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जीवन्ती वेश्या की मार्मिक कथा
जीवन्ती वेश्या की अधबुत कहानी - Full Story of जीवन्ती वेश्या (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [जीवन्ती वेश्या]- भक्तमाल


मृत्युकाले द्विजश्रेष्ठ रामेति नाम यः स्मरेत् ।

स पापात्मापि परमं मोक्षमाप्नोति जैमिने ॥

(भगवान् वेदव्यासजी)

प्राचीन कालकी कथा है, एक नगरमें जीवन्ती नामकी एक वेश्या रहती थी। लोक-परलोकके भयसे रहित होकर वह वेश्या व्यभिचारवृत्तिसे उदर-पोषण किया करती। एक दिन एक तोता बेचनेवालेसे उसने सुन्दर देखकर एक छोटा-सा सुग्गेका बच्चा खरीद लिया। वेश्याके कोई सन्तान नहीं थी, इसलिये वह उस पक्षि- शावकका पुत्रवत् पालन करने लगी। प्रात:काल उठते ही उसके पास बैठकर उसे 'राम-राम' पढ़ातीजब वह नहीं बोलता, तब उसे अच्छे-अच्छे रसभरे फल खानेको देती। सूआ 'राम-राम' सीख गया और अभ्यासवश बड़े सुन्दर स्वरोंसे वह रात-दिन राम-राम बोलने लगा। वेश्या छुट्टी पाते ही उसके पास आकर बैठ जाती और | उसीके साथ वह भी 'राम-राम' का उच्चारण किया करती। एक दिन एक ही समय दोनोंका मृत्युकाल आ गया। 'राम' उच्चारण करते-करते दोनोंने प्राण त्याग दिये । सूआ भी पहलेका पापी था। अतएव दोनों पापियोंको लेनेके लिये चण्ड आदि यमराजके कई दूत हाथोंमें फाँसी और अनेक प्रकारके शस्त्र लिये वहाँ पहुँचे। इधर विष्णुतुल्य-पराक्रमी शङ्ख-चक्र-गदाधारीभगवान् विष्णुके दूत भी आ उपस्थित हुए। उन्होंने यमदूतोंसे कहा- 'तुमलोग इन दोनों निष्पाप जीवोंको क्यों फाँसीमें बाँध रहे हो, तुम किसके दूत हो?' यमदूत—हम महाराज सूर्यपुत्र यमराजके किङ्कर हैं। इन दोनों पापात्माओंको यमपुरीमें ले जाते हैं।

विष्णुदूत (क्रोधसे हँसकर) इन यमदूतोंकी बात तो सुनो! क्या भगवन्नाम लेनेवाले हरिभक्त भी यमराजसे दण्ड पाने योग्य हैं? दुष्टोंका चरित्र कभी उत्तम नहीं होता, वे सर्वदा ही साधुओंसे द्वेष रखते हैं। पापी मनुष्य अपने ही समान सबको पापी समझा करते हैं। पुण्यात्मा पुरुषोंको सारा जगत् निष्पाप दीखता है। धार्मिक पुरुष पुण्यात्माओंके पुण्यचरित्र सुनकर प्रसन्न होते हैं और पापियोंको पापकथासे प्रसन्नता होती है। भगवान्की कैसी माया है। पापसे महान पीड़ा होती है, यह समझते हुए भी लोग पाप करनेसे नहीं चूकते।

विष्णुदूतोंने इतना कहकर चक्रसे दोनोंके बन्धन काट दिये। इसपर यमदूतोंको बहुत क्रोध आया और वे विष्णुदूतोंको ललकारकर बोले- 'तुमलोग पापियोंको लेने आये हो, यह जानकर बड़ा आश्चर्य होता है। यदि तुमलोग बलपूर्वक उन्हें ले जाना चाहते हो तो पहले हमसे युद्ध करो।'

