⮪ All भगवान की कृपा Experiences

मृत्युंजय मन्त्रकी महिमा

दशार्ण देश (वर्तमान मध्यप्रदेशके उत्तरपूर्वका एक भाग- विशेष ) - के राजा वज्रबाहुकी सुमति नामकी एक रानी थी। एक बार जब वह गर्भवती थी, तब उसकी सपनियोंने उसे विष दे दिया। भगवत्कृपासे उसका गर्भस्थ भ्रूण विनष्ट तो नहीं हो पाया, किंतु वह व्रणयुक्त हो गया। फलतः जो बालक उत्पन्न हुआ, उसका शरीर भी व्रणसे भरा था। दोनों माँ-बेटेके शरीर घावोंसे भर गये।

राजाने अनेक प्रकारके उपचार किये, परंतु कुछ भी लाभ होते न देख निराश हो सुमतिसे द्वेष रखनेवाली अपनी अन्यान्य स्त्रियोंकी सलाहसे, रानी सुमतिको उसके बच्चे के साथ वनमें छुड़वा दिया। वह वहाँ छोटी-सी कुटिया बनाकर रहने लगी। वनमें सुमतिको दुःसह कष्ट होने लगे, शरीरकी पीड़ासे उसे बारंबार मूर्च्छा आने लगी, उसके बालकको तो पहले ही कालने कवलित कर लिया।

उसे जब चेतना आयी तो वह बहुत ही कातरभावसे भगवान् शंकरसे प्रार्थना करने लगी- 'हे प्रभो! आप सर्वव्यापक हैं, सर्वज्ञ हैं, दीन-बन्धु दुःखहारी हैं, मैं आपकी शरण हूँ, अब मुझे एकमात्र आपका ही अवलम्बन है।' उसकी इस कातर वाणीको सुनते ही करुणामय आशुतोषका आसन डोल उठा । शीघ्र ही एक शिवयोगी वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने सुमतिको मृत्युंजय मन्त्रका जप करनेको कहा और अभिमन्त्रित भस्मको उसकी तथा उसके बच्चेकी देहमें लगा दिया। भस्मके स्पर्शमात्रसे ही उसकी सारी व्यथा दूर हो गयी और बालक भी प्रसन्नमुख हो जी उठा । सुमतिने शिवयोगीकी शरण ली। शिवयोगीने बालकका नाम 'भद्रायु' रखा।

सुमति और भद्रायु दोनों मृत्युंजय मन्त्रका जप करने लगे और इधर राजा वज्रबाहुको अपनी निर्दोष पत्नी और अनाथ बालकको व्यर्थ कष्ट पहुँचानेका दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा। उसके राज्यको शत्रुओंने अपहृतकर राजाको बन्दीगृहमें डाल दिया।

एक दिन भद्रायु मन्त्र जपसे प्रसन्न हो शिवयोगी पुनः प्रकट हुए। उन्होंने उसे एक खड्ग और एक शंख दिया तथा बारह हजार हाथियोंका बल देकर वे अन्तर्धान हो गये। भद्रायने अपने पिताके शत्रुओंपर आक्रमण कर उन्हें मार डाला और पैतृक राज्यको अधिकृतकर पिताको बन्दीगृहसे मुक्त किया। उसका यश चारों ओर फैल गया। राजा चित्रांगद और रानी सीमन्तिनीने अपनी कन्या कीर्तिमालिनीका विवाह भद्रायके साथ कर दिया।

'भद्रायने शिवपूजा करते हुए सहस्त्रों वर्षोंतक सुखपूर्वक प्रजाको सुख-शान्ति पहुँचाते हुए अविचल राज्य किया और अन्तमें वह शिवसायुज्यको प्राप्त हुआ। यह मृत्युंजय मन्त्रके जपका लोकोत्तर माहात्म्य है।
[ संकलित ]



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mrityunjay mantrakee mahimaa

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use jab chetana aayee to vah bahut hee kaatarabhaavase bhagavaan shankarase praarthana karane lagee- 'he prabho! aap sarvavyaapak hain, sarvajn hain, deena-bandhu duhkhahaaree hain, main aapakee sharan hoon, ab mujhe ekamaatr aapaka hee avalamban hai.' usakee is kaatar vaaneeko sunate hee karunaamay aashutoshaka aasan dol utha . sheeghr hee ek shivayogee vahaan prakat hue aur unhonne sumatiko mrityunjay mantraka jap karaneko kaha aur abhimantrit bhasmako usakee tatha usake bachchekee dehamen laga diyaa. bhasmake sparshamaatrase hee usakee saaree vyatha door ho gayee aur baalak bhee prasannamukh ho jee utha . sumatine shivayogeekee sharan lee. shivayogeene baalakaka naam 'bhadraayu' rakhaa.

sumati aur bhadraayu donon mrityunjay mantraka jap karane lage aur idhar raaja vajrabaahuko apanee nirdosh patnee aur anaath baalakako vyarth kasht pahunchaaneka dushparinaam bhee bhugatana pada़aa. usake raajyako shatruonne apahritakar raajaako bandeegrihamen daal diyaa.

ek din bhadraayu mantr japase prasann ho shivayogee punah prakat hue. unhonne use ek khadg aur ek shankh diya tatha baarah hajaar haathiyonka bal dekar ve antardhaan ho gaye. bhadraayane apane pitaake shatruonpar aakraman kar unhen maar daala aur paitrik raajyako adhikritakar pitaako bandeegrihase mukt kiyaa. usaka yash chaaron or phail gayaa. raaja chitraangad aur raanee seemantineene apanee kanya keertimaalineeka vivaah bhadraayake saath kar diyaa.

'bhadraayane shivapooja karate hue sahastron varshontak sukhapoorvak prajaako sukha-shaanti pahunchaate hue avichal raajy kiya aur antamen vah shivasaayujyako praapt huaa. yah mrityunjay mantrake japaka lokottar maahaatmy hai.
[ sankalit ]

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