⮪ All भक्त चरित्र

श्रीभक्त कोकिलजी की मार्मिक कथा
श्रीभक्त कोकिलजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीभक्त कोकिलजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीभक्त कोकिलजी]- भक्तमाल


संसारके नश्वर भोगोंमें आसक्त हो मोहनिद्रामें सोये हुए जीवोंको जगाकर उन्हें दिव्य भगवत्प्रेमका रसास्वादन करानेके लिये स्वयं भगवान् हो अपने प्रेमी संतोंको इस धराधाममें भेजा करते हैं। भक्त कोकिलजी ऐसे ही उच्चकोटिके प्रेमी संतोंमेंसे एक थे। इनका आविर्भाव वि0 संवत् 1942 में सिन्धप्रान्तके जेकबाबाद जिलेके अन्तर्गत मीरपुर गाँवमें हुआ था इनके पिताका नाम स्वामी रोचलदास और माताका नाम सुखदेवी था। छः महीनेको आयुमें ही इन्हें माताका विछोह प्राप्त हुआ था। पिताने जन्मके कुछ दिन बाद ही अपने इस नवजात शिशुको संत स्वामी आत्माराम साहबकी गोद में अर्पित कर दिया था। बचपनसे ही साधुसंग सुलभ होनेके कारण संतोंको सेवामें इनकी स्वाभाविक लगन थी पाँच वर्षकी अवस्थामें जब ये पाठशाला में पढ़नेके लिये भेजे गये, उस समय इन्होंने अपने अध्यापकको पहले श्रीरामचन्द्रजीकी लीलाकथा सुनायी. उसके बाद उनसे वर्णमालाकी शिक्षा ग्रहण की। कहते हैं, दो ही महीनोंमें इन्होंने सिन्धी भाषा, हिंदी, संस्कृत तथा फारसी आदि कई भाषाएँ सीख लीं। इनकी विलक्षण प्रतिभा देखकर सब लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। सभी विद्याएँ इनको स्वतः सिद्ध थीं। छः वर्षकी आयु होते-होते इनके पिताका भी परलोकवास हो गया।जब ये दस वर्षके हो गये, उस समय संत आत्माराम साहब भी संसारसे तिरोहित हो गये। मानो भगवान् अपने भक्तका एक-एक बन्धन स्वयं काटते चले जा रहे थे। माता, पिता तथा आश्रयदाता गुरु तीनोंसे विमुक्त होनेपर इनका मन संसारसे सर्वथा विरक्त हो गया। अब वे दरबारमें न रहकर एकान्तमें बहुधा समय व्यतीत करने लगे। एक दिन चुपचाप सद्गुरुकी खोज में निकल पड़े। मार्ग में कथा वार्ता और सत्संग करते हुए आगे बढ़ते गये। दो-चार महीनोंमें ही किसी अज्ञात प्रेरणासे खिंचे हुएकी भाँति एक डॉक्टरके साथ ये कोट काँगड़ामें जा पहुँचे। वहीं इन्हें अभीष्ट सद्गुरु स्वामी श्री अविनाशचन्द्रजी महाराजका दर्शन हुआ। वे बंगालसे भूकम्पपीडित जनताकी सहायता करनेके लिये वहाँ आये हुए थे। गुरुने अधिकारी शिष्यको पहचाना और कोकिलजीने सम्पूर्ण रूपसे उन्हें आत्मसमर्पण कर दिया गुरुसेवामें तत्पर रहने लगे। एक दिन गुरुकृपासे उन्हें इस दिव्य झाँकीका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ- "महर्षि वाल्मीकिका आश्रम, गङ्गाजीका तट और हरे-भरे वृक्षोंकी पङ्क्ति । सब ओर करुणामय हाहाकारकी ध्वनि छा रही है। अवधकी राजराजेश्वरी जनकनन्दिनी सीता | आज पतिसे परित्यक्त होकर यहाँ विलाप कर रही हैं, | प्रियतमकी विरहाग्निमें दग्ध हो रही हैं। उनकेआर्त कण्ठसे 'हा प्राणनाथ! हा रघुकुलचन्द !' की पुकार उठ रही है। रोम-रोमसे अग्निस्फुलिङ्गके समान * श्रीराम ! श्रीराम !' की अनाहत ध्वनि हो रही है। वे चारों ओर असहायकी भाँति देख रही हैं, झुंडसे विछुड़ी हुई त्रस्त हरिणीकी भाँति व्याकुल हो रही हैं। देखते-देखते उनके मुखसे एक चीत्कार निकलती है। और वे बेहोश होकर माता- वसुन्धराके वक्षपर गिर जाती हैं।"

