सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई।।
मद्रास प्रान्त में त्रिचनापल्लीके पास एक स्थान है उरयूर। इसका पुराना नाम निचुलापुरी है, यह श्रीवैष्णवोंका एक पवित्र तीर्थ है। आजसे लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यहाँ एक धनुर्दास नामका पहलवान रहता था। अपने बल तथा अद्भुत आचरणके लिये धनुर्दास प्रख्यात था। हेमाम्बा नामक एक अत्यन्त सुन्दरी वेश्याके रूपपर मोहित होकर उसे अपनी प्रेयसी बनाकर धनुर्दासने घरमें रख लिया था। उस वेश्याके रूपपर वह इतना मोहित था कि जहाँ जाता, वहाँ उसे साथ ले जाता। रास्तेमें स्त्रीके आगे-आगे उसे देखते हुए पीठकी ओर उलटे चलता। कहीं बैठता तो उस स्त्रीको सामने बैठाकर बैठता। उसका व्यवहार सबके लिये कौतूहलजनक था; परंतु वह निर्लज्ज होकर स्त्रीको देखना कहीं भी छोड़ता नहीं था। दक्षिण भारतका सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है- श्रीरंगक्षेत्र त्रिचनापल्लीसे यह श्रीरंगम् पास ही है। वर्षमें कई बार यहाँ महोत्सव होता है। दूर-दूरसे लाखों यात्री आते हैं। एक बार श्रीरंगनाथका वासन्ती महोत्सव (चैत्रोत्सव) चल रहा था। धनुर्दासजीकी प्रेयसीने उत्सव देखना चाहा। धनुर्दास उसे लेकर नौकर-चाकरोंके साथ निचुलापुरीसे श्रीरंगम् आ गया। गरमीके दिन, नौ-दस बजेकी कड़ी धूप, मार्गमें खचाखच भीड़। जब कि भीड़के मारे शरीरको सम्हालनातक कठिन था, उस समय वहाँ भी धनुर्दास एक हाथमें छाता लेकर अपनी प्रेयसीको छाया किये हुए था और स्वयं धूपमें, पसीनेसे लथपथ उस स्त्रीकी ओर मुख करके पीठकी ओर पीछे चल रहा था। उसे मार्गके नीचे-ऊँचेकी सुधि नहीं थी। अपने शरीरका ध्यानतक नहीं था।
उन दिनों श्रीरामानुजस्वामी श्रीरंगम् ही थे। दूसरोंके लिये तो धनुर्दासका यह कृत्य पुराना था, नवीन यात्री ही उसे कुतूहलसे देख रहे थे पर श्रीरामानुजस्वामी के लिये पुरुषका यह व्यवहार बहुत ही अद्भुत लगा। अपने शिष्यसे उन्होंने पूछा कि 'वह निर्लज्ज कौन है?' परिचय पाकर शिष्यको कहा- 'उससे जाकर कहो कि तीसरेपहर मठपर आकर वह मुझसे मिले।' धनुर्दासने उस शिष्यसे आदेश सुना तो सन्न हो गया;
वह समझ गया- 'आचार्यस्वामी अवश्य मेरी निर्लज्जतापर | बिगड़े होंगे। बिगड़ने की तो बात ही है। सब लोग जहाँ श्रद्धा-भक्तिसे भगवान के दर्शन करने आये हैं, वहाँ भी मैं एक स्त्रीके सौन्दर्यपर मुग्ध हूँ मठपर जानेपर मुझे झिड़की सुननी पड़ेगी। पता नहीं, आचार्यस्वामी क्या आदेश देंगे। कितना डाँटेंगे। न जाऊँ, यह भी ठीक नहीं। इससे तो उनका अपमान होगा।' अन्तमें उसने मठपर जाना स्वीकार कर लिया।
