⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भगवान्की वत्सलता

मेरे एक मित्र हैं, जो उच्च शिक्षा प्राप्तकर एक प्रसिद्ध धार्मिक संस्थामें कार्य करते हैं। उनकी अध्यात्मकी ओर प्रवृत्ति है और जीवनको साधनामय बनानेका प्रयत्न है। उनके जीवनकी एक घटना है। सन् १९५५में वे मेरठ कालेजमें पढ़ रहे थे। बाल्यकालसे ही साधनाकी ओर रुचि होने आदिके कारण उनका घरसे सम्बन्ध विच्छेद हो गया था; अतएव उनको घरसे अध्ययनका व्यय प्राप्त नहीं हो पाता था। कुछ स्नेही मित्र, स्वजन अपने अल्प साधनोंमेंसे कुछ बचाकर उन्हें देदिया करते थे और उसीसे किसी प्रकार भोजन और वस्त्रकी व्यवस्था हो पाती थी। प्रत्येक महीने जब किसी स्वजन- मित्रसे कुछ प्राप्त होता, तब सर्वप्रथम वे महीनेभरके लिये आटा, लकड़ी और नमक- इन तीन चीजोंकी व्यवस्था कर लेते थे। इस व्यवस्थाके पश्चात् यदि कुछ रुपये और बचते तो उनसे साग सब्जी आदिका काम चलता था।

इस प्रकार अभाव एवं तपस्याका जीवन चल रहा था। एम० ए०का प्रथम वर्ष बीता; द्वितीय वर्षआरम्भ हुआ। कुछ मास बीत गये। मनमें इनको कठिनाईभरे जीवनके प्रति बड़ा सन्तोष था। किंतु एक बार ऐसी स्थिति हुई कि इन्हें लगातार आठ दिनोंतक रोटी और नमकपर ही रहना पड़ा। उधर परीक्षामें अच्छी श्रेणी लानेके लिये परिश्रमके साथ अध्ययन चल रहा था । शरीरमें शिथिलताका बोध होने लगा । एक दिन वे अपने छात्रावासकी सीढ़ियोंसे उतर रहे थे कि सिरमें चक्करका अनुभव होने लगा। लगा, भगवान् परीक्षा ले रहे हैं। किसीसे कुछ कहना नहीं था और स्वतः अधिक रुपये मिलनेकी सम्भावना थी नहीं। मन व्यथासे भर गया, आँखोंसे जल बह चला। मुँहसे निकल पड़ा—'नाथ! निष्ठाके तन्तुको इतना मत तानिये कि वह टूट जाय। आप कठिन परीक्षा ले रहे हैं, नाथ! परंतु मैं तो निर्बल प्राणी हूँ; बस, लाज आपके ही हाथ है।' जैसे-तैसे अपनेको सँभालकर वे कालेज चले गये। वहाँ भी मन-ही-मन यही प्रार्थना चलती रही।

सच्चे हृदयकी प्रार्थना भगवान्‌के हृदयको स्पर्श कर जाती है । भक्तके अश्रुकण भगवान्‌को विह्वल कर देते हैं। योग-क्षेमका वहन करनेवाले - 'योगक्षेमं वहाम्यहम्'– अशरण-शरण श्रीभगवान् अपने भक्तकी व्यवस्था करनेके लिये अधीर हो जाते हैं। तब इस अन्तर्हृदयकी पुकारको वे कैसे नहीं सुनते ! उन्होंने सुना और तत्काल उसकी व्यवस्था की। भक्त इस क्षण पुकार करता है, पर भगवान्‌के ध्यानमें वह पुकार बहुत पहले ही आ जाती है और उसके अनुरूप वे उसकी व्यवस्था कर देते हैं। यहाँ भी ऐसा ही हुआ । उन मित्रकी अपने विभागाध्यक्षसे अचानक भेंट हो गयी। वे देखते ही बोले—'तुम्हें प्राचार्य महोदय याद कर रहे हैं, उनसे अवश्य मिल लेना।'

प्रोफेसर महोदयके शब्द सुनकर मेरे मित्र कुछ विचारमें पड़ गये कि प्राचार्यने आज उन्हें क्यों स्मरण किया। वे तुरंत प्राचार्य महोदयसे मिलनेके लिये उनकेकमरे में पहुँचे। ज्यों ही उन्होंने प्राचार्यको प्रणाम किया, वे बोले-'तुम्हारे नामसे एक सौ एक रुपयेका चेक आया है, इसके रुपये बैंकसे मँगवाने हैं क्या ?' चेककी बात सुनते ही मेरे मित्रने बड़े आश्चर्यसे पूछा- 'यह चेक कहाँसे आया है?' प्राचार्य महोदयने बताया कि जयपुरसे किसी सज्जनने भेजा है। अधिक जानकारी प्राप्त करनेकी जिज्ञासा होते हुए भी प्राचार्यसे पुनः प्रश्न करनेका मेरे मित्रको साहस नहीं हुआ। बस, उन्होंने चेकके रुपये मँगवानेकी स्वीकृति दे दी और वहाँसे लौट आये।

