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वात्सल्यभक्त महाराज दशरथ की मार्मिक कथा
वात्सल्यभक्त महाराज दशरथ की अधबुत कहानी - Full Story of वात्सल्यभक्त महाराज दशरथ (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [वात्सल्यभक्त महाराज दशरथ]- भक्तमाल


बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद l
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तून इव परिहरेठ ॥

जिनके यहाँ भक्ति-प्रेमवश साक्षात् सच्चिदानन्दघन प्रभु पुत्ररूपसे अवतीर्ण हुए, उन परम भाग्यवान् महाराज श्री दशरथकी महिमाका वर्णन कौन कर सकता है। महाराज दशरथजी मनुके अवतार थे, जो भगवान्‌को पुत्ररूपसे प्राप्तकर अपरिमित आनन्दका अनुभव करनेके लिये ही धराधाममें पधारे थे और जिन्होंने अपने जीवनका परित्याग और मोक्षतकका संन्यास करके श्रीरामप्रेमका आदर्श स्थापित कर दिया।

श्री दशरथजी परम तेजस्वी मनु महाराजकी भाँति ही प्रजाकी रक्षा करनेवाले थे। वे वेदके ज्ञाता, विशाल सेनाके स्वामी, दूरदर्शी, अत्यन्त प्रतापी, नगर और देशवासियोंके प्रिय, महान् यज्ञ करनेवाले, धर्मप्रेमी, स्वाधीन, महर्षियोंके सदृश सद्गुणोंवाले, राजर्षि, त्रैलोक्य प्रसिद्ध पराक्रमी, शत्रुनाशक, उत्तम मित्रोंवाले, जितेन्द्रिय, अतिरथी, धन-धान्यके सञ्चयमें कुबेर और इन्द्रके समान, सत्यप्रतिज्ञ एवं धर्म, अर्थ तथा कामका शास्त्रानुसार पालन करनेवाले थे।
(देखिये वा0 रा0 1 । 6 । 1 से 5 तक)

इनके मन्त्रिमण्डलमें महामुनि वसिष्ठ, वामदेव, सुयज्ञ, जाबालि, काश्यप, गौतम, मार्कण्डेय, कात्यायन, धृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप और धर्मपाल आदि विद्या विनयसम्पन्न, अनीतिमें लजानेवाले, कार्यकुशल, जितेन्द्रिय, श्रीसम्पन्न, पवित्र हृदय, शास्त्रज्ञ, शस्त्रज्ञ, प्रतापी, पराक्रमी, राजनीति-विशारद, सावधान, राजाज्ञाका अनुसरण करनेवाले, तेजस्वी, क्षमावान्, कीर्तिमान्, हँसमुख, काम-क्रोध और लोभसे बचे हुए एवं सत्यवादी पुरुषप्रवर विद्यमान थे।
( वा0 रा0 1।7)

आदर्श राजा और मन्त्रिमण्डलके प्रभावसे प्रजा सबप्रकारसे धर्मरत, सुखी और सम्पन्न थी। महाराज दशरथकी सहायता देवतालोग भी चाहते थे। महाराज दशरथने | अनेक यज्ञ किये थे। अन्तमें पितृमातृ भक्त श्रवणकुमारके वथका प्रायश्चित्त करनेके लिये अश्वमेध तदनन्तर ज्योतिष्टोम आयुष्टोम, अतिरात्र, अभिजित् विश्वजित् और आप्तोर्याम आदि यज्ञ किये। इन यज्ञोंमें दशरथने अन्यान्य वस्तुओंके अतिरिक्त दस लाख दुग्धवती गायें, दस करोड़ सोनेकी मुहरें और चालीस करोड़ चाँदीके रुपये दान दिये थे।

