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दृढ़निश्चयी ब्राह्मणभक्त की मार्मिक कथा
दृढ़निश्चयी ब्राह्मणभक्त की अधबुत कहानी - Full Story of दृढ़निश्चयी ब्राह्मणभक्त (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [दृढ़निश्चयी ब्राह्मणभक्त]- भक्तमाल


कृष्णनगरके पास एक गाँवमें एक ब्राह्मण रहते थे! वे पुरोहितीका काम करते थे। एक दिन यजमानके यहाँ पूजा कराकर घर लौटते समय उन्होंने रास्तेमें देखा कि एक मालिन (सागवाली) एक ओर बैठी साग बेच रही है। भीड़ लगी है। कोई साग तुलवा रहा है तो कोई मोल कर रहा है। पण्डितजी रोज उसी रास्ते जाते और सागवालीको भी वहीं देखते। एक दिन किसी जान पहचानके आदमीको साग खरीदते देखकर वे भी वहीं खड़े हो गये। उन्होंने देखा - सागवालीके पास एक पत्थरका बाट है। उसीसे वह पाँच सेरवालेको पाँच सेर और एक सेरवालेको एक सेर साग तौल रही है। एक ही बाट सब तौलोंमें समान काम देता है! पण्डितजीको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सागवालीसे पूछा—'तुम इस एक ही पत्थरके बाटसे कैसे सबको तौल देती हो? क्या सबका वजन ठीक उतरता है?' पण्डितजीके परिचित व्यक्तिने कहा- 'हाँ, पण्डितजी ! यह बड़े अचरजकी बात हैं। हमलोगोंने कई बार इससे लिये हुए सागको दूसरी जगह तौलकर आजमाया, पूरा वजन उतरा।' पण्डितजीने कुछ रुककर सागवालीसे कहा-'बेटी! यह पत्थर मुझे दोगी?' सागवाली बोली- 'नहीं बाबाजी ! तुम्हें नहीं दूँगी। मैंने बड़ी कठिनतासे इसको पाया है। मेरे सेर-बटखरे खो जाते तो घर जानेपर माँ और बड़े भाई मुझे मारते। तीन वर्षकी बात है, मेरे बटखरे खो गये। मैं घर गयी तो बड़े भाईने मुझे मारा। मैं रोती रोती घाटपर आकर बैठ गयी और मन-ही-मन भगवान्‌को पुकारने लगी। इतनेमें ही मेरे पैरके पास यह पत्थर लगा। मैंने इसको उठाकर ठाकुरजीसे कहा- 'महाराज ! मैं तौलना नहीं जानती; आप ऐसी कृपा करें जिससे इसीसे सारे तौल हो जायँ।' बस, तबसे मैं इसे रखती हूँ। अब मुझे अलग-अलग बटखरोंकी जरूरत नहीं होती। इसीसे सब काम निकल जाता है। बताओ, तुम्हें कैसे दे दूँ।' पण्डितजी बोले-'मैं तुम्हें बहुत-से रुपये दूँगा।' सागवालीने कहा—'कितने रुपये दोगे तुम? मुझे वृन्दावनका खर्च दे दोगे? सब लोग वृन्दावन गये हैं; मैंही नहीं जा सकी हूँ।' ब्राह्मणने पूछा, 'कितने रुपये में तुम्हारा काम होगा?' सागवालीने कहा- 'पूरे 300) रुपये चाहिये।' ब्राह्मण बोले-'अच्छा, बेटी! यह तो बताओ, तुम इस शिलाको रखती कहाँ हो?' सागवालीने | कहा- 'इसी टोकरीमें रखती हूँ; बाबाजी ! और कहाँ रखूँगी ?'

