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माँ नर्मदाके जलसेवनसे ब्लडकैंसरका सफाया

सच्ची आस्था और ईश्वरके प्रति समर्पण भावना असम्भवको भी सम्भव बना देती है, और यही बात पुण्यप्रतापी नर्मदामैयाके अमृतजलकी भी है, जिनके चमत्कारोंकी अनेक गाथाएँ वेद-पुराणोंमें अन्तर्निहित है नर्मदामैयाको सरगमें जानेवाले लोगों को पुरातनकालसे ही सिद्धियाँ प्राप्त हुई और असाध्य रोगी निरोग हो गये। चमत्कारोंका यह सिलसिला निरन्तर चल रहा है। नर्मदामैयाके पुण्यप्रतापका एक और ताजा उदाहरण हर्षित कौरव है। यह बालक माँ नर्मदाकी असीम अनुकम्पासे मौतके मुँहके बाहर निकल आया। इस बालकका पहले देशके प्रसिद्ध कैंसर अस्पताल, मुम्बईमें इलाज चल रहा था, परंतु चिकित्सकोंने भी टेस्ट रिपोर्टके बाद हाथ खड़े कर दिये और कुछ दिनोंका मेहमान कहकर वापस कर दिया था। आज वही हर्षित विगत वर्षोंसे लगातार नर्मदाजलका सेवन करनेपर पूर्णतः स्वस्थ है, उसके ब्लडकैंसरका खात्मा हो गया।

हर्षितके पिता उसे सन् २००५ ई० में एक बार दाढ़ में दर्द होनेपर जबलपुरके एक दन्त चिकित्सकके पास इलाज के लिये ले आये थे। दाढ़ उखाड़नेके बाद उसके जबड़े में सूजन आ गयी और गहरा घाव बन गया। जब उसका टेस्ट किया गया तो दाढ़में कैंसरका पता चला और डॉक्टरने कैंसर अस्पताल, मुम्बईके लिये ३१ मई २००५ ई० को रिफर कर दिया। हर्षितके परिजन रुपयोंका बन्दोवस्त करके मुम्बई पहुंचे, जहाँचिकित्सकोंने १० जून २००५ ई०को उसे भर्ती किया और जाँच आरम्भ कर दी। यहाँ जाँचमें हर्षितको ब्लड कैंसर होना बताया गया । १० जूनसे २६ सितम्बर २००५ ई० तक वहाँके चिकित्सकोंने इलाज किया, परंतु कोई सफलता हासिल नहीं हुई। हर्षितके परिजन लाखों रुपये इलाज में खर्चकर वापस घर आ गये। जब हर्षितको ब्लडकैंसर होनेकी खबर रिश्तेदारोंतक पहुँची तो वे हर्षितको देखने पहुँचने लगे। इसी दौरान हर्षितके फूफाजी भी उसे देखने आये। उनकी माँ नर्मदापर अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने हर्षितके परिजनोंको सुझाव दिया कि हर्षितको प्रतिदिन एक-एक चम्मच नर्मदाजलका सेवन करायें। उनके इस सुझावसे हर्षितके परिजन बहुत प्रभावित हुए और दूसरे दिन सूरजकुण्ड बरमान गये और नर्मदाजल लाकर उसे पिलाना शुरू कर दिया। सन् २००५ ई० से यह क्रम निरन्तर चलता रहा, प्रति रविवार हर्षितके परिजन सूरजकुण्ड बरमान जाते और आठ दिनके लिये नर्मदाजीका जल भरकर लाते। पिछले वर्षोंसे हर्षितको एक-एक चम्मच नर्मदाजीका जल पिलाया जाता रहा है। जिस हर्षितका इलाज करनेसे बड़े-बड़े डॉक्टरोंने हाथ खड़े कर दिये थे, आज वही हर्षित माँ नर्मदाकी अनुकम्पासे पूर्णत: स्वस्थ है और ब्लडकैंसरका सफाया हो चुका है। यह सब माँ नर्मदाकी कृपाका ही फल है।

[ श्रीकृपाशंकरजी पालीवाल ]



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maan narmadaake jalasevanase bladakainsaraka saphaayaa

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harshitake pita use san 2005 ee0 men ek baar daaढ़ men dard honepar jabalapurake ek dant chikitsakake paas ilaaj ke liye le aaye the. daadha़ ukhaada़neke baad usake jabada़e men soojan a gayee aur gahara ghaav ban gayaa. jab usaka test kiya gaya to daadha़men kainsaraka pata chala aur daॉktarane kainsar aspataal, mumbaeeke liye 31 maee 2005 ee0 ko riphar kar diyaa. harshitake parijan rupayonka bandovast karake mumbaee pahunche, jahaanchikitsakonne 10 joon 2005 ee0ko use bhartee kiya aur jaanch aarambh kar dee. yahaan jaanchamen harshitako blad kainsar hona bataaya gaya . 10 joonase 26 sitambar 2005 ee0 tak vahaanke chikitsakonne ilaaj kiya, parantu koee saphalata haasil naheen huee. harshitake parijan laakhon rupaye ilaaj men kharchakar vaapas ghar a gaye. jab harshitako bladakainsar honekee khabar rishtedaarontak pahunchee to ve harshitako dekhane pahunchane lage. isee dauraan harshitake phoophaajee bhee use dekhane aaye. unakee maan narmadaapar agaadh shraddha thee. unhonne harshitake parijanonko sujhaav diya ki harshitako pratidin eka-ek chammach narmadaajalaka sevan karaayen. unake is sujhaavase harshitake parijan bahut prabhaavit hue aur doosare din soorajakund baramaan gaye aur narmadaajal laakar use pilaana shuroo kar diyaa. san 2005 ee0 se yah kram nirantar chalata raha, prati ravivaar harshitake parijan soorajakund baramaan jaate aur aath dinake liye narmadaajeeka jal bharakar laate. pichhale varshonse harshitako eka-ek chammach narmadaajeeka jal pilaaya jaata raha hai. jis harshitaka ilaaj karanese bada़e-bada़e daॉktaronne haath khada़e kar diye the, aaj vahee harshit maan narmadaakee anukampaase poornata: svasth hai aur bladakainsaraka saphaaya ho chuka hai. yah sab maan narmadaakee kripaaka hee phal hai.

[ shreekripaashankarajee paaleevaal ]

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