श्रीरामानुजस्वामीने भगवान् श्रीरंगनाथसे मन्दिरमें जाकर उसी समय प्रार्थना की—'मेरे दयामय स्वामी! एक विमुख जीवको अपने सौन्दर्यसे आकर्षित करके श्रीचरणोंमें स्वीकार करो।'
भोजन करके धनुर्दास मठपर पहुँच गया। समाचार पाकर श्रीरामानुजस्वामीने उसे मठमें भीतर बुला लिया और उसके अद्भुत व्यवहारका कारण पूछा। बड़ी नम्रतासे, हाथ जोड़कर धनुर्दासने बताया- 'स्वामी मैं उस स्त्रीके सौन्दर्यपर पागल हो गया हूँ। उसे देखे बिना मुझसे रहा नहीं जाता! कामवासना तो मुझमें कुछ ऐसी प्रबल नहीं है; पर उसका रूप मुझसे छोड़ा नहीं जाता। मैं उसे न देखूं तो बेचैन हो जाता हूँ। महाराज! आप जो आज्ञा करें, मैं वही करूँगा; पर उसका साथ न छुड़ायें।'
श्रीरामानुजस्वामीने कहा- 'यदि हम उससे बहुत अधिक सुन्दर मुख तुम्हें दिखलायें तो?' धनुर्दासने कहा- 'महाराज! उससे सुन्दर मुख देखनेकोमिले तो मैं उसे एकदम परित्याग कर सकता हूँ।' श्रीस्वामीने कहा- 'ऐसा नहीं उसका परित्याग तुम मत करो। वह वेश्या थी, तुम्हारे पास आकर अब तुम्हारी स्त्री हो गयी। तुम छोड़ दोगे तो फिर वेश्या हो जायगी। ऐसा तो नहीं होना चाहिये। वह अब सुधर गयी है। उसे तुम अपनी पत्नी बनाकर अपने यहाँ रहने दो। तुम जो उसके रूपपर इतने मुग्ध हो, बस, यह ठीकनहीं। तुम्हें यह स्वीकार हो तो सन्ध्याके समय जब श्रीरंगनाथकी आरती होती है, उस समय तुम मन्दिरमें आकर मुझसे मिलना अकेले ही आना।'
धनुर्दास आज्ञा पाकर विदा हुआ। उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा था। आचार्यस्वामीने उस जैसे नीच जातिके पुरुषको मठमें भीतर बुलाया, पुत्रको भाँति खेहसे पास बैठाया और बिना डॉटे-फटकारे विदा कर दिया। उसने तो आशा की थी कि उसे आचार्यस्वामी बहुत कुछ कहेंगे। वह भयसे थर-थर काँपता आया था कि कहीं मुझे शाप न दें दें। वह सब तो कुछ नहीं हुआ। घर आकर उसने स्त्रीसे सब बातें कह दीं। वह स्त्री भी नहीं चाहती थी कि धनुर्दास इस प्रकार उसपर लट्टू रहे, मार्ग धनुर्दास उसके आगे-आगे पीछे की ओर चले। यह व्यवहार उसे भी लज्जाजनक जान पड़ता था। वह अब सच्चे हृदयसे धनुर्दासकी पत्नी थी वह उसका सुधार चाहती थी; किंतु इस भयसे कि धनुर्दास उसे छोड़ न दे, कुछ कहती नहीं थी। उसे प्रसन्नता हुई इस आशासे कि आचार्यस्वामी धनुर्दासको कदाचित् सुधार देंगे।
