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अरुणगिरिनाथ की मार्मिक कथा
अरुणगिरिनाथ की अधबुत कहानी - Full Story of अरुणगिरिनाथ (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [अरुणगिरिनाथ]- भक्तमाल


भगवान् कार्तिकेय दक्षिणमें सुब्रह्मण्य, षण्मुख, स्कन्द, मुरुहन् आदि नामोंसे प्रसिद्ध हैं। तमिळनाडवाले उन्हें अपनी भाषाके आदिप्रवर्तक मानते हैं और समझते हैं कि तमिळ भाषाके स्तोत्रोंसे भजन करनेपर वे अतीव तुम हो जाते हैं। तमिळमें ऐसे कितने ही स्तोत्रग्रन्थ हैं, जिनका स्कन्दभक्त पारायण किया करते हैं। ऐसे ग्रन्थोंमें 'तिरुप्युकल्' एक है, जिसमें विभिन्न प्रकारके श्रुतिमधुर गान संकलित हैं। उस ग्रन्थके रचयिता 'अरुणगिरिनाथर् ' करीब पाँच शताब्दियोंके पहले विद्यमान थे।

दक्षिण में 'तिरुवण्णामलै' (अरुणाचलपुरी) एक दिव्य क्षेत्र है। भगवान् शिवजीके उन पक्ष महाक्षेत्रों में यह एक है, जहाँ वे पञ्चभूतस्वरूपी होकर विराजमान हैं। वहाँ वे तेजोलिङ्गरूपी हैं। इनके स्मरणमात्रसे भक्तोंको जीवन्मुक्ति हो जाती है, ऐसा विश्वास है। इस पुण्यक्षेत्रमें रुद्रगणिकाओंके वंशमें इनका जन्म हुआ था। इनकी माता 'मुत्तम्मा' पुत्रकी कामनासे प्रतिदिन अरुणाचलेश्वरकी परिक्रमा किया करती थी। एक दिन उस मन्दिरके सुब्रह्मण्यसन्निधान में जाकर उसने प्रार्थना की- 'भगवन्! आपकी भक्ति करनेवाला एक पुत्र मुझे दीजिये।' कार्तिकेयके प्रसादसे कालक्रममें उसके एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। बड़े लाड़-प्यारसे उसका लालन-पालन हुआ। इसलिये वह बड़ा अक्खड़ निकला। अल्पायुगे ही उसकी माताका स्वर्गवास हो गया, तब उसकी दीदी बड़े प्यारसे उसका पालन-पोषण करने लगी। समयपर वे तरुण हुए, पर तरुणाईमें वे अत्यन्त विषयसेवी हो गये। उनके घरका सारा धन उनकी विषयेच्छापूर्तिहीमें समाप्त हो गया। निर्धन होनेपर जब वे दीदीके पास गये, तब उसने विवश होकर कुछ कड़ी बातें कह दीं। दीदीके शब्दोंने उनके जीवनका कायापलट कर दिया। उन्होंने माया-मोह छोड़ दिया। वैरागी बनकर वे सीधे भगवान् कार्तिकेयके सन्निधानमें पहुँचे और अपने पिछले जीवनको मादकरपश्चात्तापके आँसू बहाने लगे। पश्चात्ताप ही सच्चा प्रायश्चित्त है। फिर भगवान्‌का आश्रय साथ हो तो कहना ही क्या है। करुणानिधान भगवान् स्कन्ददेवने कृपा की। भगवान्‌की कृपासे वे वहीं समाधिस्थ हो गये। मनोयोगसे वे सुब्रह्मण्यके तीव्र ध्यानमें लग गये। फलस्वरूप उन्हें ध्यानमें स्कन्द भगवान्के दर्शन हुए। अब तो वे भक्तिप्रवण होकर अपने पश्चात्तापपूर्ण विचारोंको आशु कविताबद्ध करके, उनकी प्रार्थनाके गीत गाने लगे।

यों भगवान् स्कन्दके गुण गाते वे भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में गये और उन-उन क्षेत्रोंमें विभिन्न स्वरूपोंमें विराजमान स्कन्ददेवके दर्शन करते रहे। 'तिरुच्चेन्दूर' (श्रीजन्तिस्थल) में उन्हें भगवान्‌के नूपुरोंकी ध्वनि सुनायी दी और 'तिरुप्परं कुण्ड्रम्' में उनके वाहन मयूरके दर्शन हुए। तब उनकी इच्छा उनके समग्र रूपके दर्शनकी हुई । तिरुवण्णामलैमें आकर अनेक प्रकार प्रार्थना करनेपर भी जब उनके दर्शन नहीं हुए, तब वे अत्यन्त क्षुब्ध होकर सीधे मन्दिरके गोपुरपर चढ़ गये और वहाँसे सुब्रह्मण्यकी प्रार्थना करते हुए नीचे कूद पड़े। भक्तवत्सल भगवान् षण्मुखने मनुष्यरूपमें आकर उन्हें अपने हाथोंमें ले लिया और दर्शन देकर कृतार्थ किया। अरुणगिरिकी प्रार्थनाके अनुसार कृपालु भगवान् उन्हें प्रणवमन्त्रार्थका उपदेश | देकर अन्तर्धान हो गये।

