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स्वामी श्रीसियारामशरणजी (श्रीरूपलताजी ) की मार्मिक कथा
स्वामी श्रीसियारामशरणजी (श्रीरूपलताजी ) की अधबुत कहानी - Full Story of स्वामी श्रीसियारामशरणजी (श्रीरूपलताजी ) (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [स्वामी श्रीसियारामशरणजी (श्रीरूपलताजी )]- भक्तमाल


श्री अयोध्याजीके प्रसिद्ध महात्मा श्रीरूपलताजी ही जो' पुजारीजी' के नामसे भी प्रसिद्ध रहे हैं, सियारामशरणजी थे। इनका सेवा प्रकार, गहरी भक्ति और उच्च ज्ञानावस्था अनुपम थी। ये बड़े ही सेवा-ध्यानज्ञाननिष्ठ थे। इन्होंने श्रीरामघाट अयोध्याजी में प्रथम प्रथम बहुत समयतक एकान्तमें बैठकर निरन्तर प्रेममग्न रहकर भजन किया। फिर भगवत्कृपासे इनकी भजनशक्ति बहुत बढ़ गयी। भोजनमें एक समय चतुर्थ प्रहरमें एक पैसेभर भिगोया चना चबाकर ये शरीरपोषण कर लेते थे। इतना भी शरीरको भाड़ा देने और क्षुधा कुत्तीको टुकड़ा डालनेके रूपमें ही था। यही समय एक मुहूर्तमात्र बातचीत कर लेनेका था। इनका और सम समय दिन-रात भजन ध्यानमें लगता था।

इतना हो जानेपर ईश्वरानुग्रहसे आपको श्रीअयोध्याजीके,

सुप्रसिद्ध कनकभवनमें भगवत् पूजाका कार्य मिला। इसे

आपने बड़े चाव-भाव, तन-मन, पूर्ण तल्लीनता और हार्दिक

भक्तिसे किया। तभी से ये 'पुजारीजी' विख्यात हो गये।

श्रीवाल्मीकीय रामायणका नवाह्नपारायण बड़ी उत्तमतासे किया करते थे। आप अच्छे पण्डित और कवि थे। इनकी रची हुई अच्छी-अच्छी पुस्तकें हैं, जिनमें 'विनयचालीसी' 'और 'अष्टयाम' हमारे संग्रहमें हैं। विनयचालोसोसे पाँच दोहे नीचे दिये जाते हैं। ये वे पाँच उत्तम दोहे हैं, जिनको छापनेवालोंने छोड़ दिया अथवा उनको प्राप्त नहीं हुए। हमारे पासकी प्राचीन प्रामाणिक हस्तलिखित पुस्तकमें ये दोहे हैं। ये दोहे बहुत अर्थ और सारभरे हैं।आपके ही सदुद्योग, परिश्रम और साधनसे

श्री अयोध्याजीके श्रीरामकोटमें 'श्री आनन्दभवन' नामका उत्तम विशाल स्थान बना, जिसका अच्छा प्रबन्ध है और जहाँ श्रीजीकी सेवा आदि उत्तमतासे होती है। अन्ततोगत्वा | बड़ी अवस्थामें आप संवत् 1950 की वैशाख बदी 11 (एकादशी) को श्रीसाकेतधाम (परमधाम) पधार गये! आपके कई शिष्य थे। उनमें जयपुरके श्रीसीतारामजीके बड़े मन्दिर (प्रसिद्ध सेठ लूणकरणजी नाटाणीका बनवाया - शिखरबन्ध बाजारकी आमेरकी चौपड़में) - के सुविख्यात महन्त भक्तवर श्रीस्वामी रामानुजदासजी मुख्य थे। दोहे ये हैं-

चतुरानन गहि कलम को रचे अनेकन छंद ।

सिय मुख समता ना लही लिखत मिटावत चंद ॥ 1 ॥

मायिक तन से नहिं वनै निरमायिक तसबीर।

कृपा करे सिय लाड़िली पावे दिव्य शरीर ॥ 2 ॥

स्वस्वरूप को पाइ कै परस्वरूप दरसाय।

तुरिया लखि तुरिया भई आवागमन नसाय ॥ 3 ॥

कौन कहै, अब को सुनै, छबि में छबि दरसाय

भई पूतरी लौन की रही जु सिंधु समाय ॥ 4 ॥

परा अवस्था में सदा रहत सदा यह भृत्य ।

कृपा लड़ैती लाल की सेवा दीन्ही नित्य ॥ 5 ॥

'अष्टयाम' की रचनाएँ भी इनकी बहुत सरस और सारभरी हैं, जिनसे भक्तिरस और सेवारहस्यका तत्त्व अच्छा प्राप्त होता है।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [svaamee shreesiyaaraamasharanajee (shreeroopalataajee )]- Bhaktmaal


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aapane bada़e chaava-bhaav, tana-man, poorn talleenata aur haardika

bhaktise kiyaa. tabhee se ye 'pujaareejee' vikhyaat ho gaye.

shreevaalmeekeey raamaayanaka navaahnapaaraayan bada़ee uttamataase kiya karate the. aap achchhe pandit aur kavi the. inakee rachee huee achchhee-achchhee pustaken hain, jinamen 'vinayachaaleesee' 'aur 'ashtayaama' hamaare sangrahamen hain. vinayachaalosose paanch dohe neeche diye jaate hain. ye ve paanch uttam dohe hain, jinako chhaapanevaalonne chhoda़ diya athava unako praapt naheen hue. hamaare paasakee praacheen praamaanik hastalikhit pustakamen ye dohe hain. ye dohe bahut arth aur saarabhare hain.aapake hee sadudyog, parishram aur saadhanase

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chaturaanan gahi kalam ko rache anekan chhand .

siy mukh samata na lahee likhat mitaavat chand .. 1 ..

maayik tan se nahin vanai niramaayik tasabeera.

kripa kare siy laada़ilee paave divy shareer .. 2 ..

svasvaroop ko paai kai parasvaroop darasaaya.

turiya lakhi turiya bhaee aavaagaman nasaay .. 3 ..

kaun kahai, ab ko sunai, chhabi men chhabi darasaay

bhaee pootaree laun kee rahee ju sindhu samaay .. 4 ..

para avastha men sada rahat sada yah bhrity .

kripa lada़aitee laal kee seva deenhee nity .. 5 ..

'ashtayaama' kee rachanaaen bhee inakee bahut saras aur saarabharee hain, jinase bhaktiras aur sevaarahasyaka tattv achchha praapt hota hai.

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