स्वर्गापवर्गयोः पुंसां रसायां भुवि सम्पदाम् ।
सर्वासामपि सिद्धीनां मूलं तच्चरणार्चनम् ॥
'पुरुषके लिये स्वर्गकी, पृथ्वीकी तथा पातालकी समस्त सम्पत्ति, मोक्ष एवं समस्त सिद्धियोंका मूल उन परम पुरुष पुरुषोत्तमके चरणोंकी पूजा ही है।'
विप्रवर सुदामा जन्मसे ही दरिद्र थे। श्रीकृष्णचन्द्र जब अवन्तीमें महर्षि सान्दीपनिके यहाँ शिक्षा प्राप्त करने गये, तब सुदामाजी भी वहीं गुरुके आश्रममें थे। वहाँ श्रीकृष्णचन्द्रसे उनकी मैत्री हो गयी। दीनबन्धुको छोड़कर दीनोंसे भला, और कौन मित्रता करेगा। श्यामसुन्दर त गिने-चुने दिन गुरु-गृह रहे और उतने ही दिनोंमें वे समस्त वेद-वेदाङ्ग, शास्त्रादि तथा सभी कलाओंकी शिक्षा पूर्ण करके चले आये। वे द्वारकाधीश हो गये। सुदामाकी भी जब शिक्षा पूरी हुई, तब गुरुदेवकी आज्ञा लेकर वे भी अपनी जन्मभूमि लौट आये। विवाह करके उन्होंने भी गृहस्थाश्रम स्वीकार किया। एक टूटी झोंपड़ी, फूटे टूटे दो-चार पात्र और लज्जा ढकनेको कुछ मैले चिथड़े - बस, इतनी ही गृहस्थी थी सुदामाकी। जन्मसे सरल, सन्तोषी सुदामा किसीसे कुछ माँगते नहीं थे। जो कुछ बिना माँगे मिल जाय, भगवान्को अर्पण करके उसीपर उनका एवं उनकी पत्नीका जीवन-निर्वाह होता था। प्राय: पति-पत्नीको उपवास करना पड़ता था। उन दोनोंके शरीर क्षीण- कङ्कालप्राय हो रहे थे।
जिसने श्यामसुन्दरकी स्वप्नमें भी एक झाँकी कर ली, उसके हृदयसे वह मोहिनी मूर्ति कभी हटती नहीं; फिर सुदामा तो उन भुवन मोहनके सहपाठी रह चुके थे। उन वनमालीके साथ अनेक दिन उन्होंने पढ़ा था, गुरुकी सेवा की थी, वनमें साथ-साथ कुश, समिधा, फल-फूल एकत्र किये थे। उस मयूरमुकुटीने उनके चित्तको चुरा लिया था। वे उसीका बराबर ध्यान करते, उसीका गुणगान करते । पत्नीसे भी वे अपने सखाके रूप, गुण, उदारता आदिका बखान करते थकते न थे।
सुदामाकी पत्नी सुशीला थी, साध्वी थी, पतिपरायणा थी। उसे अपने कष्टकी कोई चिन्ता नहीं थी; किंतु उसके दुबले, क्षीणकाय, धर्मात्मा पतिदेवको जब उपवास करना पड़ता था, तब उसे अपार कष्ट होता था। एक बार जब कई दिनों उपवास करना पड़ा, तब उसने डरते डरते स्वामीसे कहा- 'महाभाग ! ब्राह्मणोंके परम भक्त, साक्षात् लक्ष्मीपति, शरणागतवत्सल यादवेन्द्र श्रीकृष्णचन्द्र आपके मित्र हैं। आप एक बार उनके पास जाइये। आप कुटुम्बी हैं, दरिद्रताके कारण क्लेश पा रहे हैं, वे अवश्य आपको प्रचुर धन देंगे। वे द्वारकाधीश अपने श्रीचरणोंकी सेवा करनेवालेको अपने-आपको दे डालते हैं; फिर धन दे देंगे, इसमें तो सन्देह ही क्या है। मैं जानती हूँ कि आपके मनमें धनकी रत्तीभर भी इच्छा नहीं है, पर आप कुटुम्बी हैं। आपके कुटुम्बका इस प्रकार कैसे निर्वाह होगा। आप अवश्य द्वारका जायँ ।'
सुदामाने देखा कि ब्राह्मणी भूखके कष्टसे व्याकुल हो गयी है, दरिद्रतासे घबराकर वह मुझे द्वारका भेज रही है। किंतु श्यामसुन्दरके पास धनकी इच्छासे जानेमें उन्हें बड़ा संकोच हुआ। उन्होंने स्त्रीसे कहा- 'पगली !ब्राह्मणको धनसे क्या काम। तू कहे तो मैं भिक्षा माँग लाऊँ, पर धनके लिये द्वारका जाना मुझे अच्छा नहीं लगता हमें तो सन्तोषपूर्वक भगवान्का भजन करनेमें ही सुख मानना चाहिये।'
