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भक्तराज सुदर्शन की मार्मिक कथा
भक्तराज सुदर्शन की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तराज सुदर्शन (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तराज सुदर्शन]- भक्तमाल


सरयूके तटपर समृद्धिशालिनी अयोध्या नगरी पुष्पपुत्र महाराज ध्रुवसन्धिके सुप्रबन्धसे अमरावतीको भी लज्जित कर रही थी, जिसमें महाराज ध्रुवसन्धि देवराजसदृश सुशोभित थे। उनकी दो स्त्रियाँ थीं, पटरानी कलिङ्गराजतनया मनोरमा और छोटी उज्जयिनीपति दुहिता लीलावती। मनोरमासे सर्वलक्षणसम्पन्न भक्तराज सुदर्शनका और लीलावतीसे शत्रुजित्का जन्म हुआ। महाराजकी दोनोंपर समदृष्टि थी। दोनोंका लालन-पालन साथ ही होने लगा।

महाराजको आखेटका व्यसन था। दैववश एक दिन सिंहके शिकारमें उसके साथ ही महाराजकी भी मृत्यु हो गयो। मन्त्रियोंने महाराजकी पारलौकिक क्रिया करवाकर सुदर्शनको राज्य देनेका विचार किया। इतनेमें उज्जयिनीपति युधाजित् और कलिङ्गनरेश वीरसेन दोनों अपने-अपने दौहित्रोंके हितके लिये सैन्यसहित अयोध्यामें आ डटे। बात ही बातमें लड़ाई छिड़ गयी। वीरसेन युधाजितूसे लड़कर वीरगतिको प्राप्त हुए। बालपुत्रा मनोरमा भयभीत हो, मन्त्री विदलसे परामर्श करके सुदर्शनको लेकर विधान और धायके साथ निकल गयी।

गङ्गा पार होकर सब महर्षि भारद्वाजके आश्रम मेंआये और उनसे आश्वासन पाकर वहीं रहने लगे। उधर युधाजित् भी अपने दौहित्र शत्रुजित्को सिंहासनपर बैठा, मन्त्रियोंको राज्यभार साँप, अपनी राजधानीको चले गये। मार्ग दूतमुखसे सुदर्शनको मुनिके आश्रम में जानकर उसे मारनेके लिये आश्रम में आये किंतु मुनिके प्रभावसे उन्हें वहाँसे निराश लौटना पड़ा।

मन्त्री विदा नपुंसक थे, जिसे संस्कृतमें 'क्लीय कहते हैं। आश्रम में बार-बार मुनिकुमारोंके मुँहसे 'क्लीब', 'क्लीव' सुनकर बालक सुदर्शन भी 'क्ली', 'क्ली' करने लगा। पूर्वपुण्यके उदयसे वही अभ्यासरूपमें परिणत हो गया। इस तरह बालभक्त सुदर्शन सोते, जागते, खाते, पीते, वही 'क्ली' 'क्ली' रहने लगा। लीलामयीकी लीला, जगदम्बाकी महिमा, कुछ ही दिनोंमें उस अबोध बालकके निरन्तर स्मरणसे प्रभावित होकर जगजननी स्वप्न में दर्शन देकर बौजको शुद्ध कर गयीं। अब तोभक्त बालक सुदर्शन अनुक्षण 'क्लीं' मन्त्रमें लीन रहने लगा। महर्षि भारद्वाजकी अनुकम्पासे उसके क्षत्रियोचित उपनयनादि संस्कार भी समयपर सम्पन्न हुए। शस्त्र शास्त्र-विद्याएँ भी देवीकी दया और महर्षिके स्वल्प उद्योगसे ही मानो स्वयमेव उपस्थित हो गयीं। वनमें खेलनेके समय अक्षय तूणीरके साथ दिव्य धनुष पड़ा हुआ मिला। उसी समय निषादराज 'बल' सुसज्जित रथ लेकर उपस्थित हुआ और भक्तराजसे मित्रता जोड़ गया। क्यों न हो

