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भक्तराज श्रीगुलाबरावजी महाराज की मार्मिक कथा
भक्तराज श्रीगुलाबरावजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तराज श्रीगुलाबरावजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तराज श्रीगुलाबरावजी महाराज]- भक्तमाल


श्री गुलाबरावजी महाराज रसिक भक्त, विरक्त और ज्ञानी महात्मा थे। वि0 संवत् 1939 में बरार प्रदेशके अमरावती जनपदके माधन गाँवमें उनका जन्म हुआ था। ये राजपूत थे। जन्मकालसे ठीक 9 मासके बाद वे दोनों नेत्रोंसे अन्धे हो गये। उनमें बाल्यावस्थासे ही भगवद्भक्तिके लक्षण दीख पड़ने लगे। जब वे चार ही सालके थे, एक रातको उनके बिस्तरेपर दीप उलटकर गिर पड़ा। उन्होंने अपनी नानीसे कहा कि 'बिस्तरा नहीं जलेगा, तेल जल जायेगा।' भगवानको कृपासे ऐसा ही हुआ। कभीबचपन में ही भगवान्ने उनको दर्शन दिया था। वे प्रज्ञाचक्षु थे।

ग्यारह सालकी अवस्थामें उनका विवाह हो गया। उनकी पत्नी मणिकर्णिका बड़ी सती और साध्वी थीं। उनके एक अनन्तराव नामक पुत्र भी हुआ था। विवाह के 13 साल बाद उनकी पत्नीने स्वर्ग यात्रा की। गुलाबरावजी महाराजने समस्त शास्त्रग्रन्थों, ज्ञानेश्वरी, महाभारत, रामायण आदिका मनन और अध्ययन किया। भगवद्भक्तिके प्रति उनमें प्रबल जिज्ञासा थी। आगे चलकर उनमें ज्ञान, भक्तिऔर कर्मका बड़ा सुन्दर समन्वय हुआ था।

पूनासे 13 मीलकी दूरीपर आलन्दीक्षेत्रमें उन्हें संत ज्ञानेश्वरका साक्षात्कार हुआ था। उन्होंने कृपापूर्वक गुलाबरावजीको दीक्षितकर सनातनधर्म और भगवद्भक्ति प्रचारका आदेश दिया। उनकी उपासना गोपीभावकी थी। भगवान् श्रीकृष्ण और रासलीलामें उनकी दृढ़ निष्ठा थी। जिस समय वे बोलने लगते थे, भक्ति-प्रेमामृतकी मानो गङ्गा प्रवाहित हो उठती थी; जिस समय मधुर कण्ठसे भगवन्नामकीर्तन करने लगते थे, मधुर रसकासागर उमड़ पड़ता था। ज्ञानेश्वरीके कथा-श्रवणसे नास्तिककी बुद्धि बदल जाती थी और वह उनकी कृपासे भगवान्का भक्त हो जाता था ।

वे कहा करते थे कि जीवन्मुक्ति प्राप्त करनेके लिये भक्ति ही विशिष्टतम साधन है। उनका मत 'मधुराद्वैतदर्शन' नामसे विख्यात है। यह दर्शन अत्यन्त सरस और मधुर है। उन्होंने सम्प्रदाय- सुरतरु, प्रेम-निकुञ्ज, भक्तिपद तीर्थामृत आदि ग्रन्थोंकी रचना की थी। संवत् 1973 में उन्होंने शरीर छोड़ दिया।



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shree gulaabaraavajee mahaaraaj rasik bhakt, virakt aur jnaanee mahaatma the. vi0 sanvat 1939 men baraar pradeshake amaraavatee janapadake maadhan gaanvamen unaka janm hua thaa. ye raajapoot the. janmakaalase theek 9 maasake baad ve donon netronse andhe ho gaye. unamen baalyaavasthaase hee bhagavadbhaktike lakshan deekh pada़ne lage. jab ve chaar hee saalake the, ek raatako unake bistarepar deep ulatakar gir pada़aa. unhonne apanee naaneese kaha ki 'bistara naheen jalega, tel jal jaayegaa.' bhagavaanako kripaase aisa hee huaa. kabheebachapan men hee bhagavaanne unako darshan diya thaa. ve prajnaachakshu the.

gyaarah saalakee avasthaamen unaka vivaah ho gayaa. unakee patnee manikarnika bada़ee satee aur saadhvee theen. unake ek anantaraav naamak putr bhee hua thaa. vivaah ke 13 saal baad unakee patneene svarg yaatra kee. gulaabaraavajee mahaaraajane samast shaastragranthon, jnaaneshvaree, mahaabhaarat, raamaayan aadika manan aur adhyayan kiyaa. bhagavadbhaktike prati unamen prabal jijnaasa thee. aage chalakar unamen jnaan, bhaktiaur karmaka bada़a sundar samanvay hua thaa.

poonaase 13 meelakee dooreepar aalandeekshetramen unhen sant jnaaneshvaraka saakshaatkaar hua thaa. unhonne kripaapoorvak gulaabaraavajeeko deekshitakar sanaatanadharm aur bhagavadbhakti prachaaraka aadesh diyaa. unakee upaasana gopeebhaavakee thee. bhagavaan shreekrishn aur raasaleelaamen unakee dridha़ nishtha thee. jis samay ve bolane lagate the, bhakti-premaamritakee maano ganga pravaahit ho uthatee thee; jis samay madhur kanthase bhagavannaamakeertan karane lagate the, madhur rasakaasaagar umada़ pada़ta thaa. jnaaneshvareeke kathaa-shravanase naastikakee buddhi badal jaatee thee aur vah unakee kripaase bhagavaanka bhakt ho jaata tha .

ve kaha karate the ki jeevanmukti praapt karaneke liye bhakti hee vishishtatam saadhan hai. unaka mat 'madhuraadvaitadarshana' naamase vikhyaat hai. yah darshan atyant saras aur madhur hai. unhonne sampradaaya- surataru, prema-nikunj, bhaktipad teerthaamrit aadi granthonkee rachana kee thee. sanvat 1973 men unhonne shareer chhoda़ diyaa.

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