ब्राह्मणीने बहुत आग्रह किया। वह चाहती थी कि सुदामा अपने मित्रसे केवल मिल आयें एक बार सुदामाने भी सोचा कि श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन हो जायें यह तो परम लाभकी बात है। परंतु मित्रके पास खाली हाथ कैसे जायें? कहनेपर किसी प्रकार ब्राह्मणी किसी पड़ोसिनसे चार मुही रूखे चिउरे माँग लायी और उनको एक चिथड़ेमें बाँधकर दे दिया। वह पोटली बगलमें दबाकर सुदामाजी चल पड़े द्वारकाकी ओर।
जब कई दिनोंकी यात्रा करके सुदामा द्वारका पहुँचे, तब यहाँका ऐश्वर्य देखकर हक्के-बक्के रह गये। गगनचुम्बी स्फटिकमणिके भवन, स्वर्णके कलश, रत्नखचित दीवारें स्वर्ग भी जहाँ फीका, झोपड़ीसा जान पड़े. उस द्वारकाको देखकर दरिद्र ब्राह्मण ठक् रह गये। किसी प्रकार उन्हें पूछनेका साहस हुआ। एक नागरिकने श्रीकृष्णचन्द्रका भवन दिखा दिया। ऐसे कंगाल, चिथड़े लपेटे, मैले-कुचैले ब्राह्मणको देखकर द्वारपालको आश्चर्य नहीं हुआ। उसके स्वामी ऐसे ही दोनोंके अपने हैं, यह उसे पता था। उसने सुदामाको प्रणाम किया। परंतु जब सुदामाने अपनेको भगवान्का 'मित्र' बताया, तब वह चकित रह गया। देवराज इन्द्र भी अपनेको जहाँ बड़े संकोचसे 'दास' कह पाते थे, वहाँ यह कंगाल 'मित्र' कह रहा था। किंतु उन अशरणशरण कृपासिन्धुका कौन कैसा मित्र है, यह भला कब किसीने जाना है। नियमानुसार सुदामाजीको द्वारपर ठहराकर द्वारपाल आज्ञा लेने भीतर गया।
त्रिभुवनके स्वामी, सर्वेश्वर यादवेन्द्र अपने भवनमें शय्यापर बैठे थे। श्रीरुक्मिणीजी अपने हाथमें रत्नदण्ड लेकर व्यजन कर रही थीं भगवान्को द्वारपालने भूमिमें मस्तक रखकर प्रणाम किया और कहा- एक फटे चिथड़े लपेटे, नंगे सिर, नंगे बदन, शरीर मैला-कुचैला, बहुत ही दुर्बल ब्राह्मण द्वारपर खड़ा है। पता नहीं, वह कौन है और कहाँका है। बड़े आश्चर्यसे चारों ओर वह देखता है। अपनेको प्रभुका मित्र कहता, प्रभुका निवास पूछता है और अपना नाम 'सुदामा' बताता है।'
'सुदामा' यह शब्द कानमें पड़ा कि श्रीकृष्णचन्द्र जैसे सुधि-बुध खो दी। मुकुट धरा रहा, पटुका भूमिपर गिर गया, चरणोंमें पादुकातक नहीं, वे विह्वल दौड़ पड़े। द्वारपर आकर दोनों हाथ फैलाकर सुदामाको इस प्रकार हृदयसे लगा लिया, जैसे चिरकालसे खोयी निधि मिल गयी हो। सुदामा और श्रीकृष्णचन्द्र दोनोंके ने अजस्त्र अश्रुप्रवाह चलने लगा। कोई एक शब्दतक नहीं बोला। नगरवासी, रानियाँ, सेवक-सब चकित हो देखते रह गये। देवता पुष्पवर्षा करते हुए ब्राह्मणके सौभाग्यकी प्रशंसा करने लगे।