'उन्हींका देशमें सम्मान होता है, उन्हींको धनकी प्राप्ति होती है, उन्हींको यश मिलता है, उन्हींके धर्मादि पुरुषार्थ अविकलरूपसे सिद्ध होते हैं, वे ही धन्य हैं और 6 वे ही पुत्र, भृत्य एवं पत्नी आदिसे सम्पन्न रहते हैं, जिनपर ऐश्वर्यदात्री आप प्रसन्न होती हैं ।'

परंतु इतनेसे ही माँको सन्तोष कहाँ ? ऐसे ही अनन्य भक्तोंके लिये तो उनका वचन है- 'योगक्षेमं वहाम्यहम्' । फिर तो भक्तराजके विवाहकी तैयारी होने लगी। काशिराज सुबाहुकी कन्या शशिकला महाविदुषी और भक्तिमती थी। स्वप्नमें सुदर्शनको दिखाकर माँने

उससे कहा- मेरे भक्त सुदर्शनको तू वरण कर-

वरं वरय सुश्रोणि मम भक्तः सुदर्शनः

सर्वकामप्रदस्तेऽस्तु************l

'सुन्दरि ! तुम सुदर्शनको वररूपमें स्वीकार करो। यह मेरा भक्त है, यह तुम्हारी सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करेगा।'

शशिकला प्रमुदित हो उसी समय भक्त सुदर्शनको मनसा वरण कर चुकी पुत्रीके रोकनेपर भी महाराज सुबाहु 'वनवासी सुदर्शनको कन्या नहीं देंगे' यही निश्चय कर स्वयंवरकी तैयारियाँ करने लगे। सुदर्शनको आमन्त्रित भी नहीं किया गया। यह सब देख-सुनकर दुःखित हो शशिकलानेएक ब्राह्मणको संवाद देकर भारद्वाजाश्रम भेज दिया। धीरे-धीरे स्वयंवरमें आनेवाले नरपतियोंसे काशी मुखरित हो उठी। अपने दौहित्रके साथ युधाजित् भी पधारे। उधर माँका स्मरण कर माँको साथ ले, ऋषियोंसे आशीर्वाद ग्रहण कर, भक्तराज सुदर्शन भी स्वयंवर देखने काशी आये। सबका यथोचित सत्कार किया गया।

अब राजाओंके बीचमें भक्तराजकी चर्चा चली। किसीने कहा-'सुनते हैं, सुदर्शन भी अपनी माँ साथ स्वयंवर देखने आया है, कन्या भी उसीको वरण करेगी।' युधाजित् जल उठा। सुबाहु बुलाये गये। 'आपका क्या। अभीष्ट है? आप किसे कन्या देना चाहते हैं ?' यही उनसे पूछा गया। लड़की कहती है-'मैं तो सुदर्शनको वर चुकी है। मेरे समझानेपर भी नहीं मानती सुबाहुका छोटा-सा उत्तर था।

अब तो युधाजितकी अद्भुत अवस्था थी। 'मैं सुबाहु सहित सुदर्शनको मारकर कन्याका हरण करके अपने दौहित्रको दे दूंगा, नहीं तो कन्याको स्वयंवरमें लाओ।' इस तरह युधाजित्का प्रलाप सुन अन्य राजाओंने एकान्त में सुदर्शनको बुलाया। सबने कहा- 'युधाजित् तुमको मारना चाहता है, हमलोगोंको दया आयी, इसीसे तुम्हें बुलाया है, तुम स्वयंवरमें बिना सैन्यके क्यों आये? अब तुम्हारी क्या इच्छा है?' इसपर भक्तराजने वहाँ अपने निष्कपट हृदयको खोल दिया-

न बलं न सहायो मे न कोषो दुर्गसंश्रयः ।
न मित्राणि न सौहार्दी न नृपा रक्षका मम ॥
इमं स्वयंवरं श्रुत्वा द्रष्टुकाम इहागतः ।
स्वप्नं देव्या प्रेरितोऽस्मि भगवत्या न संशयः ॥ नान्यच्चिकीर्षितं मेऽद्य मामाह जगदीश्वरी ।
तया यद्विहितं तच्च भविताद्य न संशयः ॥
न शत्रुरस्ति संसारे कोऽप्यत्र जगदीश्वराः ।
सर्वत्र पश्यतो मेऽद्य भवानी जगदम्बिकाम् ॥
यः करिष्यति शत्रुत्वं मया सह नृपात्मजाः
शास्ता तस्य महाविद्या नाहं जानामि शत्रुताम् ॥