दोनों पक्ष के दूतोंमें घोर युद्ध होने लगा। अन्तमें विष्णुदूतोंसे पराजित होकर अपने मूच्छित सेनापति चण्डको उठाकर हाहाकार करते हुए यमदूत यमपुरीकी भाग गये। इधर विष्णुदूतोंने हर्षके साथ जयध्वनि करके
दोनोंको विमानमें बैठाया और विष्णुलोकको ले गये। रक्तात कलेवर यमदूत यमराजके सामने जाकर रोने लगे और बोले-

'सूर्यपुत्र महाबाहो हम आपके आज्ञाकारी सेवकोंकी विष्णुदूतोंने बहुत ही दुर्गति की है। आपका प्रभुत्व अब कौन मानेगा। यह पराभव हमारा नहीं, परंतु आपका है।'

यमराजने कहा-'दूतो यदि उन्होंने मरते समय 'राम' इन दो अक्षरों का स्मरण किया है तो वे मुझसे कभी दण्डनीय नहीं हैं। उस 'राम' नामके प्रतापसे भगवान् नारायण उनके प्रभु हो गये-

दूता यदि स्मरन्तौ तौ रामनामाक्षरद्वयम् ।

तदा न मे दण्डनीयाँ तयोर्नारायणः प्रभुः ॥

संसारमें ऐसा कोई पाप नहीं है, जिसका रामनाम स्मरणसे नाश न हो जाए कि सुनो, जो प्रतिदिन भक्तिपूर्वक मधुसूदनका नाम लेते हैं, जो गोविन्द, केशव, हरे, जगदीश, विष्णो, नारायण, प्रणतवत्सल और माधव-इन नामों का भक्तिपूर्वक सतत उच्चारण करते हैं, जो सदा इस प्रकार कहते हैं-'हे लक्ष्मीपते। सकलपापविनाशकारी । श्रीकृष्ण केशिनिषूदन आप हमलोगोंको अपना दास बनायें!' वे लोग मुझसे दण्ड पानेके योग्य नहीं हैं। जिनकी जीभपर दामोदर, ईथर, अमरवृन्दसेव्य श्रीवासुदेव पुरुषोत्तम और यादव आदि नाम विराजमान रहते हैं, मैं उन लोगोंको प्रतिदिन प्रणाम करता हूँ। जगत्के एकमात्र स्वामी नारायण मुरारिका माहात्म्य कीर्तन करनेमें जिन लोगोंका अनुराग है, हे वीरो! मैं उनके अधीन हैं।

'जो भक्त भगवान् विष्णुकी पूजामें लगे रहते हैं, जो कपटरहित हो एकादशीका व्रत करते हैं, जो विष्णुचरणामृतको मस्तकपर धारण करते हैं, जो भोग लगानेके बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो तुलसी-सेवी हैं, जो अपने माता पिताके चरणों को पूजनेवाले हैं, जो ब्राह्मणोंकी पूजा और गुरुकी सेवा करते हैं, जो दीन-दुःखियोंके हृदयको सुख पहुँचाते हैं, जो सत्यवादी, लोकप्रिय और शरणागतपालक हैं, जो दूसरोंके धनको विषके समान समझते हैं, जो अत्र, जल, भूमिका दान करते हैं, जो प्राणिमात्रके हितैषी हैं, जो बेकारोंको आजीविका देते हैं, जो शान्तचित्त हैं, जो जातिके सेवक हैं, जो दम्भ-क्रोध मद-मत्सरसे रहित हैं, जो पापदृष्टिसे बचे हुए हैं और जो जितेन्द्रिय हैं, उनको में प्रणाम करता हूँ, मैं उनके अधीन हैं ऐसे लोगोंकी मैं कभी नरकके लिये चर्चा भी नहीं करता।'