बड़ी देर में जब उद्धवादिने सावधान किया, तब श्यामसुन्दर सुदामाको लेकर अपने भवनमें पधारे। प्रिय सखाको उन्होंने अपने दिव्य पलंगपर बैठा दिया। स्वयं उनके चरण धोने बैठे। 'ओह, मेरे सखाके पैर इस प्रकार बिवाइयोंसे फट रहे हैं। इतनी दरिद्रता, इतना कष्ट भोगते हैं ये विप्रदेव!' हाथमें सुदामाका चरण लेकर कमललोचन अश्रु गिराने लगे। उनकी नेत्र जलधारासे ही ब्राह्मणके चरण धुल गये। रुक्मिणीजीने भगवान्की यह भावविहल दशा देखकर अपने हाथों चरण धोये। जिन भगवती महालक्ष्मीको कृपा कोरकी याचना सारे लोकपाल करते हैं, ये आदरपूर्वक कंगाल ब्राह्मणका पाद प्रक्षालन करती रहीं। द्वारकेशने वह चरणोदक अपने मस्तकपर छिड़का, तमाम महलोंमें छिड़कवाया। दिव्य गन्धयुक्त चन्दन, दूब, अगुरु, कुङ्कुम, धूप, दीप, पुष्प, माला आदिसे विधिपूर्वक सुदामाकी भगवान्ने पूजा की। उन्हें नाना प्रकारके पक्काओंसे भोजन कराके तृप्त किया। आचमन कराके पान दिया।
जय भोजन करके सुदामा बैठ गये, तब भगवान्की पटरानियाँ स्वयं अपने हाथों उनपर पंखा झलने लगीं। श्रीकृष्णचन्द्र उनके समीप बैठ गये और उनका हाथ अपने हाथमें लेकर बातें करने लगे। श्यामसुन्दरने उनसे गुरुगृहमें रहनेकी चर्चा की, अपनी मित्रताके मधुर संस्मरण कहे, घरकी कुशल पूछी। सुदामाके मनमें कहीं | कोई कामना नहीं थी। धनकी इच्छाका लेश भी उनके मनमें नहीं था। उन्होंने कहा- 'देवदेव! आप तो जगद्गुरु हैं। आपको भला, गुरुगृह जानेकी आवश्यकता कहाँ थी। यह तो मेरा सौभाग्य था कि मुझे आपका साथ मिला। सम्पूर्ण मङ्गलोंकी उत्पत्ति आपसे ही है। वेदमय ब्रह्म आपकी मूर्ति हैं। आपका गुरुगृहमें अध्ययन तो एक विडम्बनामात्र था।'
अब हँसते हुए लीलामयने पूछा- भाई आप मेरे लिये भेंट क्या लाये हैं? प्रेमियोंकी दी हुई जरा-सी वस्तु भी मुझे बहुत प्रिय लगती है और अभक्तोंका विपुल उपहार भी मुझे सन्तुष्ट नहीं करता।'
सुदामाका साहस कैसे हो द्वारकाके इस अतुल ऐश्वर्य स्वामीको रूखे चिउरे देनेका। वे मस्तक झुकाकर चुप रह गये। सर्वान्तर्यामी श्रीहरिने सब कुछ जानकर यह निश्चय कर ही लिया था कि 'यह मेरा निष्काम भक्त है। पहले भी कभी धनको इच्छासे इसने मेरा भजन नहीं किया और न अब इसे कोई कामना है; किंतु अपनी पतिव्रता पत्नीके कहनेसे जब यह यहाँ आ गया, तब मैं इसे वह सम्पत्ति दूँगा, जो देवताओंको भी दुर्लभ है।'
'यह क्या है? भाभीने मेरे लिये जो कुछ भेजा है, उसे आप छिपाये क्यों जा रहे हैं?" यह कहते हुए श्रीकृष्णचन्द्रने स्वयं पोटली खींच ली। पुराना जीर्ण वस्त्र फट गया। चिउरे बिखर पड़े। भगवान्ने अपने पीतपटमें कंगालकी निधिके समान उन्हें शीघ्रतासे समेटा और एक मुट्ठी भरकर मुखमें डालते हुए कहा-'मित्र! यही तो मुझको परम प्रसन्न करनेवाली प्रिय भेंट है। ये चिउरे मेरे साथ समस्त विश्वको तृप्त कर देंगे।'
नन्वेतदुपनीतं मे परमप्रीणन सखे ।
तर्पयन्त्यङ्ग मां विश्वमेते पृथुकतण्डुलाः ॥
'बड़ा मधुर, बहुत स्वादिष्ट ऐसा अमृत जैसा पदार्थ तो कभी कहीं मिला ही नहीं।' इस प्रकार प्रशंसा करते हुए जब श्रीकृष्णचन्द्रने दूसरी मुट्ठी भरी, तब रुक्मिणीजीने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा- 'प्रभो ! बस कीजिये। मेरी कृपासे इस लोक और परलोकमें मिलनेवाली सब प्रकारकी सम्पत्ति तो इस एक मुट्ठी चिउरेसे ही इस ब्राह्मणको मिल चुकी अब इस दूसरी मुट्ठीसे आप और क्या करनेवाले हैं?
