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श्रीराधाकृष्णकी प्रत्यक्ष कृपा

वर्ष १९७८ की शीत ऋतुका समय था। वह मेरा अध्ययनकाल था और उस समय मैं ब्रह्मबालाजी धाम, उनाव, जि० दतियाके समीपवर्ती राधाकृष्ण मन्दिर (मुन्ना महाराजकी कुटी ) - में पुजारी था।

मैं बी०एससी० में अध्ययनरत था एवं उस समय लगनेवाली मेरी फीसकी व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। मेरे परिवारकी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। हालाँकि मन्दिरके साथ ही एक बगीचा था। जिसकी आयसे एवं श्रद्धालुओंके चन्देसे ही मन्दिरका खर्चा निकलता था। परंतु आयसे अधिक मन्दिरका खर्च था । अतः भगवान्के प्रसादमें भी मितव्ययता बनी रहती थी। कभी व्यवस्था रहती तो उत्तम नैवेद्य अर्पण किया जाता, नहीं तो जो है, सो भगवान्‌को भोग लगाया जाता था। कभी कोई सन्त महात्मा भी आ जाते, तो उनकी भी भोग-प्रसादकी व्यवस्था श्रीठाकुरजी किया करते थे। मुझे फीसकी आवश्यकता थी। भगवान्‌को उत्तम

पदार्थोंका भोग कई दिनोंसे नहीं लगा था एवं भगवान्कोओढ़ानेवाला 'शाल' भी पुराना हो गया था।

मैंने एक दिन भगवान्‌की सेवा करते हुए कहा कि 'कम-से-कम एक नये शालकी व्यवस्था कर लीजिये, पुराना कबतक चलायेंगे और मेरी फीसका भी कुछ इन्तजाम कीजिये । '

दूसरे दिन अप्रत्याशित रूपसे एक युगल दम्पती भगवान् के दर्शनके लिये आये। वे अपने साथ एक शाल, रसमलाईका डबला (मिट्टीका पात्र) लाये थे, जिसे उन्होंने भगवान्‌को अर्पण किया एवं कुछ नगद राशि भी अर्पण की, उस समय मैंने उनकी सामग्री प्रभुको समर्पित कर दी। उनके जानेके बाद मैंने देखा कि मुझे फीसके लिये जितनी राशिकी आवश्यकता थी, उससे अधिक युगल दम्पतीने चढ़ाया। स्वयंके लिये शाल, रसमलाई एवं मेरी फीसकी व्यवस्था करनेके लिये युगल दम्पतीको मन्दिरमें बुलानेवाले प्रभुकी कृपाका अनुभव करके मैं भाव-विभोर हो गया। धन्य हैं, प्रभु! आपकी कृपाका कोई पार नहीं है।
[ श्रीश्यामसुन्दरजी तिवारी ]



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shreeraadhaakrishnakee pratyaksh kripaa

varsh 1978 kee sheet rituka samay thaa. vah mera adhyayanakaal tha aur us samay main brahmabaalaajee dhaam, unaav, ji0 datiyaake sameepavartee raadhaakrishn mandir (munna mahaaraajakee kutee ) - men pujaaree thaa.

main bee0esasee0 men adhyayanarat tha evan us samay laganevaalee meree pheesakee vyavastha naheen ho pa rahee thee. mere parivaarakee aarthik sthiti utanee achchhee naheen thee. haalaanki mandirake saath hee ek bageecha thaa. jisakee aayase evan shraddhaaluonke chandese hee mandiraka kharcha nikalata thaa. parantu aayase adhik mandiraka kharch tha . atah bhagavaanke prasaadamen bhee mitavyayata banee rahatee thee. kabhee vyavastha rahatee to uttam naivedy arpan kiya jaata, naheen to jo hai, so bhagavaan‌ko bhog lagaaya jaata thaa. kabhee koee sant mahaatma bhee a jaate, to unakee bhee bhoga-prasaadakee vyavastha shreethaakurajee kiya karate the. mujhe pheesakee aavashyakata thee. bhagavaan‌ko uttama

padaarthonka bhog kaee dinonse naheen laga tha evan bhagavaankoodha़aanevaala 'shaala' bhee puraana ho gaya thaa.

mainne ek din bhagavaan‌kee seva karate hue kaha ki 'kama-se-kam ek naye shaalakee vyavastha kar leejiye, puraana kabatak chalaayenge aur meree pheesaka bhee kuchh intajaam keejiye . '

doosare din apratyaashit roopase ek yugal dampatee bhagavaan ke darshanake liye aaye. ve apane saath ek shaal, rasamalaaeeka dabala (mitteeka paatra) laaye the, jise unhonne bhagavaan‌ko arpan kiya evan kuchh nagad raashi bhee arpan kee, us samay mainne unakee saamagree prabhuko samarpit kar dee. unake jaaneke baad mainne dekha ki mujhe pheesake liye jitanee raashikee aavashyakata thee, usase adhik yugal dampateene chadha़aayaa. svayanke liye shaal, rasamalaaee evan meree pheesakee vyavastha karaneke liye yugal dampateeko mandiramen bulaanevaale prabhukee kripaaka anubhav karake main bhaava-vibhor ho gayaa. dhany hain, prabhu! aapakee kripaaka koee paar naheen hai.
[ shreeshyaamasundarajee tivaaree ]

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