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'लागि दया कोमलचित संता'

श्रीभगवान्का वचन है कि 'सुहृदं सर्वभूतानाम्'। प्रभुकी शाश्वत कृपा सृष्टिके समस्त प्राणियोंपर होती रहती है—इसमें रंचमात्रका सन्देह नहीं है, किंतु विषयान्ध जीव परमकृपालु करुणावरुणालयकी कृपाका नित्य अनुभव करता हुआ भी उसे स्वीकार नहीं करता। विचार करनेपर यह तथ्य एकदम हस्तामलकवत् दीखता है कि सर्वसमर्थ परमात्माकी कृपा न होनेपर जीव क्षणार्ध भी शक्तिमान् नहीं हो सकता। हमारे जीवनका एक-एक क्षण सर्वशक्तिमान् सर्वनियन्ता प्रभुकी कृपाके अधीन है।

जब मैं ४-५ वर्षका बालक था और आजमगढ़के अरुसा (हटिया) नामक अपने पैत्रिक गाँवमें रहता था। एक दिन हमलोग कोई खेल खेल रहे थे, उसी समय मेरी चचेरी बहनका नाखून मेरे गलेमें चुभ गया। भयवश हम लोगोंने घर आनेपर इसे परिवारके किसी भी सदस्यको बताया नहीं और जहाँ नाखून चुभनेके कारण खून बह रहा था, वहाँ मिट्टी लगाकर उसे छिपा दिया। दो-तीन दिन बाद वह घाव पक गया और खूब दर्द होने लगा। गाँवमें कोई चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं थी। गाँवसे ३ कि०मी० दूर ब्लाकस्तरका सरकारी अस्पताल था। वहाँ दिखाया गया, एक सप्ताहतक मलहम पट्टी हुई, लेकिन घाव भरनेकी जगह और विकृत होता गया। परिवारके लोग चिन्तित होकर एक अच्छे चिकित्सालयमें चिकित्सा कराने लगे। वहाँ चिकित्सकोंने बताया कि सेप्टिक हो गया है और कुछ भी हो सकता है।

मेरा इलाज वहाँ चल रहा था, पिताजी अपने साथ रखकर हरि इच्छा बलीयसी भावसे इलाज करा रहे थे।

यद्यपि चिकित्सामें कोई कमी नहीं थी, लेकिन सुधार अपेक्षित नहीं हो रहा था और वह सम्पूर्ण परिवार और सगे-सम्बन्धियोंके लिये चिन्ताका विषय था। उसी वर्ष मेरे अनुजकी मृत्यु हुई थी। इससे वातावरण कुछ अधिक ही विषादग्रस्त था । मेरे गाँवसे उत्तर तरफ नदीके तटके पास एक प्राचीन मन्दिर था, जिसमें एक शिवमन्दिर और भगवान् श्रीसीतारामका मन्दिर था। भगवान् श्रीसीतारामके विग्रहके नीचे एक प्रस्तरमूर्ति श्रीहनुमानजी महाराजकी भी विराजमान थी। क्षेत्रमें एक बार एक ऐसी चमत्कारिक घटना घटी थी कि लोग श्रीहनुमान्जीके विग्रहको चैतन्य मानते थे। मेरी अस्वस्थताके समय उस मन्दिरपर सेवकके रूपमें एक अतिविरक्त साधु रहते थे। अब मैं पचपन वर्षका हो चुका हूँ, लेकिन उनके जैसा अनासक्त साधु मैंने आजतक देखा नहीं। उनके पास यदि तीन दिनकी भगवान्के भोगकी सामग्री होती थी तो किसीका कुछ भी प्रतिदान नहीं लेते थे। सहजता, मुदिता और अनन्यता उनके रोम-रोममें रची-बसी थी।

मेरी दादीमाँने उन्हीं साधुबाबासे मेरे बचने या न बचनेके बारेमें पूछा; क्योंकि जहर पूरे कण्ठमें फैल गया था। उसका गहरा निशान अभी भी है। साधु बाबाने अगले दिन कुछ बतानेका आश्वासन दिया।

अगले दिन वे कोमलचित्त दयालु संत स्वयं दादीमाँके पास गये और बोले-'बाबू अब बहुत शीघ्र ही स्वस्थ हो जायगा।'मेरे पूर्वज बड़े ही आस्थावान् और धर्मनिष्ठ थे, इसलिये सबको संतवाणीसे परम सन्तोष हुआ।

साधु बाबाके आश्वासनसे घरका वातावरण विषादसे उबर तो गया जरूर, लेकिन पक्की सूचना तो पिताजीके आनेपर ही मिलती। लगभग एक सप्ताहके बाद जब पिताजी आये तो उन्होंने बताया कि घाव भरना शुरू हो गया है और चिकित्सकोंकी राय है कि शीघ्र ही भर जायगा, अब कोई विशेष संकट नहीं है। पिताजीके बतानेपर दादीमाँने कहा-'हाँ, यह सूचना साधु बाबा पहले ही दे चुके हैं।' पिताजीको लगा कि साधु बाबाको कहाँसे सूचना मिली। इसका पता लगाया जाय और वेकुटियापर तुरन्त चले गये।

साधु बाबा भगवान्‌की सेवासे अवकाश पाकर नाम-जप कर रहे थे। उन्होंने पिताजीको देखकर बड़े ही हर्षित नेत्रोंसे उनका स्वागत किया।

पिताजीने उनसे जिज्ञासा और कृतज्ञतापूर्ण भावसे पूछा- 'आपको कैसे पता चला कि बालक स्वस्थ हो ।'

साधु बाबाने हनुमानजी महाराजके विग्रहकी ओर संकेत करते हुए बताया- 'इन्हीं पोछिहवा बाबाकेचरणमें एक लाल फूल रखकर थोड़ा बिनती कर दिये थे। फूल रातमें रखकर बिनतीकर दरवाजा बन्द कर दिये थे। सुबह पट खोले थे तो बाबा (हनुमान्जी) खूब प्रसन्न दीख रहे थे और फूल भी मुरझाया नहीं था । इसीसे सन्देश मिल गया । '

उन सन्त भगवान्‌की कोमल-कृपा और श्रीहनुमान्जी महाराजकी कृपासे मनुष्य योनिमें जीवन-विस्तार प्राप्त हुआ और आज पचपन वर्षकी आयु पार कर चुका हूँ।

[ श्रीचन्द्रप्रकाशजी पाण्डेय ]



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'laagi daya komalachit santaa'

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saadhu baaba bhagavaan‌kee sevaase avakaash paakar naama-jap kar rahe the. unhonne pitaajeeko dekhakar bada़e hee harshit netronse unaka svaagat kiyaa.

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un sant bhagavaan‌kee komala-kripa aur shreehanumaanjee mahaaraajakee kripaase manushy yonimen jeevana-vistaar praapt hua aur aaj pachapan varshakee aayu paar kar chuka hoon.

[ shreechandraprakaashajee paandey ]

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