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भक्त श्रीहरिदासजी महाराज की मार्मिक कथा
भक्त श्रीहरिदासजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त श्रीहरिदासजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त श्रीहरिदासजी महाराज]- भक्तमाल


श्रीजादवजी महाराजके परमधाम गमनके पश्चात् उनके सुपुत्र श्रीहरिदास महाराज अपनी सुयोग्य और सर्वथा सद्गुणसम्पन्न बहनोंके साथ पिताके पवित्र कार्योंकी पूर्ति लग गये। श्रीहरिदासजीका जन्म विक्रम संवत् 1953 की शरत्पूर्णिमा-रासोत्सवके दिन हुआ था। उन्हें अपनी मातासे बहुत सुन्दर शिक्षा मिली थी। संवत् 1983 में माताका देहान्त होनेके पश्चात् इनकी वृत्तिमें विशेषरूपसे वैराग्य आ गया। तदनन्तर आपने पाँच वर्षोंमें अनेकों उपनिषद् तथा धार्मिक ग्रन्थोंका अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टिसे अभ्यासकर अपार ज्ञान सम्पादन किया। इसके पाँच ही वर्ष बाद उनके पिता श्रीजादवजी महाराज भी परम धाम पधार गये। यो पाँच ही वर्षमें माता-पिता दोनोंका वियोग होनेपर श्रीहरिदास महाराजने तन-मन-धन और सम्पूर्ण धैर्यके साथ अपने पिताके लगाये हुए इस पवित्र सत्सङ्गवृक्षको विभिन्न भौति पल्लवित पुष्पित और फलित किया। परंतु संवत् 1999वि0 वैशाख शुक्ला एकादशीके दिन केवल छियालीस वर्षकी आयुमें आप अपने पिताजीके पास सिधार गये। हरिदासजी बड़े ही सज्जन, धैर्यवान्, सुशील, विद्वान्, भगवान्‌के परम भक्त थे। इनके देहोत्सर्गसे भक्तोंको और उनके कुटुम्बियोंको बड़ा आघात लगा। किंतु भगवान्‌के मङ्गलमय विधानको सिर चढ़ाकर सबने धैर्य धारण किया। आनन्दका विषय है कि प्रातःस्मरणीय श्रीजादवजी महाराजकी पुत्रियाँ अपने पिता और भाईके द्वारा लगभग पचास वर्ष पूर्व आरम्भ किये हुए इस महान् जप कीर्तन-यज्ञको आज भी बड़े प्रेमसे चला रही हैं और हजारों नर-नारी श्रीनर-नारायणजीके मन्दिरमें तीनों काल श्रीहरिनाम संकीर्तनकी ध्वनिसे अपने तथा जगत्के वातावरणको पवित्र कर रहे हैं। 'नर-नारायण सत्सङ्ग-मण्डल' में जो लोग उत्साहपूर्वक सम्मिलित होकर उसे चला रहे हैं, वे सर्वथा आदर और कृतज्ञताके पात्र हैं।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt shreeharidaasajee mahaaraaja]- Bhaktmaal


shreejaadavajee mahaaraajake paramadhaam gamanake pashchaat unake suputr shreeharidaas mahaaraaj apanee suyogy aur sarvatha sadgunasampann bahanonke saath pitaake pavitr kaaryonkee poorti lag gaye. shreeharidaasajeeka janm vikram sanvat 1953 kee sharatpoornimaa-raasotsavake din hua thaa. unhen apanee maataase bahut sundar shiksha milee thee. sanvat 1983 men maataaka dehaant honeke pashchaat inakee vrittimen vishesharoopase vairaagy a gayaa. tadanantar aapane paanch varshonmen anekon upanishad tatha dhaarmik granthonka atyant sookshm drishtise abhyaasakar apaar jnaan sampaadan kiyaa. isake paanch hee varsh baad unake pita shreejaadavajee mahaaraaj bhee param dhaam padhaar gaye. yo paanch hee varshamen maataa-pita dononka viyog honepar shreeharidaas mahaaraajane tana-mana-dhan aur sampoorn dhairyake saath apane pitaake lagaaye hue is pavitr satsangavrikshako vibhinn bhauti pallavit pushpit aur phalit kiyaa. parantu sanvat 1999vi0 vaishaakh shukla ekaadasheeke din keval chhiyaalees varshakee aayumen aap apane pitaajeeke paas sidhaar gaye. haridaasajee bada़e hee sajjan, dhairyavaan, susheel, vidvaan, bhagavaan‌ke param bhakt the. inake dehotsargase bhaktonko aur unake kutumbiyonko bada़a aaghaat lagaa. kintu bhagavaan‌ke mangalamay vidhaanako sir chadha़aakar sabane dhairy dhaaran kiyaa. aanandaka vishay hai ki praatahsmaraneey shreejaadavajee mahaaraajakee putriyaan apane pita aur bhaaeeke dvaara lagabhag pachaas varsh poorv aarambh kiye hue is mahaan jap keertana-yajnako aaj bhee bada़e premase chala rahee hain aur hajaaron nara-naaree shreenara-naaraayanajeeke mandiramen teenon kaal shreeharinaam sankeertanakee dhvanise apane tatha jagatke vaataavaranako pavitr kar rahe hain. 'nara-naaraayan satsanga-mandala' men jo log utsaahapoorvak sammilit hokar use chala rahe hain, ve sarvatha aadar aur kritajnataake paatr hain.

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मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
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ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
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राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
राधे तु कितनी प्यारी है ॥
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राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
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राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
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