"राजाओ! मेरे पास न सैन्य बल है, न मेरा कोई सहायक है, न कोष है, न दुर्गका आश्रय है; न मित्र हैं. न हितू हैं, न कोई मेरे रक्षक हैं। मैं तो स्वयंवरकी चर्चा सुनकर उसे देखनेकी अभिलाषासे यहाँ चला आया हूँ।अवश्य हो मुझे स्वप्नमें देवी भगवतीको प्रेरणा हुई है। मैं आज और कुछ भी नहीं करना चाहता। मुझे तो जगदीश्वरी देवीने जो कुछ कहा है और जो कोई विधान मेरे लिये उन्होंने रच रखा है, निःसन्देह वही होगा। है जगदीश्वरो ! संसारमें आज मेरा कोई भी शत्रु नहीं है: क्योंकि मुझे सर्वत्र जगदम्बा भवानीके दर्शन होते हैं। राजकुमारो। जो कोई मेरे साथ शत्रुता करेगा, उसका शासन व महाविद्या ही करेंगी। मैं तो जानता भी नहीं कि शत्रुता किसे कहते हैं।'

क्या ही विशुद्ध भाव है। कहीं छल-कपटका गन्धतक नहीं। जैसे हमारे प्रातःस्मरणीय श्रीतुलसीदासजी विश्वको 'सीयराममय' देखते थे, वैसे ही भक्तराज सुदर्शन निखिल चराचरमें भवानीको ही देखते थे।

राजाओंके पाससे भक्तराज डेरेपर आये। प्रातःकाल स्वयंवरका कार्य आरम्भ हुआ। शशिकला नहीं आयो। सुबाहु समझाकर हार गये। आती कैसे? वह भक्तराजका वरण जो कर चुकी थी। अब दूसरोंके लिये स्थान कहाँ? पिताके अत्यन्त आग्रहको देख शशिकलाने कहा

विभेषि यदि राजेन्द्र नृपेभ्यः किल कातरः । सुदर्शनाय दत्वा मां विसर्जय पुराद्वहिः ॥ स मां रथे समारोप्य निर्गमिष्यति ते पुरात्।

"राजेन्द्र ! यदि तुम कायरतावश राजाओंसे डरते हो तो मुझे सुदर्शनके हवाले करके नगरसे बाहर छोड़ आओ। वे मुझे रथपर चढ़ाकर तुम्हारी राजधानीसे बाहर चले जायेंगे।'

इतने पर भी सुबाहुकी चिन्ता नहीं गयी। इसपर उसने
कहा-

मा चिन्तां कुरु राजेन्द्र देहि सुदर्शनाय माम् ।
विवाहं विधिना कृत्वा शं विधास्यति चण्डिका ॥ यन्नामकीर्तनादेव दुःखौथो विलयं ब्रजेत्।
तां स्मृत्वा परमां शक्तिं कुरु कार्यमतन्द्रितः ॥

"राजेन्द्र ! आप चिन्ता न करें मेरा सुदर्शनके साथ विधिपूर्वक विवाह करके मुझे उनके हाथ सौंप दें। भगवती चण्डिका आपका और हमारा कल्याण करेंगी। जिनके नामोच्चारणसे ही दुःखराशिका नाश हो जाता है, उन्हीं पराशक्तिका स्मरण करके आलस्यरहित होकर कार्य कीजिये।"अब सुबाहुके हृदयमें भी विश्वास हो आया। कन्याके वचनानुसार राजाओंसे जाकर वे बोले-'आज आपलोग जायें। कल स्वयंवर होगा।' सब इस वचनको सत्य समझ चले गये। इधर उसी रातमें सुदर्शनको बुलाकर विधिवत् पाणिग्रहण करा दिया। प्रात:काल मंगलवाद्य सुनकर राजाओंने समझा 'विवाह हो गया।' युधाजित् ससैन्य काशीको घेर बैठे कि 'रास्तेमें ही सुदर्शनको मारकर कन्या हरण किया जाय।' और राजागण भी 'क्या होता है' यह देखनेके लिये ठहर गये।

