⮪ All भगवान की कृपा Experiences

मन्त्रविद्या और भगवत्कृपा

वर्षाके दिन थे। विदर्भमें चारों ओर घनघोर वृष्टि हो रही थी। इसी समय पोस्टमैनने मुझे बालापुरमें आकर एक पत्र दिया, जिसमें ज्येष्ठ भ्राताके घातक रोगसे ग्रस्त होनेका समाचार था। बड़ी चिन्ता हुई। वहाँसे लगभग पचीस मील दूर था, राजन्दा गाँव। कुछ रेलसे, कुछ बससे और अन्तमें पैदल चलकर राजन्दाकी यात्रा तय की। खूब जोरकी वर्षा हो रही थी, अतः पैदल यात्रामें मैं पानीसे काफी भीग गया। वर्षासे भीगे कपड़े निचोड़कर घरमें प्रवेश किया, देखा कि भाई अस्वस्थ पड़े हैं। वैद्य रोगीकी नाड़ी हाथमें लेकर बैठे थे। सौ० बहन भी पाकघरमें बैठी ईश्वरका स्मरण कर रही थी। जब मैं भाईकी चारपाईके पास पहुँचा तो उन्होंने बड़ी निराशाजनक बात कही। वैद्यने भी कहा अब ये दस मिनटसे अधिक इस लोकमें रहनेवाले नहीं हैं।' भाईने कहा- 'मैं तो अब चला, तू सबकी सँभाल रखना।' परंतु मुझे भगवान्पर विश्वास था, इसलिये थोड़ा निश्चिन्त था। मैंने गीले कपड़े उतारकर सूखे कपड़े पहन लिये और तुरंत पैर-हाथ धोकर कुछ मन्त्र जपनेके लिये पाटेपर आसन लगाकर एकान्तमें बैठ गया और 'दत्तात्रेय' मन्त्रका जप करने लगा। सबसे पहले मैंने सद्गुरुका स्मरण किया, गणपति एवं आराध्य देवताकी पूजा की, फिर कुल देवताका स्मरण किया। हमें मैंने बचपनमें ही सद्गुरुद्वारा ॐकारयुक्त गुरु दत्तात्रेयमन्त्र क प्राप्त किया था। अब उसका मन-ही-मन जप शुरू ई। किया। शनैः-शनैः मन्त्रका जप सूक्ष्म होने लगा । छ अन्तमें कटोरीमें जल अभिमन्त्रित किया। उस दत्तमन्त्रसे की अभिमन्त्रित जलको भाईके मुँहमें डाला, वह जल तः उनके पेटमें चला गया। अबतक तो उनकी नाड़ी भी गे छूट चुकी थी और हाथ-पैर भी ठण्डे हो गये थे, ई श्वासकी गति मन्द हो गयी थी, आँखें कुछ भीगी सी ठे थीं। वैद्यने तो पहले ही आशा त्याग दी थी। इस र विकट स्थितिमें रोगीको 'दत्तमन्त्रद्वारा' अभिमन्त्रित जल दिया गया। पर आश्चर्य ! दस मिनटमें ही रोगीकी - प्रकृतिमें सहसा अन्तर आ गया। उनकी नाड़ी लौट आयी और धीरे-धीरे हाथ-पैरोंमें गरमी भी आयी। श्वासकी गति भी पुन: लौट आयी और आधी मुँदी हुई आँखें भी खुल गयीं। भाईने मुझसे कहा - ' अब मैं निश्चय बच जाऊँगा, तुम धीरे-धीरे मनमें मन्त्र - जप करते हो न !' भगवान् दत्तात्रेयके मन्त्रके इस अद्भुत प्रभावको देखकर और भगवत्कृपाका प्रत्यक्ष अनुभव करके मैं श्रद्धावनत एवं चमत्कृत रह गया।

[ श्री गो० ना० मोहरीर ]



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mantravidya aur bhagavatkripaa

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