ब्राह्मण घर लौट आये और चुपचाप बैठे रहे। ब्राह्मणीने पतिसे पूछा- 'यों उदास-से क्यों बैठे हैं? देर जो हो गयी है। ब्राह्मणने कहा-'आज मेरा मन खराब हो रहा है, मुझे तीन सौ रुपयेकी जरूरत है।' स्त्रीने कहा- 'इसमें कौन-सी बात है। आपने ही तो मेरे गहने बनवाये थे। विशेष जरूरत हो तो लीजिये, इन्हें ले जाइये; होना होगा तो फिर हो जायगा।' इतना कहकर ब्राह्मणीने गहने उतार दिये।

ब्राह्मणने गहने बेचकर रुपये इकट्ठे किये और दूसरे दिन सबेरे सागवालीके पास जाकर उसे रुपये गिन दिये और बदले में उस शिलाको ले लिया। गङ्गाजीपर जाकर उसको अच्छी तरह धोया और फिर नहा-धोकर वे घर लौट आये। इधर पीछेसे एक छोटा-सा सुकुमार बालक आकर ब्राह्मणीसे कह गया - 'पण्डिताइनजी! तुम्हारे घर ठाकुरजी आ रहे हैं, घरको अच्छी तरह झाड़-बुहारकर ठीक करो।' सरलहृदया ब्राह्मणीने घर साफ करके उसमें पूजाकी सामग्री सजा दी। ब्राह्मणने आकर देखा तो उन्हें अचरज हुआ। ब्राह्मणीसे पूछनेपर उसने छोटे बालकके आकर कह जानेको बात सुनायी। यह सुनकर पण्डितजीको और भी आश्चर्य हुआ। पण्डितजीने शिलाको सिंहासनपर पधराकर उसकी पूजा की। फिर उसे ऊपर आलेमें पधरा दिया।

रातको सपने में भगवान् ने कहा- 'तू मुझे जल्दी लौटा आ नहीं तो तेरा भला नहीं होगा, सर्वनाश हो जायगा।' ब्राह्मणने कहा- जो कुछ भी हो, मैं तुमको लौटाऊँगा नहीं।' ब्राह्मण घरमें जो कुछ भी पत्र-पुष्प मिलता उसीसे पूजा करने लगे। दो-चार दिनों बाद स्वप्रमें फिर कहा- 'मुझे फेंक आ नहीं तो तेरा लड़का मर जायगा।' ब्राह्मणने कहा-'मर जाने दो, तुम्हें नहींफेंकूंगा।' महीना पूरा बीतने भी नहीं पाया था कि ब्राह्मणका एकमात्र पुत्र मर गया। कुछ दिनों बाद फिर स्वप्र हुआ अब भी मुझे वापस दे आ नहीं तो तेरी लड़की मर जायगी।' दृढनिश्चयी ब्राह्मणने पहलेवाला हो जवाब दिया। कुछ दिनों पश्चात् लड़की मर गयी। फिर कहा कि 'अबकी बार स्त्री मर जायगी। ब्राह्मणने इसका भी वही उत्तर दिया। अब स्त्री भी मर गयी। इतनेपर भी ब्राह्मण अचल- अटल रहा। लोगोंने