जब सन्ध्यासमय धनुर्दास श्रीरंगजीके मन्दिरमें गया तो उसे किसीने भीतर जानेसे रोका नहीं। आचार्यस्वामीने उसे ध्यानपूर्वक आरतीके समय भगवान के दर्शन करनेको कहा। धनुर्दास तो आरतीके समय ही एकदम बदल गया। जिस सौन्दर्य सुधा सागरके एक सीकरसे स्वर्गका सारा सौन्दर्य निकला है, त्रिभुवनकी सुषमा जिसकी छायाके भी किसी अंशमें नहीं, उस सौन्दर्यसार सर्वस्यको आज धनुर्दासने एक झलक पायी और जब वह झाँकी अदृश्य हो गयी, वह पागलकी भाँति आचार्यस्वामीके चरणोंसे लिपट गया। उसने फूट-फूटकर रोते हुए कहा-'स्वामी मुझे जो आज्ञा दो, मैं वही करूंगा। मुझे कहो तो मैं अपने हाथसे अपने देहको बोटी-बोटी काट है पर वह त्रिभुवनमोहन मुख मुझे दिखाओ ऐसी कृपा करो कि वह मुख मेरे नेत्रोंके सामने हो रहे।'
धनुर्दास आचार्यस्वामीके समझानेसे घर आया। अब स्त्री तो उसे बहुत ही कुरूप जान पड़ने लगी। वह आचार्यस्वामीकी आज्ञासे ही उसे पत्नी बनाये था। कुछ दिनों बाद वे दोनों श्रीरामानुजस्वामी के शिष्य हो गये।श्रीस्वामीजीने भी दोनोंको साम्प्रदायिक ज्ञानके विषय में बहुज्ञ बना दिया। दोनोंका आचरण आदर्श हो गया। धनुर्दास आचार्यस्वामीका अत्यन्त विश्वस्त अनुचर हो गया।
श्रीरामानुजस्वामी वृद्धावस्थामें कावेरी स्थानको जाते समय तो किसी ब्राह्मणके कन्धेका सहारा लेकर जाते थे, पर स्नान करके लौटते थे धनुर्दासके कन्धेका सहारा लेकर मठके ब्राह्मण-शिष्य इससे कुढ़ते थे। उनमेंसे एक दिन एकने कहा- 'महाराज आप स्नान करके धनुर्दासको क्यों छूते हैं? हमलोग तो आपको सेवाको सदा प्रस्तुत हैं।'
श्रीस्वामीजीने कहा-'मैं अपने हृदयके अभिमानको दूर करनेके लिये ही ऐसा करता हूँ। धनुर्दासका आचरण यहाँके अनेक ब्राह्मणोंसे उत्तम है। आश्रमके लोग धनुर्दाससे डाह करते हैं, यह देखकर आचार्यने उस भक्तका माहात्म्य प्रकट करके सबका गर्व दूर कर देना चाहा। एक रात अपने एक विश्वस्त शिष्यको उन ब्राह्मण शिष्योंके कपड़ोंमेंसे एक-एक बित्ता कपड़ा फाड़कर चुपचाप ले आनेको उन्होंने कहा। सबेरे अपने कपड़े फटे देख वे लोग परस्पर झगड़ने लगे। श्रीस्वामीजीने उन्हें बुलाकर नये कपड़े दिये और इस प्रकार सन्तुष्ट किया। कपड़े किसने फाड़े, यह बात छिपी ही रही। कुछ दिनों बाद उन्हीं शिष्योंमेंसे कुछको बुलाकर स्वामीजीने कहा- आज हम धनुर्दासको यहाँ अधिक राततक सत्सङ्गमें रोक रखेंगे। तुमलोग उसके घर जाकर हेमाम्बाके गहने चुरा लाना और लाकर हमें दे देना।' अँधेरा होनेपर वे