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भक्त विष्णुचित्त और उनके शिष्य नरपति की मार्मिक कथा
भक्त विष्णुचित्त और उनके शिष्य नरपति की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त विष्णुचित्त और उनके शिष्य नरपति (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त विष्णुचित्त और उनके शिष्य नरपति]- भक्तमाल


सब के प्रिय सब के हितकारी दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी ॥ कहहिं सत्य प्रिय वचन बिचारी जागत सोवत सरन तुम्हारी ॥ तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।।
(रामचरितमानस)

दक्षिण भारतके पाण्ड्यदेशमें धन्विनगर में मुकुन्द नामके एक ब्राह्मण रहते थे। वे सदाचारी, भगवद्भक्त, शास्त्रज्ञ और धर्मात्मा थे। उनके कोई सन्तान नहीं थी। भगवान् से सन्तानको प्रार्थना करनेपर स्वप्नमें पुत्र प्राप्तिका आश्वासन उन्हें मिला। समय आनेपर उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। बालकका नाम रखा गया विष्णुचित्त । बचपन से ही उसमें दिव्य गुण थे। बड़े प्रेमसे वह भगवान्‌की कथा सुनता था। बच्चोंके साथ भी भगवान्की लीलाओंके ही खेल खेलता। माता-पिताकी आज्ञा मानता। उसे किसीसे लड़ते अथवा किसीकी निन्दा या शिकायत करते देखा ही नहीं गया। पिताने उसका यज्ञोपवीत संस्कार कराया। इसके कुछ दिनों बाद पिताका परलोकवास हो गया।

विष्णुचित हष्ट-पुष्ट थे, मधुरभाषी थे, शरीरसे सुन्दर थे; किंतु जवानीमें भी उनपर कभी प्रमादका अधिकार नहीं हुआ। सन्ध्योपासन, वेदाध्ययन तथा साधु-सेवा उनकी निर्बाध चलती रही। भगवान् श्रीकृष्णको उन्होंने अपना आराध्य माना तथा उन श्यामसुन्दरके चरणोंपर ही आत्मसमर्पण कर दिया। रात-दिन वे श्रीकृष्णके नामका जप करते और उनके गुण-लीलाके चिन्तनमें मग्न रहते। उनका शरीर भी भगवान्‌की सेवामें ही लगा रहता था। कभी भगवान्के लिये फूल चुनते, कभी माला गूंथते, कभी चन्दन घिसते, कभी नैवेद्य प्रस्तुत करते, कभी आरती उतारते। भगवान्‌के स्मरण, नाम-जप और पूजनके अतिरिक्त और कोई काम नहीं था उनके पास।

विष्णुचित्तजीने, भगवान्की सेवाके लिये पुष्प मिलें, इसलिये एक सुन्दर बगीचा लगाया था। उस बगीचे में मन्दिर बनाकर उन्होंने भगवान्‌के श्रीविग्रहको स्थापना की थी और स्वयं भी भगवान्की सेवा करते हुए वहीं रहते थे। उस देशके राजा उधरसे कहीं घोड़ेपर बैठे जा रहे थे। बगीचा देखकर वे विश्रामके लिये भीतर गये। घोड़ेसे उतरकर उन्होंने भगवान्‌के दर्शन किये। विष्णुचितके तेजस्वी शरीर एवं भजनमें लीन भावको देखकर राजाकी

उनमें श्रद्धा हो गयी। राजाने हाथ जोड़कर प्रणाम किया

और उपदेश करनेकी प्रार्थना की। विष्णुचित्तजीने कहा-'जैसे बनजारे आठ महीने देश-विदेशमें व्यापार करके चौमासेमें उसे घर बैठकर खाते हैं, वैसे ही जीवके लिये मनुष्य जन्म कमाई करनेका और दूसरे सब जन्म भोगनेके हैं। मनुष्य जन्ममें यदि कमाई ठीक न हो तो दूसरे जन्मोंमें उसका फल कष्ट भोगना ही पड़ेगा। मनुष्य जन्ममें जो पुण्य करते हैं, उन्हें देवता आदिके उत्तम शरीर मिलते हैं और पाप करनेवाले नरकमें जाते हैं तथा कीट-पतङ्ग आदि शरीरोंमें जन्म लेकर भयंकर कष्ट भोगते हैं। इसलिये बुद्धिमान् पुरुषको पाप तो भूलकर भी नहीं करना चाहिये। उसे पुण्य ही करना चाहिये। परंतु मनुष्य जन्मकी सफलता पुण्य करनेमें भी नहीं है। पुण्य करनेसे भी जन्म तो लेना ही पड़ता है। मनुष्य जन्मकी सफलता तो जन्म-मरणके बन्धनसे छूट जानेमें है। श्रीकृष्णके भजनसे ही यह बन्धन छूटता है। पता नहीं, पृथ्वीपर कितने राजा हुए। एक-से-एक प्रतापी राजाओंको भी काल खा गया। इसलिये तुम राजमदमें आकर जीवन नष्ट मत करो। पाप करके या विषय-भोगोंमें लगकर इस दुर्लभ जन्मको मत गँवाओ। भगवान् श्रीकृष्ण ही जीवके सच्चे स्वामी हैं। तुम अपनेको उन्हींके चरणोंमें समर्पित कर दो। उनके नामका जप करो। उनके गुण गाओ। उनके चरणोंका चिन्तन करो। सभी प्राणियोंको उनका रूप मानकर उनकी सेवा करो। राज्यको उन पुरुषोत्तमका मानो और तुम दीवान बन जाओ। अपने काममें उतना ही राज्य धन लो, जितना शरीरके लिये अत्यन्त आवश्यक हो। केवल भगवान्‌को निवेदित प्रसाद ही सबको देकर ग्रहण करो। दयामय भगवान् इस प्रकार रहनेसे तुमपर कृपा करेंगे।'

राजाने उपदेश हृदयसे ग्रहण किया। उसकी विषयासक्ति दूर हो गयी। उसकी प्रत्येक क्रिया भगवत्प्रीत्यर्थ होने लगी। उसका जीवन ही पूजामय हो गया। कुछ समय बाद उसे और विष्णुचित्तको भगवान्ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया। श्रीलक्ष्मीनारायणके दर्शन करके वे कृतार्थ हो गये। दोनों गुरु-शिष्य भगवत्कैङ्कर्य प्राप्तकर परम धाम सिधारे।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt vishnuchitt aur unake shishy narapati]- Bhaktmaal


sab ke priy sab ke hitakaaree dukh sukh saris prasansa gaaree .. kahahin saty priy vachan bichaaree jaagat sovat saran tumhaaree .. tumhahi chhaada़i gati doosari naaheen raam basahu tinh ke man maaheen..
(raamacharitamaanasa)

dakshin bhaaratake paandyadeshamen dhanvinagar men mukund naamake ek braahman rahate the. ve sadaachaaree, bhagavadbhakt, shaastrajn aur dharmaatma the. unake koee santaan naheen thee. bhagavaan se santaanako praarthana karanepar svapnamen putr praaptika aashvaasan unhen milaa. samay aanepar unhen putr praapt huaa. baalakaka naam rakha gaya vishnuchitt . bachapan se hee usamen divy gun the. bada़e premase vah bhagavaan‌kee katha sunata thaa. bachchonke saath bhee bhagavaankee leelaaonke hee khel khelataa. maataa-pitaakee aajna maanataa. use kiseese lada़te athava kiseekee ninda ya shikaayat karate dekha hee naheen gayaa. pitaane usaka yajnopaveet sanskaar karaayaa. isake kuchh dinon baad pitaaka paralokavaas ho gayaa.

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