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जीव गोस्वामी की मार्मिक कथा
जीव गोस्वामी की अधबुत कहानी - Full Story of जीव गोस्वामी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [जीव गोस्वामी]- भक्तमाल


चार सौ साल पहले की बात है, बङ्गालके महामहिम | शासक हुसेनशाहके प्रधान अधिकारी दबीर और साकर (सनातन और रूप) की बद्धा और भक्तिसे प्रसन्न होकर श्रीचैतन्य महाप्रभुने रामकेलि ग्रामको यात्रा की। गङ्गातटपर तारोंभरी रातमें मलयानिलसे सम्पन्न नीरव उपवनमें कदम्बके झुरमुटमें जिस समय रूप और सनातनको महाप्रभु चैतन्य हरिनाम ध्वनिसे कृतार्थ कर रहे थे, उसी समय उनके छोटे भाई अनुपम अथवा वल्लभके पुत्र जीव गोस्वामीने उनके दर्शन किये और उनके चरणारविन्द मकरन्दकी अमृत वारुणीसे प्रमत्त होकर अपने आपको पूर्णरूप से समर्पित कर दिया। उनकी अवस्था अल्प थी। पर भक्ति-माधुरीने उनके जीवनको बदल दिया।वृन्दावनसे अनुपम नीलाचल आये, वहीं उनकीमृत्यु हो गयो। पिताको मृत्युने जीव गोस्वामीके हृदयको बड़ा आघात पहुँचाया। वे आनन्दकन्द नन्दनन्दनको राजधानी-वृन्दावनमें आनेके लिये विकल हो उठे। एक रातको उन्होंने स्वप्रमें श्रीचैतन्य और नित्यानन्द महाप्रभुके दर्शन किये, वे नवद्वीप चले आये। नित्यानन्दने उनको काशी तपनमिश्र के आश्रम में शास्त्र अध्ययनके लिये भेजा। जीव गोस्वामीने मधुसूदन वाचस्पतिसे वेदान्त, न्याय आदिकी शिक्षा पायी। वे शास्त्रमें पूर्णरूपसे निष्णात होकर परम विरक्त सनातन और रूपके पास वृन्दावन चले आये। जीवनके शेष पैंसठ वर्ष उन्होंने वृन्दावनमें ही बिताये। श्रीभगवान् के स्वरूप तथा तत्त्वविचारमें उन्होंने अपने पाण्डित्यका सदुपयोग किया। रूपने उनको मन्त्र दिया।और समस्त शास्त्र पढ़ाये। जीव गोस्वामी पूर्णविरक्त हो उठे। वे भगवती कालिन्दीके परम पवित्र तटपर निवास करने लगे। वे भगवान्की उपासना माधुर्य-भावसे करते थे। उनके चरित्र और लीलाको परम तत्त्वका सार समझते थे। रूप गोस्वामीकी महती कृपासे वे धीरे-धीरे न्याय, दर्शन और व्याकरणमें पूर्ण पारङ्गत हो गये। उन्होंने जीवनपर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रतका पालन किया। उन्होंने वृन्दावन - निवासकालमें श्रीरूपगोस्वामिकृत उज्ज्वलनीलमणिकी टीका, क्रमसन्दर्भ नामक भागवतकी टीका, भक्तिसिद्धान्त, उपदेशामृत, षट्सन्दर्भ, गोपालचम्पू, गोविन्दविरुदावली, हरिनामामृत-व्याकरण आदि महान् ग्रन्थोंकी रचना की। ये 'षट्सन्दर्भ' ही गौड़ीयमतानुसार श्रीमद्भागवतकी प्रामाणिक व्याख्या हैं। श्रीजीव गोस्वामीके ये सभी ग्रन्थ 'अचिन्त्यभेदाभेद' मतके अनुसार लिखे गये हैं।

एक बार वल्लभभट्ट नामक एक दिग्विजयी पण्डितने रूपकी किसी कृतिमें दोष निकाला और घोषणा कर दी कि रूपने जयपत्र लिख दिया। जीवके लिये यह बात असह्य हो गयी, उन्होंने शास्त्रार्थमें वल्लभको पराजित किया। रूपको जब यह बात विदित हुई तब उन्होंने जीवको अपने पाससे अलग कर दिया। वे सात-आठ दिनतक एक निर्जन स्थानमें पड़े रहे। सनातनने रूपसेपूछा कि जीवके प्रति वैष्णवका कैसा व्यवहार होना चाहिये। रूपने कहा- 'दयापूर्ण!' सनातनने कहा- 'तुम जीव गोस्वामीके प्रति इतना कठोर व्यवहार क्यों करते हो?' रूपके हृदयपर बड़े भाईके कथनका बड़ा प्रभाव पड़ा। उन्होंने जीवको बुलाकर गले लगाया और अपने पास रख लिया। रूप और सनातनके बाद जीव ही वृन्दावनके वैष्णवोंके सिरमौर घोषित किये गये।

जीव गोस्वामीने भक्तिको रस माना है। वे रसोपासक और विरक्त महात्मा थे। भक्तिसे ही भगवत्स्वरूपका साक्षात्कार होता है। जीव गोस्वामीकी मान्यता थी कि भजनानन्द स्वरूपानन्दसे विशिष्ट है। भजनानन्दसे भगवान्की भक्ति मिलती है, स्वरूपानन्द ब्रह्मत्वका परिचायक है। उन्होंने भक्तिको ज्ञानसे श्रेष्ठ स्वीकार किया है। भक्ति भगवान्‌ की ओर ले जाती है, ज्ञान ब्रह्मानुभूति प्रदान करता है। श्रीमद्भागवतको उन्होंने सर्वश्रेष्ठ भक्तिशास्त्र माना है।

आश्विन शुक्ल तृतीयाको शाके 1540 में पचासी सालकी अवस्थामें उन्होंने देहत्याग किया। वे महान् दार्शनिक, पण्डित और भक्तियोगके पूर्ण मर्मज्ञ थे। महात्मा, योगी, विरक्त, भक्त-सबके सहज समन्वय थे।



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ek baar vallabhabhatt naamak ek digvijayee panditane roopakee kisee kritimen dosh nikaala aur ghoshana kar dee ki roopane jayapatr likh diyaa. jeevake liye yah baat asahy ho gayee, unhonne shaastraarthamen vallabhako paraajit kiyaa. roopako jab yah baat vidit huee tab unhonne jeevako apane paasase alag kar diyaa. ve saata-aath dinatak ek nirjan sthaanamen pada़e rahe. sanaatanane roopasepoochha ki jeevake prati vaishnavaka kaisa vyavahaar hona chaahiye. roopane kahaa- 'dayaapoorna!' sanaatanane kahaa- 'tum jeev gosvaameeke prati itana kathor vyavahaar kyon karate ho?' roopake hridayapar bada़e bhaaeeke kathanaka bada़a prabhaav pada़aa. unhonne jeevako bulaakar gale lagaaya aur apane paas rakh liyaa. roop aur sanaatanake baad jeev hee vrindaavanake vaishnavonke siramaur ghoshit kiye gaye.

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aashvin shukl triteeyaako shaake 1540 men pachaasee saalakee avasthaamen unhonne dehatyaag kiyaa. ve mahaan daarshanik, pandit aur bhaktiyogake poorn marmajn the. mahaatma, yogee, virakt, bhakta-sabake sahaj samanvay the.

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राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
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कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
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