भक्तराज सस्त्रीक रथपर बैठकर भारद्वाजाश्रम चले। सुबाहु भी जामाताकी रक्षाके लिये अपने सैन्यसहित पीछे हो लिये भक्तराजको निर्भय होकर आते देख सब कोलाहल कर उठे । युधाजित् शत्रुजित्के साथ उनको मारनेके लिये आगे आये। दोनोंमें युद्ध छिड़ गया। परंतु —

धर्मो जयति नाधर्मः ।

'धर्मको ही विजय होती है, अधर्मकी नहीं।' भक्तराजके स्मरणमात्रसे जगज्जननी दुर्गा सिंहपर सवार हो प्रकट हो गयीं। देखते ही भक्तराज गद्गद हो गये। अपने सेनापतिसे कहने लगे-'निर्भय होकर आगे बढ़िये। सहायताके लिये माँ आ पहुँची हैं।'

साहाय्यं जगदम्बा मे करिष्यति न संशयः ।
जगदम्बापदस्मर्तुः सङ्कटं कदाचन ॥

'जगदम्बा निश्चय ही मेरी सहायता करेंगी। जगदम्बाका न
चरण-चिन्तन करनेवालेपर किसी प्रकारका संकट नहीं आ सकता।' उधर श्रीदुर्गादर्शनसे भयभीत अपने सैन्यको देखकरयुधाजित् शत्रुजित् के साथ आगे बढ़ आये, किंतु हुआ वही, जो होना था माँके शस्त्रसे कटकर दोनों सुरलोक सिधारे। सेना भी छिन्न-भिन्न हो गयी। अब सुबाहु आगे आये और स्तुतिके बाद उन्होंने वरदान माँगा

तव भक्तिः सदा मेऽस्तु निश्चला हानपायिनी।
नगरेऽत्र त्वया मातः स्थातव्यं मम सर्वदा ॥
दुर्गा देवीति नाम्ना वै त्वं शक्तिरिह संस्थिता।
यथा सुदर्शनस्त्रातो रिपुसङ्घादनामयः
तथात्र रक्षा कर्तव्या वाराणस्यास्त्वयाम्बिके ।
यावत् पुरी भवेद्भूमौ सुप्रतिष्ठा सुसंस्थिता ।
तावत्त्वयात्र स्थातव्यं दुर्गे देवि कृपानिधे ॥

'तुम्हारे चरणोंमें मेरी सदा सर्वदा अविचल एवं अटूट भक्ति हो माँ तुम्हें सदा मेरे इस नगरमें निवास करना चाहिये। दुर्गादेवीके नामसे तुम महाशक्ति यहाँ विराजमान हो जाओ। जिस प्रकार तुमने शत्रुओंसे सुदर्शनकी रक्षा की और उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ, उसी प्रकार माँ तुम्हें इस वाराणसी नगरीकी रक्षा करनी चाहिये। जबतक यह नगरी भूमण्डलपर सुप्रतिष्ठित और सुस्थिर न हो जाय तबतक हे दुर्गे हे कृपानिधान देवि! तुम्हें यहाँ रहना चाहिये।'

इसी वरदान के कारण माँ अभी भी श्रीदुर्गाकि रूपमें काशीकी रक्षा कर रही हैं। अब भक्तराज सुदर्शन पुलकित होकर स्तुति करते-करते कहने लगे -

करोमि किं ते वद देवि कार्य क्र वा व्रजामीत्यनुमोदयाशु
कार्ये विमूढोऽस्मि तवाज्ञयाहं गच्छामि तिष्ठे विहरामि मातः ॥ '

देवि! बताओ, मैं तुम्हारा कौन-सा कार्य करूँ? अथवा कहाँ जाऊँ? शीघ्र अनुमति प्रदान करो। मैं स्वयं किंकर्तव्यविमूढ हो रहा हूँ। माता! तुम जैसी आज्ञा करो मैं यहाँसे चला जाऊँ, ठहरू अथवा स्वेच्छापूर्वक विचरूँ?'

