकी शक्तिसे कहीं अधिक शक्ति साधनाकी शक्ति होती है और उससे भी कहीं अधिक चराचर - नियन्ताकी शक्ति होती है। तुम सूर्य भगवान् की उपासना करो।' गुरुजीकी बातोंपर मुझे पूर्ण आस्था थी । तदनुसार मैंने चाक्षुषोपनिषद्की एक एक प्रति आठ ब्राह्मणोंको प्रदानकर उन्हें भोजन एवं दक्षिणासे सन्तुष्टकर उनका सफल आशीर्वाद प्राप्त किया और मैं स्वयं नेत्रोंके अधिष्ठाता भगवान् भुवनभास्करका बड़ी ही श्रद्धा-निष्ठासे निरन्तर ध्यान करने लगा। आप विश्वास मानिये या न मानिये, कुछ ही समय बाद मेरे नेत्रोंमें ज्योतिका संचार होने लगा। मुझे ऐसा लगता कि भगवान्ने मेरी सुन ली है। धीरे धीरे नेत्रोंमें प्रकाश बढ़ता गया और मुझे पहले तो धुंधला, किंतु फिर सब कुछ साफ-साफ दीखने लगा। अब तो मैं लगभग दो किलोमीटरके फासलेपरके पेड़ पौधे और कोई अन्य स्थान भी देख सकता हूँ, जबकि पहले मैं अपने पाससे गुजरते हुए व्यक्तिको पहचानतक नहीं सकता था।

भुवनभास्करकी असीम अद्भुत कृपासे अब मैं पूर्ण स्वस्थ और नेत्रवान् हो गया हूँ। विश्वचक्षु सूर्यनारायण भगवान्की जय!

[ श्रीशान्तिलालजी विश्वकर्मा ]



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bhagavaan sooryane netr - jyoti pradaan kee

chakshudaata shreebhuvana-bhaaskarakee adbhut kripaase ab likhana padha़na mere liye aasaan ho gaya hai. sooryabhagavaankee mujhapar vilakshan kripa hee naheen huee hai, balki unhonne mere liye andhakaarase prakaashakee or jaaneka maarg bhee sugam bana diya hai.

baat san 1988ee0 kee hai. main chakshurogase itana pareshaan aur chintit tha ki mujhe raatako neend bhee naheen aatee thee. dinako apane parijan evan poojy janonka bhee dhyaan naheen rahata thaa. ve yadi mere najadeek se gujarate the to main unhen pahachaan naheen sakata tha, atah mere liye pranaam abhivaadan karana ya kushal kshem poochhana bhee kathin ho gaya thaa.

is prakaar teen varshontak lagaataar duhkhonka pahaada़ dhote hue vyateet ho gaye. kuchh dinontak mandasaur kshetrake ek anubhavee netr chikitsakase dava karaata raha, kintu koee vishesh laabh naheen huaa. aur antamen chikitsak mahodayane to yahaantak kah diya ki ab aankhonmen roshanee aana sambhav naheen hai, kyonki roshanee pradaan karanevaalee nas sookh gayee hai. unake nirnayako sunakar main stabdh sa rah gayaa. dukhee manase kisee tarah vaapas apane ghar maandavee chala aayaa.

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bhuvanabhaaskarakee aseem adbhut kripaase ab main poorn svasth aur netravaan ho gaya hoon. vishvachakshu sooryanaaraayan bhagavaankee jaya!

[ shreeshaantilaalajee vishvakarma ]

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