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प्रभु श्रीनित्यानन्द की मार्मिक कथा
प्रभु श्रीनित्यानन्द की अधबुत कहानी - Full Story of प्रभु श्रीनित्यानन्द (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [प्रभु श्रीनित्यानन्द]- भक्तमाल


भारतीय इतिहासके मध्यकालीन भक्ति-विकासमें निताई और निमाईका नाम बड़ी श्रद्धासे लिया जाता है। भगवद्भक्तिके प्रचारसे निताई और निमाईने केवल वङ्गदेशको ही नहीं, समस्त भारतको प्रभावित किया। नित्यानन्द मधुरातिमधुर भक्ति-सुधाका पान करके रात-दिन उन्मत्तकी तरह हरिनाम ध्वनिसे असंख्य जीवोंका उद्धार करते रहते थे।

शस्यश्यामला वङ्गभूमिके वीरभूमि जनपदके एकचाका गाँवमें शाके 1395 के माघ मासमें श्रीनित्यानन्दका जन्म हुआ था। उनके पिता-माता हाँड़ाई पण्डित और पद्मावती बड़े धर्मनिष्ठ थे। दोनों विष्णुभक्त थे। एक बार पद्मावतीने स्वप्रमें एक महापुरुषको देखा। उन्होंने कहा कि 'तुम्हारे गर्भसे एक ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा, जो पापियोंका उद्धार करेगा और नर-नारियोंको भक्तिका मार्ग दिखायेगा।' नित्यानन्दने महापुरुषके कथनकी सत्यता प्रमाणित कर दी। बचपनसे ही नित्यानन्दमें अलौकिक पुरुषके लक्षण प्रकट होने लगे। वे श्रीकृष्णकी बाल लीलाका अनुकरण करते-करते उन्मत्त हो जाया करते थे। वे बाल्यावस्थासेही संसारके प्रपञ्चोंके प्रति उदासीन रहने लगे।

एक बार उनके घरपर एक संन्यासी आये। निताईके स्वभाव और उनकी प्रतिभापर आकृष्ट होकर उन्होंने उनको अपने साथ ले लिया, निताई इस घटनाके बाद फिर कभी घर नहीं लौटे। निताईने तीर्थाटन आरम्भ किया। अयोध्या, हस्तिनापुर होते हुए वे व्रज पहुँचे। इस तीर्थयात्रामें उनकी श्रीमाधवेन्द्रपुरीसे भेंट हुई। दोनों प्रेमविह्वल होकर एक-दूसरेसे मिले। तदनन्तर निताई वृन्दावनमें एक पागलकी तरह भगवान् श्रीकृष्णके अन्वेषणमें घूमने लगे। बिना माँगे कोई कुछ दे देता तो खा लेते, नहीं तो भूखे ही रह जाते। महात्मा ईश्वरपुरीने उनसे एक बार कहा 'ठाकुर ! यहाँ क्या देखते हो, तुम्हारे श्रीकृष्ण तो नवद्वीपमें शचीके घर पैदा हो गये हैं।' निताई नवद्वीपके लिये चल पड़े। नित्यानन्द नवद्वीप पहुँचकर नन्दन आचार्यके घर ठहर गये। निमाई पण्डित (श्रीचैतन्य) ने अपने शिष्योंसहित निताईके दर्शन किये। उनके कानोंमें कुण्डल थे, शरीरपर पीताम्बर लहरा रहा था। उनकी भुजाएँ घुटनोंतक लंबी थीं, उनकी कान्तिअत्यन्त दिव्य थी। निमाई अपने-आपको अधिक समयतक सँभाल न सके। श्रीगौरचन्द्रने उनकी चरण-वन्दना की। नित्यानन्दने उनको अपने प्रेमालिङ्गनमें आबद्ध कर लिया। दोनोंने अद्भुत कम्प, अश्रुपात, गर्जन और हुंकारसे सारे वातावरणको प्रभावित कर दिया। चैतन्यने कहा—'बंगालमें भक्ति-भागीरथीके प्रवाहित होनेका समय आ गया है।' निताई और निमाईकी अलौकिक छविने नवद्वीपको मनोमुग्ध कर लिया।

शची माता निताईको अपने बड़े लड़केके समान मानती थीं। उनके जीवनकी अनेक अलौकिक घटनाएँ हैं। एक बार वे गौरके घर अवधूतवेषमें पहुँच गये। गौर विष्णुप्रियासे बात कर रहे थे। विष्णुप्रिया लज्जासे घरमें छिप गयीं। निताईके नयनोंसे अश्रु बह रहे थे, मधुर हरिनामका रसनासे उच्चारण हो रहा था। वे बाह्यज्ञानशून्य थे। गौरने माला पहनाकर उनका चरणामृत लिया। निताई चैतन्यके आदेश से नवद्वीप और उनके आस-पासके स्थानोंमें हरिनामका प्रचार करने लगे। जगाई-मधाईसरीखे पातकियोंके उद्धारमें उन्होंने महान् योग दिया। निताईने दोनों भाइयोंसे श्रीकृष्णनामोच्चारण करनेके लिये कहा। वे मदिरोन्मत्त थे। मधाईने निताईके सिरपर फूटा घड़ा फेंका, उनका शरीर रक्तसे सराबोर हो उठा। जगाईने मधाईको फटकारा, चैतन्यने जगाईको गले लगाया। इसपर मधाईको बड़ा पश्चात्ताप हुआ, उसने निताईसे क्षमा माँगी, चरण-स्पर्श किया; उसका उद्धार हो गया।

नवद्वीपसे वे पुरी आये। फिर चैतन्यके आदेशसे गौड़देशमें हरिनामका प्रचार करनेके लिये चल पड़े। गौराङ्गके कहनेपर उन्होंने पुनः विवाहित जीवनमें प्रवेश किया। अम्बिकानगरके सूर्यदासकी कन्या वसुधा और | जाह्नवीका उन्होंनें पाणिग्रहण किया। वे खड़दहमें भगवती भागीरथीके तटपर निवास करने लगे। उनके वीरचन्द्र नामका एक पुत्र भी हुआ। एक दिन भगवान् श्यामसुन्दरके मन्दिरमें हरिका नाम लेते-लेते वे सदाके लिये अचेत हो गये। भगवान्ने भक्तको अपना लिया।



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shasyashyaamala vangabhoomike veerabhoomi janapadake ekachaaka gaanvamen shaake 1395 ke maagh maasamen shreenityaanandaka janm hua thaa. unake pitaa-maata haanड़aaee pandit aur padmaavatee bada़e dharmanishth the. donon vishnubhakt the. ek baar padmaavateene svapramen ek mahaapurushako dekhaa. unhonne kaha ki 'tumhaare garbhase ek aisa putr utpann hoga, jo paapiyonka uddhaar karega aur nara-naariyonko bhaktika maarg dikhaayegaa.' nityaanandane mahaapurushake kathanakee satyata pramaanit kar dee. bachapanase hee nityaanandamen alaukik purushake lakshan prakat hone lage. ve shreekrishnakee baal leelaaka anukaran karate-karate unmatt ho jaaya karate the. ve baalyaavasthaasehee sansaarake prapanchonke prati udaaseen rahane lage.

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