अब आप मुझपर दया कीजिये।' भगवान् मुट्टी छोड़कर मुसकराने लगे। कुछ दिनोंतक सुदामाजी वहाँ रहे श्रीकृष्णचन्द्र तथा उनकी पटरानियोंने बड़ी सेवा की उनकी। अन्तमें अपने सखाकी आज्ञा लेकर वे घरको विदा हुए। लीलामयने दूरतक पहुँचाकर उनको विदा किया। सुदामाजीको धनकी तनिक भी इच्छा नहीं थी। श्रीकृष्णचन्द्र बिना माँगे ही बहुत कुछ देंगे, ऐसी भावना भी उनके हृदयमें नहीं उठी थी। द्वारकासे कुछ नहीं मिला, इसका उन्हें कोई खेद तो हुआ ही नहीं। उलटे वे सोचते जा रहे थे- 'ओह! मैंने अपने परम उदार सखाकी ब्राह्मण भक्ति देखी कहाँ तो मैं दरिद्र, पापी और कहाँ वे 1 लक्ष्मीनिवास पुण्यचरित्र ! किंतु मुझे उन्होंने उल्लसित होकर हृदयसे लगाया, अपनी प्रियाके पलंगपर बैठाया, मेरे चरण धोये। साक्षात् श्रीलक्ष्मीजीकी अवतार रुक्मिणीजी मुझपर चँवर करती रहीं। मेरे परम सुहृद् श्रीकृष्ण कितने दयालु हैं मनुष्यको उनके चरणोंकी सेवा करनेसे हो तीनों लोकोंकी सम्पत्ति, सब सिद्धियाँ और मोक्षतक | मिल जाता है। उनके लिये मुझे धन देना कितना सरल था; किंतु उन दयामयने सोचा कि यह निर्धन धन पाकर मतवाला हो जायगा और मेरा स्मरण नहीं करेगा, अतः मेरे कल्याणके लिये उन्होंने धन नहीं दिया।'
धन्य सुदामा घरमें भूखी स्त्रीको छोड़ आये हैं, अन्न-वस्त्रका ठिकाना नहीं, पत्नीको जाकर क्या उत्तर देंगे, इसकी चिन्ता नहीं: राजराजेश्वर मित्रसे मिलकर कोरे लौटे इसकी ग्लानि नहीं। धनके लिये धनके भक्त भगवान्की आराधना करते हैं और धन न मिलनेपर उन्हें कोसते हैं; किंतु सुदामा जैसे भगवान्के भक्त तो भगवान्को ही चाहते हैं पर भगवान्के पास सुदामा पत्नीकी प्रेरणासे गये थे। सुदामाके मनमें कोई कामना नहीं थी, पर पत्नीने धन पानेकी इच्छासे ही प्रेरित किया था उन्हें भक्तवाञ्छाकल्पतरु भगवान्ने विश्वकर्माको भेजकर उनके ग्रामको द्वारका जैसी भव्य सुदामापुरी बनवा दिया था। एक रातमें झोपड़ीके स्थानपर देवदुर्लभ ऐश्वर्यसे पूर्ण मणिमय भवन खड़े हो गये थे। जब सुदामा
वहाँ पहुँचे, उन्हें जान ही न पड़ा कि जागते हैं कि स्वप्न देख रहे हैं। कहाँ मार्ग भूलकर पहुँच गये, यह भी वे समझ नहीं पाते थे। इतनेमें बहुत-से सेवकोंने उनका सत्कार किया, उन्हें भवनमें पहुँचाया। उनकी ब्राह्मणी अब किसी स्वर्गकी देवी जैसी हो गयी थी। उसने सैकड़ों दासियोंके साथ आकर उनको प्रणाम किया। उन्हें घरमें ले गयी। सुदामाजी पहले तो विस्मित हो गये, पर पीछे सब रहस्य समझकर भाव-गद्द हो गये। वे कहने लगे- 'मेरे सखा उदार-चक्र-चूड़ामणि हैं। वे माँगनेवालेको लज्जित न होना पड़े, इसलिये चुपचाप छिपाकर उसे पूर्णकाम कर देते हैं। परंतु मुझे यह सम्पत्ति नहीं चाहिये। जन्म-जन्म मैं उन सर्वगुणागारकी विशुद्धि भक्तिमें लगा रहूँ, यही मुझे अभीष्ट है।'
