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ब्रह्मर्षि श्रीसत्यदेवजी महाराज की मार्मिक कथा
ब्रह्मर्षि श्रीसत्यदेवजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of ब्रह्मर्षि श्रीसत्यदेवजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [ब्रह्मर्षि श्रीसत्यदेवजी महाराज]- भक्तमाल


ब्रह्मर्षि सत्यदेवजी महाराज शान्तिप्रिय और एकान्तनिष्ठ महात्मा थे। वे भगवान्को माँ कहा करते थे, माँके रूपमें ही उनकी उपासना करते थे। उनका जन्म पूर्ववङ्गके बरिसाल जिलेके नवग्राममें हुआ था। वे प्रसिद्ध साधक भैरवचन्द्र दौहित्र कैलाशचन्द्रके पुत्र थे। उनकी माता शारदा सुन्दरीने प्रसिद्ध तारापीठ-देवता श्रीसुनन्दा देवीकी उपासनाके फलस्वरूप उनको पाया था। बचपनसे ही उनके संस्कार शुभ थे। वे अपने पिताकी देखा-देखीनित्य भगवद्विग्रहके सामने बैठकर ध्यान और चिन्तन किया करते थे। उनका नाम शरच्चन्द्र था । उनकी बाल्यावस्थासे ही शास्त्रोंमें बड़ी अच्छी पहुँच थी। वे माताकी आज्ञासे जीविका निर्वाहके लिये कलकत्ते चले आये। लोग उनकी सात्त्विकतासे आकृष्ट होकर शिष्य बननेकी प्रार्थना करने लगे, पर उन्होंने कहा कि 'मैं तो स्वयं अन्धा हूँ, एक अन्धा माँ (ईश्वर) )-का प्रकाश किस 'तरह दिखा सकता है।' धीरे-धीरे उनकी वृत्ति भगवान्‌कीओर बढ़ने लगी। स्वावलम्बनका भाव विकसित होने लगा। उनका मन विवाहित जीवनमें नहीं लग सका, वे रातको गङ्गा-तटपर विचरणकर माँको पुकारते रहते थे। उनकी माताको आशङ्का हुई कि कहीं वे घर छोड़कर चले न जायँ; पर उन्होंने घर न छोड़नेका पूरा-पूरा विश्वास दिलाया। वे घरपर रहकर ईश्वर-भजन करने लगे।

एक बार वे विरह- कातर होकर प्रियतम प्रभुकी खोजमें कलकत्तेकी चौड़ी सड़कपर चले जा रहे थे, वे अपने मित्र पाल महोदयके घर जा रहे थे। आधी रात्रिका समय था, उन्होंने थोड़ी दूरपर काली भयावनी रातमें एक मन्द प्रकाश देखा। पहले तो उन्हें कुहासेका भ्रम हुआ, पर आधी रातको कुहासेकी सम्भावना तो थी नहीं। उन्होंने मन ही मन उस पवित्र ज्योतिको प्रणाम किया। उनकोविश्वास हो गया कि माँ - (ईश्वर) - ने दर्शन दिया है। उनका जीवन बदल गया। संसारके प्रति वास्तविक वैराग्यका उदय हुआ। उन्होंने त्यागपूर्ण जीवनका वरण किया, परिवारवालोंकी सम्मतिसे वैराग्य धारण कर लिया।

ब्रह्मर्षि सत्यदेवजी महाराजने 'साधन-समर' दुर्गासप्तशतीका विलक्षण भाष्य लिखा। वे प्रायः कहा करते थे कि 'भगवान् सर्वत्र व्याप्त हैं। उनका दर्शन कण-कणमें करना चाहिये; उनको खोजनेकी आवश्यकता नहीं है, वे तो - जड़ और जङ्गममें विद्यमान ही हैं। भक्ति-प्राप्तिके मूलाधार श्रद्धा और विश्वास हैं।' वे बड़े सत्यानुरागी महात्मा थे।

उन्होंने समाधि लेते समय कहा था- मैं नित्य सनातन ब्रह्म हूँ, जन्म-मृत्यु मिथ्या हैं, केवल ब्रह्म ही सत्य है। बँगला सन् 1339 में उन्होंने समाधि ले ली।



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brahmarshi satyadevajee mahaaraaj shaantipriy aur ekaantanishth mahaatma the. ve bhagavaanko maan kaha karate the, maanke roopamen hee unakee upaasana karate the. unaka janm poorvavangake barisaal jileke navagraamamen hua thaa. ve prasiddh saadhak bhairavachandr dauhitr kailaashachandrake putr the. unakee maata shaarada sundareene prasiddh taaraapeetha-devata shreesunanda deveekee upaasanaake phalasvaroop unako paaya thaa. bachapanase hee unake sanskaar shubh the. ve apane pitaakee dekhaa-dekheenity bhagavadvigrahake saamane baithakar dhyaan aur chintan kiya karate the. unaka naam sharachchandr tha . unakee baalyaavasthaase hee shaastronmen bada़ee achchhee pahunch thee. ve maataakee aajnaase jeevika nirvaahake liye kalakatte chale aaye. log unakee saattvikataase aakrisht hokar shishy bananekee praarthana karane lage, par unhonne kaha ki 'main to svayan andha hoon, ek andha maan (eeshvara) )-ka prakaash kis 'tarah dikha sakata hai.' dheere-dheere unakee vritti bhagavaan‌keeor badha़ne lagee. svaavalambanaka bhaav vikasit hone lagaa. unaka man vivaahit jeevanamen naheen lag saka, ve raatako gangaa-tatapar vicharanakar maanko pukaarate rahate the. unakee maataako aashanka huee ki kaheen ve ghar chhoda़kar chale n jaayan; par unhonne ghar n chhoda़neka pooraa-poora vishvaas dilaayaa. ve gharapar rahakar eeshvara-bhajan karane lage.

ek baar ve viraha- kaatar hokar priyatam prabhukee khojamen kalakattekee chauda़ee sada़kapar chale ja rahe the, ve apane mitr paal mahodayake ghar ja rahe the. aadhee raatrika samay tha, unhonne thoda़ee doorapar kaalee bhayaavanee raatamen ek mand prakaash dekhaa. pahale to unhen kuhaaseka bhram hua, par aadhee raatako kuhaasekee sambhaavana to thee naheen. unhonne man hee man us pavitr jyotiko pranaam kiyaa. unakovishvaas ho gaya ki maan - (eeshvara) - ne darshan diya hai. unaka jeevan badal gayaa. sansaarake prati vaastavik vairaagyaka uday huaa. unhonne tyaagapoorn jeevanaka varan kiya, parivaaravaalonkee sammatise vairaagy dhaaran kar liyaa.

brahmarshi satyadevajee mahaaraajane 'saadhana-samara' durgaasaptashateeka vilakshan bhaashy likhaa. ve praayah kaha karate the ki 'bhagavaan sarvatr vyaapt hain. unaka darshan kana-kanamen karana chaahiye; unako khojanekee aavashyakata naheen hai, ve to - jaड़ aur jangamamen vidyamaan hee hain. bhakti-praaptike moolaadhaar shraddha aur vishvaas hain.' ve bada़e satyaanuraagee mahaatma the.

unhonne samaadhi lete samay kaha thaa- main nity sanaatan brahm hoon, janma-mrityu mithya hain, keval brahm hee saty hai. bangala san 1339 men unhonne samaadhi le lee.

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