स्कन्द और स्कन्दभक्तोंका पूजा पुरस्कार करते हुए वे वहीं रहे। उनके द्वारा कहते हैं, कई एक चमत्कार हुए। ऐसे ही एक चमत्कारके फलस्वरूप उनका शुकरूप हो गया और भक्तोंका विश्वास है, वे उसी रूपमें आज भी भगवान् कार्तिकेयकी दाहिनी ओर समासीन हैं। और मधुर कीर्तिगान (तिरुप्पुकळ्) गा-गाकर उनकी वन्दना कर रहे हैं। उपासकोंका निश्चय है कि उनके 'तिरुप्पुकळ्' गीतोंका पारायण करनेवाले अवश्य उनकी कृपाके पात्र बन जाते हैं।



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bhagavaan kaartikey dakshinamen subrahmany, shanmukh, skand, muruhan aadi naamonse prasiddh hain. tamilanaadavaale unhen apanee bhaashaake aadipravartak maanate hain aur samajhate hain ki tamil bhaashaake stotronse bhajan karanepar ve ateev tum ho jaate hain. tamilamen aise kitane hee stotragranth hain, jinaka skandabhakt paaraayan kiya karate hain. aise granthonmen 'tirupyukal' ek hai, jisamen vibhinn prakaarake shrutimadhur gaan sankalit hain. us granthake rachayita 'arunagirinaathar ' kareeb paanch shataabdiyonke pahale vidyamaan the.

dakshin men 'tiruvannaamalai' (arunaachalapuree) ek divy kshetr hai. bhagavaan shivajeeke un paksh mahaakshetron men yah ek hai, jahaan ve panchabhootasvaroopee hokar viraajamaan hain. vahaan ve tejolingaroopee hain. inake smaranamaatrase bhaktonko jeevanmukti ho jaatee hai, aisa vishvaas hai. is punyakshetramen rudraganikaaonke vanshamen inaka janm hua thaa. inakee maata 'muttammaa' putrakee kaamanaase pratidin arunaachaleshvarakee parikrama kiya karatee thee. ek din us mandirake subrahmanyasannidhaan men jaakar usane praarthana kee- 'bhagavan! aapakee bhakti karanevaala ek putr mujhe deejiye.' kaartikeyake prasaadase kaalakramamen usake ek sundar putr paida huaa. bada़e laaड़-pyaarase usaka laalana-paalan huaa. isaliye vah bada़a akkhaड़ nikalaa. alpaayuge hee usakee maataaka svargavaas ho gaya, tab usakee deedee bada़e pyaarase usaka paalana-poshan karane lagee. samayapar ve tarun hue, par tarunaaeemen ve atyant vishayasevee ho gaye. unake gharaka saara dhan unakee vishayechchhaapoortiheemen samaapt ho gayaa. nirdhan honepar jab ve deedeeke paas gaye, tab usane vivash hokar kuchh kada़ee baaten kah deen. deedeeke shabdonne unake jeevanaka kaayaapalat kar diyaa. unhonne maayaa-moh chhoda़ diyaa. vairaagee banakar ve seedhe bhagavaan kaartikeyake sannidhaanamen pahunche aur apane pichhale jeevanako maadakarapashchaattaapake aansoo bahaane lage. pashchaattaap hee sachcha praayashchitt hai. phir bhagavaan‌ka aashray saath ho to kahana hee kya hai. karunaanidhaan bhagavaan skandadevane kripa kee. bhagavaan‌kee kripaase ve vaheen samaadhisth ho gaye. manoyogase ve subrahmanyake teevr dhyaanamen lag gaye. phalasvaroop unhen dhyaanamen skand bhagavaanke darshan hue. ab to ve bhaktipravan hokar apane pashchaattaapapoorn vichaaronko aashu kavitaabaddh karake, unakee praarthanaake geet gaane lage.

yon bhagavaan skandake gun gaate ve bhinna-bhinn kshetron men gaye aur una-un kshetronmen vibhinn svarooponmen viraajamaan skandadevake darshan karate rahe. 'tiruchchendoora' (shreejantisthala) men unhen bhagavaan‌ke noopuronkee dhvani sunaayee dee aur 'tirupparan kundram' men unake vaahan mayoorake darshan hue. tab unakee ichchha unake samagr roopake darshanakee huee . tiruvannaamalaimen aakar anek prakaar praarthana karanepar bhee jab unake darshan naheen hue, tab ve atyant kshubdh hokar seedhe mandirake gopurapar chadha़ gaye aur vahaanse subrahmanyakee praarthana karate hue neeche kood pada़e. bhaktavatsal bhagavaan shanmukhane manushyaroopamen aakar unhen apane haathonmen le liya aur darshan dekar kritaarth kiyaa. arunagirikee praarthanaake anusaar kripaalu bhagavaan unhen pranavamantraarthaka upadesh | dekar antardhaan ho gaye.

skand aur skandabhaktonka pooja puraskaar karate hue ve vaheen rahe. unake dvaara kahate hain, kaee ek chamatkaar hue. aise hee ek chamatkaarake phalasvaroop unaka shukaroop ho gaya aur bhaktonka vishvaas hai, ve usee roopamen aaj bhee bhagavaan kaartikeyakee daahinee or samaaseen hain. aur madhur keertigaan (tiruppukal) gaa-gaakar unakee vandana kar rahe hain. upaasakonka nishchay hai ki unake 'tiruppukal' geetonka paaraayan karanevaale avashy unakee kripaake paatr ban jaate hain.

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