सुदामा वह ऐश्वर्य पाकर भी अनासक्त रहे। विषयभोगोंसे चित्तको हटाकर भजनमें ही वे सदा लगे रहे। इस प्रकार वे ब्रह्मभावको प्राप्त हो गये।
svargaapavargayoh punsaan rasaayaan bhuvi sampadaam .
sarvaasaamapi siddheenaan moolan tachcharanaarchanam ..
'purushake liye svargakee, prithveekee tatha paataalakee samast sampatti, moksh evan samast siddhiyonka mool un param purush purushottamake charanonkee pooja hee hai.'
vipravar sudaama janmase hee daridr the. shreekrishnachandr jab avanteemen maharshi saandeepanike yahaan shiksha praapt karane gaye, tab sudaamaajee bhee vaheen guruke aashramamen the. vahaan shreekrishnachandrase unakee maitree ho gayee. deenabandhuko chhoda़kar deenonse bhala, aur kaun mitrata karegaa. shyaamasundar t gine-chune din guru-grih rahe aur utane hee dinonmen ve samast veda-vedaang, shaastraadi tatha sabhee kalaaonkee shiksha poorn karake chale aaye. ve dvaarakaadheesh ho gaye. sudaamaakee bhee jab shiksha pooree huee, tab gurudevakee aajna lekar ve bhee apanee janmabhoomi laut aaye. vivaah karake unhonne bhee grihasthaashram sveekaar kiyaa. ek tootee jhonpada़ee, phoote toote do-chaar paatr aur lajja dhakaneko kuchh maile chithada़e - bas, itanee hee grihasthee thee sudaamaakee. janmase saral, santoshee sudaama kiseese kuchh maangate naheen the. jo kuchh bina maange mil jaay, bhagavaanko arpan karake useepar unaka evan unakee patneeka jeevana-nirvaah hota thaa. praaya: pati-patneeko upavaas karana pada़ta thaa. un dononke shareer ksheena- kankaalapraay ho rahe the.
jisane shyaamasundarakee svapnamen bhee ek jhaankee kar lee, usake hridayase vah mohinee moorti kabhee hatatee naheen; phir sudaama to un bhuvan mohanake sahapaathee rah chuke the. un vanamaaleeke saath anek din unhonne padha़a tha, gurukee seva kee thee, vanamen saatha-saath kush, samidha, phala-phool ekatr kiye the. us mayooramukuteene unake chittako chura liya thaa. ve useeka baraabar dhyaan karate, useeka gunagaan karate . patneese bhee ve apane sakhaake roop, gun, udaarata aadika bakhaan karate thakate n the.