लोग धनुर्दासके घर गये। किवाड़ खुले थे और हेमाम्बा पलंगपर लेटी हुई पतिके आनेकी प्रतीक्षा कर रही थी। श्रीवैष्णवोंको लुकते-छिपते दबे पैर घरमें घुसते देखकर वह समझ गयी कि ये लोग कुछ चोरी करने आये हैं। मनमें यह बात आते ही उसने नेत्र बंद कर लिये और झूठे खराटे लेने लगी। उसे इस प्रकार बेसुध सोते देख आये लोगोंने उनके शरीरपर एक ओरके गहने जो ऊपर थे, धीरे-धीरे उतार लिये। हेमाम्बाने सोचा कि ये लोग शरीरके दूसरी ओरके गहने भी ले लें तो अच्छा उसने करवट बदली; किंतु आये लोगोंने समझा कि वह नींदसेजगनेवाली है। वे लोग भाग गये। मठपर जब ये लोग पहुँच गये, तब श्रीरामानुजस्वामीने धनुर्दासको घर जानेकी आज्ञा दी। उसके जानेपर इन लोगोंसे कहा- 'अब तुमलोग छिपकर फिर धनुर्दासके घर जाओ और देखो कि वे स्त्री-पुरुष क्या बातें करते हैं।' वे लोग फिर धनुर्दासके पीछे छिपे हुए उसके घर आये।
धनुर्दास घर पहुँचे। पत्नीसे सब बातें सुनकर वे बहुत ही दुःखित हो गये। उन्होंने स्त्रीसे कहा- 'तुम्हारी धन दौलतको लालच अभी गयी नहीं। तुच्छं गहनोंके लोभ में तुमने उन श्रीवैष्णवोंको करवट बदलकर चौंका दिया। मैं तुम्हें अब अपने पास नहीं रखूंगा। वैष्णवोंकी भक्ति जिसमें नहीं, उससे मुझे क्या प्रयोजन है।'
बेचारी स्त्री रोते-रोते पतिके पैरोंपर गिर पड़ी। उसने कहा- 'नाथ! मैंने तो करवट इसीलिये बदली थी कि शरीरके दूसरी ओरके गहने भी वे लोग ले लें पर मेरे दुर्भाग्यसे वे भाग गये। मेरे अपराधको आप क्षमा कर दें।अब मैं बहुत अधिक सावधान रहूँगी।' किसी प्रकार धनुर्दासने उसको क्षमा किया।
वे ब्राह्मण शिष्य जब लौट आये, तब उनकी बातें सुनकर श्रीरामानुजाचार्यने उस दिनके वे फटे कपड़े निकालकर उन्हें दिखाते हुए कहा- 'तुमलोग इतने से कपड़ोंके लिये झगड़ते थे और धनुर्दासकी वैष्णवभक्ति तुमने देख ही ली। मैं इसीलिये उसका आदर करता हूँ, और स्नानके बाद उसका सहारा लेकर लौटता हूँ।' धनुर्दासको बुलाकर गहने लौटाते हुए उन्होंने कहा- 'ये गहने मैंने कुछ विशेष कारणसे मँगवाये थे। तुम कुछ बुरा मत मानना।' धनुर्दास आचार्यस्वामीके चरणोंमें गिर पड़ा। उसने कहा- 'प्रभो! मैं तो आपका दास हूँ। मेरा शरीर और जो कुछ है, वह सब आपका ही है। बुरा माननेकी क्या बात है इसमें।' हेमाम्बा भी ऐसे भगवद्भक्त साथ पाकर तर गयी। आज भी धनुर्दासका नाम ।। श्रीवैष्णव बड़े सम्मानसे लेते हैं।
sath sudharahin satasangati paaee. paaras paras kudhaat suhaaee..
