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' धर्म कि दया सरिस हरिजाना'

उत्तरप्रदेशके गढ़मुक्तेश्वरमें माँ भागीरथीके पावन तटपर श्रीप्रतापसिंहजी अपने परिवारके साथ निवास करते थे। वे अन्तिम मुगल बादशाहोंके कालमें कोतवाल (दरोगा) थे। इन्हें हिकमत (यूनानी चिकित्सा पद्धति) - में स्वाभाविक रुचि थी। राजा रामधनसिंह, जिन्होंने सत्रह सौ नब्बे ईस्वी में 'कुचेसर किले' का निर्माण कराया, बादमें वे रोगग्रस्त हो गये। अनेक चिकित्सकोंके असफल हो जानेपर प्रतापसिंहजीने उन्हें रोगमुक्त किया। राजा रामधनजीके अत्यन्त आग्रहपर उन्होंने उनकी रियासतके ग्राम बनखण्डामें रहना स्वीकार किया। प्रतापसिंहजीके पौत्र बीरबलदासजी थे, जो क्षेत्रके माने हुए हकीम थे। भगवद्भक्ति, परोपकार और सर्व जीवों में समभाव इस परिवारके सहज पैतृक गुण थे । बीरबलदासजीके तीन पुत्रोंमें सबसे छोटे श्रीजगनलालजी थे, जिनका जन्म नौ नवम्बर सन् अट्ठारह सौ चौरानबेमें हुआ तथा वे जिला बोर्ड मेरठमें प्रधानाध्यापक थे।

यह घटना उस समयकी है, जब श्रीजगनलालजीका छोटा पुत्र परमानन्द लगभग एक वर्षका था। वह सूखा रोगसे पीड़ित हो गया। जब बहुत चिकित्सा करनेपर भी पुत्र दिन-प्रतिदिन सूखता गया और उसके जीवित रहनेकी भी आशा न रही तो श्रीजगनलालजीका कोई शुभचिन्तक उनसे बिना पूछे किसी तान्त्रिक (झाड़-फूँक करनेवाले) - को बुला लाया। तान्त्रिकने बच्चेको देखकर कहा, 'एक मुर्गा लाओ।' जगनलालजीने पूछा, 'मुर्गेका क्या करोगे ?' तान्त्रिक बोला, 'मैं मन्त्र पढ़कर मुर्गेको हाथमें लेकर लड़केके ऊपरसे उतारूँगा और तुम्हें दे दूँगा। तुम यहाँसे सीधे किसी चौराहेपर जाकर मुर्गेको छोड़ देना। मुर्गा मर जायगा और आपका पुत्र ठीक होने लगेगा ।'

श्रीजगनलालजी यह सुनकर अत्यन्त दयाभावसे बोले, 'मैं अपने पुत्रके बदले मुर्गेको कालके गालमें नहीं धकेलना चाहता। लड़केका जीवन होगा, तो वह स्वयं बच जायगा ।' यद्यपि सभी परिचितजन जानते थे कि ‘श्रीजगनलालजी भगवान् श्रीरघुनाथजीके परमभक्त हैं, '
तथापि उनके इस निर्णयको सुनकर सभीको आश्चर्य हुआ कि वे एक मुर्गेकी जान बचानेके लिये अपने पुत्रको कालके गाल में क्यों भेज रहे हैं? तान्त्रिक निराश होकर लौट गया, परंतु इस घटनाके पश्चात् कुछ ही दिनोंमें पुत्र • परमानन्द घरेलू उपचारसे ही रोगमुक्त हो गया, जो विभिन्न चिकित्साओंके उपयोगसे भी ठीक नहीं हो रहा था। इस प्रकार श्रीजगनलालजीके 'जीव-हत्या न करनेके दृढ़ निश्चय' ने एक मुर्गेकी जान बचानेके साथ-साथ उनके नन्हें बालकको भी बचा लिया।

कदाचित् ईश्वर अपने भक्तके 'सर्व जीवोंमें समभाव' जैसे सद्गुणकी दृढ़ताकी परीक्षा ले रहे थे । सन्तोंने सत्य ही कहा है—

जो परहित सोचते हैं, उनका अहित होनेसे दयालु प्रभु बचा लेते हैं।

[ श्रीसुधांशुजी महेश ]



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' dharm ki daya saris harijaanaa'

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yah ghatana us samayakee hai, jab shreejaganalaalajeeka chhota putr paramaanand lagabhag ek varshaka thaa. vah sookha rogase peeda़it ho gayaa. jab bahut chikitsa karanepar bhee putr dina-pratidin sookhata gaya aur usake jeevit rahanekee bhee aasha n rahee to shreejaganalaalajeeka koee shubhachintak unase bina poochhe kisee taantrik (jhaada़-phoonk karanevaale) - ko bula laayaa. taantrikane bachcheko dekhakar kaha, 'ek murga laao.' jaganalaalajeene poochha, 'murgeka kya karoge ?' taantrik bola, 'main mantr padha़kar murgeko haathamen lekar lada़keke ooparase utaaroonga aur tumhen de doongaa. tum yahaanse seedhe kisee chauraahepar jaakar murgeko chhoda़ denaa. murga mar jaayaga aur aapaka putr theek hone lagega .'

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tathaapi unake is nirnayako sunakar sabheeko aashchary hua ki ve ek murgekee jaan bachaaneke liye apane putrako kaalake gaal men kyon bhej rahe hain? taantrik niraash hokar laut gaya, parantu is ghatanaake pashchaat kuchh hee dinonmen putr • paramaanand ghareloo upachaarase hee rogamukt ho gaya, jo vibhinn chikitsaaonke upayogase bhee theek naheen ho raha thaa. is prakaar shreejaganalaalajeeke 'jeeva-hatya n karaneke dridha़ nishchaya' ne ek murgekee jaan bachaaneke saatha-saath unake nanhen baalakako bhee bacha liyaa.

kadaachit eeshvar apane bhaktake 'sarv jeevonmen samabhaava' jaise sadgunakee dridha़taakee pareeksha le rahe the . santonne saty hee kaha hai—

jo parahit sochate hain, unaka ahit honese dayaalu prabhu bacha lete hain.

[ shreesudhaanshujee mahesh ]

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