sudaamaakee patnee susheela thee, saadhvee thee, patiparaayana thee. use apane kashtakee koee chinta naheen thee; kintu usake dubale, ksheenakaay, dharmaatma patidevako jab upavaas karana pada़ta tha, tab use apaar kasht hota thaa. ek baar jab kaee dinon upavaas karana pada़a, tab usane darate darate svaameese kahaa- 'mahaabhaag ! braahmanonke param bhakt, saakshaat lakshmeepati, sharanaagatavatsal yaadavendr shreekrishnachandr aapake mitr hain. aap ek baar unake paas jaaiye. aap kutumbee hain, daridrataake kaaran klesh pa rahe hain, ve avashy aapako prachur dhan denge. ve dvaarakaadheesh apane shreecharanonkee seva karanevaaleko apane-aapako de daalate hain; phir dhan de denge, isamen to sandeh hee kya hai. main jaanatee hoon ki aapake manamen dhanakee ratteebhar bhee ichchha naheen hai, par aap kutumbee hain. aapake kutumbaka is prakaar kaise nirvaah hogaa. aap avashy dvaaraka jaayan .'
sudaamaane dekha ki braahmanee bhookhake kashtase vyaakul ho gayee hai, daridrataase ghabaraakar vah mujhe dvaaraka bhej rahee hai. kintu shyaamasundarake paas dhanakee ichchhaase jaanemen unhen bada़a sankoch huaa. unhonne streese kahaa- 'pagalee !braahmanako dhanase kya kaama. too kahe to main bhiksha maang laaoon, par dhanake liye dvaaraka jaana mujhe achchha naheen lagata hamen to santoshapoorvak bhagavaanka bhajan karanemen hee sukh maanana chaahiye.'
braahmaneene bahut aagrah kiyaa. vah chaahatee thee ki sudaama apane mitrase keval mil aayen ek baar sudaamaane bhee socha ki shreekrishnachandr ke darshan ho jaayen yah to param laabhakee baat hai. parantu mitrake paas khaalee haath kaise jaayen? kahanepar kisee prakaar braahmanee kisee pada़osinase chaar muhee rookhe chiure maang laayee aur unako ek chithada़emen baandhakar de diyaa. vah potalee bagalamen dabaakar sudaamaajee chal pada़e dvaarakaakee ora.
jab kaee dinonkee yaatra karake sudaama dvaaraka pahunche, tab yahaanka aishvary dekhakar hakke-bakke rah gaye. gaganachumbee sphatikamanike bhavan, svarnake kalash, ratnakhachit deevaaren svarg bhee jahaan pheeka, jhopada़eesa jaan pada़e. us dvaarakaako dekhakar daridr braahman thak rah gaye. kisee prakaar unhen poochhaneka saahas huaa. ek naagarikane shreekrishnachandraka bhavan dikha diyaa. aise kangaal, chithada़e lapete, maile-kuchaile braahmanako dekhakar dvaarapaalako aashchary naheen huaa. usake svaamee aise hee dononke apane hain, yah use pata thaa. usane sudaamaako pranaam kiyaa. parantu jab sudaamaane apaneko bhagavaanka 'mitra' bataaya, tab vah chakit rah gayaa. devaraaj indr bhee apaneko jahaan bada़e sankochase 'daasa' kah paate the, vahaan yah kangaal 'mitra' kah raha thaa. kintu un asharanasharan kripaasindhuka kaun kaisa mitr hai, yah bhala kab kiseene jaana hai. niyamaanusaar sudaamaajeeko dvaarapar thaharaakar dvaarapaal aajna lene bheetar gayaa.
tribhuvanake svaamee, sarveshvar yaadavendr apane bhavanamen shayyaapar baithe the. shreerukmineejee apane haathamen ratnadand lekar vyajan kar rahee theen bhagavaanko dvaarapaalane bhoomimen mastak rakhakar pranaam kiya aur kahaa- ek phate chithada़e lapete, nange sir, nange badan, shareer mailaa-kuchaila, bahut hee durbal braahman dvaarapar khada़a hai. pata naheen, vah kaun hai aur kahaanka hai. baड़e aashcharyase chaaron or vah dekhata hai. apaneko prabhuka mitr kahata, prabhuka nivaas poochhata hai aur apana naam 'sudaamaa' bataata hai.'
