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रामरक्षास्तोत्रसे अग्निकाण्डमें सम्पत्ति-रक्षा

भयंकर अग्निकाण्डकी यह घटना जून मन् १९७४ ई० की है, जिसने सारे कलकत्ता नगरको झकझोर दिया। रात दो बजे फोनकी घंटी बजती है। प्रभुका स्मरण करते हुए नींद खुल जाती है-उधरसे आवाज आती है-जिस इमारतमें तुम्हारा ऑफिस है. भयंकर आग लग गयी है। फिर ऑफिसके दरबानने भी ऐसी ही सूचना दी। भयानक क्षतिका ध्यान आते ही हृदय अत्यन्त दुखी हो गया। मेरे पतिदेव उस समय व्यापारिक कार्यसे बाहर गये हुए थे। मैं दरबानको अग्निकी गतिविधिको सूचना निरन्तर देते रहनेको कहकर प्रभुका स्मरण करने लगी। इधर सूचना मिलती गयी कि 'अग्निका वेग निरन्तर भयंकर ही होता जा रहा है। दस-पन्द्रह दमकल अपनी पूरी शक्तिसे आगको नियन्त्रित करनेके लिये बराबर प्रयत्नशील हैं. पर आगपर नियन्त्रण नहीं हो पा रहा है। ऐसी सूचनाएँ सुनकर कलेजा मुँहको आ रहा था। ऐसे संकटके समयमें मेरे मनकी करुण पुकार सुननेवाले केवल अन्तर्यामी भगवान् श्रीराम ही थे तथा मेरा अवलम्ब रह गया था, 'रामरक्षास्तोत्र का एकमात्र पाठ, जिसकी प्रेरणा कभी मुझे कल्याण के माध्यमसे प्राप्त हुई थी। इधर आगका वेग प्रचण्डरूपसे बढ़ता गया और प्रातः होते-होते पूरी इमारत चारों ओरसे अग्निमें घिर गयी। लगभग चौबीस ऑफिसोंके मालिक तथा कर्मचारी इस भयंकर विनाशकारी दृश्यको निरुपाय देख रहे थे। पतिदेवको इस भयंकर अग्निकाण्डकी सूचना स्टेशनपर ही मिल गयी थी। वे भी घटना स्थलपर पहुँचे और उसी विवश भयभीत जन समूहमें सम्मिलित हो निरुपाय खड़े-खड़े पावक का प्रचण्ड ताण्डव देखते रहे। अग्निके प्रचण्ड वेगसे दो दिनोंके अन्दर तीनों तल्लेके सभी मकान भस्म हो धराशायी हो गये।हमारा ऑफिस दूसरे पर था। पूज्य स्वर्गीय स्वशुरजीका वर्षोंका बनाया कारोबार नष्ट हो गया होगा-यही विचार प्रतिपल मनको संतप्त कर रहा था। महानगरी कलकतेमें इस भयंकर अग्निकाण्डकी सर्वत्र चर्चा थी। पिछले ३०-३५ वर्षांमें ऐसा अग्निकाण्ड नहीं सुना गया था। करोड़ोंकी सम्पत्ति नष्ट हो गयी, उस सेन्ट्रल बैंककी इमारतके भस्मीभूत हो जानेसे अग्निका वेग कम हुआ तो कुछ लोगोंका विचार हुआ कि इमारतके पीछेसे चढ़कर ऊपर जाकर देखना चाहिये, सम्भवतः कुछ पता लग सके। फायर ब्रिगेडवालोंसे बड़ी कठिनाईसे स्वीकृति मिली। पतिदेव ऊपर जाकर ऑफिसके पिछले दरवाजेका ताला खोलते ही यह देखकर आश्चर्यचकित हो गये कि सब कुछ यथास्थान सुरक्षित पड़ा है वहाँ तो अग्निका भुतक प्रवेश नहीं कर सका था, जब कि लोगोंका कहना था कि अग्नि उसी तल्लेसे आरम्भ हुई थी। चपरासीने आकर बताया अपना ऑफिस सुरक्षित है पर यह विश्वास नहीं हो रहा था। यह कैसी प्रभुकी अद्भुत अलौकिक लीला है! मैं तो गद्गद हो गयी। इस भगवत्कृपाका ध्यानकर मेरे नेत्रोंसे प्रेमाश्रुकी निर्झरणी प्रवाहित हो चली। लंकाकाण्डका वह प्रसंग स्मरण हो आया पूरी लंका जल गयी, किंतु विभीषणके परको अग्निका स्पर्शतक नहीं हुआ-सब लोग आश्चर्य कर रहे थे। फिर हम तो साधारण जीव। चार तल्लेके भस्मीभूत खण्डहरमें झूलता हुआ यह दो तल्लेका एक भाग कैसे बचा रहा। 'रामरक्षास्तोत्र के उस प्रभाव तथा भगवानकी उस अद्भुत अहेतुको कृपाका स्मरणकर आज भी मेरे नेत्र प्रेमाओंसे छलछला उठते हैं।

[ श्रीमती मंजुरानीजी सरस्वती )



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[ shreematee manjuraaneejee sarasvatee )

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श्याम ने आना घनश्याम ने आना
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
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दूध छटी को याद दिलाऊँ
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यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
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