अहा! इनका तो अपना कुछ है ही नहीं, फिर क्यों नहीं पूछें कि 'हम कहाँ जायें? क्या करें?' इसपर माँने कहा

गच्छायोध्यां महाभाग कुरु राज्यं कुलोचितम् ।
स्मरणीया सदाहं ते पूजनीया प्रयत्नतः ।
शं विधास्याम्यहं नित्यं राज्यं ते नृपसत्तम ॥

'महाभाग्यवान् सुदर्शन! तुम अयोध्या जाकर अपनी कुल परम्पराके अनुकूल वहाँका शासन करो। तुम मुझे सदा स्मरण करते रहना और यत्नके साथ मेरी पूजा उपासना करना। हे नृपश्रेष्ठ। मैं सदा तुम्हारा कल्याण करूँगी और तुम्हारे राज्यकी रक्षा करूंगी।' -- इत्यादि उपदेश देकर माँ अन्तर्हित हो गयीं।

इसके बाद सब राजाओंने भक्तराजका आधिपत्य स्वीकार किया। वहाँसे आनन्दपूर्वक वे अयोध्या आये। देखिये इनका हृदय, पहले सौतेली माँके पास जाते हैं। प्रणाम करके कहते हैं-

दासोऽस्मि तव हे मातर्यथा मम मनोरमा ।
तथा त्वमपि धर्मज्ञे न भेदोऽस्ति मनागपि ॥
अहं वनगतो मातर्नाभवं दुःखमानसः ।
चिन्तयन् स्वकृतं कर्म भोक्तव्यमिति वेद्मि च ॥
दुःखं न मे तदा ह्यासीत् सुखं नाद्य धनागमे ।
न वैरं न च मात्सर्यं मम चित्ते तु कर्हिचित् ॥
मानुष्यं दुर्लभं मातः खण्डेऽस्मिन् भारते शुभे । आहारादिसुखं नूनं भवेत्सर्वासु योनिषु ॥
प्राप्य तं मानुषं देहं कर्तव्यं धर्मसाधनम् ।
स्वर्गमोक्षप्रदं नृणां दुर्लभं चान्ययोनिषु ॥

'माँ! मैं तुम्हारा सेवक हूँ। धर्मज्ञे! मेरे लिये जैसी माता मनोरमा हैं, वैसी ही तुम भी हो। मेरी दृष्टिमें तुम दोनोंके बीच कोई अन्तर नहीं है। वनमें रहते हुए मेरे चित्तको तनिक भी क्लेश नहीं हुआ; क्योंकि मैं सोचता था कि यह मेरे ही किसी कर्मका फल है और मैं यह भी जानता था कि उसका फल अवश्य भोगना होगा। उससमय मुझे कोई दुःख नहीं था और आज धनकी प्राप्ति हो जानेपर मुझे कोई सुख नहीं है। मेरे हृदयमें न किसीसे वैर है और न डाह ही है। माता ! इस पवित्र भारतभूमिमें मनुष्य जन्म बड़ी कठिनतासे मिलता है; आहार, निद्रा, मैथुन आदिका सुख तो निश्चय ही सभी योनियोंमें प्राप्त होता है। इस मनुष्य शरीरको पाकर धर्मका अनुष्ठान करना चाहिये; क्योंकि मनुष्योंको इसीसे स्वर्गादि लोकों तथा मोक्षतककी प्राप्ति होती है, जो अन्य योनियोंके लिये दुर्लभ है।' ऐसा उदाराशय भक्त अब कहाँ?

