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'युक्ताहारविहारस्य योगो भवति दुःखहा । ।'  [छोटी सी कहानी]
आध्यात्मिक कहानी - बोध कथा (छोटी सी कहानी)

अपनी पत्नी यशोधराको पुत्र राहुलको, हमूर्ति पिता महाराज शुद्धोदनको तथा वैभवसम्पन्न राज्यको ठुकराकर युवावस्थामें ही गौतम परसे निकले थे। केवल तर्कपूर्ण बौद्धिक ज्ञान उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकता था उन्हें तो रोगपर, बुदापेपर और मृत्युपर विजय पानी थी। उन्हें शाश्वत जीवन-अमरत्व अभीष्ट था प्रख्यात विद्वानों, उद्भट शास्त्रज्ञोंके समीप वे गये; किंतु वहाँ उनका संतोष नहीं हुआ हो नहीं सकता था। आश्रमोंसे, विद्वानोंसे निराश होकर वे गयाके समीप वनमें आये और तपस्या करने लगे।

जाड़ा, गरमी और वर्षामें भी गौतम वृक्षके नीचे नग्न अपनी वेदिकापर स्थिर बैठे रहे। उन्होंने सब प्रकारका आहार बंद कर दिया था। दीर्घकालीन तपस्या के कारण उनके शरीरका मांस और रक्त सूख गया। केवल हड्डियाँ, नसें और चमड़ा शेष रहा।

गौतमका धैर्य अविचल था। कष्ट क्या है, इसे अनुभव ही नहीं करते थे किंतु उन्हें अपना अभीष्ट वे प्राप्त नहीं हो रहा था। तपस्यासे ज्ञान नहीं हुआ करता। उससे सिद्धियाँ मिलती हैं। एक सच्चे साधक, सच्चेमुमुक्षुके लिये सिद्धियाँ बाधक हैं, मारके प्रलोभन हैं। गौतमने उन सब प्रलोभनोंपर विजय प्राप्त कर ली थी। एक दिन जहाँ गौतम तपस्या कर रहे थे, उस स्थानके समीपके मार्गसे कुछ गायिकाएँ निकलीं। वे किसी नगरके उत्सवमें भाग लेकर अपने घर लौट रही थीं। मार्गमें भी वे गाती, बाजे बजाती, नाचती, आमोद-प्रमोद करती जा रही थीं। वे जब गौतमकी तपोभूमिके पाससे निकलीं, तब एक गीत गा रही थीं। उस गीतका भाव यह था – 'सितारके तारोंको ढीला मत छोड़ो। ढीला छोड़नेसे सुस्वर नहीं उत्पन्न करेंगे। परंतु उन्हें इतना खींचो भी मत कि वे टूट जायँ।'

गौतमके कानोंमें वह संगीत ध्वनि पड़ी। उनकी प्रज्ञामें सहसा प्रकाश आ गया। साधनाके लिये घोर तपस्याका मार्ग उपयुक्त नहीं। संयमित भोजन तथा नियमित निद्रादि व्यवहार ही उपयुक्त हैं। यह मध्यममार्ग उनको स्पष्ट सूझ गया। उसी समय उन्होंने अपना आसन छोड़ दिया और नदीकी ओर चल पड़े।

-सु0 सिं0



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'yuktaahaaravihaarasy yogo bhavati duhkhaha . .'

apanee patnee yashodharaako putr raahulako, hamoorti pita mahaaraaj shuddhodanako tatha vaibhavasampann raajyako thukaraakar yuvaavasthaamen hee gautam parase nikale the. keval tarkapoorn bauddhik jnaan unhen kaise santusht kar sakata tha unhen to rogapar, budaapepar aur mrityupar vijay paanee thee. unhen shaashvat jeevana-amaratv abheesht tha prakhyaat vidvaanon, udbhat shaastrajnonke sameep ve gaye; kintu vahaan unaka santosh naheen hua ho naheen sakata thaa. aashramonse, vidvaanonse niraash hokar ve gayaake sameep vanamen aaye aur tapasya karane lage.

jaada़a, garamee aur varshaamen bhee gautam vrikshake neeche nagn apanee vedikaapar sthir baithe rahe. unhonne sab prakaaraka aahaar band kar diya thaa. deerghakaaleen tapasya ke kaaran unake shareeraka maans aur rakt sookh gayaa. keval haddiyaan, nasen aur chamada़a shesh rahaa.

gautamaka dhairy avichal thaa. kasht kya hai, ise anubhav hee naheen karate the kintu unhen apana abheesht ve praapt naheen ho raha thaa. tapasyaase jnaan naheen hua karataa. usase siddhiyaan milatee hain. ek sachche saadhak, sachchemumukshuke liye siddhiyaan baadhak hain, maarake pralobhan hain. gautamane un sab pralobhanonpar vijay praapt kar lee thee. ek din jahaan gautam tapasya kar rahe the, us sthaanake sameepake maargase kuchh gaayikaaen nikaleen. ve kisee nagarake utsavamen bhaag lekar apane ghar laut rahee theen. maargamen bhee ve gaatee, baaje bajaatee, naachatee, aamoda-pramod karatee ja rahee theen. ve jab gautamakee tapobhoomike paasase nikaleen, tab ek geet ga rahee theen. us geetaka bhaav yah tha – 'sitaarake taaronko dheela mat chhoda़o. dheela chhoda़nese susvar naheen utpann karenge. parantu unhen itana kheencho bhee mat ki ve toot jaayan.'

gautamake kaanonmen vah sangeet dhvani pada़ee. unakee prajnaamen sahasa prakaash a gayaa. saadhanaake liye ghor tapasyaaka maarg upayukt naheen. sanyamit bhojan tatha niyamit nidraadi vyavahaar hee upayukt hain. yah madhyamamaarg unako spasht soojh gayaa. usee samay unhonne apana aasan chhoda़ diya aur nadeekee or chal pada़e.

-su0 sin0

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