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पूज्य स्वामी इन्दिराकान्ततीर्थ श्रीपादवडेर की मार्मिक कथा
पूज्य स्वामी इन्दिराकान्ततीर्थ श्रीपादवडेर की अधबुत कहानी - Full Story of पूज्य स्वामी इन्दिराकान्ततीर्थ श्रीपादवडेर (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [पूज्य स्वामी इन्दिराकान्ततीर्थ श्रीपादवडेर]- भक्तमाल


द्वैतसिद्धान्तप्रतिपादक श्रीमन्मध्वाचार्यने श्रीक्षेत्र उडुपी में श्रीकृष्णविग्रहकी प्राणप्रतिष्ठा करके विशेष हेतुसे जिन आठ मठोंकी स्थापना को, उनमें पूजन-अर्चनके लिये आठ संन्यासियोंकी नियुक्ति की। उन आठ मठोंमेंसे एक महान् तपस्वी मठाधिपतिकी ओरसे श्रीबदरिकाश्रममें एक सुशील गौड़ ब्राह्मण ब्रह्मचारीको आश्रमदीक्षा प्राप्त हुई। उन्होंने दक्षिण जाकर अपनी इस परम्पराको विशुद्ध रूपसे चलाया। इसी परम्परामें बड़े श्रेष्ठ अधिकारी और भगवत्-साक्षात्कार प्राप्त श्रीजीवोत्तमतीर्थ स्वामी हुए। स्वामी श्रीइन्दिराकान्ततीर्थजी इन्होंके उत्तराधिकारी थे।

स्वामी इन्दिराकान्ततीर्थजी धर्माचार्य होनेके साथ-ही साथ एक दैवीशक्तिसम्पन्न महात्मा और ज्ञानी भक्त थे। श्रीमन्मध्वाचार्य सम्प्रदायके वे कुशल मठ-व्यवस्थापक) ही नहीं, शास्त्रज्ञानी और अद्भुत कर्मकाण्डी भी थे। उनका जीवन अत्यन्त उन्नत और परम पवित्र था। उनके नैष्ठिक आचार-विचार, रहन-सहन, प्रगाढ़ विद्वत्ता, प्रेममयी प्रकृति, सहृदयता आदिका लोगोंपर पूर्ण प्रभाव था वे उनको बड़ी श्रद्धा-भक्ति और पूज्य भावनासे सम्मानित करते थे।

वे कट्टर सनातनधर्मी मठाधीश थे, शास्त्रविहित आचरणको ही श्रेयस्कर समझते थे। मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा इन प्रवृत्तियोंकि वे पोषक थे।अपनेसे छोटोंके प्रति उन्होंने सदा करुणा और वात्सल्यका परिचय दिया। उनका जीवन सदा सत्कार्योंके सम्पादनमें बीता। वे संयम, नियम, तप, जप आदिके पालनपर विशेष जोर देते थे। वे कहा करते थे कि जिस व्यक्तिमें दैवीसम्पत्ति - अहिंसा, तप, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह आदिका अभाव है, वह कभी भी अपना यह लोक और परलोक नहीं सुधार सकता। उनका मत था जनता अर्थ और कामकी इच्छा करती है। इन दोनों पदार्थोंकी शास्त्रोंने पुरुषार्थमें गणना की है। परन्तु धर्म, | अर्थ, काम और मोक्ष इन चारोंमें धर्म और मोक्षद्वारा ही अर्थ तथा कामरूपी पुरुषार्थ शासित हैं। यदि धर्म और मोक्षका बन्धन न रहे तो अर्थसे महान् अनर्थ हो जाते हैं। धर्मके यथार्थ आचरणसे ही विशुद्ध अर्थ और काम सुलभ होते हैं। धर्मके नियन्त्रणमें अर्थ और काम रखनेसे जीवन सार्थक हो जाता है।

