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मेरे जीवनमें 'राम' एवं 'वीर हनुमान्'

करुणानिधान श्रीसीतारामजीकी कृपासे मैं वैष्णव माता-पिताको सन्तान हूँ। वैष्णव होनेसे मैं अपनेको काफी गौरवान्वित अनुभव करता हूँ। मेरे पिताजी धर्मनिष्ठ, कर्मनिष्ठ एवं सीताराम तथा बजरंगबली हनुमान्जीके अद्भुत भक्त थे। वे दो बजे रात्रिमें ही जगते तथा पाँच बजे प्रातः तक 'सीताराम' नामका जप करते। तत्पश्चात् नित्यक्रियाको समाप्ति के पश्चात् स्नानादिसे निवृत्त हो घंटों पूजा करते। फिर आहार लेते। बिना तुलसी दलसे भोग लगाये वे भोजन नहीं करते तथा भोजनके समय बोलते भी नहीं थे।

पिताजी सीतारामजीको छोड़कर किसीको अपना मालिक नहीं मानते थे। उस समय जमींदारी प्रथा थी। वे एक जमींदारके यहाँ पटवारीका कार्य करते थे। गाँवके और दो-तीन व्यक्ति दूसरे जमींदारके पटवारी थे। लोग जमदारको 'मालिक' कहकर ही सम्बोधन करते थे। बात १९५२-५३ की है, उस समय मेरी अवस्था ५-६ वर्षकी थी। मेरे दोस्तके पिताजी भी पटवारी थे। एक दिन मेरे दोस्तने कहा आज मालिक आयेंगे। सो उसके मालिक हाथीपर चढ़कर आये और क्षेत्रमें घूम-फिर गये। एक दिन मैंने पिताजीसे पूछा-'बाबूजी! हमारे मालिक कौन हैं और कब आयेंगे ?' जवाबमें पिताजीने कहा- 'हमारे मालिक मात्र भगवान् सीताराम हैं। हम उन्हें देखते नहीं, किंतु वे हैं सर्वत्र ।' छोटी अवस्था होनेके कारण तब मैं उनकी बात समझ नहीं सका था।

परिवारकी आर्थिक स्थिति अति सामान्य थी। आर्थिक समस्या आनेपर पिताजी कहते 'भगवान् समाधान करेंगे।' उस समय विद्यालयमें मासिक शुल्क देना पड़ता था। शुल्क नहीं जमा करनेपर नाम काट दिया जाता था। मुझे भी इस समस्याका सामना करना पड़ा। वर्ग सातसे लेकर नौतक मुझे स्वतन्त्र छात्रके रूपमें परीक्षा देनी पड़ी। इस बीच मेरी माताजी २ जनवरी १९६० को स्वर्गीय हो गयीं। जनवरी १९६० में ही पिताजीने मेरा नामांकन दसवें वर्गमें करा दिया। वर्ष १९६६ मेंसीतारामकी असीम कृपा एवं पिताजीके आशीर्वादसे में स्नातकोतीर्ण हुआ। उसी वर्ष पिताजी भी स्वर्गीय हो गये और पी०जी० की पढ़ाई अधूरी रह गयी।