इस झाँकीके दर्शनसे भक्त कोकिलजीकी दशा कुछ और ही हो गयी। उनके मन-प्राण व्याकुल हो उठे। नेत्रोंमें आँसू छलक आये। शरीरमें रोमाञ्च हो आया और देहकी सुध-बुध जाती रही। श्रीअविनाशचन्द्रजी महाराजने भजनसे उठकर धैर्य धारण कराया, तब कहीं जाकर उनका चित्त शान्त हुआ। सद्गुरुकी आज्ञासे यही झाँकी उनकी ध्येय हो गयी। द्वितीय वनवासके समयकी विरहिणी सीता ही उनके प्राणोंकी आराध्य बन गयीं। वे उनकी विरह व्यथासे तड़पने लगे। 'हा स्वामिनी ! हा जानकी!' कहते-कहते मूर्छित होकर गिर पड़ते थे। इस भावावेशमें उन्हें कई बार श्रीजनकनन्दिनीके दर्शन होते थे। एक बार गुरुके आदेशसे इन्होंने एक स्थानपर मिट्टी खोदी; उसमेंसे एक दिव्य सोनेकी डिबिया निकली, उसके भीतर भोजपत्रपर अङ्कित श्रीस्वामिनीजीकी बड़ी सुन्दर मूर्ति थी। वे छोटी-सी कुटियामें उसी श्रीविग्रहको पालनेपर पधराकर धीरे-धीरे झुलाने लगे। वही उनका सेव्य विग्रह था। कोटकाँगड़ासे मीरपुर लौटनेपर उन्हें वहाँकी महंती मिल रही थी, पर उन्होंने दरबारकी सेवा स्वीकार करनेपर भी गद्दीपर महंत बनकर बैठना स्वीकार नहीं किया। एक बार इन्होंने अपनी स्वामिनीकी जन्मभूमि जनकपुरकी यात्रा की। वहाँ उन्हें कई दिव्य अनुभव हुए। वे 'श्रीखण्डदासी' नामक बालिकाके रूपमें रहकर श्रीस्वामिनीजीकी सेवा करते थे। यही उनका भावमय दासी या सहचरीका शरीर था। वे दिव्य कोकिल पक्षीके भावमें रहकर वनमें स्वामिनीजीको प्रियतमका प्रेमसन्देश सुनाकर धैर्य बँधाते और वहाँसे अयोध्या में पहुँचकर प्रियाजीकी विरहवेदना सुना भगवान् श्रीरामका । ध्यान उनकी ओर आकृष्ट करते थे। इसी भावना के कारण उन्हें भक्त कोकिल' भी कहते हैं। कोकिलजीके भक्त उन्हें 'बाबुल साई', 'सद्गुरु' आदि कहकर भी सम्बोधित करते थे। व्रजमें उन्होंने दो बार निवास किया। वहाँ उन्हें श्रीराधा और श्रीकृष्णकी दिव्य लीला तथा रासलीलाके भी अनेक बार दर्शन हुए थे। वे श्रीराधाजीसे भी श्रीजानकीजीकी चरणसेवा और उनके प्रति अनन्य प्रेमका ही वरदान माँगते थे। अयोध्यामें आनेपर उन्हें बड़ा उद्वेग होता था। ये कहते थे जहाँ मेरी स्वामिनी नहीं, वह अयोध्या किस कामकी! कनकभवनमें युगलसरकारकी झाँकी करके भी वे यही अनुभव करते कि श्रीराघवेन्द्र के साथ स्वामिनीजीकी स्वर्णप्रतिमामात्र है मेरी हृदयेश्वरी स्वामिनीको तो महाराजने वनमें छोड़ रखा है। उन्हें एकाधिक बार दर्शन देकर युगलसरकारने समझाया कि 'हम दोनों सदा एक साथ रहते हैं, वह त्याग और वनवास तो प्रजारञ्जनकी एक लीलामात्र है।' फिर भी उनका भावावेश कम नहीं होता था। वे जहाँ रहते, कीर्तन और सत्सङ्गको धूम मची रहती थी। हिंदू और मुसलमान सभी उनके में आते थे ये सूफी फकीरोंसे भी मिलते और उनके सत्सङ्गसे लाभ उठाते थे। उनकी दृष्टिमें यही था कि सभी धर्मो में एक ही भगवान्की आराधना होती है सभी धर्मग्रन्थको से रामायणकी ही भाँति आदरणीय मानते थे। उनके साथके कितने ही प्रेमी साधक भावराज्यमें प्रवेश करके भगवान्‌को अनेकानेक दिव्यलीलाओंका साक्षात्कार करते थे। उनका सम्पूर्ण जीवन ही दिव्य प्रेमोन्मादसे परिपूर्ण था। आज -लगभग तीन वर्ष हो गये, उन्होंने वृन्दावनमें इस संसारसे तिरोहित होकर दिव्यधामकी यात्रा की है। उन्होंने जो दिव्यप्रेमकी गङ्गा-यमुना बहायी है, उसमें अनवरत अवगाहन करके कलिके जीव सदा पाप-तापसे मुक्त हो भगवत्प्रेमका रसास्वादन करते रहेंगे।