एक पैसा पास नहीं तथा सिरमें चक्कर अनुभव रहा था, ऐसी कठिन अवस्थामें एक सौ एक रुपया बहुत बड़ी बात थी। मनमें प्रसन्नता हुई, पर साथ ही यह विचार चल पड़ा कि 'किसने रुपया भेजा, क्यों भेजा ? आजतक तो कभी नहीं भेजा ।' दूसरे दिन वे कालेजके ऑफिसमें पहुँचे और वहाँके प्रधान बाबूसे मिलकर यह पता लगाया कि वह चेक कहाँसे आया था। पता चला - जयपुरके किसी अवकाशप्राप्त आयकर अधिकारीने चेक भेजा था। मित्र महोदयका उस समयतकका जीवन उत्तर प्रदेशमें ही व्यतीत हुआ था। राजस्थानमें रहनेवाले किसी व्यक्तिसे उनका परिचय नहीं था। वे आश्चर्यचकित थे कि एक अपरिचित अफसरने उनके लिये एक सौ एक रुपयेका चेक क्यों भेजा ! पर तत्क्षण ही यह विचार हृदयमें उत्पन्न हुआ कि उनके इष्टदेव ही उनकी व्यथाभरी पुकार सुनकर व्यवस्था कर रहे थे। भगवान् की कृपालुता एवं वत्सलताका स्मरणकर उनका हृदय भर आया और वे चुपचाप लौट आये।

आज भी मित्र महोदयके लिये यह प्रश्न बना हुआ है कि चेक भेजनेवाले सज्जन कौन थे और उन्होंने चेक क्यों भेजा। आज भी वे भगवान्‌की इस वत्सलताका स्मरणकर प्रेम-विह्वल हो जाते हैं।

[ श्रीकृष्णचन्द्रजी ]



You may also like these:



bhagavaankee vatsalataa

mere ek mitr hain, jo uchch shiksha praaptakar ek prasiddh dhaarmik sansthaamen kaary karate hain. unakee adhyaatmakee or pravritti hai aur jeevanako saadhanaamay banaaneka prayatn hai. unake jeevanakee ek ghatana hai. san 1955men ve merath kaalejamen padha़ rahe the. baalyakaalase hee saadhanaakee or ruchi hone aadike kaaran unaka gharase sambandh vichchhed ho gaya thaa; ataev unako gharase adhyayanaka vyay praapt naheen ho paata thaa. kuchh snehee mitr, svajan apane alp saadhanonmense kuchh bachaakar unhen dediya karate the aur useese kisee prakaar bhojan aur vastrakee vyavastha ho paatee thee. pratyek maheene jab kisee svajana- mitrase kuchh praapt hota, tab sarvapratham ve maheenebharake liye aata, lakada़ee aur namaka- in teen cheejonkee vyavastha kar lete the. is vyavasthaake pashchaat yadi kuchh rupaye aur bachate to unase saag sabjee aadika kaam chalata thaa.

is prakaar abhaav evan tapasyaaka jeevan chal raha thaa. ema0 e0ka pratham varsh beetaa; dviteey varshaaarambh huaa. kuchh maas beet gaye. manamen inako kathinaaeebhare jeevanake prati bada़a santosh thaa. kintu ek baar aisee sthiti huee ki inhen lagaataar aath dinontak rotee aur namakapar hee rahana pada़aa. udhar pareekshaamen achchhee shrenee laaneke liye parishramake saath adhyayan chal raha tha . shareeramen shithilataaka bodh hone laga . ek din ve apane chhaatraavaasakee seedha़iyonse utar rahe the ki siramen chakkaraka anubhav hone lagaa. laga, bhagavaan pareeksha le rahe hain. kiseese kuchh kahana naheen tha aur svatah adhik rupaye milanekee sambhaavana thee naheen. man vyathaase bhar gaya, aankhonse jal bah chalaa. munhase nikal pada़aa—'naatha! nishthaake tantuko itana mat taaniye ki vah toot jaaya. aap kathin pareeksha le rahe hain, naatha! parantu main to nirbal praanee hoon; bas, laaj aapake hee haath hai.' jaise-taise apaneko sanbhaalakar ve kaalej chale gaye. vahaan bhee mana-hee-man yahee praarthana chalatee rahee.

