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प्रेमी जटायु की मार्मिक कथा
प्रेमी जटायु की अधबुत कहानी - Full Story of प्रेमी जटायु (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [प्रेमी जटायु]- भक्तमाल


सर्वत्र खलु दृश्यन्ते साधवो धर्मचारिणः ।
शूराः शरण्याः सौमित्रे तिर्यग्योनिगतेष्वपि ॥


श्रीराम कहते हैं-'लक्ष्मण सर्वत्र यहाँतक कि - पशु-पक्षी आदि योनियोंमें भी शूरवीर, शरणागतरक्षक,धर्मपरायण साधुजन मिलते हैं।' प्रजापति कश्यपजीकी पत्नी विनतासे दो पुत्र हुए अरुण और गरुड़ इनमें से भगवान् सूर्यके सारभि अरुणजीके दो पुत्र हुए- सम्पाती और जटायु बचपन में । सम्पाती और जटायु उडानकी होड़ लगाकर ऊँचे जाते हुए सूर्यमण्डलके पासतक चले गये। असह्य तेज न सह सकनेके कारण जटायु तो लौट आये, किंतु सम्पाती ऊपर ही उड़ते गये। सूर्यके अधिक निकट जानेपर सम्पाती के पंख सूर्यतापसे भस्म हो गये। वे समुद्रके पास पृथ्वीपर गिर पड़े। जटायु लौटकर पञ्चवटीमें आकर रहने लगे। महाराज दशरथसे आखेटके समय इनका परिचय हो गया। और महाराजने इन्हें अपना मित्र बना लिया।

वनवासके समय जब श्रीरामजी पञ्चवटी पहुँचे, तब जटायुसे उनका परिचय हुआ। मर्यादापुरुषोत्तम अपने पिताके सखा गीधराजका पिताके समान ही सम्मान करते थे। जब छलसे स्वर्णमृग बने मारीचके पीछे श्रीराम वनमें चले गये और जब मारीचकी कपटपूर्ण पुकार सुनकर लक्ष्मणजी बड़े भाईको ढूँढने चले गये, तब सूनी कुटियासे रावणने सीताजीको उठा लिया। बलपूर्वक रथमें बैठाकर वह उन्हें ले चला। श्रीविदेहराज दुहिताका करुण क्रन्दन सुनकर जटायु क्रोधमें भर गये। वे ललकारते-धिक्कारते रावणपर टूट पड़े और एक बार तो राक्षसराजके केश पकड़कर उसे भूमिमें पटक ही दिया।

• जटायु वृद्ध थे। वे जानते थे कि रावणसे युद्धमें वे जीत नहीं सकते। परन्तु नश्वर शरीर राम-काजमें लग जाय, इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। रावणसे उनका भयंकर संग्राम हुआ अन्तमें रावणने उनके पंख तलवारसे काट लिये। वे भूमिपर गिर पड़े। जानकीजीकोलेकर रावण भाग गया। श्रीराम विरह-व्याकुल जानकीजीको ढूँढ़ते यहाँ आये। जटायु मरणासन्न हो रहे थे। उनका चित्त श्रीरामके चरणोंमें लगा था। उन्होंने कहा- 'राघव! राक्षसराज रावणने मेरी यह दशा की है। वही दुष्ट सीताजीको लेकर दक्षिण दिशाको ओर चला गया है। मैंने तो तुम्हारे दर्शनके लिये ही अबतक प्राणोंको रोक रखा था। अब वे विदा होना चाहते हैं। तुम आज्ञा दो।'

श्रीराघवके नेत्र भर आये। उन्होंने कहा- ' आप प्राणोंको रोकें। मैं आपके शरीरको अजर-अमर तथा स्वस्थ बनाये देता हूँ।' जटायु परम भागवत थे। शरीरका मोह उन्हें था नहीं। उन्होंने कहा-'श्रीराम! जिनका नाम मृत्युके समय मुखसे निकल जाय तो अधम प्राणी भी मुक्ति प्राप्त कर लेता है-ऐसी तुम्हारी महिमा श्रुतियोंमें वर्णित है। आज वही तुम प्रत्यक्ष मेरे सम्मुख हो; फिर मैं शरीर किस लाभके लिये रखूँ ?'