भगवान् व्यासने कहा- यमदूत इस प्रकार यमराजके द्वारा समझाये जानेपर भगवान्‌का माहात्म्य जान गये। 'भगवन्नाम वेदसे भी अधिक है' सर्ववेदाधिकानि वै। तत्त्वज्ञ पुरुष रामनामका स्मरण करते हैं। 'राम' मन्त्र सब मन्त्रोंसे अधिक महत्त्वका है। रामनामका पूरा प्रभाव भगवान् महादेवजी ही जानते हैं, अन्य कोई भी देवता नहीं जानते। रामनामके उच्चारणमें कोई श्रम नहीं होता,सुनने में भी बड़ा सुन्दर है; तो भी दुष्ट मनुष्य इसका स्मरण नहीं करते। जब अत्यन्त दुर्लभ मुक्ति रामनामसे मिल सकती है, तब रामनामको छोड़कर और करनेयोग्य काम ही कौन-सा है। जबतक रामनामका स्मरण चालू नहीं होता, तभीतक पाप रहते हैं। अतएव सबको श्रीरामनामका जप करना चाहिये।

मृत्युकाले द्विजश्रेष्ठ रामेति नाम यः स्मरेत् ।

स पापात्मापि परमं मोक्षमाप्नोति जैमिने ॥

व्यासदेव फिर कहने लगे- 'जैमिने! मृत्युसमयमें रामनाम-स्मरण करनेसे पापात्मा भी मोक्षको प्राप्त होता हैं। रामनाम समस्त अमङ्गलका नाश करनेवाला, मनोरथ पूर्ण करनेवाला और मोक्ष देनेवाला है; इसलिये बुद्धिमानोंको सदा रामनाम स्मरण करना चाहिये।'

रामेति नाम विप्रर्षे यस्मिन्न स्मर्यते क्षणे ।
क्षणः स एव व्यर्थः स्यात् सत्यमेतन्मयोच्यते ॥ रामनामामृतस्वादभेदज्ञा रसना च या।
तन्नाम रसनेत्याहुर्मुनयस्तत्त्वदर्शिनः ॥
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यमेतन्मयोच्यते ।
स्मरन्तो रामनामानि नावसीदन्ति मानवाः ॥

(पद्मपुराण)
'जिस समय मनुष्य रामनाम-स्मरण नहीं करता, वही समय व्यर्थ जाता है- यह मैं सत्य कहता हूँ। जो रसना रामनामके रस-भेदको जानती है, तत्त्वदर्शी मुनिगण कहते हैं कि बस, वही रसना है। मैं सत्य, सत्य और फिर सत्य कहता हूँ कि राम-नाम-स्मरण करनेवाले मनुष्य कभी विषादको प्राप्त नहीं हो सकते !'



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(bhagavaan vedavyaasajee)

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dononko vimaanamen baithaaya aur vishnulokako le gaye. raktaat kalevar yamadoot yamaraajake saamane jaakar rone lage aur bole-

'sooryaputr mahaabaaho ham aapake aajnaakaaree sevakonkee vishnudootonne bahut hee durgati kee hai. aapaka prabhutv ab kaun maanegaa. yah paraabhav hamaara naheen, parantu aapaka hai.'

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doota yadi smarantau tau raamanaamaaksharadvayam .

tada n me dandaneeyaan tayornaaraayanah prabhuh ..

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mrityukaale dvijashreshth raameti naam yah smaret .

s paapaatmaapi paraman mokshamaapnoti jaimine ..

vyaasadev phir kahane lage- 'jaimine! mrityusamayamen raamanaama-smaran karanese paapaatma bhee mokshako praapt hota hain. raamanaam samast amangalaka naash karanevaala, manorath poorn karanevaala aur moksh denevaala hai; isaliye buddhimaanonko sada raamanaam smaran karana chaahiye.'

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kshanah s ev vyarthah syaat satyametanmayochyate .. raamanaamaamritasvaadabhedajna rasana ch yaa.
tannaam rasanetyaahurmunayastattvadarshinah ..
satyan satyan punah satyan satyametanmayochyate .
smaranto raamanaamaani naavaseedanti maanavaah ..

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'jis samay manushy raamanaama-smaran naheen karata, vahee samay vyarth jaata hai- yah main saty kahata hoon. jo rasana raamanaamake rasa-bhedako jaanatee hai, tattvadarshee munigan kahate hain ki bas, vahee rasana hai. main saty, saty aur phir saty kahata hoon ki raama-naama-smaran karanevaale manushy kabhee vishaadako praapt naheen ho sakate !'

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और मैं शून्य हो रहा हूँ
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