madraas praant men trichanaapalleeke paas ek sthaan hai urayoora. isaka puraana naam nichulaapuree hai, yah shreevaishnavonka ek pavitr teerth hai. aajase lagabhag ek hajaar varsh poorv yahaan ek dhanurdaas naamaka pahalavaan rahata thaa. apane bal tatha adbhut aacharanake liye dhanurdaas prakhyaat thaa. hemaamba naamak ek atyant sundaree veshyaake roopapar mohit hokar use apanee preyasee banaakar dhanurdaasane gharamen rakh liya thaa. us veshyaake roopapar vah itana mohit tha ki jahaan jaata, vahaan use saath le jaataa. raastemen streeke aage-aage use dekhate hue peethakee or ulate chalataa. kaheen baithata to us streeko saamane baithaakar baithataa. usaka vyavahaar sabake liye kautoohalajanak thaa; parantu vah nirlajj hokar streeko dekhana kaheen bhee chhoda़ta naheen thaa. dakshin bhaarataka sarvashreshth teerth hai- shreerangakshetr trichanaapalleese yah shreerangam paas hee hai. varshamen kaee baar yahaan mahotsav hota hai. doora-doorase laakhon yaatree aate hain. ek baar shreeranganaathaka vaasantee mahotsav (chaitrotsava) chal raha thaa. dhanurdaasajeekee preyaseene utsav dekhana chaahaa. dhanurdaas use lekar naukara-chaakaronke saath nichulaapureese shreerangam a gayaa. garameeke din, nau-das bajekee kada़ee dhoop, maargamen khachaakhach bheeda़. jab ki bheeda़ke maare shareerako samhaalanaatak kathin tha, us samay vahaan bhee dhanurdaas ek haathamen chhaata lekar apanee preyaseeko chhaaya kiye hue tha aur svayan dhoopamen, paseenese lathapath us streekee or mukh karake peethakee or peechhe chal raha thaa. use maargake neeche-oonchekee sudhi naheen thee. apane shareeraka dhyaanatak naheen thaa.
un dinon shreeraamaanujasvaamee shreerangam hee the. doosaronke liye to dhanurdaasaka yah krity puraana tha, naveen yaatree hee use kutoohalase dekh rahe the par shreeraamaanujasvaamee ke liye purushaka yah vyavahaar bahut hee adbhut lagaa. apane shishyase unhonne poochha ki 'vah nirlajj kaun hai?' parichay paakar shishyako kahaa- 'usase jaakar kaho ki teesarepahar mathapar aakar vah mujhase mile.' dhanurdaasane us shishyase aadesh suna to sann ho gayaa;
vah samajh gayaa- 'aachaaryasvaamee avashy meree nirlajjataapar | bigada़e honge. bigada़ne kee to baat hee hai. sab log jahaan shraddhaa-bhaktise bhagavaan ke darshan karane aaye hain, vahaan bhee main ek streeke saundaryapar mugdh hoon mathapar jaanepar mujhe jhida़kee sunanee pada़egee. pata naheen, aachaaryasvaamee kya aadesh denge. kitana daantenge. n jaaoon, yah bhee theek naheen. isase to unaka apamaan hogaa.' antamen usane mathapar jaana sveekaar kar liyaa.
shreeraamaanujasvaameene bhagavaan shreeranganaathase mandiramen jaakar usee samay praarthana kee—'mere dayaamay svaamee! ek vimukh jeevako apane saundaryase aakarshit karake shreecharanonmen sveekaar karo.'
bhojan karake dhanurdaas mathapar pahunch gayaa. samaachaar paakar shreeraamaanujasvaameene use mathamen bheetar bula liya aur usake adbhut vyavahaaraka kaaran poochhaa. bada़ee namrataase, haath joda़kar dhanurdaasane bataayaa- 'svaamee main us streeke saundaryapar paagal ho gaya hoon. use dekhe bina mujhase raha naheen jaataa! kaamavaasana to mujhamen kuchh aisee prabal naheen hai; par usaka roop mujhase chhoda़a naheen jaataa. main use n dekhoon to bechain ho jaata hoon. mahaaraaja! aap jo aajna karen, main vahee karoongaa; par usaka saath n chhuda़aayen.'
shreeraamaanujasvaameene kahaa- 'yadi ham usase bahut adhik sundar mukh tumhen dikhalaayen to?' dhanurdaasane kahaa- 'mahaaraaja! usase sundar mukh dekhanekomile to main use ekadam parityaag kar sakata hoon.' shreesvaameene kahaa- 'aisa naheen usaka parityaag tum mat karo. vah veshya thee, tumhaare paas aakar ab tumhaaree stree ho gayee. tum chhoda़ doge to phir veshya ho jaayagee. aisa to naheen hona chaahiye. vah ab sudhar gayee hai. use tum apanee patnee banaakar apane yahaan rahane do. tum jo usake roopapar itane mugdh ho, bas, yah theekanaheen. tumhen yah sveekaar ho to sandhyaake samay jab shreeranganaathakee aaratee hotee hai, us samay tum mandiramen aakar mujhase milana akele hee aanaa.'
