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भक्त पट्टिणत्तु पिळ्ळैयार की मार्मिक कथा
भक्त पट्टिणत्तु पिळ्ळैयार की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त पट्टिणत्तु पिळ्ळैयार (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त पट्टिणत्तु पिळ्ळैयार]- भक्तमाल


चार-पाँच सौ साल पहलेकी बात है, मद्रासप्रदेशके कावेरीपट्टणम् नामक महानगरमें एक समृद्ध वैश्यकुलमें परम शिवभक्त पट्टिणन्तु पिळ्ळैयारने जन्म लिया। वे जन्मजात ही नहीं, जन्म-जन्मान्तरके शिवभक्त थे, बचपनसे ही आशुतोष भगवान् शिवकी इनपर महती कृपा थी। ऐसा कहा जाता है कि इनके पूर्वजन्मकी भक्तिसे प्रसन्न होकर भगवान् शिवजीने पार्वतीजीसहित कुछ दिनोंतक इनके घरपर दर्जी दर्जिनके वेषमें रहकर भक्तका मनोरञ्जन किया था।

पट्टिणन्तु पिळ्ळैयार पट्टणके बहुत बड़े व्यवसायी थे। एक बार ये पूजा घरमें बैठकर भगवान् शिवका ध्यान कर रहे थे कि इन्होंने सुना कि 'सूइयोंसे लदा जहाज पट्टणके बन्दरगाहपर उलट गया है।' पूजा अधूरी छोड़कर वे बंदरगाहकी ओर चल पड़े। पर घोर परिश्रम करनेपर भी एक सूईतक हाथ न लगी। घर आते ही देखा कि दर्जी एक कागज छोड़कर चला गया है; उसपर लिखा हुआ था कि 'मरनेके बाद एक टूटी सूई भी साथ नहीं जायेगी।' ये सिरसे पैरतक सिहर उठे। इनके मनमें पूर्ण वैराग्यका उदय हुआ, इन्होंने सम्पत्तिका कुछ अंश माँको सौंपकर शेषका गरीबों को देनेमें सदुपयोग कर दिया। इन्होंने माताको सान्त्वना देकर कि 'तुम्हारा दाहसंस्कार में ही करूँगा'घरसे विदा माँगी। ये निकल पड़े। शिवनामका उच्चारण करते हुए ये राजा भद्रगिरिके राज्यके एक जंगलमें गणेशमन्दिरमें ठहरकर भगवान् शिवकी भक्ति करने लगे।

अँधेरी रात थी, मूसलाधार वृष्टि हो रही थी। ये मूर्तिसे सटकर ध्यानमग्न हो गये। राजा भद्रगिरिके महलमें चोरी करके चोरोंने रानीका हार गणेशमूर्तिको पहना दिया। वह हार अँधेरेमें पिळ्ळैयारके गलेमें भी पड़ गया। प्रातःकाल सिपाहियोंने उनको राजाके सामने खड़ा किया। वे मौन थे। राजाने उनको शूलीपर चढ़ाकर मार डालने का आदेश दिया। थोड़ी देरके बाद पिळ्ळैयारने मौनव्रत त्यागकर करुणकण्ठसे शिवकी प्रार्थना की। भोले महादेवकी कृपासे शूलीमें आग लग गयी। राजाने पश्चात्ताप किया, क्षमा माँगी; वह इनका शिष्य हो गया। कालान्तरमें इनकी माताका देहान्त हो गया। जबतक वे श्मशानपर नहीं पहुँच गये, चिता आग ही नहीं पकड़ पाती थी। दाह-संस्कारकी प्रतिज्ञा पूरीकर ये भद्रगिरिके साथ मीनाक्षीके मन्दिरमें शिवकी आराधना करने लगे। इनकी गणना महान् शिवभक्तोंमें होती है। इन्होंने मद्रासके समुद्रतटपर समाधि ली। इस क्षेत्रका नाम तिरुवोत्तियूर है, यहाँ शिवलिङ्ग स्थापित है। यह दक्षिण भारतका एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान है।



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chaara-paanch sau saal pahalekee baat hai, madraasapradeshake kaavereepattanam naamak mahaanagaramen ek samriddh vaishyakulamen param shivabhakt pattinantu pillaiyaarane janm liyaa. ve janmajaat hee naheen, janma-janmaantarake shivabhakt the, bachapanase hee aashutosh bhagavaan shivakee inapar mahatee kripa thee. aisa kaha jaata hai ki inake poorvajanmakee bhaktise prasann hokar bhagavaan shivajeene paarvateejeesahit kuchh dinontak inake gharapar darjee darjinake veshamen rahakar bhaktaka manoranjan kiya thaa.

pattinantu pillaiyaar pattanake bahut bada़e vyavasaayee the. ek baar ye pooja gharamen baithakar bhagavaan shivaka dhyaan kar rahe the ki inhonne suna ki 'sooiyonse lada jahaaj pattanake bandaragaahapar ulat gaya hai.' pooja adhooree chhoda़kar ve bandaragaahakee or chal pada़e. par ghor parishram karanepar bhee ek sooeetak haath n lagee. ghar aate hee dekha ki darjee ek kaagaj chhoda़kar chala gaya hai; usapar likha hua tha ki 'maraneke baad ek tootee sooee bhee saath naheen jaayegee.' ye sirase pairatak sihar uthe. inake manamen poorn vairaagyaka uday hua, inhonne sampattika kuchh ansh maanko saunpakar sheshaka gareebon ko denemen sadupayog kar diyaa. inhonne maataako saantvana dekar ki 'tumhaara daahasanskaar men hee karoongaa'gharase vida maangee. ye nikal pada़e. shivanaamaka uchchaaran karate hue ye raaja bhadragirike raajyake ek jangalamen ganeshamandiramen thaharakar bhagavaan shivakee bhakti karane lage.

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मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
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