You may also like these:

Bhakt Charitra डाकू भगत


shreebhakt kokilajee ki marmik katha
shreebhakt kokilajee ki adhbut kahani - Full Story of shreebhakt kokilajee (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shreebhakt kokilajee]- Bhaktmaal


sansaarake nashvar bhogonmen aasakt ho mohanidraamen soye hue jeevonko jagaakar unhen divy bhagavatpremaka rasaasvaadan karaaneke liye svayan bhagavaan ho apane premee santonko is dharaadhaamamen bheja karate hain. bhakt kokilajee aise hee uchchakotike premee santonmense ek the. inaka aavirbhaav vi0 sanvat 1942 men sindhapraantake jekabaabaad jileke antargat meerapur gaanvamen hua tha inake pitaaka naam svaamee rochaladaas aur maataaka naam sukhadevee thaa. chhah maheeneko aayumen hee inhen maataaka vichhoh praapt hua thaa. pitaane janmake kuchh din baad hee apane is navajaat shishuko sant svaamee aatmaaraam saahabakee god men arpit kar diya thaa. bachapanase hee saadhusang sulabh honeke kaaran santonko sevaamen inakee svaabhaavik lagan thee paanch varshakee avasthaamen jab ye paathashaala men padha़neke liye bheje gaye, us samay inhonne apane adhyaapakako pahale shreeraamachandrajeekee leelaakatha sunaayee. usake baad unase varnamaalaakee shiksha grahan kee. kahate hain, do hee maheenonmen inhonne sindhee bhaasha, hindee, sanskrit tatha phaarasee aadi kaee bhaashaaen seekh leen. inakee vilakshan pratibha dekhakar sab log aashcharyachakit rah jaate the. sabhee vidyaaen inako svatah siddh theen. chhah varshakee aayu hote-hote inake pitaaka bhee paralokavaas ho gayaa.jab ye das varshake ho gaye, us samay sant aatmaaraam saahab bhee sansaarase tirohit ho gaye. maano bhagavaan apane bhaktaka eka-ek bandhan svayan kaatate chale ja rahe the. maata, pita tatha aashrayadaata guru teenonse vimukt honepar inaka man sansaarase sarvatha virakt ho gayaa. ab ve darabaaramen n rahakar ekaantamen bahudha samay vyateet karane lage. ek din chupachaap sadgurukee khoj men nikal pada़e. maarg men katha vaarta aur satsang karate hue aage badha़te gaye. do-chaar maheenonmen hee kisee ajnaat preranaase khinche huekee bhaanti ek daॉktarake saath ye kot kaangada़aamen ja pahunche. vaheen inhen abheesht sadguru svaamee shree avinaashachandrajee mahaaraajaka darshan huaa. ve bangaalase bhookampapeedit janataakee sahaayata karaneke liye vahaan aaye hue the. gurune adhikaaree shishyako pahachaana aur kokilajeene sampoorn roopase unhen aatmasamarpan kar diya gurusevaamen tatpar rahane lage. ek din gurukripaase unhen is divy jhaankeeka pratyaksh darshan huaa- "maharshi vaalmeekika aashram, gangaajeeka tat aur hare-bhare vrikshonkee pankti . sab or karunaamay haahaakaarakee dhvani chha rahee hai. avadhakee raajaraajeshvaree janakanandinee seeta | aaj patise parityakt hokar yahaan vilaap kar rahee hain, | priyatamakee virahaagnimen dagdh ho rahee hain. unakeaart kanthase 'ha praananaatha! ha raghukulachand !' kee pukaar uth rahee hai. roma-romase agnisphulingake samaan * shreeraam ! shreeraam !' kee anaahat dhvani ho rahee hai. ve chaaron or asahaayakee bhaanti dekh rahee hain, jhundase vichhuda़ee huee trast harineekee bhaanti vyaakul ho rahee hain. dekhate-dekhate unake mukhase ek cheetkaar nikalatee hai. aur ve behosh hokar maataa- vasundharaake vakshapar gir jaatee hain."