dhanurdaas aajna paakar vida huaa. use bada़a aashchary ho raha thaa. aachaaryasvaameene us jaise neech jaatike purushako mathamen bheetar bulaaya, putrako bhaanti khehase paas baithaaya aur bina daॉte-phatakaare vida kar diyaa. usane to aasha kee thee ki use aachaaryasvaamee bahut kuchh kahenge. vah bhayase thara-thar kaanpata aaya tha ki kaheen mujhe shaap n den den. vah sab to kuchh naheen huaa. ghar aakar usane streese sab baaten kah deen. vah stree bhee naheen chaahatee thee ki dhanurdaas is prakaar usapar lattoo rahe, maarg dhanurdaas usake aage-aage peechhe kee or chale. yah vyavahaar use bhee lajjaajanak jaan pada़ta thaa. vah ab sachche hridayase dhanurdaasakee patnee thee vah usaka sudhaar chaahatee thee; kintu is bhayase ki dhanurdaas use chhoda़ n de, kuchh kahatee naheen thee. use prasannata huee is aashaase ki aachaaryasvaamee dhanurdaasako kadaachit sudhaar denge.
jab sandhyaasamay dhanurdaas shreerangajeeke mandiramen gaya to use kiseene bheetar jaanese roka naheen. aachaaryasvaameene use dhyaanapoorvak aarateeke samay bhagavaana ke darshan karaneko kahaa. dhanurdaas to aarateeke samay hee ekadam badal gayaa. jis saundary sudha saagarake ek seekarase svargaka saara saundary nikala hai, tribhuvanakee sushama jisakee chhaayaake bhee kisee anshamen naheen, us saundaryasaar sarvasyako aaj dhanurdaasane ek jhalak paayee aur jab vah jhaankee adrishy ho gayee, vah paagalakee bhaanti aachaaryasvaameeke charanonse lipat gayaa. usane phoota-phootakar rote hue kahaa-'svaamee mujhe jo aajna do, main vahee karoongaa. mujhe kaho to main apane haathase apane dehako botee-botee kaat hai par vah tribhuvanamohan mukh mujhe dikhaao aisee kripa karo ki vah mukh mere netronke saamane ho rahe.'
dhanurdaas aachaaryasvaameeke samajhaanese ghar aayaa. ab stree to use bahut hee kuroop jaan pada़ne lagee. vah aachaaryasvaameekee aajnaase hee use patnee banaaye thaa. kuchh dinon baad ve donon shreeraamaanujasvaamee ke shishy ho gaye.shreesvaameejeene bhee dononko saampradaayik jnaanake vishay men bahujn bana diyaa. dononka aacharan aadarsh ho gayaa. dhanurdaas aachaaryasvaameeka atyant vishvast anuchar ho gayaa.
shreeraamaanujasvaamee vriddhaavasthaamen kaaveree sthaanako jaate samay to kisee braahmanake kandheka sahaara lekar jaate the, par snaan karake lautate the dhanurdaasake kandheka sahaara lekar mathake braahmana-shishy isase kuढ़te the. unamense ek din ekane kahaa- 'mahaaraaj aap snaan karake dhanurdaasako kyon chhoote hain? hamalog to aapako sevaako sada prastut hain.'