इसके बाद पुत्रप्राप्तिके लिये ऋष्यशृङ्गको ऋत्विज् बनाकर राजाने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, जिसमें समस्त देवतागण अपना-अपना भाग लेनेके लिये स्वयं पधारे थे। देवता और मुनि ऋषियोंकी प्रार्थनापर साक्षात् भगवान्ने दशरथके यहाँ पुत्ररूपसे अवतार लेना स्वीकार किया और यज्ञपुरुषने स्वयं प्रकट होकर पायसान्नसे भरा सुवर्णपात्र देते हुए दशरथसे कहा- 'राजन् ! यह खीर अत्यन्त श्रेष्ठ, आरोग्यवर्धक और प्रजाको उत्पत्ति करनेवाली है। इसको अपनी कौसल्यादि तीनों रानियाँको खिला दो।' राजाने प्रसन्न होकर मर्यादाके अनुसार कौसल्याको बड़ी समझकर उसे खोरका आधा भाग, मझली सुमित्राको चौथाई भाग और कैकेयीको आठवाँ भाग दिया। सुमित्राजी बड़ी थीं, इससे उनको सम्मानार्थ अधिक देना उचित था; इसीलिये बचा हुआ अष्टमांश राजाने फिर सुमित्राजीको दे दिया, जिससे कौसल्याके श्रीराम, सुमित्राके (दो भागोंसे) लक्ष्मण और शत्रुघ्न एवं कैकेयीके भरत हुए। इस प्रकार भगवान्ने चार रूपोंसे अवतार लिया।

राजाको चारों ही पुत्र परम प्रिय थे। परंतु इन सबमें श्रीरामपर उनका विशेष प्रेम था होना ही चाहिये; क्योंकि इन्होंके लिये तो जन्म धारणकर सहस्रों वर्ष प्रतीक्षा की गयी थी। वे रामका अपनी आँखोंसे क्षणभरके लिये भी ओझल होना नहीं सह सकते थे।जब विश्वामित्रजी यज्ञरक्षार्थ श्रीराम-लक्ष्मणको माँगने आये, उस समय श्रीरामका वय पंद्रह वर्षसे अधिक था; परंतु दशरथने उनको अपने पाससे हटाकर विश्वामित्र के साथ भेजने में बड़ी आनाकानी की आखिर बसिहके बहुत समझाने पर वे तैयार हुए। श्रीरामपर अत्यन्त प्रेम होनेका परिचय तो इसीसे मिलता है कि जबतक श्रीराम सामने रहे, तबतक प्राणोंको रखा और अपने वचन सत्य करनेके लिये, रामके बिछुड़ते ही राम-प्रेमानलमें अपने प्राणोंकी आहुति दे डाली।

श्रीरामके प्रेमके कारण ही दशरथ महाराजने राजा केकयके साथ शर्त हो चुकनेपर भी भरतके बदले श्रीरामको युवराज-पदपर अभिषिक्त करना चाहा था। अवश्य ही ज्येष्ठ पुत्रके अभिषेककी कुलपरम्परा एवं भरतके त्याग, आज्ञावाहकता, धर्मपरायणता, शील और रामप्रेम आदि गुण भी राजाके इस मनोरथमें कारण और सहायक हुए थे। परंतु भगवान्ने कैकेयीकी मति फेरकर एक ही साथ कई काम करा दिये। जगत्में आदर्श मर्यादा स्थापित हो गयी, जिसके लिये श्रीभगवान्ने अवतार लिया था। इनमें निम्नलिखित 12 आदर्श मुख्य हैं

(1) दशरथकी सत्यरक्षा और श्रीरामप्रेम।

(2) श्रीरामके वनगमनसे राक्षस वधादिरूप कार्यक द्वारा दुष्ट दलन।

(3) श्रीभरतका त्याग और आदर्श भ्रातृ- -प्रेम ।

(4) श्रीलक्ष्मणजीका ब्रह्मचर्य, सेवाभाव, रामपरायणता और त्याग ।

(5) श्रीसीताजीका आदर्श पवित्र पातिव्रतधर्म ।

(6) श्रीकौसल्याजीका पुत्रप्रेम, पुत्रवधूप्रेम, पातिव्रत, धर्मप्रेम और राजनीति- कुशलता।

(7) श्रीसुमित्राजीका श्रीरामप्रेम, त्याग और

राजनीति कुशलता।

(8) कैकेयीका बदनाम और तिरस्कृत होकर भी

प्रिय 'रामकाज' करना।

(9) श्रीहनुमानजीको निष्काम प्रेमाभक्ति।
(10) श्रीविभीषणजीकी शरणागति और अभय प्राप्ति

(11) सुग्रीवके साथ श्रीरामकी आदर्श मित्रता । (12) रावणादि अत्याचारियोंका अन्तमें विनाश और उद्धारl

यदि भगवान् श्रीरामको वनवास न होता तो इन मर्यादाओंकी स्थापनाका अवसर हो शायद न आता। ये
सभी मर्यादाएँ आदर्श और अनुकरणीय है।

जो कुछ भी हो, महाराज दशरथने तो श्रीरामका वियोग होते ही अपनी जीवन लीला समाप्तकर प्रेमकी टेक रख ली।