is jhaankeeke darshanase bhakt kokilajeekee dasha kuchh aur hee ho gayee. unake mana-praan vyaakul ho uthe. netronmen aansoo chhalak aaye. shareeramen romaanch ho aaya aur dehakee sudha-budh jaatee rahee. shreeavinaashachandrajee mahaaraajane bhajanase uthakar dhairy dhaaran karaaya, tab kaheen jaakar unaka chitt shaant huaa. sadgurukee aajnaase yahee jhaankee unakee dhyey ho gayee. dviteey vanavaasake samayakee virahinee seeta hee unake praanonkee aaraadhy ban gayeen. ve unakee virah vyathaase tada़pane lage. 'ha svaaminee ! ha jaanakee!' kahate-kahate moorchhit hokar gir pada़te the. is bhaavaaveshamen unhen kaee baar shreejanakanandineeke darshan hote the. ek baar guruke aadeshase inhonne ek sthaanapar mittee khodee; usamense ek divy sonekee dibiya nikalee, usake bheetar bhojapatrapar ankit shreesvaamineejeekee bada़ee sundar moorti thee. ve chhotee-see kutiyaamen usee shreevigrahako paalanepar padharaakar dheere-dheere jhulaane lage. vahee unaka sevy vigrah thaa. kotakaangada़aase meerapur lautanepar unhen vahaankee mahantee mil rahee thee, par unhonne darabaarakee seva sveekaar karanepar bhee gaddeepar mahant banakar baithana sveekaar naheen kiyaa. ek baar inhonne apanee svaamineekee janmabhoomi janakapurakee yaatra kee. vahaan unhen kaee divy anubhav hue. ve 'shreekhandadaasee' naamak baalikaake roopamen rahakar shreesvaamineejeekee seva karate the. yahee unaka bhaavamay daasee ya sahachareeka shareer thaa. ve divy kokil paksheeke bhaavamen rahakar vanamen svaamineejeeko priyatamaka premasandesh sunaakar dhairy bandhaate aur vahaanse ayodhya men pahunchakar priyaajeekee virahavedana suna bhagavaan shreeraamaka . dhyaan unakee or aakrisht karate the. isee bhaavana ke kaaran unhen bhakt kokila' bhee kahate hain. kokilajeeke bhakt unhen 'baabul saaee', 'sadguru' aadi kahakar bhee sambodhit karate the. vrajamen unhonne do baar nivaas kiyaa. vahaan unhen shreeraadha aur shreekrishnakee divy leela tatha raasaleelaake bhee anek baar darshan hue the. ve shreeraadhaajeese bhee shreejaanakeejeekee charanaseva aur unake prati anany premaka hee varadaan maangate the. ayodhyaamen aanepar unhen baड़a udveg hota thaa. ye kahate the jahaan meree svaaminee naheen, vah ayodhya kis kaamakee! kanakabhavanamen yugalasarakaarakee jhaankee karake bhee ve yahee anubhav karate ki shreeraaghavendr ke saath svaamineejeekee svarnapratimaamaatr hai meree hridayeshvaree svaamineeko to mahaaraajane vanamen chhoda़ rakha hai. unhen ekaadhik baar darshan dekar yugalasarakaarane samajhaaya ki 'ham donon sada ek saath rahate hain, vah tyaag aur vanavaas to prajaaranjanakee ek leelaamaatr hai.' phir bhee unaka bhaavaavesh kam naheen hota thaa. ve jahaan rahate, keertan aur satsangako dhoom machee rahatee thee. hindoo aur musalamaan sabhee unake men aate the ye soophee phakeeronse bhee milate aur unake satsangase laabh uthaate the. unakee drishtimen yahee tha ki sabhee dharmo men ek hee bhagavaankee aaraadhana hotee hai sabhee dharmagranthako se raamaayanakee hee bhaanti aadaraneey maanate the. unake saathake kitane hee premee saadhak bhaavaraajyamen pravesh karake bhagavaan‌ko anekaanek divyaleelaaonka saakshaatkaar karate the. unaka sampoorn jeevan hee divy premonmaadase paripoorn thaa. aaj -lagabhag teen varsh ho gaye, unhonne vrindaavanamen is sansaarase tirohit hokar divyadhaamakee yaatra kee hai. unhonne jo divyapremakee gangaa-yamuna bahaayee hai, usamen anavarat avagaahan karake kalike jeev sada paapa-taapase mukt ho bhagavatpremaka rasaasvaadan karate rahenge.

245 Views





Bhajan Lyrics View All

अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
Ye Saare Khel Tumhare Hai Jag
Kahta Khel Naseebo Ka
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना

New Bhajan Lyrics View All

दाता जी तेरे दरबार में दीवाने आये है,
मस्ती में तेरी डूब के हम मस्ताने आये
प्रथम निमंत्रण आपको गजानंद सरकार
तेरा नाम लिया है पहले
दर्शन करने आए, दर्शन करके जाएंगे,
श्याम के दरबार, से झोली भर के जाएंगे,
सजदा कबूल कीजिये तेरे दर पे आ गया,
नज़राना ए दिल आपके चरणों में रख दिया...
सजाये बैठे है महफिल,
होरही शाम आजाओ,