समझा, यह पागल हो गया है। कुछ दिन बीतनेपर स्वप्रमें फिर कहा गया- 'देख, अब भी मान जा, मुझे लौटा दे। नहीं तो सात दिनोंमें तेरे सिरपर बिजली गिरेगी। ब्राह्मण बोले- 'गिरने दो, मैं तुम्हें उस सागवालीकी गंदी टोकरीमें नहीं रखनेका ब्राह्मणने एक मोटे कपड़े में लपेटकर भगवान्को अपने माथे पर मजबूत बाँध लिया। ये सब समय यों ही उन्हें बाँधे रखते। कड़कड़ाकर बिजली काँधती-नजदीक आती पर लौट जातो अब तोन हो दिन शेष रह गये। एक दिन ब्राह्मण गङ्गाजीके घाटपर सन्ध्या-पूजा कर रहे थे कि दो सुन्दर बालक उनके पास आकर जलमें कूदे। उनमें एक साँवला था, दूसरा गोरा उनके शरीरपर कीचड़ लिपटा था। वे इस ढंगसे जलमें कूदे कि जल उछलकर ब्राह्मणके शरीरपर पड़ा। ब्राह्मणने कहा- 'तुमलोग कौन हो, भैया? कहाँ इस तरह जलमें कूदा जाता है? देखो, मेरे शरीरपर जल पड़ गया इतना ही नहीं, मेरे भगवानूपर भी छोटे पड़ गये। देखते नहीं, मैं पूजा कर रहा था।' बच्चोंने कहा-'ओहो ! तुम्हारे भगवानूपर भी छोटे लग गये? हमने देखा नहीं, बाबा! तुम गुस्सा न होना!' पण्डितजीने कहा- नहीं, भैया! गुस्सा कहाँ होता हूँ। बताओ तो तुम किसके लड़के हो? ऐसा सुन्दर रूप तो मैंने कभी नहीं देखा ! कहाँ रहते हो, भैया! आहा! कैसी अमृतघोली मोठी बोली है।' बच्चेनि कहा 'बाबा! हम तो यहाँ रहते हैं।' पण्डितजी बोले-'भैया! क्या फिर भी कभी मैं तुमलोगों को देख सकूँगा।' बच्चोंने कहा- क्यों नहीं, बाबा? पुकारते हो हम आ जायेंगे।' पण्डितजीके नाम पूछने पर हमारा कोई एक नाम नहीं है; जिसका जो मन होता है, उसी नामसे वह हमें पुकार लेता है।"साँवला लड़का इतना कहकर बोला-'यह लो, मुरली; जरूरत हो तब इसे बजाना बजाते ही हमलोग आ जायेंगे।' दूसरे गोरे लड़केने एक फूल देकर पण्डितजी से कहा-'बाबा ! इस फूलको अपने पास रखना, तुम्हारा मङ्गल होगा।' वे जबतक वहाँसे चले नहीं गये, ब्राह्मण निर्निमेषदृष्टिसे उनकी ओर आँखें लगाये रहे मन-ही मन सोचने लगे- 'आहा! कितने सुन्दर हैं दोनों कभी फिर भी इनके दर्शन होंगे?"