उन दिनोंमें भी नौकरी आसानीसे नहीं मिलती थी। वर्ष १९६८ में मैं पटनामें एक पुस्तक संस्थानमें लिपिक पदपर नियुक्त हुआ हनुमानजी की कृपासे कहानी लिखनेकी अभिरुचि जगी। कुछ कहानियाँ जैसे भगवान्‌की कृपा, श्रीहनुमानजी की कृपा, सच्चे मित्रका कर्तव्य आदि छपी थीं। पुस्तक-संस्थानके प्रबन्धक मेरे कार्यसे सन्तुष्ट थे। वे भी वैष्णव होनेके साथ-साथ श्रीसीताराम और हनुमानजी के भक्त थे। उन्होंने मुझे परामर्श दिया कि एक लाख आठ हजार आठ 'राम' नाम लिखकर गंगा मैयाको समर्पण करो तुम्हें अविलम्ब सरकारी नौकरी मिल जायगी। मैं दयानिधान सीताराम एवं हनुमानजीका बचपनसे ही सेवक था। पिताजीकी कृपासे बचपनसे ही श्रीहनुमान बाहुक, श्रीरामचरितमानसका पाठ करता था और हनुमानजीकी पौड़ीपर फूल अर्पण करता था। १९६७ ई० में ही अयोध्याजी जाकर श्रीहनुमत् सदनमें दीक्षा भी प्राप्त की। फलतः प्रबन्धक महोदयके परामर्शका प्रभाव मुझपर तुरन्त पड़ा। मैंने 'राम' नाम लिखना प्रारम्भ किया। कुछ महीनोंमें मैंने १०८८०८ से अधिक ही 'राम' नाम लिख लिया। इस बीच प्रायः अक्टूबर १९७० ई० में मुजफ्फरपुर समाहरणालय में लिपिक सह टंकककी नौकरीहेतु परीक्षा देने मुजफ्फरपुर गया। पटनासे पानीके जहाजसे जानेके क्रममें मैंने लिखी गयी 'राम' नामकी पुस्तिका अपनी कामनाके साथ गंगाजीमें समर्पित कर दी। मुजफ्फरपुर जाकर परीक्षामें सम्मिलित हुआ और वापस पटना आ गया। किसी कारणसे या यो कहें भगवान् राम और हनुमान्जीकी कृपासे वह परीक्षा रद्द कर दी गयी और पुनः परीक्षामें सम्मिलित होनेके लिये बुलावा पत्र आया। मुजफ्फरपुर जाकर मैं परीक्षा में सम्मिलित हुआ। मात्र दस अभ्यर्थियोंका चुनाव हुआ,
जिसमें मैं भी एक था। १ जनवरी १९७१ ई० को मेरी मुजफ्फरपुर समाहरणालय में नियुक्ति हो गयी। इसी बीच बिहार सरकारके सहकारिता विभागमें पर्यवेक्षक सहयोग समितियोंके पदहेतु भी चयनित हुआ। फलतः मात्र २१ दिन समाहरणालय में कार्य करनेके पश्चात् २ फरवरी १९७१ को पर्यवेक्षक सहयोग समितियोंक पदके प्रशिक्षणहेतु रांची प्रशिक्षण केन्द्रमें चला गया। वर्ष २००७ ई० में सहकारिता-प्रसार पदाधिकारीके पदसे में सेवानिवृत्त हो चुका हूँ। मैं यदा-कदा इस बिन्दुपर विचार करता हूँ तो स्वयं आश्चर्यमें पड़ जाता हूँ कि मुझमें ऐसी कोई योग्यता नहीं थी कि सरकारी सेवाहेतु चयनित हो सकूँ. और दो-दो नौकरियाँ एक साथ मिलीं। ऐसा होना दीनबन्धु श्रीराम एवं परमाराध्य श्रीहनुमानजीको असीम कृपाका प्रतिफल था, और कुछ नहीं।

इस सफलता के पश्चात् 'राम' नाम महामन्त्रके अद्भुत चमत्कारका प्रभाव मेरे मन-मस्तिष्कपर काफी गहरा पड़ा। जब-जब मेरे ऊपर संकटके बादल घिरे, मैंने 'राम' नाम लिखकर सफलता पायी। सेवाकार्यमें प्रशासनिक कार्रवाई हो, स्थानान्तरणसम्बन्धी समस्या हो या पुत्रियोंके विवाह सम्पन्न होनेकी बात हो, मैंने संकटमोचन हनुमानजी के माध्यम से अपनी पुकार स्थानिधान श्रीरामके पास पहुंचा दी और कार्य भी ससमय पूर्ण हुआ। सन् २००४ ई० में मैंने निर्धारित १०८८०८ रामनाम लिखकर नरसिंह- हनुमान् मन्दिरमें समर्पण किया और सुयोग्य वरसे बड़ी पुत्रीका विवाह सन् २००५ ई० में सम्पन्न हुआ। दामाद बँकमें पदाधिकारी है। छोटी पुत्री के विवाहहेतु भी मैंने वैसा ही किया। मेरे छोटे दामाद रेलवेमें अच्छे पदपर कार्यरत हैं। इस प्रकार दयासागर सीताराम एवं भवत्सल श्रीहनुमान्को अद्भुत कृपवर्षा मेरे और मेरे परिवारपर होती रही है और होती ही रहेगी-ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

सचमुच 'राम' नाम महामन्त्र है और सब मन्त्र इस मन्त्रके अधीन हैं। शेष, गणेश, महेश, दिनेश आदि कोई भी 'राम' नामकी महिमाका विवेचन करनेमें अपनेको सक्षम नहीं पाते हैं। शिवजी स्वयं काशीमें अपनेभतको अन्तिम समयमें कानमें 'राम' नाम मन्त्र उसकी मुक्तिहेतु सुनाते हैं। भगवान् शंकर स्वयं रामनाम महामन्त्रका जप करते हैं। रामनाम जप करनेसे ही शिव 'ईश' से महेश हो गये। गणेशजी त्रिलोकमें प्रथम पूजे जानेवाले 'देवता भी 'राम' नामकी महिमा के कारण ही हुए।

