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संतकी सहनशीलता  [प्रेरक कहानी]
Hindi Story - Hindi Story (प्रेरक कहानी)

एक महात्मा जंगलमें कुटिया बनाकर एकान्तमें रहते थे। उनके अक्रोध, क्षमा, शान्ति, निर्मोहिता आदि गुणोंकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। मनुष्य पर गुण- असहिष्णु होता है। उनकी शान्ति भंग करके क्रोध दिलाया जाय- इसकी होड़ लगी। दो मनुष्योंने इसका बीड़ा लिया। वे महात्माकी कुटियापर गये। एकने कहा- 'महाराज ! जरा गाँजेकी चिलम तो लाइये।' महात्मा बोले— 'भाई! मैं गाँजा नहीं पीता।' उसने फिर कहा- 'अच्छा तो तमाखू लाओ।' महात्माने कहा 'मैंने कभी तमाखूका व्यवहार नहीं किया ।' उसने कहा- 'तब बाबा बनकर जंगलमें क्यों बैठा है ? धूर्त कहीँका।' इतनेमें पूर्व योजनाके अनुसार बहुत-से लोग वहाँ जमा हो गये। उस आदमीने सबको सुनाकर फिरकहा- 'पूरा ठग है, चार बार तो जेलकी हवा खा चुका | है।' उसके दूसरे साथीने कहा- 'अरे भाई! मैं खूब जानता हूँ, मैं साथ ही तो था । जेलमें इसने मुझको डंडोंसे मारा था, ये देखो उसके निशान। रातको | रामजनियोंके साथ रहता है, दिनमें बड़ा संत बन जाता है।' यों वे दोनों एक-से-एक बढ़कर- झूठे आरोप लगाने लगे, कैसे ही महात्माको क्रोध आ जाय, अन्तमें | महात्माके माता-पिताको, उनके साधनको तथा वेशको भी गाली बकने लगे। बकते-बकते सारा भण्डार खाली हो गया। वे चुप हो गये। तब महात्माने हँसकर कहा 'एक भक्तने शक्करकी पुड़िया दी है, इसे जरा पानीमें डालकर पी लो। (शक्करकी पुड़िया आगे रखकर कहा) भैया! थक गये होओगे।'वह मनुष्य महात्माके चरणोंपर पड़ गया और बोला- 'मुझे क्षमा कीजिये महाराज ! मैंने आपका बड़ा अपराध किया है। हमलोगोंके इतना करनेपर भी महाराज ! आपको क्रोध कैसे नहीं आया ?'

महात्मा बोले- भैया ! जिसके पास जो माल होता है, वह उसीको दिखाता है। यह तो ग्राहककी इच्छा है। कि उसे ले या न ले। तुम्हारे पास जो माल था, तुमने वही दिखाया, इसमें तुम्हारा क्या दोष है । परंतु मुझे तुम्हारा यह माल पसंद नहीं है।दोनों लज्जित हो गये। तब महात्माने फिर कहा 'दूसरा आदमी गलती करे और हम अपने अंदर आग जला दें, यह तो उचित नहीं है। मेरे गुरुजीने मुझे यह सिखाया है कि क्रोध करना और अपने वदनपर छुरी मारना बराबर है। ईर्ष्या करना और जहर पीना बराबर है। दूसरोंकी दी हुई गालियाँ और दुष्ट व्यवहार हमारा कोई नुकसान नहीं कर सकते।'

यह सुनकर सब लोग बहुत प्रभावित हुए और महात्माको प्रणाम करके चले गये ।



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santakee sahanasheelataa

ek mahaatma jangalamen kutiya banaakar ekaantamen rahate the. unake akrodh, kshama, shaanti, nirmohita aadi gunonkee khyaati doora-door tak phailee huee thee. manushy par guna- asahishnu hota hai. unakee shaanti bhang karake krodh dilaaya jaaya- isakee hoda़ lagee. do manushyonne isaka beeda़a liyaa. ve mahaatmaakee kutiyaapar gaye. ekane kahaa- 'mahaaraaj ! jara gaanjekee chilam to laaiye.' mahaatma bole— 'bhaaee! main gaanja naheen peetaa.' usane phir kahaa- 'achchha to tamaakhoo laao.' mahaatmaane kaha 'mainne kabhee tamaakhooka vyavahaar naheen kiya .' usane kahaa- 'tab baaba banakar jangalamen kyon baitha hai ? dhoort kaheenkaa.' itanemen poorv yojanaake anusaar bahuta-se log vahaan jama ho gaye. us aadameene sabako sunaakar phirakahaa- 'poora thag hai, chaar baar to jelakee hava kha chuka | hai.' usake doosare saatheene kahaa- 'are bhaaee! main khoob jaanata hoon, main saath hee to tha . jelamen isane mujhako dandonse maara tha, ye dekho usake nishaana. raatako | raamajaniyonke saath rahata hai, dinamen bada़a sant ban jaata hai.' yon ve donon eka-se-ek badha़kara- jhoothe aarop lagaane lage, kaise hee mahaatmaako krodh a jaay, antamen | mahaatmaake maataa-pitaako, unake saadhanako tatha veshako bhee gaalee bakane lage. bakate-bakate saara bhandaar khaalee ho gayaa. ve chup ho gaye. tab mahaatmaane hansakar kaha 'ek bhaktane shakkarakee puda़iya dee hai, ise jara paaneemen daalakar pee lo. (shakkarakee puda़iya aage rakhakar kahaa) bhaiyaa! thak gaye hooge.'vah manushy mahaatmaake charanonpar pada़ gaya aur bolaa- 'mujhe kshama keejiye mahaaraaj ! mainne aapaka bada़a aparaadh kiya hai. hamalogonke itana karanepar bhee mahaaraaj ! aapako krodh kaise naheen aaya ?'

mahaatma bole- bhaiya ! jisake paas jo maal hota hai, vah useeko dikhaata hai. yah to graahakakee ichchha hai. ki use le ya n le. tumhaare paas jo maal tha, tumane vahee dikhaaya, isamen tumhaara kya dosh hai . parantu mujhe tumhaara yah maal pasand naheen hai.donon lajjit ho gaye. tab mahaatmaane phir kaha 'doosara aadamee galatee kare aur ham apane andar aag jala den, yah to uchit naheen hai. mere gurujeene mujhe yah sikhaaya hai ki krodh karana aur apane vadanapar chhuree maarana baraabar hai. eershya karana aur jahar peena baraabar hai. doosaronkee dee huee gaaliyaan aur dusht vyavahaar hamaara koee nukasaan naheen kar sakate.'

yah sunakar sab log bahut prabhaavit hue aur mahaatmaako pranaam karake chale gaye .

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