ब्राह्मणने फूल देखकर सोचा- 'फूल तो बहुत बढ़िया है, कैसी मनोहर गन्ध आ रही है इसमें। पर मैं इसका क्या करूँगा और रखूंगा भी कहाँ ? इससे अच्छा है, राजाको ही दे आऊँ। नयी चीज है, वह राजी होगा।' यह सोचकर पण्डितजीने जाकर फूल राजाको दे दिया। राजा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे महलमें ले जाकर बड़ी रानीको दिया। इतनेमें ही छोटी रानीने आकर कहा- 'मुझे भी एक ऐसा ही फूल मँगवा दो; नहीं तो मैं डूब मरूँगी।'

राजा दरवारमें आये और सिपाहियोंको उसी समय पण्डितजीको खोजने भेजा। सिपाहियोंने ढूँढ़ते-ढूँढ़ते जाकर देखा-ब्राह्मणदेवता सिरपर सिला बाँधे पेड़की छायामें बैठे गुनगुना रहे हैं। वे उनको राजाके पास लिवा लाये। राजाने कहा- 'महाराज! वैसा ही एक फूल और चाहिये।' पण्डितजी बोले- 'राजन्! मेरे पास तो वह एक ही फूल था; पर देखिये, चेष्टा करता हूँ।' ब्राह्मण उन लड़कोंको खोज निकल पड़े। अकस्मात् उन्हें मुरलीवाली बात याद आ गयी। उन्होंने मुरली बजायी । उसी क्षण गौर-श्याम जोड़ी प्रकट हो गयी। ब्राह्मण रूपमाधुरीके पानमें मतवाले हो गये। कुछ देर बाद उन्होंने कहा- 'भैया! वैसा एक फूल और चाहिये। मैंने तुम्हारा दिया हुआ फूल राजाको दिया था। राजाने वैसा ही एक फूल और माँगा है।' गोरे बालकने कहा- 'फूल तो हमारे पास नहीं है; परंतु हम तुम्हें एक ऐसी जगह से जायेंगे, जहाँ कैसे फूलोंका बगीचा खिला है। तुम आँखें बंद करो।' ब्राह्मणने आँखें मूंद लीं। बच्चे उनका हाथ पकड़कर न मालूम किस रास्तेसे बात की बातमें कहाँ से गये। एक जगह पहुंचकर ब्राह्मणने आँखेंखोलीं। देखकर मुग्ध हो गये। बड़ा सुन्दर स्थान है, चारों ओर सुन्दर सुन्दर वृक्ष लता आदि पुष्पोंकी मधुर गन्धसे सुशोभित हैं। बगीचेके बीचमें एक बड़ा मनोहर महल है। ब्राह्मणने देखा तो वे बालक गायब थे। वे साहस करके आगे बढ़े। महलके अंदर जाकर देखते हैं, सब ओरसे सुसज्जित बड़ा सुरम्य स्थान है। बीचमें एक दिव्य रत्नोंका सिंहासन है। सिंहासन खाली है। पण्डितजीने उस स्थानको मन्दिर समझकर प्रणाम किया। उनके माँथेमें बंधी हुई ठाकुरजीको शिला खुलकर फर्शपर पड़ गयी। ज्यों ही पण्डितीने उसे उठानेको हाथ बढ़ाया कि शिला फटी और उसमेंसे भगवान् लक्ष्मीनारायण प्रकट होकर शून्य सिंहासनपर विराजमान हो गये!भगवान् नारायणने मुसकराते हुए ब्राह्मणसे कहा- "हमने तुमको कितने दुःख दिये, परंतु तुम अटल रहे। दुःख पानेपर भी तुमने हमें छोड़ा नहीं, पकड़े ही रहे; इसीसे तुम्हें हम सशरीर यहाँ ले आये हैं।

ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् ।

हित्वा मां शरणं याताः कथं तांस्त्यक्तुमुत्सहे ॥

"जो भक्त स्त्री, पुत्र, घर, गुरुजन, प्राण, धन, इहलोक |और परलोक-सबको छोड़कर हमारी शरणमें आ गये हैं, भला, उन्हें हम कैसे छोड़ सकते हैं।' इधर देखो - यह खड़ी है तुम्हारी सहधर्मिणी, तुम्हारी कन्या और तुम्हारा पुत्र । ये भी मुझे प्रणाम कर रहे हैं। तुम सबको मेरी प्राप्ति हो गयी। तुम्हारी एककी दृढ़तासे सारा परिवार मुक्त हो गया !"



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braahman ghar laut aaye aur chupachaap baithe rahe. braahmaneene patise poochhaa- 'yon udaasa-se kyon baithe hain? der jo ho gayee hai. braahmanane kahaa-'aaj mera man kharaab ho raha hai, mujhe teen sau rupayekee jaroorat hai.' streene kahaa- 'isamen kauna-see baat hai. aapane hee to mere gahane banavaaye the. vishesh jaroorat ho to leejiye, inhen le jaaiye; hona hoga to phir ho jaayagaa.' itana kahakar braahmaneene gahane utaar diye.

braahmanane gahane bechakar rupaye ikatthe kiye aur doosare din sabere saagavaaleeke paas jaakar use rupaye gin diye aur badale men us shilaako le liyaa. gangaajeepar jaakar usako achchhee tarah dhoya aur phir nahaa-dhokar ve ghar laut aaye. idhar peechhese ek chhotaa-sa sukumaar baalak aakar braahmaneese kah gaya - 'panditaainajee! tumhaare ghar thaakurajee a rahe hain, gharako achchhee tarah jhaaड़-buhaarakar theek karo.' saralahridaya braahmaneene ghar saaph karake usamen poojaakee saamagree saja dee. braahmanane aakar dekha to unhen acharaj huaa. braahmaneese poochhanepar usane chhote baalakake aakar kah jaaneko baat sunaayee. yah sunakar panditajeeko aur bhee aashchary huaa. panditajeene shilaako sinhaasanapar padharaakar usakee pooja kee. phir use oopar aalemen padhara diyaa.

