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भगवान् शालग्रामकी उपासनासे भयानक प्रमेहरोगका नाश

एक दिनकी बात है, मैं अपने परिचित वैद्यजीके पास बैठा था। वे एक ब्राह्मण युवकका डेढ़ वर्षसे इलाज कर रहे थे, पर उसके रोगमें किंचित् भी कमी नहीं हो रही थी। कारण यह था कि वह युवक ओषधि सेवनके समय संयमका पालन नहीं कर पाता था। इसके लिये उसने स्पष्ट अपनी असमर्थता प्रकट कर दी थी। उसे भयंकर प्रमेह था। बहुत सोच-विचारकर अन्तमें वैद्यजीने उसे शालग्रामजीकी सेवा बतायी, जिससे तीन मासमें उसका रोग सर्वधा निर्मूल हो गया। बादमें और लोगोंने भी इसका प्रयोग किया तथा वे सफल हुए। प्रयोगकी विधि इस प्रकार है

शालग्रामजीकी एक कृष्णवर्णकी शिला लाये (नयी मिल जाय तो सर्वोत्तम है) उन भगवान् शालग्रामको प्रतिदिन पाद्य, अर्घ्य, आचमन करवाकर पंचामृत से स्नान कराये पंचामृतमें शुद्ध गोदुग्ध दो छौंक, दही एक छौंक, शुद्ध शहद एक तोला, गोघृत तीन माशे और शुद्ध देशी शक्करका बूरा एक तोला हो। इस पंचामृत से स्नान करानेके बाद शुद्ध जलसे स्नान करवाकर श्रीशालग्रामजीको सिंहासनपर विराजित कर दे। स्नान कराते समय

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिन्दुः सुरेश्वरः । औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः ॥ 'विष्णुसहस्रनाम' का यह ४४वीं श्लोक-
बार बार बोलता जाय। भगवान्‌को पाद्य, अर्घ्य, आचमन,

स्नान, वस्त्र, चन्दन, पुष्प, माला, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, फल, आरती तथा पुष्पांजलि-सबइसी मन्त्रसे अर्पण करे। स्नान करानेके पश्चात् एक | तुलसीपत्र शालग्रामकी प्रतिमाके नीचे रख दे। उस तुलसीदलपर भगवान्‌को विराजमान करे। फिर एक | तुलसीदल ऊपर चढ़ाये। तदनन्तर घिसे हुए मलयागिरि शुद्ध सफेद चन्दनकी कम-से-कम एक तोला पिष्टी अवश्य चढ़ाये। चन्दन घिसते समय उसमें दो रत्ती शुद्ध केसर और दो रत्ती भीमसेनी कपूर अवश्य मिलाया जाय। उतना चन्दन सिंहासनपर न चढ़ सके तो भगवान् शालग्रामकी प्रतिमाको सोने, चाँदी या पीतलकी प्रतिमासे कुछ बड़ी एक कटोरीमें विराजित कर दे। कैसे भी हो, कम-से-कम एक तोला चन्दन-पंक अवश्य चढ़ाना चाहिये। फिर आँवलेका मुरब्बा या सिंघाड़ेके आटेसे बने लड्डूका नैवेद्य भोग लगाया जाय या दोनों ही चीजोंका भोग लगाये। भोग लगाते समय भी उपर्युक्त मन्त्र बोलना न भूले।

पूजा समाप्त होनेके बाद (श्रीमद्भागवतके) 'नारायणकवच' या 'गोपालकवच' का पाठ करके उपर्युक्त मन्त्रकी १०८ दानेकी एक मालाका जप कर ले। फिर नैवेद्य लगाये हुए प्रसादको पाकर ऊपरसे भगवान्‌के स्नानका पंचामृत पी जाय। दूसरे दिन जब स्नान कराये, तब पहले दिनका चढ़ाया हुआ तुलसी-चन्दन सब स्नानके पंचामृतमें आ जाना चाहिये।