जिअन मरन फलु दसरथ पावा l

अंड अनेक अमल जसु छावा ॥

जित राम विधु वदनु निहारा।

राम बिरह करि मरतु संवारा।

श्री दशरथजीकी मृत्यु सुधर गयी, रामके विरहमें प्राण देकर उन्होंने आदर्श स्थापित कर दिया। दशरथके समान भाग्यवान् कौन होगा, जिन्होंने श्रीराम-दर्शन लालसामें अनन्य भावसे रामपरायण हो, रामके लिये और 'राम-राम' पुकारते हुए प्राणोंका त्याग किया।

श्रीरामायण में लङ्का विजयके बाद पुनः दशरथके दर्शन होते हैं। श्रीमहादेवजी भगवान् श्रीरामको विमानपर बैठे हुए दशरथजीके दर्शन कराते हैं। फिर तो दशरथ सामने आकर श्रीरामको गोदमें बैठा लेते हैं और आलिङ्गन करते हुए उनसे प्रेमालाप करते हैं। यहाँ लक्ष्मणको उपदेश करते हुए महाराज दशरथ स्पष्ट कहते। हैं कि हे सुमित्रार्धन लक्ष्मण श्रीरामको सेवामें लगे रहना, तेरा इससे बड़ा कल्याण होगा। इन्द्रसहित तीनों लोक, सिद्ध पुरुष और सभी महान् ऋषि-मुनि पुरुषोत्तम श्रीरामका अभिवन्दन करके उनकी पूजा करते हैं। वेदोंमें जिस अव्यक्त अक्षर ब्रह्मको देवताओंका हृदय और गुप्त तत्त्व कहा है, ये परम तपस्वी राम वही हैं।'

(वा0 रा0 6 119 । 27 - 30 )



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bandaun avadh bhuaal saty prem jehi raam pad l
bichhurat deenadayaal priy tanu toon iv parihareth ..

jinake yahaan bhakti-premavash saakshaat sachchidaanandaghan prabhu putraroopase avateern hue, un param bhaagyavaan mahaaraaj shree dasharathakee mahimaaka varnan kaun kar sakata hai. mahaaraaj dasharathajee manuke avataar the, jo bhagavaan‌ko putraroopase praaptakar aparimit aanandaka anubhav karaneke liye hee dharaadhaamamen padhaare the aur jinhonne apane jeevanaka parityaag aur mokshatakaka sannyaas karake shreeraamapremaka aadarsh sthaapit kar diyaa.

shree dasharathajee param tejasvee manu mahaaraajakee bhaanti hee prajaakee raksha karanevaale the. ve vedake jnaata, vishaal senaake svaamee, dooradarshee, atyant prataapee, nagar aur deshavaasiyonke priy, mahaan yajn karanevaale, dharmapremee, svaadheen, maharshiyonke sadrish sadgunonvaale, raajarshi, trailoky prasiddh paraakramee, shatrunaashak, uttam mitronvaale, jitendriy, atirathee, dhana-dhaanyake sanchayamen kuber aur indrake samaan, satyapratijn evan dharm, arth tatha kaamaka shaastraanusaar paalan karanevaale the.
(dekhiye vaa0 raa0 1 . 6 . 1 se 5 taka)

inake mantrimandalamen mahaamuni vasishth, vaamadev, suyajn, jaabaali, kaashyap, gautam, maarkandey, kaatyaayan, dhrishti, jayant, vijay, suraashtr, raashtravardhan, akop aur dharmapaal aadi vidya vinayasampann, aneetimen lajaanevaale, kaaryakushal, jitendriy, shreesampann, pavitr hriday, shaastrajn, shastrajn, prataapee, paraakramee, raajaneeti-vishaarad, saavadhaan, raajaajnaaka anusaran karanevaale, tejasvee, kshamaavaan, keertimaan, hansamukh, kaama-krodh aur lobhase bache hue evan satyavaadee purushapravar vidyamaan the.
( vaa0 raa0 1.7)

aadarsh raaja aur mantrimandalake prabhaavase praja sabaprakaarase dharmarat, sukhee aur sampann thee. mahaaraaj dasharathakee sahaayata devataalog bhee chaahate the. mahaaraaj dasharathane | anek yajn kiye the. antamen pitrimaatri bhakt shravanakumaarake vathaka praayashchitt karaneke liye ashvamedh tadanantar jyotishtom aayushtom, atiraatr, abhijit vishvajit aur aaptoryaam aadi yajn kiye. in yajnonmen dasharathane anyaany vastuonke atirikt das laakh dugdhavatee gaayen, das karoda़ sonekee muharen aur chaalees karoda़ chaandeeke rupaye daan diye the.