raatako sapane men bhagavaan ne kahaa- 'too mujhe jaldee lauta a naheen to tera bhala naheen hoga, sarvanaash ho jaayagaa.' braahmanane kahaa- jo kuchh bhee ho, main tumako lautaaoonga naheen.' braahman gharamen jo kuchh bhee patra-pushp milata useese pooja karane lage. do-chaar dinon baad svapramen phir kahaa- 'mujhe phenk a naheen to tera lada़ka mar jaayagaa.' braahmanane kahaa-'mar jaane do, tumhen naheenphenkoongaa.' maheena poora beetane bhee naheen paaya tha ki braahmanaka ekamaatr putr mar gayaa. kuchh dinon baad phir svapr hua ab bhee mujhe vaapas de a naheen to teree lada़kee mar jaayagee.' dridhanishchayee braahmanane pahalevaala ho javaab diyaa. kuchh dinon pashchaat lada़kee mar gayee. phir kaha ki 'abakee baar stree mar jaayagee. braahmanane isaka bhee vahee uttar diyaa. ab stree bhee mar gayee. itanepar bhee braahman achala- atal rahaa. logonne samajha, yah paagal ho gaya hai. kuchh din beetanepar svapramen phir kaha gayaa- 'dekh, ab bhee maan ja, mujhe lauta de. naheen to saat dinonmen tere sirapar bijalee giregee. braahman bole- 'girane do, main tumhen us saagavaaleekee gandee tokareemen naheen rakhaneka braahmanane ek mote kapada़e men lapetakar bhagavaanko apane maathe par majaboot baandh liyaa. ye sab samay yon hee unhen baandhe rakhate. kada़kada़aakar bijalee kaandhatee-najadeek aatee par laut jaato ab ton ho din shesh rah gaye. ek din braahman gangaajeeke ghaatapar sandhyaa-pooja kar rahe the ki do sundar baalak unake paas aakar jalamen koode. unamen ek saanvala tha, doosara gora unake shareerapar keechada़ lipata thaa. ve is dhangase jalamen koode ki jal uchhalakar braahmanake shareerapar pada़aa. braahmanane kahaa- 'tumalog kaun ho, bhaiyaa? kahaan is tarah jalamen kooda jaata hai? dekho, mere shareerapar jal pada़ gaya itana hee naheen, mere bhagavaanoopar bhee chhote pada़ gaye. dekhate naheen, main pooja kar raha thaa.' bachchonne kahaa-'oho ! tumhaare bhagavaanoopar bhee chhote lag gaye? hamane dekha naheen, baabaa! tum gussa n honaa!' panditajeene kahaa- naheen, bhaiyaa! gussa kahaan hota hoon. bataao to tum kisake lada़ke ho? aisa sundar roop to mainne kabhee naheen dekha ! kahaan rahate ho, bhaiyaa! aahaa! kaisee amritagholee mothee bolee hai.' bachcheni kaha 'baabaa! ham to yahaan rahate hain.' panditajee bole-'bhaiyaa! kya phir bhee kabhee main tumalogon ko dekh sakoongaa.' bachchonne kahaa- kyon naheen, baabaa? pukaarate ho ham a jaayenge.' panditajeeke naam poochhane par hamaara koee ek naam naheen hai; jisaka jo man hota hai, usee naamase vah hamen pukaar leta hai."saanvala lada़ka itana kahakar bolaa-'yah lo, muralee; jaroorat ho tab ise bajaana bajaate hee hamalog a jaayenge.' doosare gore lada़kene ek phool dekar panditajee se kahaa-'baaba ! is phoolako apane paas rakhana, tumhaara mangal hogaa.' ve jabatak vahaanse chale naheen gaye, braahman nirnimeshadrishtise unakee or aankhen lagaaye rahe mana-hee man sochane lage- 'aahaa! kitane sundar hain donon kabhee phir bhee inake darshan honge?"