इसके बाद पहले स्वर्ण सिंहासनपर माँकी मूर्ति स्थापित कर, पीछे भक्तराज उन्हींका काम मानकर, उन्हींकी आज्ञासे राज्यसिंहासनपर विराजे। अभी भी कोसलदेशमें 'अम्बिकादेवी' के नामसे माँ विद्यमान हैं। इस तरह भक्तराज सुदर्शन श्रीजगदम्बाके प्रसादसे यावज्जीवन अखण्ड राज्य भोगकर अन्तमें मणिद्वीपको सिधारे।



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'sundari ! tum sudarshanako vararoopamen sveekaar karo. yah mera bhakt hai, yah tumhaaree sampoorn kaamanaaonko poorn karegaa.'

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ab raajaaonke beechamen bhaktaraajakee charcha chalee. kiseene kahaa-'sunate hain, sudarshan bhee apanee maan saath svayanvar dekhane aaya hai, kanya bhee useeko varan karegee.' yudhaajit jal uthaa. subaahu bulaaye gaye. 'aapaka kyaa. abheesht hai? aap kise kanya dena chaahate hain ?' yahee unase poochha gayaa. lada़kee kahatee hai-'main to sudarshanako var chukee hai. mere samajhaanepar bhee naheen maanatee subaahuka chhotaa-sa uttar thaa.

ab to yudhaajitakee adbhut avastha thee. 'main subaahu sahit sudarshanako maarakar kanyaaka haran karake apane dauhitrako de doonga, naheen to kanyaako svayanvaramen laao.' is tarah yudhaajitka pralaap sun any raajaaonne ekaant men sudarshanako bulaayaa. sabane kahaa- 'yudhaajit tumako maarana chaahata hai, hamalogonko daya aayee, iseese tumhen bulaaya hai, tum svayanvaramen bina sainyake kyon aaye? ab tumhaaree kya ichchha hai?' isapar bhaktaraajane vahaan apane nishkapat hridayako khol diyaa-

n balan n sahaayo me n kosho durgasanshrayah .
n mitraani n sauhaardee n nripa rakshaka mam ..
iman svayanvaran shrutva drashtukaam ihaagatah .
svapnan devya prerito'smi bhagavatya n sanshayah .. naanyachchikeershitan me'dy maamaah jagadeeshvaree .
taya yadvihitan tachch bhavitaady n sanshayah ..
n shatrurasti sansaare ko'pyatr jagadeeshvaraah .
sarvatr pashyato me'dy bhavaanee jagadambikaam ..
yah karishyati shatrutvan maya sah nripaatmajaah
shaasta tasy mahaavidya naahan jaanaami shatrutaam ..

"raajaao! mere paas n sainy bal hai, n mera koee sahaayak hai, n kosh hai, n durgaka aashray hai; n mitr hain. n hitoo hain, n koee mere rakshak hain. main to svayanvarakee charcha sunakar use dekhanekee abhilaashaase yahaan chala aaya hoon.avashy ho mujhe svapnamen devee bhagavateeko prerana huee hai. main aaj aur kuchh bhee naheen karana chaahataa. mujhe to jagadeeshvaree deveene jo kuchh kaha hai aur jo koee vidhaan mere liye unhonne rach rakha hai, nihsandeh vahee hogaa. hai jagadeeshvaro ! sansaaramen aaj mera koee bhee shatru naheen hai: kyonki mujhe sarvatr jagadamba bhavaaneeke darshan hote hain. raajakumaaro. jo koee mere saath shatruta karega, usaka shaasan v mahaavidya hee karengee. main to jaanata bhee naheen ki shatruta kise kahate hain.'

kya hee vishuddh bhaav hai. kaheen chhala-kapataka gandhatak naheen. jaise hamaare praatahsmaraneey shreetulaseedaasajee vishvako 'seeyaraamamaya' dekhate the, vaise hee bhaktaraaj sudarshan nikhil charaacharamen bhavaaneeko hee dekhate the.

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vibheshi yadi raajendr nripebhyah kil kaatarah . sudarshanaay datva maan visarjay puraadvahih .. s maan rathe samaaropy nirgamishyati te puraat.

"raajendr ! yadi tum kaayarataavash raajaaonse darate ho to mujhe sudarshanake havaale karake nagarase baahar chhoda़ aao. ve mujhe rathapar chadha़aakar tumhaaree raajadhaaneese baahar chale jaayenge.'

itane par bhee subaahukee chinta naheen gayee. isapar usane
kahaa-

ma chintaan kuru raajendr dehi sudarshanaay maam .
vivaahan vidhina kritva shan vidhaasyati chandika .. yannaamakeertanaadev duhkhautho vilayan brajet.
taan smritva paramaan shaktin kuru kaaryamatandritah ..

