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मन्दसौरवाले पशुपतिनाथजीकी कृपा

मध्यप्रदेशके मालवा अंचलके मन्दसौर जिलेमें सिवना नदीके तटपर भगवान् शंकरका एक सिद्धक्षेत्र है, जहाँ शिवजी पशुपतिनाथके नामसे विराजमान हैं। यहाँ कार्तिक पूर्णिमाको पन्द्रह दिवसीय मेला लगता है, जिसमें लाखों लोग आते हैं।

सन् १९७५ ई० की बात है। मेरी बहन कौसल्या रोगाक्रान्त होनेके कारण मरणासन्न थी, उसीके निमित्त प्रार्थना करने मैं पहली बार पशुपतिनाथ मन्दिर गया था। शंकरजीकी कृपासे शीघ्र ही बहन रोगमुक्त हो गयी। उसी समयसे मैं प्रतिवर्ष वहाँ जाने लगा। इसके दो साल बाद सन् १९७७ ई० में एकाएक मेरे पिताजी गम्भीर रूपसे बीमार हो गये। संयोगसे उस समय मैं मन्दसौरके मेलेमें गया हुआ था। वहाँ मुझे घरका तार मिला कि 'जल्दी लौट आओ! पिताजीका बचना मुश्किल है।' वह तार पढ़कर मेरी आँखोंसे आँसू आ गये। मैं, पिताजी और दो बहनें - इतने ही लोग परिवारमें थे, जिसमें बहनोंका ब्याह हो चुका था। उस समय हमारी आर्थिक दशा भी अत्यधिक शोचनीय थी, जिसके चलते मेरा विवाह भी नहीं हो पा रहा था। यदि पिताजी नहीं रहे तो मैं अकेला और अनाथ हो जाऊँगा-यह सोचकर मैं विह्वल हो उठा। कुछ देर सोच-विचारकर मैं पशुपतिनाथ मन्दिर गया और उन अनाथनाथ शंकरजीसे रो-रोकर कहने लगा-'हे शिवजी! आप मेरे पिताजीकोरोगमुक्त कीजिये और मेरी शादी करवा दीजिये। मेरे दो पुत्र एवं एक पुत्री हों तथा शादीके बाद भी कम-से कम पन्द्रह साल पिताजी जीवित रहें।' अपनी मनोव्यथाका निवेदन करके मैं अपने घर लौट आया। पिताजी थोड़े ही दिनोंमें स्वस्थ हो गये और छः महीने बीतते-बीतते मेरी शादी भी हो गयी। उसके बाद पहले पुत्र, फिर पुत्री और बादमें पुनः पुत्र- इस प्रकार वांछित सन्तानप्राप्ति हुई। ये सभी शुभ अवसर किसी-न-किसी शिवपर्व (सोमवार, महाशिवरात्रि आदि) पर ही उपस्थित हुए।

वर्ष १९८१ ई० में पिताजीको प्रबल उदरशूल हुआ, प्राणान्तक कष्ट हो रहा था, उसके कुछ दिन पूर्व ही एक ज्योतिषीजीने उनको बताया था कि अमुक तिथिमें उदरशूलसे तुम्हारी मृत्यु हो जायगी। पिताजीको तथा और भी दूसरे लोगोंको लगने लगा कि अबकी बार बचना मुश्किल है, किंतु मुझे भगवान् शंकरकी कृपापर पूर्ण विश्वास था। उस समय भी पिताजीको शिवकृपासे जीवनदान मिला।

इसी प्रकार मेरे पिताजीको एकाध बार और भी रुग्णता तो अवश्य सहनी पड़ी; किंतु मेरे विवाहके बाद पूरे पन्द्रह वर्ष वे जीवित रहे और अन्तमें सोलहवें वर्ष में उनका देहावसान हुआ। इस प्रकार आर्तभावसे की गयी मेरी प्रार्थनाको उन कृपामय पशुपतिनाथने सुना और मेरे वांछितको भलीभाँति पूर्ण किया। [ श्रीभगवानदासजी ]



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mandasauravaale pashupatinaathajeekee kripaa

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san 1975 ee0 kee baat hai. meree bahan kausalya rogaakraant honeke kaaran maranaasann thee, useeke nimitt praarthana karane main pahalee baar pashupatinaath mandir gaya thaa. shankarajeekee kripaase sheeghr hee bahan rogamukt ho gayee. usee samayase main prativarsh vahaan jaane lagaa. isake do saal baad san 1977 ee0 men ekaaek mere pitaajee gambheer roopase beemaar ho gaye. sanyogase us samay main mandasaurake melemen gaya hua thaa. vahaan mujhe gharaka taar mila ki 'jaldee laut aao! pitaajeeka bachana mushkil hai.' vah taar padha़kar meree aankhonse aansoo a gaye. main, pitaajee aur do bahanen - itane hee log parivaaramen the, jisamen bahanonka byaah ho chuka thaa. us samay hamaaree aarthik dasha bhee atyadhik shochaneey thee, jisake chalate mera vivaah bhee naheen ho pa raha thaa. yadi pitaajee naheen rahe to main akela aur anaath ho jaaoongaa-yah sochakar main vihval ho uthaa. kuchh der socha-vichaarakar main pashupatinaath mandir gaya aur un anaathanaath shankarajeese ro-rokar kahane lagaa-'he shivajee! aap mere pitaajeekorogamukt keejiye aur meree shaadee karava deejiye. mere do putr evan ek putree hon tatha shaadeeke baad bhee kama-se kam pandrah saal pitaajee jeevit rahen.' apanee manovyathaaka nivedan karake main apane ghar laut aayaa. pitaajee thoड़e hee dinonmen svasth ho gaye aur chhah maheene beetate-beetate meree shaadee bhee ho gayee. usake baad pahale putr, phir putree aur baadamen punah putra- is prakaar vaanchhit santaanapraapti huee. ye sabhee shubh avasar kisee-na-kisee shivaparv (somavaar, mahaashivaraatri aadi) par hee upasthit hue.

varsh 1981 ee0 men pitaajeeko prabal udarashool hua, praanaantak kasht ho raha tha, usake kuchh din poorv hee ek jyotisheejeene unako bataaya tha ki amuk tithimen udarashoolase tumhaaree mrityu ho jaayagee. pitaajeeko tatha aur bhee doosare logonko lagane laga ki abakee baar bachana mushkil hai, kintu mujhe bhagavaan shankarakee kripaapar poorn vishvaas thaa. us samay bhee pitaajeeko shivakripaase jeevanadaan milaa.

isee prakaar mere pitaajeeko ekaadh baar aur bhee rugnata to avashy sahanee pada़ee; kintu mere vivaahake baad poore pandrah varsh ve jeevit rahe aur antamen solahaven varsh men unaka dehaavasaan huaa. is prakaar aartabhaavase kee gayee meree praarthanaako un kripaamay pashupatinaathane suna aur mere vaanchhitako bhaleebhaanti poorn kiyaa. [ shreebhagavaanadaasajee ]

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