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दैत्यराज विरोचन की मार्मिक कथा
दैत्यराज विरोचन की अधबुत कहानी - Full Story of दैत्यराज विरोचन (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [दैत्यराज विरोचन]- भक्तमाल


ननु स्वार्थपरो लोको न वेद परसङ्कटम् ।
यदि वेद न याचेत नेति नाह यदीश्वरः ॥

(श्रीमद्भा0 6 1016)

श्रीप्रह्लादजीके पुत्र दैत्यराज विरोचन परम ब्राह्मणभक्त थे । इन्द्रके साथ ही ब्रह्मलोकमें ब्रह्माजीके पास ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए उन्होंने निवास किया था। ब्रह्माजीके द्वारा उपदेश किया हुआ तत्त्वज्ञान यद्यपि वे यथार्थरूपसे ग्रहण नहीं कर सके, तथापि धर्ममें उनकी श्रद्धा थी और उनकी गुरुभक्तिके कारण महर्षि शुक्राचार्य उनपर बहुत प्रसन्न 1 विरोचनके दैत्याधिपति होनेपर दैत्यों, दानवों तथा असुरोंका बल बहुत बढ़ गया था। इन्द्रको कोई रास्ता ही नहीं दीखता था कि कैसे वे दैत्योंकी बढ़ती हुई शक्तिको दबाकर रखें। विरोचनने स्वर्गपर अधिकार करनेकी इच्छा नहीं की थी; किन्तु इन्द्रका भय बढ़ता जाता था । इन्द्र देखते थे कि यदि कभी दैत्योंने आक्रमण किया तो हम धर्मात्मा विरोचनको हरा नहीं सकते। अन्तमें देवगुरु बृहस्पतिकी सलाहसे एक दिन वे वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारण करके विरोचनके यहाँ गये। ब्राह्मणोंके परम भक्त और उदार शिरोमणि दैत्यराजने उनका स्वागत किया, उनके चरणधोये और उनका पूजन किया। इन्द्रने विरोचनके दान और उनकी उदारताकी बहुत ही प्रशंसा की।

विरोचनने नम्रतापूर्वक वृद्ध ब्राह्मणसे कहा कि 'आपको जो कुछ माँगना हो, उसे आप संकोच छोड़कर माँग लें।' इन्द्रने बातको अनेक प्रकारसे पक्की कराके तब कहा - 'दैत्यराज ! मुझे आपकी आयु चाहिये।' बात यह थी कि यदि विरोचनको किसी प्रकार मार भी दिया जाता तो शुक्राचार्य उन्हें अपनी संजीवनी विद्यासे फिर जीवित कर सकते थे।

विरोचनको बड़ी प्रसन्नता हुई। वे कहने लगे-'मैं धन्य हूँ। मेरा जन्म लेना सफल हो गया। आज मेरा जीवन एक विप्रने स्वीकार किया, इससे बड़ा सौभाग्य मेरे लिये और क्या हो सकता है।'

अपने हाथमें खड्ग लेकर स्वयं उन्होंने अपना मस्तक काटकर वृद्ध ब्राह्मण बने हुए इन्द्रको दे दिया। इन्द्र उस मस्तकको लेकर भयके कारण शीघ्रता से स्वर्ग चले आये और यह अपूर्व दान करके विरोचन तो भगवान्‌के नित्य धाममें ही पहुँच गये। भगवान्ने उन्हें अपने निज जनोंमें ले लिया।



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nanu svaarthaparo loko n ved parasankatam .
yadi ved n yaachet neti naah yadeeshvarah ..

(shreemadbhaa0 6 1016)

shreeprahlaadajeeke putr daityaraaj virochan param braahmanabhakt the . indrake saath hee brahmalokamen brahmaajeeke paas brahmacharyaka paalan karate hue unhonne nivaas kiya thaa. brahmaajeeke dvaara upadesh kiya hua tattvajnaan yadyapi ve yathaartharoopase grahan naheen kar sake, tathaapi dharmamen unakee shraddha thee aur unakee gurubhaktike kaaran maharshi shukraachaary unapar bahut prasann 1 virochanake daityaadhipati honepar daityon, daanavon tatha asuronka bal bahut badha़ gaya thaa. indrako koee raasta hee naheen deekhata tha ki kaise ve daityonkee badha़tee huee shaktiko dabaakar rakhen. virochanane svargapar adhikaar karanekee ichchha naheen kee thee; kintu indraka bhay badha़ta jaata tha . indr dekhate the ki yadi kabhee daityonne aakraman kiya to ham dharmaatma virochanako hara naheen sakate. antamen devaguru brihaspatikee salaahase ek din ve vriddh braahmanaka roop dhaaran karake virochanake yahaan gaye. braahmanonke param bhakt aur udaar shiromani daityaraajane unaka svaagat kiya, unake charanadhoye aur unaka poojan kiyaa. indrane virochanake daan aur unakee udaarataakee bahut hee prashansa kee.

virochanane namrataapoorvak vriddh braahmanase kaha ki 'aapako jo kuchh maangana ho, use aap sankoch chhoda़kar maang len.' indrane baatako anek prakaarase pakkee karaake tab kaha - 'daityaraaj ! mujhe aapakee aayu chaahiye.' baat yah thee ki yadi virochanako kisee prakaar maar bhee diya jaata to shukraachaary unhen apanee sanjeevanee vidyaase phir jeevit kar sakate the.

virochanako bada़ee prasannata huee. ve kahane lage-'main dhany hoon. mera janm lena saphal ho gayaa. aaj mera jeevan ek viprane sveekaar kiya, isase bada़a saubhaagy mere liye aur kya ho sakata hai.'

apane haathamen khadg lekar svayan unhonne apana mastak kaatakar vriddh braahman bane hue indrako de diyaa. indr us mastakako lekar bhayake kaaran sheeghrata se svarg chale aaye aur yah apoorv daan karake virochan to bhagavaan‌ke nity dhaamamen hee pahunch gaye. bhagavaanne unhen apane nij janonmen le liyaa.

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