sachche hridayakee praarthana bhagavaan‌ke hridayako sparsh kar jaatee hai . bhaktake ashrukan bhagavaan‌ko vihval kar dete hain. yoga-kshemaka vahan karanevaale - 'yogaksheman vahaamyaham'– asharana-sharan shreebhagavaan apane bhaktakee vyavastha karaneke liye adheer ho jaate hain. tab is antarhridayakee pukaarako ve kaise naheen sunate ! unhonne suna aur tatkaal usakee vyavastha kee. bhakt is kshan pukaar karata hai, par bhagavaan‌ke dhyaanamen vah pukaar bahut pahale hee a jaatee hai aur usake anuroop ve usakee vyavastha kar dete hain. yahaan bhee aisa hee hua . un mitrakee apane vibhaagaadhyakshase achaanak bhent ho gayee. ve dekhate hee bole—'tumhen praachaary mahoday yaad kar rahe hain, unase avashy mil lenaa.'

prophesar mahodayake shabd sunakar mere mitr kuchh vichaaramen pada़ gaye ki praachaaryane aaj unhen kyon smaran kiyaa. ve turant praachaary mahodayase milaneke liye unakekamare men pahunche. jyon hee unhonne praachaaryako pranaam kiya, ve bole-'tumhaare naamase ek sau ek rupayeka chek aaya hai, isake rupaye bainkase mangavaane hain kya ?' chekakee baat sunate hee mere mitrane bada़e aashcharyase poochhaa- 'yah chek kahaanse aaya hai?' praachaary mahodayane bataaya ki jayapurase kisee sajjanane bheja hai. adhik jaanakaaree praapt karanekee jijnaasa hote hue bhee praachaaryase punah prashn karaneka mere mitrako saahas naheen huaa. bas, unhonne chekake rupaye mangavaanekee sveekriti de dee aur vahaanse laut aaye.

ek paisa paas naheen tatha siramen chakkar anubhav raha tha, aisee kathin avasthaamen ek sau ek rupaya bahut bada़ee baat thee. manamen prasannata huee, par saath hee yah vichaar chal pada़a ki 'kisane rupaya bheja, kyon bheja ? aajatak to kabhee naheen bheja .' doosare din ve kaalejake ऑphisamen pahunche aur vahaanke pradhaan baaboose milakar yah pata lagaaya ki vah chek kahaanse aaya thaa. pata chala - jayapurake kisee avakaashapraapt aayakar adhikaareene chek bheja thaa. mitr mahodayaka us samayatakaka jeevan uttar pradeshamen hee vyateet hua thaa. raajasthaanamen rahanevaale kisee vyaktise unaka parichay naheen thaa. ve aashcharyachakit the ki ek aparichit aphasarane unake liye ek sau ek rupayeka chek kyon bheja ! par tatkshan hee yah vichaar hridayamen utpann hua ki unake ishtadev hee unakee vyathaabharee pukaar sunakar vyavastha kar rahe the. bhagavaan kee kripaaluta evan vatsalataaka smaranakar unaka hriday bhar aaya aur ve chupachaap laut aaye.

aaj bhee mitr mahodayake liye yah prashn bana hua hai ki chek bhejanevaale sajjan kaun the aur unhonne chek kyon bhejaa. aaj bhee ve bhagavaan‌kee is vatsalataaka smaranakar prema-vihval ho jaate hain.

[ shreekrishnachandrajee ]

172 Views





Bhajan Lyrics View All

एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
हर पल तेरे साथ मैं रहता हूँ,
डरने की क्या बात? जब मैं बैठा हूँ
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
ये तो बतादो बरसानेवाली,मैं कैसे
तेरी कृपा से है यह जीवन है मेरा,कैसे
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
राधे तु कितनी प्यारी है ॥
तेरे संग में बांके बिहारी कृष्ण
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
के पत्ता पत्ता श्याम बोलता, के पत्ता
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की

New Bhajan Lyrics View All

धरती सूरज चंद सितारे,
होते ये दिन रात नहीं,
हर दिन मेला है, यहाँ पे तेरा,
हर दिन मेला है,
घनश्याम तेरी बंसी पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन घायल कर जाती है...
तकदीर बनाने वाली मां मेरी कैसी तकदीर
मेरी कैसी तकदीर बनाई है, मेरा कैसा भाग
खटिया पे राड मचे भारी ओ मेरे बंसी वाले,
ओ मेरे बंसी वाले ओ मेरे बंसी वाले,