इस प्रकार भगवान् शालग्रामकी उपासना करनेपर बीसों प्रकारके भयानक-से-भयानक प्रमेह आदि रोग तथा स्त्रियोंके प्रदर आदि रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। यह प्रयोग परीक्षित है।

[ एक प्रत्यक्षदर्शी ]



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bhagavaan shaalagraamakee upaasanaase bhayaanak prameharogaka naasha

ek dinakee baat hai, main apane parichit vaidyajeeke paas baitha thaa. ve ek braahman yuvakaka dedha़ varshase ilaaj kar rahe the, par usake rogamen kinchit bhee kamee naheen ho rahee thee. kaaran yah tha ki vah yuvak oshadhi sevanake samay sanyamaka paalan naheen kar paata thaa. isake liye usane spasht apanee asamarthata prakat kar dee thee. use bhayankar prameh thaa. bahut socha-vichaarakar antamen vaidyajeene use shaalagraamajeekee seva bataayee, jisase teen maasamen usaka rog sarvadha nirmool ho gayaa. baadamen aur logonne bhee isaka prayog kiya tatha ve saphal hue. prayogakee vidhi is prakaar hai

shaalagraamajeekee ek krishnavarnakee shila laaye (nayee mil jaay to sarvottam hai) un bhagavaan shaalagraamako pratidin paady, arghy, aachaman karavaakar panchaamrit se snaan karaaye panchaamritamen shuddh godugdh do chhaunk, dahee ek chhaunk, shuddh shahad ek tola, goghrit teen maashe aur shuddh deshee shakkaraka boora ek tola ho. is panchaamrit se snaan karaaneke baad shuddh jalase snaan karavaakar shreeshaalagraamajeeko sinhaasanapar viraajit kar de. snaan karaate samaya

amritaanshoodbhavo bhaanuh shashabinduh sureshvarah . aushadhan jagatah setuh satyadharmaparaakramah .. 'vishnusahasranaama' ka yah 44veen shloka-
baar baar bolata jaaya. bhagavaan‌ko paady, arghy, aachaman,

snaan, vastr, chandan, pushp, maala, dhoop, deep, naivedy, aachaman, taambool, phal, aaratee tatha pushpaanjali-sabaisee mantrase arpan kare. snaan karaaneke pashchaat ek | tulaseepatr shaalagraamakee pratimaake neeche rakh de. us tulaseedalapar bhagavaan‌ko viraajamaan kare. phir ek | tulaseedal oopar chadha़aaye. tadanantar ghise hue malayaagiri shuddh saphed chandanakee kama-se-kam ek tola pishtee avashy chadha़aaye. chandan ghisate samay usamen do rattee shuddh kesar aur do rattee bheemasenee kapoor avashy milaaya jaaya. utana chandan sinhaasanapar n chadha़ sake to bhagavaan shaalagraamakee pratimaako sone, chaandee ya peetalakee pratimaase kuchh bada़ee ek katoreemen viraajit kar de. kaise bhee ho, kama-se-kam ek tola chandana-pank avashy chadha़aana chaahiye. phir aanvaleka murabba ya singhaaड़eke aatese bane laddooka naivedy bhog lagaaya jaay ya donon hee cheejonka bhog lagaaye. bhog lagaate samay bhee uparyukt mantr bolana n bhoole.

pooja samaapt honeke baad (shreemadbhaagavatake) 'naaraayanakavacha' ya 'gopaalakavacha' ka paath karake uparyukt mantrakee 108 daanekee ek maalaaka jap kar le. phir naivedy lagaaye hue prasaadako paakar ooparase bhagavaan‌ke snaanaka panchaamrit pee jaaya. doosare din jab snaan karaaye, tab pahale dinaka chadha़aaya hua tulasee-chandan sab snaanake panchaamritamen a jaana chaahiye.

is prakaar bhagavaan shaalagraamakee upaasana karanepar beeson prakaarake bhayaanaka-se-bhayaanak prameh aadi rog tatha striyonke pradar aadi rog sarvatha nasht ho jaate hain. yah prayog pareekshit hai.

[ ek pratyakshadarshee ]

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