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महात्मा श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्र की मार्मिक कथा
महात्मा श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्र की अधबुत कहानी - Full Story of महात्मा श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्र (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महात्मा श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्र]- भक्तमाल


महात्मा श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्र दक्षिण भारत ही नहीं, समस्त विचार जगत् के भक्ति, ज्ञान और वैराग्य चिन्तनके प्रधान विषय थे। मदुराके हालास्य क्षेत्रमें पंद्रहवी सदीके विख्यात दक्षिणी विद्वान् सोमसुदा घरमें शिवरामकृष्णने जन्म लिया। उनकी माताका नाम पार्वती देवी था। बचपनसे ही उनको पूर्ण संयम और शास्त्रविधानों की शृङ्खलामें बाँधकर रखा गया। उपनयन संस्कारके बाद मदुराके शिवमन्दिरमें उन्हें वेदाध्ययनके लिये भेजा गया। उसके बाद वे तजोरमें गुरुके घरपर ही रहकर विद्याध्ययन करने लगे। अठारह सालकी अवस्थामें उनका विवाह कर दिया गया। तीन वर्षके बाद गुरुकुलसे लौटनेपर जब उनकी माताने गृहस्थाश्रम और पत्नीके आगमन के सम्बन्धमें उनको बताया, तब उनका हृदय क्षोभसे परिपूर्ण हो उठा। वे सोचने लगे कि 'गृहस्थीके सुखसे कहीं बढ़कर आनन्दमय स्थिति है प्रभुको खोजते रहना।' वे घरसे निकल पड़े, 1 गृहस्थजीवनके प्रति वैराग्यका उदय हुआ। विद्याके केन्द्र काञ्चीपुरम् आ पहुँचे। कामकोटि मठके स्वामी र श्रीपरमशिवेन्द्रसे उन्होंने दीक्षा ली। गेरुआ वस्त्र धारणकर वे पूर्ण संन्यासी हो गये। वे प्रायः मठमें ही अध्यात्मविद्यापर दूसरे लोगों बाद-विवाद किया करते थे, पर गुरुको र उनका यह स्वभाव अच्छा न लगा; उनके आदेश से उन्होंने मौनव्रत ले लिया।

उनका अधिकांश समय ब्रह्म-चिन्तन और ग्रन्थ रचनामें बीतने लगा। उनकी प्रसिद्ध और मधुर रचना आत्मविद्याविलासने शृङ्गेरी मटके शिवाभिदानन्द नृसिंह भारतीका भी ध्यान आकृष्ट कर लिया। श्रीसदाशिवब्रह्मेन्द्र उनके कृपापात्र हो गये। उनके शिवयोगप्रदीपिका, ब्रह्मसूत्रवृत्ति, श्रीभगवद्गीताभाष्य आदि अमूल्य ग्रन्थरल हैं। मौनी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र अपने समयकी बहुत बड़ी आध्यात्मिक शक्ति थे। उन्होंने आगे चलकर दण्ड और कमण्डलुका भी परित्याग कर दिया। वे पूरे अवधूत हो चले। घंटों समाधिमें मग्न रहा करते थे, उनका जीवन तपोमय और त्यागपूर्ण बन गया। उन्होंने पुण्यक्षेत्रोंका पर्यटन आरम्भ किया। एक समय वे त्रिमूर्ति क्षेत्रमें कावेरीके परम रमणीय तटपर कुडमुडी स्थानमें ठहर गये। कावेरी बीच-बीचमें कभी-कभी सूख जाती है। वे नदीमें एक बालूके टीलेपर बैठे थे कि थोड़ी देरमें उनकी समाधि लग गयी; बाढ़ आयी और टीला अदृश्य हो चला, गाँववालोंने समझा कि स्वामीजी बह गये। कुछ दिनोंके बाद बाढ़ हटनेपर एक किसान अपना घर बनाने के लिये बालू लाने गया; वह कुछ ही बालू निकाल पाया था कि उसने देखा फावड़ा रक्त से भीग गया है। उसने धीरे-धीरे खोदना आरम्भ किया। उस समय स्वामीजी पूर्ण समाधिस्थ थे। वे उठे और चले गये। उनका जीवन चमत्कारी घटनाओंसे सम्पन्न है। उनकी अलौकिक साधनाशक्तिसे लोग आश्चर्यचकित हो उठे। एक सिद्ध महात्माके रूपमें चारों ओर उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी। ऐसा कहा जाता है कि वे लगभग दो सौ सालतक जीवित थे। पाँच स्थानोंमें उनकी महासमाधि है। कावेरी नदीके रमणीय तटपर करोरके निकट नरोरमें उनकी महासमाधि एक दर्शनीय वस्तु है। वे प्रसिद्ध विचारक, आत्मज्ञानी और स्वरूपनिष्ठ महात्मा थे।



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mahaatma shreesadaashiv brahmendr dakshin bhaarat hee naheen, samast vichaar jagat ke bhakti, jnaan aur vairaagy chintanake pradhaan vishay the. maduraake haalaasy kshetramen pandrahavee sadeeke vikhyaat dakshinee vidvaan somasuda gharamen shivaraamakrishnane janm liyaa. unakee maataaka naam paarvatee devee thaa. bachapanase hee unako poorn sanyam aur shaastravidhaanon kee shrinkhalaamen baandhakar rakha gayaa. upanayan sanskaarake baad maduraake shivamandiramen unhen vedaadhyayanake liye bheja gayaa. usake baad ve tajoramen guruke gharapar hee rahakar vidyaadhyayan karane lage. athaarah saalakee avasthaamen unaka vivaah kar diya gayaa. teen varshake baad gurukulase lautanepar jab unakee maataane grihasthaashram aur patneeke aagaman ke sambandhamen unako bataaya, tab unaka hriday kshobhase paripoorn ho uthaa. ve sochane lage ki 'grihastheeke sukhase kaheen badha़kar aanandamay sthiti hai prabhuko khojate rahanaa.' ve gharase nikal pada़e, 1 grihasthajeevanake prati vairaagyaka uday huaa. vidyaake kendr kaancheepuram a pahunche. kaamakoti mathake svaamee r shreeparamashivendrase unhonne deeksha lee. gerua vastr dhaaranakar ve poorn sannyaasee ho gaye. ve praayah mathamen hee adhyaatmavidyaapar doosare logon baada-vivaad kiya karate the, par guruko r unaka yah svabhaav achchha n lagaa; unake aadesh se unhonne maunavrat le liyaa.

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