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पं0 श्रीअमोलकरामजी शास्त्री की मार्मिक कथा
पं0 श्रीअमोलकरामजी शास्त्री की अधबुत कहानी - Full Story of पं0 श्रीअमोलकरामजी शास्त्री (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [पं0 श्रीअमोलकरामजी शास्त्री]- भक्तमाल


एक सीधे-सादे वेश एवं सरल स्वभावके ब्राह्मणको देखकर कौन विश्वास करता कि वे न्यायशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। वे कुरुक्षेत्रीय ब्राह्मण थे। उन्होंने काशी में विद्याध्ययनका प्रारम्भ किया और नवद्वीप (बंगाल) जाकर न्यायशास्त्रकी विशेष योग्यता सम्पन्न की। परंतु जिसको आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र अपनाना चाहें, वह न्यायके तर्कजालमें कैसे उलझा रह सकता है। शास्त्रीजीको तर्कके अपार विस्तारमें रसानुभूति नहीं हुई। वे निम्बार्क सम्प्रदायकी दीक्षा लेकर श्रीवृन्दावनवास करने लगे। व्रजका वास ही तो समस्त पुण्योंका परम फल है।

शास्त्रीजी स्वामी श्रीहरिदासजी की परम्परामें दीक्षित हुए थे। शास्त्रोंके अध्ययनसे यदि श्रीब्रजेन्द्रनन्दनके चरणोंमें अनुराग न हुआ तो अध्ययन व्यर्थ गया, यह बात उनके हृदयमें आयी और मूर्तिमान् हो गयी। वृन्दावनका वास करके उन्होंने आहार- शुद्धिपर ध्यान दिया। ब्राह्मणको दान लेनेका अधिकार है, यह बात ठीक होनेपर भी यह बात शास्त्रोंमें स्पष्ट आयी है किदान लेनेसे ब्राह्मणके तप तथा तेजका हास होता है। पवित्र उपार्जनसे प्राप्त अन्न ही पवित्र मनका निर्माण करता है। शास्त्रीजीने ब्राह्मणके लिये इस युगमें सर्वोत्तम आजीविका शास्त्राध्यापन समझा और अन्ततक अध्यापन करके ही वे जीवन-निर्वाह करते रहे। बहुत आग्रह करनेपर भी किसीसे दान लेना उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया।

नित्य श्रीविहारीजी एवं टाटीस्थानके श्रीठाकुरजीके दर्शन करना और भगवान्‌की सेवा-पूजा करके प्रसाद ग्रहण करना, यह नियम शास्त्रीजीका कभी भङ्ग नहीं हुआ। श्रीनिम्बार्क-सम्प्रदायके अनेक ग्रन्थोंका शास्त्रीजीने प्रणयन किया। अनेक विद्वान् शास्त्रीजीके ग्रन्थोंको सम्प्रदायाचार्योंकी कृतियोंके समान ही महत्त्व देते हैं।

विद्याके गर्वको छोड़कर सीधा-सादा, नम्र, श्रद्धापूर्ण जीवन ही श्रीकृष्णको प्रसन्न करता है। अपने पूरे जीवनके द्वारा शास्त्रीजीने यही शिक्षा दी।



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ek seedhe-saade vesh evan saral svabhaavake braahmanako dekhakar kaun vishvaas karata ki ve nyaayashaastr ke prakaand vidvaan hain. ve kurukshetreey braahman the. unhonne kaashee men vidyaadhyayanaka praarambh kiya aur navadveep (bangaala) jaakar nyaayashaastrakee vishesh yogyata sampann kee. parantu jisako aanandakand shreekrishnachandr apanaana chaahen, vah nyaayake tarkajaalamen kaise ulajha rah sakata hai. shaastreejeeko tarkake apaar vistaaramen rasaanubhooti naheen huee. ve nimbaark sampradaayakee deeksha lekar shreevrindaavanavaas karane lage. vrajaka vaas hee to samast punyonka param phal hai.

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nity shreevihaareejee evan taateesthaanake shreethaakurajeeke darshan karana aur bhagavaan‌kee sevaa-pooja karake prasaad grahan karana, yah niyam shaastreejeeka kabhee bhang naheen huaa. shreenimbaarka-sampradaayake anek granthonka shaastreejeene pranayan kiyaa. anek vidvaan shaastreejeeke granthonko sampradaayaachaaryonkee kritiyonke samaan hee mahattv dete hain.

vidyaake garvako chhoda़kar seedhaa-saada, namr, shraddhaapoorn jeevan hee shreekrishnako prasann karata hai. apane poore jeevanake dvaara shaastreejeene yahee shiksha dee.

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