"raajendr ! aap chinta n karen mera sudarshanake saath vidhipoorvak vivaah karake mujhe unake haath saunp den. bhagavatee chandika aapaka aur hamaara kalyaan karengee. jinake naamochchaaranase hee duhkharaashika naash ho jaata hai, unheen paraashaktika smaran karake aalasyarahit hokar kaary keejiye."ab subaahuke hridayamen bhee vishvaas ho aayaa. kanyaake vachanaanusaar raajaaonse jaakar ve bole-'aaj aapalog jaayen. kal svayanvar hogaa.' sab is vachanako saty samajh chale gaye. idhar usee raatamen sudarshanako bulaakar vidhivat paanigrahan kara diyaa. praata:kaal mangalavaady sunakar raajaaonne samajha 'vivaah ho gayaa.' yudhaajit sasainy kaasheeko gher baithe ki 'raastemen hee sudarshanako maarakar kanya haran kiya jaaya.' aur raajaagan bhee 'kya hota hai' yah dekhaneke liye thahar gaye.

bhaktaraaj sastreek rathapar baithakar bhaaradvaajaashram chale. subaahu bhee jaamaataakee rakshaake liye apane sainyasahit peechhe ho liye bhaktaraajako nirbhay hokar aate dekh sab kolaahal kar uthe . yudhaajit shatrujitke saath unako maaraneke liye aage aaye. dononmen yuddh chhida़ gayaa. parantu —

dharmo jayati naadharmah .

'dharmako hee vijay hotee hai, adharmakee naheen.' bhaktaraajake smaranamaatrase jagajjananee durga sinhapar savaar ho prakat ho gayeen. dekhate hee bhaktaraaj gadgad ho gaye. apane senaapatise kahane lage-'nirbhay hokar aage badha़iye. sahaayataake liye maan a pahunchee hain.'

saahaayyan jagadamba me karishyati n sanshayah .
jagadambaapadasmartuh sankatan kadaachan ..

'jagadamba nishchay hee meree sahaayata karengee. jagadambaaka na
charana-chintan karanevaalepar kisee prakaaraka sankat naheen a sakataa.' udhar shreedurgaadarshanase bhayabheet apane sainyako dekhakarayudhaajit shatrujit ke saath aage badha़ aaye, kintu hua vahee, jo hona tha maanke shastrase katakar donon suralok sidhaare. sena bhee chhinna-bhinn ho gayee. ab subaahu aage aaye aur stutike baad unhonne varadaan maangaa

tav bhaktih sada me'stu nishchala haanapaayinee.
nagare'tr tvaya maatah sthaatavyan mam sarvada ..
durga deveeti naamna vai tvan shaktirih sansthitaa.
yatha sudarshanastraato ripusanghaadanaamayah
tathaatr raksha kartavya vaaraanasyaastvayaambike .
yaavat puree bhavedbhoomau supratishtha susansthita .
taavattvayaatr sthaatavyan durge devi kripaanidhe ..

'tumhaare charanonmen meree sada sarvada avichal evan atoot bhakti ho maan tumhen sada mere is nagaramen nivaas karana chaahiye. durgaadeveeke naamase tum mahaashakti yahaan viraajamaan ho jaao. jis prakaar tumane shatruonse sudarshanakee raksha kee aur usaka baal bhee baanka naheen hua, usee prakaar maan tumhen is vaaraanasee nagareekee raksha karanee chaahiye. jabatak yah nagaree bhoomandalapar supratishthit aur susthir n ho jaay tabatak he durge he kripaanidhaan devi! tumhen yahaan rahana chaahiye.'