'sudaamaa' yah shabd kaanamen pada़a ki shreekrishnachandr jaise sudhi-budh kho dee. mukut dhara raha, patuka bhoomipar gir gaya, charanonmen paadukaatak naheen, ve vihval dauda़ pada़e. dvaarapar aakar donon haath phailaakar sudaamaako is prakaar hridayase laga liya, jaise chirakaalase khoyee nidhi mil gayee ho. sudaama aur shreekrishnachandr dononke ne ajastr ashrupravaah chalane lagaa. koee ek shabdatak naheen bolaa. nagaravaasee, raaniyaan, sevaka-sab chakit ho dekhate rah gaye. devata pushpavarsha karate hue braahmanake saubhaagyakee prashansa karane lage.
bada़ee der men jab uddhavaadine saavadhaan kiya, tab shyaamasundar sudaamaako lekar apane bhavanamen padhaare. priy sakhaako unhonne apane divy palangapar baitha diyaa. svayan unake charan dhone baithe. 'oh, mere sakhaake pair is prakaar bivaaiyonse phat rahe hain. itanee daridrata, itana kasht bhogate hain ye vipradeva!' haathamen sudaamaaka charan lekar kamalalochan ashru giraane lage. unakee netr jaladhaaraase hee braahmanake charan dhul gaye. rukmineejeene bhagavaankee yah bhaavavihal dasha dekhakar apane haathon charan dhoye. jin bhagavatee mahaalakshmeeko kripa korakee yaachana saare lokapaal karate hain, ye aadarapoorvak kangaal braahmanaka paad prakshaalan karatee raheen. dvaarakeshane vah charanodak apane mastakapar chhida़ka, tamaam mahalonmen chhida़kavaayaa. divy gandhayukt chandan, doob, aguru, kunkum, dhoop, deep, pushp, maala aadise vidhipoorvak sudaamaakee bhagavaanne pooja kee. unhen naana prakaarake pakkaaonse bhojan karaake tript kiyaa. aachaman karaake paan diyaa.
jay bhojan karake sudaama baith gaye, tab bhagavaankee pataraaniyaan svayan apane haathon unapar pankha jhalane lageen. shreekrishnachandr unake sameep baith gaye aur unaka haath apane haathamen lekar baaten karane lage. shyaamasundarane unase gurugrihamen rahanekee charcha kee, apanee mitrataake madhur sansmaran kahe, gharakee kushal poochhee. sudaamaake manamen kaheen | koee kaamana naheen thee. dhanakee ichchhaaka lesh bhee unake manamen naheen thaa. unhonne kahaa- 'devadeva! aap to jagadguru hain. aapako bhala, gurugrih jaanekee aavashyakata kahaan thee. yah to mera saubhaagy tha ki mujhe aapaka saath milaa. sampoorn mangalonkee utpatti aapase hee hai. vedamay brahm aapakee moorti hain. aapaka gurugrihamen adhyayan to ek vidambanaamaatr thaa.'
ab hansate hue leelaamayane poochhaa- bhaaee aap mere liye bhent kya laaye hain? premiyonkee dee huee jaraa-see vastu bhee mujhe bahut priy lagatee hai aur abhaktonka vipul upahaar bhee mujhe santusht naheen karataa.'
sudaamaaka saahas kaise ho dvaarakaake is atul aishvary svaameeko rookhe chiure denekaa. ve mastak jhukaakar chup rah gaye. sarvaantaryaamee shreeharine sab kuchh jaanakar yah nishchay kar hee liya tha ki 'yah mera nishkaam bhakt hai. pahale bhee kabhee dhanako ichchhaase isane mera bhajan naheen kiya aur n ab ise koee kaamana hai; kintu apanee pativrata patneeke kahanese jab yah yahaan a gaya, tab main ise vah sampatti doonga, jo devataaonko bhee durlabh hai.'
'yah kya hai? bhaabheene mere liye jo kuchh bheja hai, use aap chhipaaye kyon ja rahe hain?" yah kahate hue shreekrishnachandrane svayan potalee kheench lee. puraana jeern vastr phat gayaa. chiure bikhar pada़e. bhagavaanne apane peetapatamen kangaalakee nidhike samaan unhen sheeghrataase sameta aur ek mutthee bharakar mukhamen daalate hue kahaa-'mitra! yahee to mujhako param prasann karanevaalee priy bhent hai. ye chiure mere saath samast vishvako tript kar denge.'
nanvetadupaneetan me paramapreenan sakhe .
tarpayantyang maan vishvamete prithukatandulaah ..