braahmanane phool dekhakar sochaa- 'phool to bahut badha़iya hai, kaisee manohar gandh a rahee hai isamen. par main isaka kya karoonga aur rakhoonga bhee kahaan ? isase achchha hai, raajaako hee de aaoon. nayee cheej hai, vah raajee hogaa.' yah sochakar panditajeene jaakar phool raajaako de diyaa. raaja bahut prasann hue. unhonne use mahalamen le jaakar bada़ee raaneeko diyaa. itanemen hee chhotee raaneene aakar kahaa- 'mujhe bhee ek aisa hee phool mangava do; naheen to main doob maroongee.'

raaja daravaaramen aaye aur sipaahiyonko usee samay panditajeeko khojane bhejaa. sipaahiyonne dhoonढ़te-dhoonढ़te jaakar dekhaa-braahmanadevata sirapar sila baandhe peda़kee chhaayaamen baithe gunaguna rahe hain. ve unako raajaake paas liva laaye. raajaane kahaa- 'mahaaraaja! vaisa hee ek phool aur chaahiye.' panditajee bole- 'raajan! mere paas to vah ek hee phool thaa; par dekhiye, cheshta karata hoon.' braahman un lada़konko khoj nikal pada़e. akasmaat unhen muraleevaalee baat yaad a gayee. unhonne muralee bajaayee . usee kshan gaura-shyaam joda़ee prakat ho gayee. braahman roopamaadhureeke paanamen matavaale ho gaye. kuchh der baad unhonne kahaa- 'bhaiyaa! vaisa ek phool aur chaahiye. mainne tumhaara diya hua phool raajaako diya thaa. raajaane vaisa hee ek phool aur maanga hai.' gore baalakane kahaa- 'phool to hamaare paas naheen hai; parantu ham tumhen ek aisee jagah se jaayenge, jahaan kaise phoolonka bageecha khila hai. tum aankhen band karo.' braahmanane aankhen moond leen. bachche unaka haath pakada़kar n maaloom kis raastese baat kee baatamen kahaan se gaye. ek jagah pahunchakar braahmanane aankhenkholeen. dekhakar mugdh ho gaye. bada़a sundar sthaan hai, chaaron or sundar sundar vriksh lata aadi pushponkee madhur gandhase sushobhit hain. bageecheke beechamen ek bada़a manohar mahal hai. braahmanane dekha to ve baalak gaayab the. ve saahas karake aage badha़e. mahalake andar jaakar dekhate hain, sab orase susajjit bada़a suramy sthaan hai. beechamen ek divy ratnonka sinhaasan hai. sinhaasan khaalee hai. panditajeene us sthaanako mandir samajhakar pranaam kiyaa. unake maanthemen bandhee huee thaakurajeeko shila khulakar pharshapar pada़ gayee. jyon hee panditeene use uthaaneko haath badha़aaya ki shila phatee aur usamense bhagavaan lakshmeenaaraayan prakat hokar shoony sinhaasanapar viraajamaan ho gaye!bhagavaan naaraayanane musakaraate hue braahmanase kahaa- "hamane tumako kitane duhkh diye, parantu tum atal rahe. duhkh paanepar bhee tumane hamen chhoda़a naheen, pakada़e hee rahe; iseese tumhen ham sashareer yahaan le aaye hain.

ye daaraagaaraputraaptaan praanaan vittamiman param .

hitva maan sharanan yaataah kathan taanstyaktumutsahe ..

"jo bhakt stree, putr, ghar, gurujan, praan, dhan, ihalok |aur paraloka-sabako chhoda़kar hamaaree sharanamen a gaye hain, bhala, unhen ham kaise chhoda़ sakate hain.' idhar dekho - yah khada़ee hai tumhaaree sahadharminee, tumhaaree kanya aur tumhaara putr . ye bhee mujhe pranaam kar rahe hain. tum sabako meree praapti ho gayee. tumhaaree ekakee dridha़taase saara parivaar mukt ho gaya !"

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शिव समा रहे मुझमें
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राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
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राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
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तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
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जोगी बन जाना शिवा दा नाम जपके...
रूह गद गद...हो गयी ए, दातिए दर्शन करके
तेरी ज्योत दे चानन ने... कित्ते दूर
करो हे शिव शम्भू कल्याण,
करो हे शिव शम्भू कल्याण,