महिमा जासु जान गमराऊ प्रथम पूजित नाम प्रभा भक्तवत्सल श्रीरामदूत हनुमान भी निरन्तर 'राम' नाम जपते रहते हैं और 'राम' सीताजीके साथ धनुष बाण लेकर उनके हृदयमें निवास करते हैं। कहावत सही है कि 'राम' बिना हनुमान् नहीं और हनुमान् बिना राम नहीं हनुमानजीके रोम-रोममें 'राम' का वास है। सुमिरि पवनसुत पावन नामू अपने बस करि राखे रामू ॥

लीलाधारी स्वयं श्रीरामने मृत्युलोक पृथ्वीपर अवतरित होकर बहुत सारे कार्य किये। जैसे संतोंकी मनोकामना पूर्ण की और पृथ्वीसे असुरोंका नाश किया, किंतु उन्हें अपने नामका महत्त्व नहीं मालूम था। नल और नौलके साथ वानरी सेना सेतुका निर्माण कर रही थी तो वे अलग-अलग पत्थरोंपर 'रा' 'म' लिखकर पानी में डालते। दोनों पत्थर मिलकर 'राम' बन जाते और पानी में तैरने लगते। यह देख रामजीके मनमें हुआ कि जब रामनाम लिखा पत्थर तैर सकता है, तो मैं स्वयं पत्थरको पानीमें डाल दूंगा तो वह भी तैरने लगेगा। वे उठकर एकान्तमें जाकर पत्थर पानी में डालने लगे। सारे पत्थर पानी में डूबने लगे। वे मन-ही-मन आश्चर्यचकित थे। वे समझ रहे थे, मुझे कोई नहीं देख रहा है, किंतु हनुमानजी जो छायाकी तरह उनके साथ रहते हैं, कुछ दूरी बनाकर यह सब देख रहे थे। वे श्रीरामके पास पहुंचकर बोले, 'प्रभु आप जिसको छोड़ देंगे, वह तो निश्चित रूपसे डूबेगा और आप जिसका हाथ पकड़ लेंगे, वही बचेगा, किंतु यह तो आपके नामका प्रभाव है कि नल और नीलद्वारा रामनामलिखा पत्थर तैरता है इसीलिये कहा गयाहै-रामसे बड़ा रामका नाम।' भक्तो 'रामहिं सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि ॥

[कर्ण]



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mere jeevanamen 'raama' evan 'veer hanumaan'

karunaanidhaan shreeseetaaraamajeekee kripaase main vaishnav maataa-pitaako santaan hoon. vaishnav honese main apaneko kaaphee gauravaanvit anubhav karata hoon. mere pitaajee dharmanishth, karmanishth evan seetaaraam tatha bajarangabalee hanumaanjeeke adbhut bhakt the. ve do baje raatrimen hee jagate tatha paanch baje praatah tak 'seetaaraama' naamaka jap karate. tatpashchaat nityakriyaako samaapti ke pashchaat snaanaadise nivritt ho ghanton pooja karate. phir aahaar lete. bina tulasee dalase bhog lagaaye ve bhojan naheen karate tatha bhojanake samay bolate bhee naheen the.

pitaajee seetaaraamajeeko chhoda़kar kiseeko apana maalik naheen maanate the. us samay jameendaaree pratha thee. ve ek jameendaarake yahaan patavaareeka kaary karate the. gaanvake aur do-teen vyakti doosare jameendaarake patavaaree the. log jamadaarako 'maalika' kahakar hee sambodhan karate the. baat 1952-53 kee hai, us samay meree avastha 5-6 varshakee thee. mere dostake pitaajee bhee patavaaree the. ek din mere dostane kaha aaj maalik aayenge. so usake maalik haatheepar chadha़kar aaye aur kshetramen ghooma-phir gaye. ek din mainne pitaajeese poochhaa-'baaboojee! hamaare maalik kaun hain aur kab aayenge ?' javaabamen pitaajeene kahaa- 'hamaare maalik maatr bhagavaan seetaaraam hain. ham unhen dekhate naheen, kintu ve hain sarvatr .' chhotee avastha honeke kaaran tab main unakee baat samajh naheen saka thaa.

