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भक्त दत्तात्रेयजी आण्णाबोवा की मार्मिक कथा
भक्त दत्तात्रेयजी आण्णाबोवा की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त दत्तात्रेयजी आण्णाबोवा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त दत्तात्रेयजी आण्णाबोवा]- भक्तमाल


दक्षिण महाराष्ट्रमें कृष्णा-पञ्चगङ्गा संगम-तटपर सिंहवाड़ी नामक पुण्यक्षेत्र में आजसे सौ साल पहले भक्त दत्तात्रेयजी महाराजने जन्म लिया। वे सदाचारसम्पन्न, सत्यनिष्ठ, ब्राह्मणकुलके भूषण और पण्डरपुरके श्रीविट्ठल भगवान्के नैष्ठिक वारकरी भक्त थे। उनका सम्पूर्ण जीवन भजनमय था, सरलता, भक्ति और निष्कपटताकी तो वे प्रतिमूर्ति हो थे।

उनको आर्थिक अवस्था कुछ अच्छी नहीं थी, उनपर कुछ ऋण था। महाजनने तकाजा किया तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि 'पण्ढरीनाथकी यात्रा कर आनेपर केवल पाँच ही दिनोंमें ऋण चुका दूंगा। आपके पास धरोहररूपमें कीमती गहना तो रख ही दिया है। उसे बेचकर पाई-पाई चुका दूंगा।' महाजन आग-बबूला हो गया। उसने निर्दयतापूर्वक उनकी धोती पकड़कर धमकाया कि बिना ऋण चुकाये में नहीं छोड़ सकता। भक्त तो केवल भगवान्के ही होकर रहते हैं। दत्तात्रेयजीके मनमें भगवद्दर्शनकी तरङ्गे उठ रही थीं, संसारको लज्जा और कुल-मर्यादाकी और उन्होंने तनिक भी ध्यान न देकर धोती महाजनके हाथमें साँप दी और दिगम्बर वेषमें श्रीपण्डरीनाथके दर्शनके लिये चल पड़े। महाजन उनकी इस अविचल भक्तिसे बहुत प्रभावित हुआ। भक्तने भगवान्‌के मन्दिरप्रवेशके पहले पुण्यसलिला भगवती चन्द्रभागा नदीमें स्नान किया। भगवान्के दर्शनसे नयनोंको शीतलकर वे भजनमें मग्न हो उठे।

पण्डरपुरसे वे अपने ग्राम लौटकर भगवती कृष्णाके तटपर वालुकामय क्षेत्रमें एकान्तसेवन करने लगे। कोई कुछ दे देता था तो खा लेते थे। अयाचित वृत्तिका उन्होंने। बड़े संतोष निर्वाह किया। कोई उन्हें दम्भी तो कोईपागल समझता था। सज्जनोंके लिये तो वे पूर्ण संत ही थे। एक दुष्ट व्यक्तिने उनकी पोठपर जलती आग डाल दी, चमड़ा जल गया, घाव हो गया, कीड़े पड़ने लगे पर वे भगवद्भक्तिमें तन्मय थे। एक दिन एक कौआ मायपर बैठकर कोडोंको खाने लगा; किसी ने दत्तात्रेयजीको हँसते देखकर प्रश्न किया कि 'महाराज ! आप तो हँस रहे हैं और कौआ आपको क्लेश पहुँचा रहा है।' दत्तात्रेयजीने कहा कि 'कौआ शरीरका अतिथि है, शरीर उसके प्रति अपना कर्तव्यपालन कर रहा है; इसी तरह आपको भी अपने अतिथिके प्रति सद्व्यवहार करना चाहिये।' वह उनकी उत्तरशैलीसे बहुत प्रभावित हुआ। दत्तात्रेयजी चमत्कार और उपदेशसे दूर भागते थे। उनके दर्शनमात्रसे ही लोगोंकी शङ्काएँ मिट जाती थीं।

एक बार वे इचलकरंजीके नारायण मन्दिरमें गये थे। कुछ सज्जनोंने महाराजको खिलानेके लिये एक मालिनसे कुछ पके आम माँगे और शीघ्रतासे देनेके लिये निवेदन किया कि ऐसा न हो भल दत्तात्रेयले जायें। मालिन धनसे मदान्ध थी। उसने फल देना तो दूर रहा, साधु-स्वभावकी निन्दा आरम्भ की। महाराजजी मन्दिरसे चल पड़े, मालिनके घरमें आग लग गयी. पके आम और गुड़ आदि विनष्ट हो गये।

दत्तात्रेय महाराजकी समाधि मिरज गाँवमें है। यह स्थान अत्यन्त कल्याणकारी है। एक सज्जन जो बचपनमें गूँगे थे. इस स्थानकी सेवा करनेसे बोलने लगे। उन्होंने स्वप्रये एक जटाधारी संतका दर्शन किया, जिन्होंने उन्हें बोलनेका आदेश दिया। वे बोलने लगे। उन्होंने दो सालतक दत्तात्रेयजीकी समाधिके निकट भगवद्भजनका कार्यक्रम पूरा किया था।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt dattaatreyajee aannaabovaa]- Bhaktmaal


dakshin mahaaraashtramen krishnaa-panchaganga sangama-tatapar sinhavaada़ee naamak punyakshetr men aajase sau saal pahale bhakt dattaatreyajee mahaaraajane janm liyaa. ve sadaachaarasampann, satyanishth, braahmanakulake bhooshan aur pandarapurake shreevitthal bhagavaanke naishthik vaarakaree bhakt the. unaka sampoorn jeevan bhajanamay tha, saralata, bhakti aur nishkapatataakee to ve pratimoorti ho the.

unako aarthik avastha kuchh achchhee naheen thee, unapar kuchh rin thaa. mahaajanane takaaja kiya to unhonne vinamrataapoorvak nivedan kiya ki 'pandhareenaathakee yaatra kar aanepar keval paanch hee dinonmen rin chuka doongaa. aapake paas dharohararoopamen keematee gahana to rakh hee diya hai. use bechakar paaee-paaee chuka doongaa.' mahaajan aaga-baboola ho gayaa. usane nirdayataapoorvak unakee dhotee pakada़kar dhamakaaya ki bina rin chukaaye men naheen chhoda़ sakataa. bhakt to keval bhagavaanke hee hokar rahate hain. dattaatreyajeeke manamen bhagavaddarshanakee tarange uth rahee theen, sansaarako lajja aur kula-maryaadaakee aur unhonne tanik bhee dhyaan n dekar dhotee mahaajanake haathamen saanp dee aur digambar veshamen shreepandareenaathake darshanake liye chal pada़e. mahaajan unakee is avichal bhaktise bahut prabhaavit huaa. bhaktane bhagavaan‌ke mandirapraveshake pahale punyasalila bhagavatee chandrabhaaga nadeemen snaan kiyaa. bhagavaanke darshanase nayanonko sheetalakar ve bhajanamen magn ho uthe.

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