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प्रसिद्ध भक्त श्रीजादवजी महाराज की मार्मिक कथा
प्रसिद्ध भक्त श्रीजादवजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of प्रसिद्ध भक्त श्रीजादवजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [प्रसिद्ध भक्त श्रीजादवजी महाराज]- भक्तमाल


बम्बईके प्रसिद्ध भक्तराज श्रीजादवजी महाराजका जन्म संवत् 1912 वि0 भाद्र शुक्ला द्वादशी श्रीवामनजयन्तीके दिन सुदामापुरीमें पुष्करणा ब्राह्मणके घर हुआ था। इनके पिताका नाम श्रीकेशव शर्मा और माताका नाम प्रेमाबाई था। सन्तान जीवित न रहनेके कारण माता-पिताने भगवान्से प्रार्थना की कि 'यह पुत्र दीर्घायु होगा तो इसे भक्त बनायेंगे।' इसके अनुसार वे पहलेसे ही जब कोई भी साधु-संत, भक्त घरमें आते, तब उनके चरणोंमें बालकको बैठाकर उसके हृदयमें भक्ति-अंकुर उत्पन्न और परिपुष्ट करनेका प्रयत्न करने लगे। परंतु इन महापुरुषको जन्म देनेवाले दम्पति अपने सुपुत्रकी महत्ता देखनेका सौभाग्य प्राप्त करनेसे पहले ही संसारसे विदा हो गये!

तदनन्तर श्रीजादवजीकी परमात्माके प्रति अभिमुखता दिनों-दिन बढ़ने लगी और वे एकान्त सेवनकी दृढ़ इच्छासे वरडा पर्वतकी जाम्बुवानकी गुफामें जाकर तप करने लगे। इस समय वे केवल दूधपर रहते और ईश्वर चिन्तनमें निमग्न होकर समाधिस्थ हो जाते। इनके काका बम्बई रहते थे, उन्होंने इन्हें बम्बई बुला लिया और इनका विवाह करके इन्हें अपने साथ रखने लगे तथा काम-काजमें लगानेका प्रयत्न करने लगे; परंतु इनका चित्त व्यापार-धंधे में नहीं लगा और सत्सङ्ग तथा भगवन्नाम (कीर्तनमें ये अपना समय बिताने लगे। काकाने ऊबकर इनका त्याग कर दिया और इन्होंने मानो एक महान् बन्धनसे छूटकर सुखको साँस ली। कुछ दिनों बाद वे नासिक चले गये और वहाँ पाण्डवगुफामें बैठकर ध्यान करने लगे। वहाँ डॉक्टर सर जेम्स वर्जेस, डॉक्टर कैम्पबेल, प्रो0 जयकृष्ण इन्द्रजी तथा दूसरे अनेकों विद्वान् इनके सङ्ग और वचनामृतका लाभ उठाते थे।नासिकसे लौटकर आप फिर बम्बई आ गये और भगवान् के नाम कीर्तनका प्रचार करने लगे। बम्बईके बहुत बड़े-बड़े लोग आपके सङ्गसे लाभ उठाने लगे। संवत् 1956 में सेठ मनमोहनदास कहानदास, उनकी माता गंगाबाई और अन्य कुटुम्बियोंने बम्बई, कालबादेवी रोडपर प्रसिद्ध श्रीनरनारायणके मन्दिरका निर्माण करवाया और श्रीजादवजी महाराजसे इस मन्दिरमें जनताको उपदेश देनेकी प्रार्थना की। तभीसे 'श्रीनरनारायण-सत्सङ्ग मण्डल' की स्थापना हुई, जो दिनोंदिन उन्नति करता हुआ अबतक वर्तमान है और आज भी प्रातः, सन्ध्या और रात्रि- तीनों समय प्रतिदिन श्रीभगवान्‌के नामघोषसे बम्बईके विषय-विषाक्त वातावरणको पवित्र कर रहा है। श्रीजादवजी महाराजने लगातार तैंतीस वर्षतक स्वयं उपदेश देकर और भगवन्नाम कीर्तनमें लगाकर लाखों प्राणियोंको ईश्वराभिमुख किया। संवत् 1988 की ज्येष्ठ कृष्ण एकादशीके दिन पचहत्तर वर्षकी आयुमें आपने परम धामकी यात्रा की। इस यात्राका संकेत दिनों कुछ पहले ही आपने कर दिया था।