वे पौराणिक कथाओंके पाठमें बड़ी अभिरुचि रखते थे। पुराणकी कथा कहनेमें उनको बड़ा आनन्द मिलता था। वे योग्य मठाधीश, महान् विद्वान् और धर्माचार्य तथा भक्त थे। श्रीहरिकी कृपासे उन्होंने पचास वर्षोंतक मठाधीशको गद्दीकी शोभा बढ़ायी, सैकड़ों छात्रोंको वेद, काव्य, व्याकरण, न्याय तथा वेदान्तके उच्च ग्रन्थोंकी शिक्षा दी।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [poojy svaamee indiraakaantateerth shreepaadavadera]- Bhaktmaal


dvaitasiddhaantapratipaadak shreemanmadhvaachaaryane shreekshetr udupee men shreekrishnavigrahakee praanapratishtha karake vishesh hetuse jin aath mathonkee sthaapana ko, unamen poojana-archanake liye aath sannyaasiyonkee niyukti kee. un aath mathonmense ek mahaan tapasvee mathaadhipatikee orase shreebadarikaashramamen ek susheel gauda़ braahman brahmachaareeko aashramadeeksha praapt huee. unhonne dakshin jaakar apanee is paramparaako vishuddh roopase chalaayaa. isee paramparaamen bada़e shreshth adhikaaree aur bhagavat-saakshaatkaar praapt shreejeevottamateerth svaamee hue. svaamee shreeindiraakaantateerthajee inhonke uttaraadhikaaree the.

svaamee indiraakaantateerthajee dharmaachaary honeke saatha-hee saath ek daiveeshaktisampann mahaatma aur jnaanee bhakt the. shreemanmadhvaachaary sampradaayake ve kushal matha-vyavasthaapaka) hee naheen, shaastrajnaanee aur adbhut karmakaandee bhee the. unaka jeevan atyant unnat aur param pavitr thaa. unake naishthik aachaara-vichaar, rahana-sahan, pragaadha़ vidvatta, premamayee prakriti, sahridayata aadika logonpar poorn prabhaav tha ve unako bada़ee shraddhaa-bhakti aur poojy bhaavanaase sammaanit karate the.

ve kattar sanaatanadharmee mathaadheesh the, shaastravihit aacharanako hee shreyaskar samajhate the. maitree, karuna, mudita aur upeksha in pravrittiyonki ve poshak the.apanese chhotonke prati unhonne sada karuna aur vaatsalyaka parichay diyaa. unaka jeevan sada satkaaryonke sampaadanamen beetaa. ve sanyam, niyam, tap, jap aadike paalanapar vishesh jor dete the. ve kaha karate the ki jis vyaktimen daiveesampatti - ahinsa, tap, saty, astey, brahmachary aparigrah aadika abhaav hai, vah kabhee bhee apana yah lok aur paralok naheen sudhaar sakataa. unaka mat tha janata arth aur kaamakee ichchha karatee hai. in donon padaarthonkee shaastronne purushaarthamen ganana kee hai. parantu dharm, | arth, kaam aur moksh in chaaronmen dharm aur mokshadvaara hee arth tatha kaamaroopee purushaarth shaasit hain. yadi dharm aur mokshaka bandhan n rahe to arthase mahaan anarth ho jaate hain. dharmake yathaarth aacharanase hee vishuddh arth aur kaam sulabh hote hain. dharmake niyantranamen arth aur kaam rakhanese jeevan saarthak ho jaata hai.

ve pauraanik kathaaonke paathamen bada़ee abhiruchi rakhate the. puraanakee katha kahanemen unako bada़a aanand milata thaa. ve yogy mathaadheesh, mahaan vidvaan aur dharmaachaary tatha bhakt the. shreeharikee kripaase unhonne pachaas varshontak mathaadheeshako gaddeekee shobha badha़aayee, saikada़on chhaatronko ved, kaavy, vyaakaran, nyaay tatha vedaantake uchch granthonkee shiksha dee.

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