isee varadaan ke kaaran maan abhee bhee shreedurgaaki roopamen kaasheekee raksha kar rahee hain. ab bhaktaraaj sudarshan pulakit hokar stuti karate-karate kahane lage -

karomi kin te vad devi kaary kr va vrajaameetyanumodayaashu
kaarye vimoodho'smi tavaajnayaahan gachchhaami tishthe viharaami maatah .. '

devi! bataao, main tumhaara kauna-sa kaary karoon? athava kahaan jaaoon? sheeghr anumati pradaan karo. main svayan kinkartavyavimoodh ho raha hoon. maataa! tum jaisee aajna karo main yahaanse chala jaaoon, thaharoo athava svechchhaapoorvak vicharoon?'

ahaa! inaka to apana kuchh hai hee naheen, phir kyon naheen poochhen ki 'ham kahaan jaayen? kya karen?' isapar maanne kahaa

gachchhaayodhyaan mahaabhaag kuru raajyan kulochitam .
smaraneeya sadaahan te poojaneeya prayatnatah .
shan vidhaasyaamyahan nityan raajyan te nripasattam ..

'mahaabhaagyavaan sudarshana! tum ayodhya jaakar apanee kul paramparaake anukool vahaanka shaasan karo. tum mujhe sada smaran karate rahana aur yatnake saath meree pooja upaasana karanaa. he nripashreshtha. main sada tumhaara kalyaan karoongee aur tumhaare raajyakee raksha karoongee.' -- ityaadi upadesh dekar maan antarhit ho gayeen.

isake baad sab raajaaonne bhaktaraajaka aadhipaty sveekaar kiyaa. vahaanse aanandapoorvak ve ayodhya aaye. dekhiye inaka hriday, pahale sautelee maanke paas jaate hain. pranaam karake kahate hain-

daaso'smi tav he maataryatha mam manorama .
tatha tvamapi dharmajne n bhedo'sti manaagapi ..
ahan vanagato maatarnaabhavan duhkhamaanasah .
chintayan svakritan karm bhoktavyamiti vedmi ch ..
duhkhan n me tada hyaaseet sukhan naady dhanaagame .
n vairan n ch maatsaryan mam chitte tu karhichit ..
maanushyan durlabhan maatah khande'smin bhaarate shubhe . aahaaraadisukhan noonan bhavetsarvaasu yonishu ..
praapy tan maanushan dehan kartavyan dharmasaadhanam .
svargamokshapradan nrinaan durlabhan chaanyayonishu ..

'maan! main tumhaara sevak hoon. dharmajne! mere liye jaisee maata manorama hain, vaisee hee tum bhee ho. meree drishtimen tum dononke beech koee antar naheen hai. vanamen rahate hue mere chittako tanik bhee klesh naheen huaa; kyonki main sochata tha ki yah mere hee kisee karmaka phal hai aur main yah bhee jaanata tha ki usaka phal avashy bhogana hogaa. usasamay mujhe koee duhkh naheen tha aur aaj dhanakee praapti ho jaanepar mujhe koee sukh naheen hai. mere hridayamen n kiseese vair hai aur n daah hee hai. maata ! is pavitr bhaaratabhoomimen manushy janm bada़ee kathinataase milata hai; aahaar, nidra, maithun aadika sukh to nishchay hee sabhee yoniyonmen praapt hota hai. is manushy shareerako paakar dharmaka anushthaan karana chaahiye; kyonki manushyonko iseese svargaadi lokon tatha mokshatakakee praapti hotee hai, jo any yoniyonke liye durlabh hai.' aisa udaaraashay bhakt ab kahaan?

isake baad pahale svarn sinhaasanapar maankee moorti sthaapit kar, peechhe bhaktaraaj unheenka kaam maanakar, unheenkee aajnaase raajyasinhaasanapar viraaje. abhee bhee kosaladeshamen 'ambikaadevee' ke naamase maan vidyamaan hain. is tarah bhaktaraaj sudarshan shreejagadambaake prasaadase yaavajjeevan akhand raajy bhogakar antamen manidveepako sidhaare.

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किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
मेरी करुणामयी सरकार, मिला दो ठाकुर से
कृपा करो भानु दुलारी, श्री राधे बरसाने
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
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श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
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यह तो सारी दुनिया जाने है
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समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
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