isake baad putrapraaptike liye rishyashringako ritvij banaakar raajaane putreshti yajn kiya, jisamen samast devataagan apanaa-apana bhaag leneke liye svayan padhaare the. devata aur muni rishiyonkee praarthanaapar saakshaat bhagavaanne dasharathake yahaan putraroopase avataar lena sveekaar kiya aur yajnapurushane svayan prakat hokar paayasaannase bhara suvarnapaatr dete hue dasharathase kahaa- 'raajan ! yah kheer atyant shreshth, aarogyavardhak aur prajaako utpatti karanevaalee hai. isako apanee kausalyaadi teenon raaniyaanko khila do.' raajaane prasann hokar maryaadaake anusaar kausalyaako bada़ee samajhakar use khoraka aadha bhaag, majhalee sumitraako chauthaaee bhaag aur kaikeyeeko aathavaan bhaag diyaa. sumitraajee bada़ee theen, isase unako sammaanaarth adhik dena uchit thaa; iseeliye bacha hua ashtamaansh raajaane phir sumitraajeeko de diya, jisase kausalyaake shreeraam, sumitraake (do bhaagonse) lakshman aur shatrughn evan kaikeyeeke bharat hue. is prakaar bhagavaanne chaar rooponse avataar liyaa.

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(1) dasharathakee satyaraksha aur shreeraamaprema.

(2) shreeraamake vanagamanase raakshas vadhaadiroop kaaryak dvaara dusht dalana.

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(5) shreeseetaajeeka aadarsh pavitr paativratadharm .

(6) shreekausalyaajeeka putraprem, putravadhooprem, paativrat, dharmaprem aur raajaneeti- kushalataa.

(7) shreesumitraajeeka shreeraamaprem, tyaag aura

raajaneeti kushalataa.

(8) kaikeyeeka badanaam aur tiraskrit hokar bhee

priy 'raamakaaja' karanaa.

(9) shreehanumaanajeeko nishkaam premaabhakti.
(10) shreevibheeshanajeekee sharanaagati aur abhay praapti

(11) sugreevake saath shreeraamakee aadarsh mitrata . (12) raavanaadi atyaachaariyonka antamen vinaash aur uddhaaral

yadi bhagavaan shreeraamako vanavaas n hota to in maryaadaaonkee sthaapanaaka avasar ho shaayad n aataa. ye
sabhee maryaadaaen aadarsh aur anukaraneey hai.

jo kuchh bhee ho, mahaaraaj dasharathane to shreeraamaka viyog hote hee apanee jeevan leela samaaptakar premakee tek rakh lee.

jian maran phalu dasarath paava l

and anek amal jasu chhaava ..

jit raam vidhu vadanu nihaaraa.

raam birah kari maratu sanvaaraa.

shree dasharathajeekee mrityu sudhar gayee, raamake virahamen praan dekar unhonne aadarsh sthaapit kar diyaa. dasharathake samaan bhaagyavaan kaun hoga, jinhonne shreeraama-darshan laalasaamen anany bhaavase raamaparaayan ho, raamake liye aur 'raama-raama' pukaarate hue praanonka tyaag kiyaa.

shreeraamaayan men lanka vijayake baad punah dasharathake darshan hote hain. shreemahaadevajee bhagavaan shreeraamako vimaanapar baithe hue dasharathajeeke darshan karaate hain. phir to dasharath saamane aakar shreeraamako godamen baitha lete hain aur aalingan karate hue unase premaalaap karate hain. yahaan lakshmanako upadesh karate hue mahaaraaj dasharath spasht kahate. hain ki he sumitraardhan lakshman shreeraamako sevaamen lage rahana, tera isase bada़a kalyaan hogaa. indrasahit teenon lok, siddh purush aur sabhee mahaan rishi-muni purushottam shreeraamaka abhivandan karake unakee pooja karate hain. vedonmen jis avyakt akshar brahmako devataaonka hriday aur gupt tattv kaha hai, ye param tapasvee raam vahee hain.'

(vaa0 raa0 6 119 . 27 - 30 )

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शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
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तेरा पल पल बिता जाए रे
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मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
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