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सत्यके विविध आयाम  [शिक्षदायक कहानी]
हिन्दी कहानी - हिन्दी कथा (Shikshaprad Kahani)

(4)

सत्यके विविध आयाम

आश्रमके तीन झेन-साधक बाहर टहल रहे थे, हवा तेज थी और आश्रमकी ध्वजा तेजीसे फड़फड़ा रही थी। एक साधक बोल पड़ा-'धर्मध्वजा फड़फड़ा रही है।' दूसरेने कहा-'ध्वजा तो केवल फड़फड़ाती नजर आ रही है, असलमें फड़फड़ा तो हवा रही है।'तीसरा कैसे चुप रहता, बोल पड़ा-'ध्वजा दीख रही है, हवा महसूस हो रही है, पर असली फड़फड़ाहट तो मनमें हो रही है।'
उनमें से दो तालाबकी ओर बढ़ चले। रंग-बिरंगी मछलियोंको देख एक बोला-'मछलियाँ कैसे आनन्दसे तैर रही हैं।' तब 'मछली हुए बिना तुम कैसे कह सकते हो कि वे आनन्दमें हैं'-दूसरेने जिज्ञासा की । 'तुम भी तो 'मैं' नहीं हो, कैसे जान सकते हो कि मैंने ऐसा कैसे कहा' - पहले साधकका उत्तर था ।



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satyake vividh aayaama

(4)

satyake vividh aayaama

aashramake teen jhena-saadhak baahar tahal rahe the, hava tej thee aur aashramakee dhvaja tejeese phada़phada़a rahee thee. ek saadhak bol pada़aa-'dharmadhvaja phada़phada़a rahee hai.' doosarene kahaa-'dhvaja to keval phada़phada़aatee najar a rahee hai, asalamen phada़phada़a to hava rahee hai.'teesara kaise chup rahata, bol pada़aa-'dhvaja deekh rahee hai, hava mahasoos ho rahee hai, par asalee phada़phada़aahat to manamen ho rahee hai.'
unamen se do taalaabakee or badha़ chale. ranga-birangee machhaliyonko dekh ek bolaa-'machhaliyaan kaise aanandase tair rahee hain.' tab 'machhalee hue bina tum kaise kah sakate ho ki ve aanandamen hain'-doosarene jijnaasa kee . 'tum bhee to 'main' naheen ho, kaise jaan sakate ho ki mainne aisa kaise kahaa' - pahale saadhakaka uttar tha .

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