parivaarakee aarthik sthiti ati saamaany thee. aarthik samasya aanepar pitaajee kahate 'bhagavaan samaadhaan karenge.' us samay vidyaalayamen maasik shulk dena pada़ta thaa. shulk naheen jama karanepar naam kaat diya jaata thaa. mujhe bhee is samasyaaka saamana karana pada़aa. varg saatase lekar nautak mujhe svatantr chhaatrake roopamen pareeksha denee pada़ee. is beech meree maataajee 2 janavaree 1960 ko svargeey ho gayeen. janavaree 1960 men hee pitaajeene mera naamaankan dasaven vargamen kara diyaa. varsh 1966 menseetaaraamakee aseem kripa evan pitaajeeke aasheervaadase men snaatakoteern huaa. usee varsh pitaajee bhee svargeey ho gaye aur pee0jee0 kee padha़aaee adhooree rah gayee.

un dinonmen bhee naukaree aasaaneese naheen milatee thee. varsh 1968 men main patanaamen ek pustak sansthaanamen lipik padapar niyukt hua hanumaanajee kee kripaase kahaanee likhanekee abhiruchi jagee. kuchh kahaaniyaan jaise bhagavaan‌kee kripa, shreehanumaanajee kee kripa, sachche mitraka kartavy aadi chhapee theen. pustaka-sansthaanake prabandhak mere kaaryase santusht the. ve bhee vaishnav honeke saatha-saath shreeseetaaraam aur hanumaanajee ke bhakt the. unhonne mujhe paraamarsh diya ki ek laakh aath hajaar aath 'raama' naam likhakar ganga maiyaako samarpan karo tumhen avilamb sarakaaree naukaree mil jaayagee. main dayaanidhaan seetaaraam evan hanumaanajeeka bachapanase hee sevak thaa. pitaajeekee kripaase bachapanase hee shreehanumaan baahuk, shreeraamacharitamaanasaka paath karata tha aur hanumaanajeekee pauda़eepar phool arpan karata thaa. 1967 ee0 men hee ayodhyaajee jaakar shreehanumat sadanamen deeksha bhee praapt kee. phalatah prabandhak mahodayake paraamarshaka prabhaav mujhapar turant pada़aa. mainne 'raama' naam likhana praarambh kiyaa. kuchh maheenonmen mainne 108808 se adhik hee 'raama' naam likh liyaa. is beech praayah aktoobar 1970 ee0 men mujaphpharapur samaaharanaalay men lipik sah tankakakee naukareehetu pareeksha dene mujaphpharapur gayaa. patanaase paaneeke jahaajase jaaneke kramamen mainne likhee gayee 'raama' naamakee pustika apanee kaamanaake saath gangaajeemen samarpit kar dee. mujaphpharapur jaakar pareekshaamen sammilit hua aur vaapas patana a gayaa. kisee kaaranase ya yo kahen bhagavaan raam aur hanumaanjeekee kripaase vah pareeksha radd kar dee gayee aur punah pareekshaamen sammilit honeke liye bulaava patr aayaa. mujaphpharapur jaakar main pareeksha men sammilit huaa. maatr das abhyarthiyonka chunaav hua,
jisamen main bhee ek thaa. 1 janavaree 1971 ee0 ko meree mujaphpharapur samaaharanaalay men niyukti ho gayee. isee beech bihaar sarakaarake sahakaarita vibhaagamen paryavekshak sahayog samitiyonke padahetu bhee chayanit huaa. phalatah maatr 21 din samaaharanaalay men kaary karaneke pashchaat 2 pharavaree 1971 ko paryavekshak sahayog samitiyonk padake prashikshanahetu raanchee prashikshan kendramen chala gayaa. varsh 2007 ee0 men sahakaaritaa-prasaar padaadhikaareeke padase men sevaanivritt ho chuka hoon. main yadaa-kada is bindupar vichaar karata hoon to svayan aashcharyamen pada़ jaata hoon ki mujhamen aisee koee yogyata naheen thee ki sarakaaree sevaahetu chayanit ho sakoon. aur do-do naukariyaan ek saath mileen. aisa hona deenabandhu shreeraam evan paramaaraadhy shreehanumaanajeeko aseem kripaaka pratiphal tha, aur kuchh naheen.

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mahima jaasu jaan gamaraaoo pratham poojit naam prabha bhaktavatsal shreeraamadoot hanumaan bhee nirantar 'raama' naam japate rahate hain aur 'raama' seetaajeeke saath dhanush baan lekar unake hridayamen nivaas karate hain. kahaavat sahee hai ki 'raama' bina hanumaan naheen aur hanumaan bina raam naheen hanumaanajeeke roma-romamen 'raama' ka vaas hai. sumiri pavanasut paavan naamoo apane bas kari raakhe raamoo ..

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[karna]

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