दयाधाम श्रीरामभद्रके नेत्रोंमें जल भर आया। वे कहने लगे- 'तात! मैं तुम्हें क्या दे सकता हूँ। तुमने तो अपने ही कर्मसे परम गति प्राप्त कर ली है। जिनका चित्त परोपकारमें लगा रहता है, उन्हें संसारमें कुछ भी दुर्लभ नहीं है। अब इस शरीरको छोड़कर आप मेरे धाममें पधारें।'

श्रीरामने जटायुको गोदमें उठा लिया था। अपनी जटाओंसे वे उन पक्षिराजकी देहमें लगी धूलि झाड़ रहे थे। जटायुने श्रीरामके मुख कमलका दर्शन करते हुए उनकी गोदमें ही शरीर छोड़ दिया- उन्हें भगवान्‌का सारूप्य प्राप्त हुआ। वे तत्काल नवजलधरसुन्दर, पीताम्बरधारी, चतुर्भुज तेजोमय शरीर धारण करके वैकुण्ठ चले गये। जैसे सत्पुत्र श्रद्धापूर्वक पिताकी अन्त्येष्टि करता है, वैसे ही श्रीरामने जटायुके शरीरका सम्मानपूर्वक दाहकर्म किया और उन्हें जलाञ्जलि देकर श्राद्ध किया। पक्षिराजके सौभाग्यकी महिमाका कहाँ पार है। त्रिभुवनके स्वामी श्रीराम, जिन्होंने दशरथजीकी अन्त्येष्टि नहीं की, वे | जटायुकी अन्त्येष्टि विधिपूर्वक करते रहे। उस समय उन्हें श्रीजानकीजीका वियोग भी भूल गया था।



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sarvatr khalu drishyante saadhavo dharmachaarinah .
shooraah sharanyaah saumitre tiryagyonigateshvapi ..


shreeraam kahate hain-'lakshman sarvatr yahaantak ki - pashu-pakshee aadi yoniyonmen bhee shooraveer, sharanaagatarakshak,dharmaparaayan saadhujan milate hain.' prajaapati kashyapajeekee patnee vinataase do putr hue arun aur garuda़ inamen se bhagavaan sooryake saarabhi arunajeeke do putr hue- sampaatee aur jataayu bachapan men . sampaatee aur jataayu udaanakee hoda़ lagaakar oonche jaate hue sooryamandalake paasatak chale gaye. asahy tej n sah sakaneke kaaran jataayu to laut aaye, kintu sampaatee oopar hee uda़te gaye. sooryake adhik nikat jaanepar sampaatee ke pankh sooryataapase bhasm ho gaye. ve samudrake paas prithveepar gir pada़e. jataayu lautakar panchavateemen aakar rahane lage. mahaaraaj dasharathase aakhetake samay inaka parichay ho gayaa. aur mahaaraajane inhen apana mitr bana liyaa.

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shreeraaghavake netr bhar aaye. unhonne kahaa- ' aap praanonko roken. main aapake shareerako ajara-amar tatha svasth banaaye deta hoon.' jataayu param bhaagavat the. shareeraka moh unhen tha naheen. unhonne kahaa-'shreeraama! jinaka naam mrityuke samay mukhase nikal jaay to adham praanee bhee mukti praapt kar leta hai-aisee tumhaaree mahima shrutiyonmen varnit hai. aaj vahee tum pratyaksh mere sammukh ho; phir main shareer kis laabhake liye rakhoon ?'

dayaadhaam shreeraamabhadrake netronmen jal bhar aayaa. ve kahane lage- 'taata! main tumhen kya de sakata hoon. tumane to apane hee karmase param gati praapt kar lee hai. jinaka chitt paropakaaramen laga rahata hai, unhen sansaaramen kuchh bhee durlabh naheen hai. ab is shareerako chhoda़kar aap mere dhaamamen padhaaren.'

shreeraamane jataayuko godamen utha liya thaa. apanee jataaonse ve un pakshiraajakee dehamen lagee dhooli jhaada़ rahe the. jataayune shreeraamake mukh kamalaka darshan karate hue unakee godamen hee shareer chhoda़ diyaa- unhen bhagavaan‌ka saaroopy praapt huaa. ve tatkaal navajaladharasundar, peetaambaradhaaree, chaturbhuj tejomay shareer dhaaran karake vaikunth chale gaye. jaise satputr shraddhaapoorvak pitaakee antyeshti karata hai, vaise hee shreeraamane jataayuke shareeraka sammaanapoorvak daahakarm kiya aur unhen jalaanjali dekar shraaddh kiyaa. pakshiraajake saubhaagyakee mahimaaka kahaan paar hai. tribhuvanake svaamee shreeraam, jinhonne dasharathajeekee antyeshti naheen kee, ve | jataayukee antyeshti vidhipoorvak karate rahe. us samay unhen shreejaanakeejeeka viyog bhee bhool gaya thaa.

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