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भक्त तुलाधार वैश्य की मार्मिक कथा
भक्त तुलाधार वैश्य की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त तुलाधार वैश्य (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त तुलाधार वैश्य]- भक्तमाल


ये तुलाधार वैश्य अत्यन्त भगवद्भक्त और सत्यपरायण पुरुष थे। इनकी प्रशंसा सभी लोग करते थे। ये व्यापारमें लगे रहकर भी इतने धर्मनिष्ठ और भगवच्चिन्तनपरायण थे कि इनकी समता करनेवाला उस समय और कोई न था।

इन्हीं दिनों 'जाजलि' नामके एक ब्राह्मण समुद्रके किनारे घोर तपस्या कर रहे थे। वे अपने आहार विहारको नियमित करके वस्त्रके स्थानपर वल्कलका उपयोग करते हुए मन-प्राण आदिको रोककर योगसाधनाकीबहुत ऊँची भूमिकामें पहुँच गये थे। एक दिन जलमें खड़े होकर ध्यान करते-करते उनके मनमें सृष्टिके ज्ञानका उदय हुआ। भूगोल-खगोल आदिके विषय उन्हें करामलकवत् प्रत्यक्ष होने लगे। उनके मनमें यह अभिमान हो गया कि 'मेरे समान कोई दूसरा नहीं है।' उनके इस भावको जानकर आकाशवाणी हुई- 'महाशय ! आपका यह सोचना ठीक नहीं। काशीमें एक तुलाधार नामके व्यापारी रहते हैं, वे भी ऐसी बात नहीं कह सकते; आपको तो अभी ज्ञान ही क्या हुआ है।' इसपरजाजलि तुलाधारके दर्शनके लिये उत्कण्ठित हो गये और मार्गका ज्ञान प्राप्त करके वे काशीकी ओर चल पड़े। तीर्थाटन करते हुए वे काशी पहुँचे और उन्होंने देखा कि महात्मा तुलाधार अपनी दूकानपर बैठे व्यापारका काम कर रहे हैं। जाजलिको देखते ही वे उठ खड़े हुए और बड़ा स्वागत-सत्कार करके नम्रताके साथ बोले- 'ब्रह्मन् ! आप मेरे ही पास आये हैं, आपकी तपस्याका मुझे पता है। आपने सर्दी गरमी और वर्षाकी परवा न करके केवल वायु पीते हुए ठूंठकी तरह खड़े रहकर तपस्या की है। जब आपको सूखा वृक्ष समझकर जटामें चिड़ियोंने घोंसले बना लिये, तब भी आपने उनकी ओर दृष्टि नहीं डाली। कई पक्षियोंने आपकी जटामें ही अंडे दिये और वहीं उनके अंडे फूटे और बच्चे सवाने हुए। यह सब देखते-देखते आपके मनमें तपस्याका घमंड हो आया, तब आकाशवाणी सुनकर आप यहाँ पधारे हैं। अब बतलाइये, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?"

तुलाधारकी ये बातें सुनकर जाजलिको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा कि आपको इस प्रकारका निर्मल ज्ञान और व्यवसायात्मिका बुद्धि कैसे प्राप्त हुई?' तुलाधारने सत्य, अहिंसा आदि साधारण धर्मोकी बात सुनाकर अपने विशेषधर्म, सनातन वर्णाश्रमधर्मपर बड़ा जोर दिया। उन्होंनेबतलाया कि-' अपने वर्ण और आश्रमके अनुसार कर्तव्य कर्मका पालन करते हुए जो लोग किसीका अहित नहीं करते और मनसा वाचा कर्मणा सबके हितमें ही तत्पर रहते हैं, उन्हें कोई वस्तु दुर्लभ नहीं। इन्हीं बातेंकि यत्किञ्चित् अंशसे मुझे यह थोड़ा-सा ज्ञान प्राप्त हुआ है। यह सारा जगत् भगवान्का स्वरूप है, इसमें कोई अच्छा या बुरा नहीं। मिट्टी और सोनेमें तनिक भी अन्तर नहीं। इच्छा, द्वेष और भय छोड़कर जो दूसरोंको भयभीत नहीं करता और किसीका बुरा नहीं सोचता, वही सच्चे ज्ञानका अधिकारी है। जो लोग सनातन सदाचारका उल्लङ्घन करके अभिमान आदिके वशमें हो जाते हैं, उन्हें वास्तविक ज्ञानकी उपलब्धि नहीं होती।' यह कहकर तुलाधारने जाजलिको सदाचारका उपदेश किया। यह कथा महाभारतके शान्तिपर्वमें आती है। इसमें श्रद्धा, सदाचार, वर्णाश्रमधर्म, सत्य, समबुद्धि आदिपर बड़ा जोर दिया गया है। प्रत्येक कल्याणकामी पुरुषको इसका अध्ययन करना चाहिये। तुलाधारके उपदेशोंसे जाजलिका अज्ञान नष्ट हो गया और वे ज्ञानसम्पन्न होकर अपने धर्मके आचरणमें लग गये। बहुत दिनोंतक धर्मपालनका आदर्श उपस्थित करके और लोगोंको उपदेशादिके द्वारा कल्याणकी ओर अग्रसर करके | दोनोंने सद्गति प्राप्त की।