'bada़a madhur, bahut svaadisht aisa amrit jaisa padaarth to kabhee kaheen mila hee naheen.' is prakaar prashansa karate hue jab shreekrishnachandrane doosaree mutthee bharee, tab rukmineejeene unaka haath pakada़te hue kahaa- 'prabho ! bas keejiye. meree kripaase is lok aur paralokamen milanevaalee sab prakaarakee sampatti to is ek mutthee chiurese hee is braahmanako mil chukee ab is doosaree muttheese aap aur kya karanevaale hain?
ab aap mujhapar daya keejiye.' bhagavaan muttee chhoda़kar musakaraane lage. kuchh dinontak sudaamaajee vahaan rahe shreekrishnachandr tatha unakee pataraaniyonne bada़ee seva kee unakee. antamen apane sakhaakee aajna lekar ve gharako vida hue. leelaamayane dooratak pahunchaakar unako vida kiyaa. sudaamaajeeko dhanakee tanik bhee ichchha naheen thee. shreekrishnachandr bina maange hee bahut kuchh denge, aisee bhaavana bhee unake hridayamen naheen uthee thee. dvaarakaase kuchh naheen mila, isaka unhen koee khed to hua hee naheen. ulate ve sochate ja rahe the- 'oha! mainne apane param udaar sakhaakee braahman bhakti dekhee kahaan to main daridr, paapee aur kahaan ve 1 lakshmeenivaas punyacharitr ! kintu mujhe unhonne ullasit hokar hridayase lagaaya, apanee priyaake palangapar baithaaya, mere charan dhoye. saakshaat shreelakshmeejeekee avataar rukmineejee mujhapar chanvar karatee raheen. mere param suhrid shreekrishn kitane dayaalu hain manushyako unake charanonkee seva karanese ho teenon lokonkee sampatti, sab siddhiyaan aur mokshatak | mil jaata hai. unake liye mujhe dhan dena kitana saral thaa; kintu un dayaamayane socha ki yah nirdhan dhan paakar matavaala ho jaayaga aur mera smaran naheen karega, atah mere kalyaanake liye unhonne dhan naheen diyaa.'
dhany sudaama gharamen bhookhee streeko chhoda़ aaye hain, anna-vastraka thikaana naheen, patneeko jaakar kya uttar denge, isakee chinta naheen: raajaraajeshvar mitrase milakar kore laute isakee glaani naheen. dhanake liye dhanake bhakt bhagavaankee aaraadhana karate hain aur dhan n milanepar unhen kosate hain; kintu sudaama jaise bhagavaanke bhakt to bhagavaanko hee chaahate hain par bhagavaanke paas sudaama patneekee preranaase gaye the. sudaamaake manamen koee kaamana naheen thee, par patneene dhan paanekee ichchhaase hee prerit kiya tha unhen bhaktavaanchhaakalpataru bhagavaanne vishvakarmaako bhejakar unake graamako dvaaraka jaisee bhavy sudaamaapuree banava diya thaa. ek raatamen jhopada़eeke sthaanapar devadurlabh aishvaryase poorn manimay bhavan khada़e ho gaye the. jab sudaamaa
vahaan pahunche, unhen jaan hee n pada़a ki jaagate hain ki svapn dekh rahe hain. kahaan maarg bhoolakar pahunch gaye, yah bhee ve samajh naheen paate the. itanemen bahuta-se sevakonne unaka satkaar kiya, unhen bhavanamen pahunchaayaa. unakee braahmanee ab kisee svargakee devee jaisee ho gayee thee. usane saikada़on daasiyonke saath aakar unako pranaam kiyaa. unhen gharamen le gayee. sudaamaajee pahale to vismit ho gaye, par peechhe sab rahasy samajhakar bhaava-gadd ho gaye. ve kahane lage- 'mere sakha udaara-chakra-chooda़aamani hain. ve maanganevaaleko lajjit n hona pada़e, isaliye chupachaap chhipaakar use poornakaam kar dete hain. parantu mujhe yah sampatti naheen chaahiye. janma-janm main un sarvagunaagaarakee vishuddhi bhaktimen laga rahoon, yahee mujhe abheesht hai.'
sudaama vah aishvary paakar bhee anaasakt rahe. vishayabhogonse chittako hataakar bhajanamen hee ve sada lage rahe. is prakaar ve brahmabhaavako praapt ho gaye.