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हनुमन्तकृपासे प्राणरक्षा

मेरा जन्म सनातनी ब्राह्मण परिवारमें हुआ है। मेरे परिवारकी धर्म एवं भगवानमें गहरी आस्था रही है। स्नान करके पूजा-पाठ करना, सूर्यको जल देना, हनुमान चालीसा पढ़ना, प्रतिदिन उनकी आरती करना और गायत्री मन्त्रकी एक माला जपना मेरी प्रतिदिनकी दिनचर्या है।

जिस घटनाका मैं वर्णन कर रहा हूँ, वह लगभग पच्चीस वर्ष पुरानी है। उस दिन भी मैं प्रतिदिनकी भाँति नियमानुसार सूर्यको जल देने छतपर गया, जो कि घरकी एक मंजिल, लगभग पन्द्रह फुटपर थी 1 ज्यों ही मैंने सूर्यको जल देनेके लिये अपने हाथ बढ़ाये, मुझे एक झटका सा लगा। ऐसा अनुभव हुआ जैसे किसी अदृश्य शक्तिने मुझे पकड़कर नीचे फेंक दिया। परंतु मेरे ऊपर हनुमन्तलालकी कृपा थी, मुझे लगा कि नीचे खड़े हुए हनुमान्जीने मुझे अपनी गोदमें ले लिया और जमीनपर छोड़ दिया हो। ऐसा मुझे आभास हुआ, दर्शन नहीं हुआ। जमीनपर मैं दोनों हाथोंके बल गिरा। दाहिने हाथकी हथेली पृथ्वीपर टिकी और बायें हाथकी कुहनी पृथ्वीपर जाकर लगी। शरीरका शेष भाग बिलकुल सुरक्षित रहा, दाहिने हाथकी हथेलीमें गुम चोट लगी और बायें हाथमेंफ्रैक्चर हो गया। परंतु हाथमें कोई घाव या खरोंचतक नहीं आयी। खूनकी एक बूँदतक नहीं निकली। फ्रैक्चर हो जानेसे असहनीय पीड़ा हुई और मैं कराहते हुए बेहोश हो गया। मेरे कराहनेकी आवाज सुनकर मेरा छोटा पुत्र भागा-भागा आया, जो संयोगसे उसी रात अहमदाबादसे लौटा था। पन्द्रह फुट ऊँची छतसे नीचे आँगन में पक्के पत्थरके फर्शपर पड़ा और कराहता हुआ मुझे देखकर उसका दिल काँप गया और वह घबरा गया। फिर बिना देर किये पड़ोसियोंकी सहायतासे वह तत्काल मुझे पासके हॉस्पिटलमें ले गया। वहाँ चिकित्सकोंने मेरा उपचार अच्छी प्रकारसे करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने दिल्लीसे अस्थिरोग विशेषज्ञको बुलवा लिया और मेरे बाएँ हाथमें जो फ्रैक्चर था, उसका ऑपरेशन करके रॉड लगा दी, जो अबतक लगी हुई है। कुछ दिनोंके बाद मैं बिलकुल स्वस्थ हो गया। आज भी मुझे देखकर किसीको विश्वास नहीं होता कि पन्द्रह फुटकी ऊँचाईसे नीचे आँगनमें पक्के पत्थरके फर्शपर गिरनेवाला जीवित कैसे रह सकता है। हनुमन्तकृपाके कारण वह अदृश्य शक्ति मेरा कुछ भी अहित नहीं कर सकी और उनकी कृपासे मैं आज भी जीवित हूँ।

[ श्रीयुत श्रीकृष्णजी मुदगिल ]



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hanumantakripaase praanarakshaa

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[ shreeyut shreekrishnajee mudagil ]

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अपनी वाणी में अमृत घोल
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