shreesvaameejeene kahaa-'main apane hridayake abhimaanako door karaneke liye hee aisa karata hoon. dhanurdaasaka aacharan yahaanke anek braahmanonse uttam hai. aashramake log dhanurdaasase daah karate hain, yah dekhakar aachaaryane us bhaktaka maahaatmy prakat karake sabaka garv door kar dena chaahaa. ek raat apane ek vishvast shishyako un braahman shishyonke kapada़onmense eka-ek bitta kapada़a phaada़kar chupachaap le aaneko unhonne kahaa. sabere apane kapada़e phate dekh ve log paraspar jhagaड़ne lage. shreesvaameejeene unhen bulaakar naye kapaड़e diye aur is prakaar santusht kiyaa. kapada़e kisane phaada़e, yah baat chhipee hee rahee. kuchh dinon baad unheen shishyonmense kuchhako bulaakar svaameejeene kahaa- aaj ham dhanurdaasako yahaan adhik raatatak satsangamen rok rakhenge. tumalog usake ghar jaakar hemaambaake gahane chura laana aur laakar hamen de denaa.' andhera honepar ve log dhanurdaasake ghar gaye. kivaada़ khule the aur hemaamba palangapar letee huee patike aanekee prateeksha kar rahee thee. shreevaishnavonko lukate-chhipate dabe pair gharamen ghusate dekhakar vah samajh gayee ki ye log kuchh choree karane aaye hain. manamen yah baat aate hee usane netr band kar liye aur jhoothe kharaate lene lagee. use is prakaar besudh sote dekh aaye logonne unake shareerapar ek orake gahane jo oopar the, dheere-dheere utaar liye. hemaambaane socha ki ye log shareerake doosaree orake gahane bhee le len to achchha usane karavat badalee; kintu aaye logonne samajha ki vah neendasejaganevaalee hai. ve log bhaag gaye. mathapar jab ye log pahunch gaye, tab shreeraamaanujasvaameene dhanurdaasako ghar jaanekee aajna dee. usake jaanepar in logonse kahaa- 'ab tumalog chhipakar phir dhanurdaasake ghar jaao aur dekho ki ve stree-purush kya baaten karate hain.' ve log phir dhanurdaasake peechhe chhipe hue usake ghar aaye.
dhanurdaas ghar pahunche. patneese sab baaten sunakar ve bahut hee duhkhit ho gaye. unhonne streese kahaa- 'tumhaaree dhan daulatako laalach abhee gayee naheen. tuchchhan gahanonke lobh men tumane un shreevaishnavonko karavat badalakar chaunka diyaa. main tumhen ab apane paas naheen rakhoongaa. vaishnavonkee bhakti jisamen naheen, usase mujhe kya prayojan hai.'
bechaaree stree rote-rote patike paironpar gir pada़ee. usane kahaa- 'naatha! mainne to karavat iseeliye badalee thee ki shareerake doosaree orake gahane bhee ve log le len par mere durbhaagyase ve bhaag gaye. mere aparaadhako aap kshama kar den.ab main bahut adhik saavadhaan rahoongee.' kisee prakaar dhanurdaasane usako kshama kiyaa.
ve braahman shishy jab laut aaye, tab unakee baaten sunakar shreeraamaanujaachaaryane us dinake ve phate kapada़e nikaalakar unhen dikhaate hue kahaa- 'tumalog itane se kapada़onke liye jhagada़te the aur dhanurdaasakee vaishnavabhakti tumane dekh hee lee. main iseeliye usaka aadar karata hoon, aur snaanake baad usaka sahaara lekar lautata hoon.' dhanurdaasako bulaakar gahane lautaate hue unhonne kahaa- 'ye gahane mainne kuchh vishesh kaaranase mangavaaye the. tum kuchh bura mat maananaa.' dhanurdaas aachaaryasvaameeke charanonmen gir pada़aa. usane kahaa- 'prabho! main to aapaka daas hoon. mera shareer aur jo kuchh hai, vah sab aapaka hee hai. bura maananekee kya baat hai isamen.' hemaamba bhee aise bhagavadbhakt saath paakar tar gayee. aaj bhee dhanurdaasaka naam .. shreevaishnav bada़e sammaanase lete hain.