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ललितकिशोरीजी और नथुनीबाबा की मार्मिक कथा
ललितकिशोरीजी और नथुनीबाबा की अधबुत कहानी - Full Story of ललितकिशोरीजी और नथुनीबाबा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [ललितकिशोरीजी और नथुनीबाबा]- भक्तमाल


भक्तोंमें एक सखीसम्प्रदाय प्रचलित है। इसमें अपनेको भगवान्की आज्ञाकारिणी सखी मानकर और भगवान् श्रीकृष्णको अपना प्रियतम सखा समझकर उपासना की जाती है। इस सम्प्रदायका विश्वास है कि सखीभावसे उपासना किये बिना किसीको निकुञ्जसेवाका अधिकार नहीं प्राप्त होता l

भक्तप्रवर साहजी और नथुनीबाबा- ये दोनों सखी सम्प्रदायमें सर्वमान्य भक्त हो गये हैं साहजी वृन्दावनमें ललितनिकुञ्जके भीतर रहते थे और आप 'ललितकिशोरी' नामसे प्रसिद्ध थे।नथुनीबाबा ब्राह्मणकुलभूषण थे। आप परम रसिक, नि:स्पृह, सदा प्रसन्न और भगवान्‌की रूपरसमाधुरीमें नित्य छके रहनेवाले थे । वृन्दावनमें आप सखीभावसे रहते थे। भगवत्संगी ही आपके प्रिय थे और भगवान् राधारमण ही परमाराध्य देव थे। आप सदा नथ धारण करते थे, इसीसे 'नथुनीबाबा' के नामसे आपकी प्रसिद्धि हो गयी। वृन्दावनमें एक प्राचीन मन्दिरके कुञ्जमें ही आपका सदा निवास था । छः महीने बीतने पर एक बार कुञ्जका द्वार खुलता था, उस समय वृन्दावनके सभी भक्त-महात्मा सखीजीका दर्शन करने जाते और उनकेमुखारविन्दसे सुधास्वादोपम माधुर्यरसकी कथा सुनकर कृतकृत्य होते थे। यही तो सत्सङ्गकी महिमा है, जिससे भगवान्‌की रसभरी कथा सुननेको प्राप्त होती है।

एक बार नियमित समयपर नथुनीबाबाके कुञ्जका द्वार खुला, सभी संत-महात्मा सखीजीके दर्शनार्थ पधारे, भक्तोंके हृदयमें प्रेमप्रवाह बह चला। साहजी भी, जिनका परिचय ऊपर दिया जा चुका है, श्रीराधारमणके प्रसादका पेड़ा लेकर वहाँ पधारे और सखीजीको प्रणाम करके बैठ गये। साहजी और नथुनीबाबा - इन दोनों भक्तोंके समागमसे भक्तमण्डली बहुत ही सन्तुष्ट 1 हुई, सभी चुप हो गये। ये दोनों ही महात्मा रागानुगा भक्तिमें सदा ही निमग्न रहते थे। साहजीको देखकर नथुनीबाबा नेत्रोंसे प्रेमाश्रु बहाते हुए गद्गद वाणीमें बोले- 'दारी' आयी क्या? जीवन सफल करनेमें कोईपास न रखना।' यह सुनकर साहजी भी प्रेमप्रवाहमें बहते हुए बोले- 'हाँ जी, आपके पास आयी हूँ, अभिलाषा पूरी कीजियो

कोई दिलवर की डगर बताय दे रे ।

लोचन कंज कुटिल भृकुटी कच कानन कथा सुनाय दे रे

।। ललितकिसोरी मेरी वाकी चित की साँट मिलाय दे रे ।

जाके रंग रंग्यौ सब तन मन, ताकी झलक दिखाय दे रे ।।

यह गीत गाकर साहजी पुनः बोले-'कभी ललितकुञ्जमें पधारौ।' बाबा बोले- 'यदि गोडा छोड़ै तो।' तात्पर्य यह कि प्रियतमका आलिङ्गन सदा होता रहता है, फिर बाहर कैसे जाया जाय! बस, इतना सुनकर साहजी गद्गद हो गये और पुनः प्रणाम करके लौट आये। ऐसे-ऐसे महात्मा अब भी वृन्दावनमें विराजते हैं। जिनपर भगवान्की | कृपा होती है, वे ही यह रस लूटते हैं।



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bhaktapravar saahajee aur nathuneebaabaa- ye donon sakhee sampradaayamen sarvamaany bhakt ho gaye hain saahajee vrindaavanamen lalitanikunjake bheetar rahate the aur aap 'lalitakishoree' naamase prasiddh the.nathuneebaaba braahmanakulabhooshan the. aap param rasik, ni:sprih, sada prasann aur bhagavaan‌kee rooparasamaadhureemen nity chhake rahanevaale the . vrindaavanamen aap sakheebhaavase rahate the. bhagavatsangee hee aapake priy the aur bhagavaan raadhaaraman hee paramaaraadhy dev the. aap sada nath dhaaran karate the, iseese 'nathuneebaabaa' ke naamase aapakee prasiddhi ho gayee. vrindaavanamen ek praacheen mandirake kunjamen hee aapaka sada nivaas tha . chhah maheene beetane par ek baar kunjaka dvaar khulata tha, us samay vrindaavanake sabhee bhakta-mahaatma sakheejeeka darshan karane jaate aur unakemukhaaravindase sudhaasvaadopam maadhuryarasakee katha sunakar kritakrity hote the. yahee to satsangakee mahima hai, jisase bhagavaan‌kee rasabharee katha sunaneko praapt hotee hai.

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koee dilavar kee dagar bataay de re .

lochan kanj kutil bhrikutee kach kaanan katha sunaay de re

.. lalitakisoree meree vaakee chit kee saant milaay de re .

jaake rang rangyau sab tan man, taakee jhalak dikhaay de re ..

yah geet gaakar saahajee punah bole-'kabhee lalitakunjamen padhaarau.' baaba bole- 'yadi goda chhoda़ai to.' taatpary yah ki priyatamaka aalingan sada hota rahata hai, phir baahar kaise jaaya jaaya! bas, itana sunakar saahajee gadgad ho gaye aur punah pranaam karake laut aaye. aise-aise mahaatma ab bhee vrindaavanamen viraajate hain. jinapar bhagavaankee | kripa hotee hai, ve hee yah ras lootate hain.

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