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विद्यावारिधि श्रीकृष्णानन्ददासजी की मार्मिक कथा
विद्यावारिधि श्रीकृष्णानन्ददासजी की अधबुत कहानी - Full Story of विद्यावारिधि श्रीकृष्णानन्ददासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [विद्यावारिधि श्रीकृष्णानन्ददासजी]- भक्तमाल


आपका जन्म जालन्धर जिलेका था। 60 वर्षकी आयुमें सं0 1998 के फाल्गुन मासमें आपने वृन्दावन-रज प्राप्त की। आप षड्दर्शनके विद्वान् थे; काशीमें अध्ययन हुआ, वहीं संन्यासकी दीक्षा ग्रहण की। आपका त्याग वैराग्य एक विलक्षण ढंगका ही था, जो आज बहुत कम देखने में आता है। आप श्रीकृष्ण-भक्तिके रसिक थे। विद्याभ्यासके अनन्तर आप गङ्गातटपर भ्रमण करते रहे, किंतु हृदयको शान्ति न मिलती थी। तत्कालीन महात्मा श्रीअच्युत मुनिजीने आपको व्रजमण्डलका रास्ता बताया। व्रजमें आकर आपने चार चार, छः-छः दिनके सूखे मधुकरीके टुकड़े खा-खाकर भागवत-अध्ययन और प्राचीन लीला-ग्रन्थोंका स्वाध्याय किया; पश्चात् आपने नवद्वीपके माध्वगौड़ीय आचार्यवंशमें वैष्णवी दीक्षा ग्रहण की और सखाभावका आश्रय ग्रहण किया। प्रायः आप ग्वारिया बाबाका सत्सङ्ग करते थे।

व्रजमें रहते आपकी विचित्र दशा थी। एक साफी, एक लँगोटी, करपात्र, भिक्षा सप्ताहमें एक दिन, एक वृक्षके नीचे एक दिन, मौनव्रत, स्त्री-अदर्शन आदि बड़े कड़े नियम थे। आप नामव्रती पक्के थे; जिस गाँवमें अखण्ड कीर्तन न हो, जिस भक्तके घरमें भगवत्-पूजा न हो, वहाँ आप जल ग्रहण नहीं करते थे। लोगोंको आप एक ही उपदेश देते-'भाई! गीध, अजामिल, गणिकासे तुम गये-बीते नहीं हो; मनुष्यकी देह मिली है। हरिनाम जपो और चलते-फिरते प्रभु नामका कीर्तन करते रहो

नहिं कलि कर्म न धर्म बिबेकू राम नाम अवलंबन एकू ॥

बस, यही आपका मुख्य उपदेश था।
एक दिन आपके साथ दैवी घटना घटी! आपके सारे शरीरको एक तेजःपुञ्जने जकड़ लिया और कहा- 'क्या तुम छोकरीकी तरह अपने ही काममें लगे रहते हो? विद्यामें इतना श्रम किया है, इससे जन-कल्याण क्यों नहीं करते?' बस, उसी समयसे आपने प्रचार कार्य शुरु किया। आचार्योंको आदर्श बनाया और धर्मरक्षार्थ अपने प्राणोंका लोभ भी परित्याग कर दिया। उत्तर प्रदेशके उत्तरी जिलोंमें ग्राम-ग्राममें आपने धर्मप्रचार किया। बीसवीं सदीके प्रथम चरणमें जब आर्यसमाज, देवसमाज, ब्रह्मसमाज आदि विविध मार्ग जोर पकड़ रहे थे, तब आपने एक-एक दिनमें पाँच-पाँच ग्रामोंमें सभा करके धर्मरक्षार्थ प्रबल आन्दोलन किया। व्रज और उसके बाहर लगभग 200 कीर्तन संस्थाएँ स्थापित कीं, जिनका संचालन आज भी उनके 'चार सम्प्रदाय आश्रम, वृन्दावनद्वारा हो रहा है। आपने कई धार्मिक एवं भावात्मक ग्रन्थ भी लिखे हैं; यह कहने में कोई सन्देह नहीं कि सहस्रों भोली ग्रामीण जनताने आपके उपदेशोंसे मार्ग प्राप्त किया था।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [vidyaavaaridhi shreekrishnaanandadaasajee]- Bhaktmaal


aapaka janm jaalandhar jileka thaa. 60 varshakee aayumen san0 1998 ke phaalgun maasamen aapane vrindaavana-raj praapt kee. aap shaddarshanake vidvaan the; kaasheemen adhyayan hua, vaheen sannyaasakee deeksha grahan kee. aapaka tyaag vairaagy ek vilakshan dhangaka hee tha, jo aaj bahut kam dekhane men aata hai. aap shreekrishna-bhaktike rasik the. vidyaabhyaasake anantar aap gangaatatapar bhraman karate rahe, kintu hridayako shaanti n milatee thee. tatkaaleen mahaatma shreeachyut munijeene aapako vrajamandalaka raasta bataayaa. vrajamen aakar aapane chaar chaar, chhah-chhah dinake sookhe madhukareeke tukada़e khaa-khaakar bhaagavata-adhyayan aur praacheen leelaa-granthonka svaadhyaay kiyaa; pashchaat aapane navadveepake maadhvagauda़eey aachaaryavanshamen vaishnavee deeksha grahan kee aur sakhaabhaavaka aashray grahan kiyaa. praayah aap gvaariya baabaaka satsang karate the.

vrajamen rahate aapakee vichitr dasha thee. ek saaphee, ek langotee, karapaatr, bhiksha saptaahamen ek din, ek vrikshake neeche ek din, maunavrat, stree-adarshan aadi bada़e kada़e niyam the. aap naamavratee pakke the; jis gaanvamen akhand keertan n ho, jis bhaktake gharamen bhagavat-pooja n ho, vahaan aap jal grahan naheen karate the. logonko aap ek hee upadesh dete-'bhaaee! geedh, ajaamil, ganikaase tum gaye-beete naheen ho; manushyakee deh milee hai. harinaam japo aur chalate-phirate prabhu naamaka keertan karate raho

nahin kali karm n dharm bibekoo raam naam avalanban ekoo ..

bas, yahee aapaka mukhy upadesh thaa.
ek din aapake saath daivee ghatana ghatee! aapake saare shareerako ek tejahpunjane jakada़ liya aur kahaa- 'kya tum chhokareekee tarah apane hee kaamamen lage rahate ho? vidyaamen itana shram kiya hai, isase jana-kalyaan kyon naheen karate?' bas, usee samayase aapane prachaar kaary shuru kiyaa. aachaaryonko aadarsh banaaya aur dharmarakshaarth apane praanonka lobh bhee parityaag kar diyaa. uttar pradeshake uttaree jilonmen graama-graamamen aapane dharmaprachaar kiyaa. beesaveen sadeeke pratham charanamen jab aaryasamaaj, devasamaaj, brahmasamaaj aadi vividh maarg jor pakada़ rahe the, tab aapane eka-ek dinamen paancha-paanch graamonmen sabha karake dharmarakshaarth prabal aandolan kiyaa. vraj aur usake baahar lagabhag 200 keertan sansthaaen sthaapit keen, jinaka sanchaalan aaj bhee unake 'chaar sampradaay aashram, vrindaavanadvaara ho raha hai. aapane kaee dhaarmik evan bhaavaatmak granth bhee likhe hain; yah kahane men koee sandeh naheen ki sahasron bholee graameen janataane aapake upadeshonse maarg praapt kiya thaa.

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