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ye tulaadhaar vaishy atyant bhagavadbhakt aur satyaparaayan purush the. inakee prashansa sabhee log karate the. ye vyaapaaramen lage rahakar bhee itane dharmanishth aur bhagavachchintanaparaayan the ki inakee samata karanevaala us samay aur koee n thaa.

inheen dinon 'jaajali' naamake ek braahman samudrake kinaare ghor tapasya kar rahe the. ve apane aahaar vihaarako niyamit karake vastrake sthaanapar valkalaka upayog karate hue mana-praan aadiko rokakar yogasaadhanaakeebahut oonchee bhoomikaamen pahunch gaye the. ek din jalamen khada़e hokar dhyaan karate-karate unake manamen srishtike jnaanaka uday huaa. bhoogola-khagol aadike vishay unhen karaamalakavat pratyaksh hone lage. unake manamen yah abhimaan ho gaya ki 'mere samaan koee doosara naheen hai.' unake is bhaavako jaanakar aakaashavaanee huee- 'mahaashay ! aapaka yah sochana theek naheen. kaasheemen ek tulaadhaar naamake vyaapaaree rahate hain, ve bhee aisee baat naheen kah sakate; aapako to abhee jnaan hee kya hua hai.' isaparajaajali tulaadhaarake darshanake liye utkanthit ho gaye aur maargaka jnaan praapt karake ve kaasheekee or chal pada़e. teerthaatan karate hue ve kaashee pahunche aur unhonne dekha ki mahaatma tulaadhaar apanee dookaanapar baithe vyaapaaraka kaam kar rahe hain. jaajaliko dekhate hee ve uth khada़e hue aur baड़a svaagata-satkaar karake namrataake saath bole- 'brahman ! aap mere hee paas aaye hain, aapakee tapasyaaka mujhe pata hai. aapane sardee garamee aur varshaakee parava n karake keval vaayu peete hue thoonthakee tarah khada़e rahakar tapasya kee hai. jab aapako sookha vriksh samajhakar jataamen chida़iyonne ghonsale bana liye, tab bhee aapane unakee or drishti naheen daalee. kaee pakshiyonne aapakee jataamen hee ande diye aur vaheen unake ande phoote aur bachche savaane hue. yah sab dekhate-dekhate aapake manamen tapasyaaka ghamand ho aaya, tab aakaashavaanee sunakar aap yahaan padhaare hain. ab batalaaiye, main aapakee kya seva karoon?"

tulaadhaarakee ye baaten sunakar jaajaliko bada़a aashchary hua aur unhonne poochha ki aapako is prakaaraka nirmal jnaan aur vyavasaayaatmika buddhi kaise praapt huee?' tulaadhaarane saty, ahinsa aadi saadhaaran dharmokee baat sunaakar apane visheshadharm, sanaatan varnaashramadharmapar bada़a jor diyaa. unhonnebatalaaya ki-' apane varn aur aashramake anusaar kartavy karmaka paalan karate hue jo log kiseeka ahit naheen karate aur manasa vaacha karmana sabake hitamen hee tatpar rahate hain, unhen koee vastu durlabh naheen. inheen baatenki yatkinchit anshase mujhe yah thoda़aa-sa jnaan praapt hua hai. yah saara jagat bhagavaanka svaroop hai, isamen koee achchha ya bura naheen. mittee aur sonemen tanik bhee antar naheen. ichchha, dvesh aur bhay chhoda़kar jo doosaronko bhayabheet naheen karata aur kiseeka bura naheen sochata, vahee sachche jnaanaka adhikaaree hai. jo log sanaatan sadaachaaraka ullanghan karake abhimaan aadike vashamen ho jaate hain, unhen vaastavik jnaanakee upalabdhi naheen hotee.' yah kahakar tulaadhaarane jaajaliko sadaachaaraka upadesh kiyaa. yah katha mahaabhaaratake shaantiparvamen aatee hai. isamen shraddha, sadaachaar, varnaashramadharm, saty, samabuddhi aadipar bada़a jor diya gaya hai. pratyek kalyaanakaamee purushako isaka adhyayan karana chaahiye. tulaadhaarake upadeshonse jaajalika ajnaan nasht ho gaya aur ve jnaanasampann hokar apane dharmake aacharanamen lag gaye. bahut dinontak dharmapaalanaka aadarsh upasthit karake aur logonko upadeshaadike dvaara kalyaanakee or agrasar karake | dononne sadgati praapt kee.

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