अपने जीवनकालमें ही आपने अपने सुपुत्र श्रीहरिदास महाराजको अपनी ही देख-रेखमें रखकर उन्हें इस योग्य बना दिया कि वे अपने आचरणसे सबको मुग्ध करते हुए भगवन्नामका प्रचार करते रहें। उन्होंने अपनी सुयोग्य पुत्री श्रीपार्वती बहनको संस्कृतके साथ एम0 ए0 तकका अभ्यास करवाकर जगत्को यह भी दिखला दिया कि वे आधुनिक जगत्की प्रवृत्तिसे भी अनभिज्ञ नहीं हैं। श्रीजादवजी महाराज सनातनधर्मके प्रसिद्ध सेवक, भगवन्नामप्रचारक और भगवान्के परम भक्त थे। ऐसे पुरुष जगत् में बहुत थोड़े होते हैं।



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bambaeeke prasiddh bhaktaraaj shreejaadavajee mahaaraajaka janm sanvat 1912 vi0 bhaadr shukla dvaadashee shreevaamanajayanteeke din sudaamaapureemen pushkarana braahmanake ghar hua thaa. inake pitaaka naam shreekeshav sharma aur maataaka naam premaabaaee thaa. santaan jeevit n rahaneke kaaran maataa-pitaane bhagavaanse praarthana kee ki 'yah putr deerghaayu hoga to ise bhakt banaayenge.' isake anusaar ve pahalese hee jab koee bhee saadhu-sant, bhakt gharamen aate, tab unake charanonmen baalakako baithaakar usake hridayamen bhakti-ankur utpann aur paripusht karaneka prayatn karane lage. parantu in mahaapurushako janm denevaale dampati apane suputrakee mahatta dekhaneka saubhaagy praapt karanese pahale hee sansaarase vida ho gaye!

tadanantar shreejaadavajeekee paramaatmaake prati abhimukhata dinon-din baढ़ne lagee aur ve ekaant sevanakee dridha़ ichchhaase varada parvatakee jaambuvaanakee guphaamen jaakar tap karane lage. is samay ve keval doodhapar rahate aur eeshvar chintanamen nimagn hokar samaadhisth ho jaate. inake kaaka bambaee rahate the, unhonne inhen bambaee bula liya aur inaka vivaah karake inhen apane saath rakhane lage tatha kaama-kaajamen lagaaneka prayatn karane lage; parantu inaka chitt vyaapaara-dhandhe men naheen laga aur satsang tatha bhagavannaam (keertanamen ye apana samay bitaane lage. kaakaane oobakar inaka tyaag kar diya aur inhonne maano ek mahaan bandhanase chhootakar sukhako saans lee. kuchh dinon baad ve naasik chale gaye aur vahaan paandavaguphaamen baithakar dhyaan karane lage. vahaan daॉktar sar jems varjes, daॉktar kaimpabel, pro0 jayakrishn indrajee tatha doosare anekon vidvaan inake sang aur vachanaamritaka laabh uthaate the.naasikase lautakar aap phir bambaee a gaye aur bhagavaan ke naam keertanaka prachaar karane lage. bambaeeke bahut bada़e-bada़e log aapake sangase laabh uthaane lage. sanvat 1956 men seth manamohanadaas kahaanadaas, unakee maata gangaabaaee aur any kutumbiyonne bambaee, kaalabaadevee rodapar prasiddh shreenaranaaraayanake mandiraka nirmaan karavaaya aur shreejaadavajee mahaaraajase is mandiramen janataako upadesh denekee praarthana kee. tabheese 'shreenaranaaraayana-satsang mandala' kee sthaapana huee, jo dinondin unnati karata hua abatak vartamaan hai aur aaj bhee praatah, sandhya aur raatri- teenon samay pratidin shreebhagavaan‌ke naamaghoshase bambaeeke vishaya-vishaakt vaataavaranako pavitr kar raha hai. shreejaadavajee mahaaraajane lagaataar taintees varshatak svayan upadesh dekar aur bhagavannaam keertanamen lagaakar laakhon praaniyonko eeshvaraabhimukh kiyaa. sanvat 1988 kee jyeshth krishn ekaadasheeke din pachahattar varshakee aayumen aapane param dhaamakee yaatra kee. is yaatraaka sanket dinon kuchh pahale hee aapane kar diya thaa.

apane jeevanakaalamen hee aapane apane suputr shreeharidaas mahaaraajako apanee hee dekha-rekhamen rakhakar unhen is yogy bana diya ki ve apane aacharanase sabako mugdh karate hue bhagavannaamaka prachaar karate rahen. unhonne apanee suyogy putree shreepaarvatee bahanako sanskritake saath ema0 e0 takaka abhyaas karavaakar jagatko yah bhee dikhala diya ki ve aadhunik jagatkee pravrittise bhee anabhijn naheen hain. shreejaadavajee mahaaraaj sanaatanadharmake prasiddh sevak, bhagavannaamaprachaarak aur bhagavaanke param bhakt the. aise purush jagat men bahut thoड़e hote hain.

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