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भक्तश्रेष्ठ युधिष्ठिर की मार्मिक कथा
भक्तश्रेष्ठ युधिष्ठिर की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तश्रेष्ठ युधिष्ठिर (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तश्रेष्ठ युधिष्ठिर]- भक्तमाल


सदानधर्माः सजनाः सदाराः

सबान्धवास्त्वच्छरणा हि पार्थाः

(युधिष्ठिर)

धर्मराज युधिष्ठिर पाण्डवोंमें सबसे बड़े थे। युधिष्ठिर सत्यवादी, धर्ममूर्ति, सरल, विनयी, मद-मान-मोहवर्जित, दम्भ-काम-क्रोधरहित, दयालु, गो-ब्राह्मण प्रतिपालक, महान् विद्वान्, ज्ञानी, धैर्यसम्पन्न, क्षमाशील, तपस्वी, प्रजावत्सल, मातृ-पितृ-गुरु भक्त और श्रीकृष्णभगवान्‌के परम भक्त थे। धर्मके अंशसे उत्पन्न होनेके कारण वे धर्मके गूढ़ तत्त्वको खूब समझते थे। धर्म और सत्यकी सूक्ष्मतर भावनाओंका यदि पाण्डवोंमें किसीके अंदर पूरा विकास था तो वह धर्मराज युधिष्ठिरमें ही था। सत्य और क्षमा तो इनके सहजात सद्गुण थे। बड़े-से-बड़े विकट प्रसङ्गोंमें इन्होंने सत्य और क्षमाको खूब निबाहा । द्रौपदीका वस्त्र उतर रहा है। भीम-अर्जुन सरीखे योद्धा भाई इशारा पाते ही सारे कुरुकुलका नाश करनेको तैयार हैं। भीम वाक्यप्रहार करते हुए भी बड़े भाईके संकोचसे मन मसोस रहे हैं; परंतु धर्मराज धर्मके लिये चुपचाप सब सुन और सह रहे हैं !

नित्यशत्रु दुर्योधन अपना ऐश्वर्य दिखलाकर दिल जलानेके लिये द्वैतवनमें जाता है। अर्जुनका मित्र चित्रसेन गन्धर्व कौरवोंकी बरी नीयत जानकर उन सबको जीतकर स्त्रियोंसहित कैद कर लेता है। युद्धसे भागे हुए कौरवोंके अमात्य युधिष्ठिरकी शरण आते हैं औरदुर्योधन तथा कुरुकुलकामिनियाँको छुड़ानेके लिये अनुरोध करते हैं। भीम प्रसन्न होकर कहते हैं-' अच्छा हुआ, हमारे करनेका काम दूसरोंने ही कर डाला! परंतु धर्मराज दूसरी ही धुनमें हैं, उन्हें भीमके वचन नहीं सुहाते; वे कहते हैं-'भाई। यह समय कठोर वचन कहनेका नहीं है। प्रथम तो ये लोग हमारी शरण आये हैं. भयभीत आश्रितोंकी रक्षा करना क्षत्रियोंका कर्तव्य है: दूसरे अपनी जातिमें आपसमें चाहे जितना कलह हो, जब कोई बाहरका दूसरा आकर सताये या अपमान करे, तब उसका हम सबको अवश्य प्रतीकार करना चाहिये। हमारे भाइयों और पवित्र कुरुकुलकी स्त्रियोंको गन्धर्व कैद करें और हम बैठे रहें, यह सर्वथा अनुचित है।'

ते शतं हि वयं पञ्च परस्परविवादने ।

परैस्तु विग्रहे प्राप्ते वयं पञ्चाधिकं शतम् ॥

'आपसमें विवाद होनेपर वे सौ भाई और हम पाँच भाई हैं। परंतु दूसरीका सामना करनेके लिये तो हमें मिलकर एक सौ पाँच होना चाहिये।' युधिष्ठिरने फिर कहा, 'भाइयो। पुरुषसिंहो। उठो जाओ! शरणागतकी रक्षा और कुलके उद्धारके लिये चारों भाई जाओ और शीघ्र कुलकामिनियोंसहित दुर्योधनको छुड़ाकर लाओ।' कैसी अजातशत्रुता, धर्मप्रियता और नीतिज्ञता है! धन्य अजातशत्रु धर्मराजके वचन सुनकर अर्जुन प्रतिज्ञा करते हैं कि 'यदि दुर्योधनको उन लोगोंने शान्ति और प्रेमसे नहीं छोड़ा तो-

अद्य गन्धर्वराजस्य भूमि: पास्यति शोणितम् ।

(महा0, वन0 34।3।21)

'आज गन्धर्वराजके तप्त रुधिरसे पृथ्वीकी प्यासबुझायी जायगी।' परस्पर लड़कर दूसरोंको शक्ति बढ़ानेवाले
भारतवासियो! इस चरित्रसे शिक्षा ग्रहण करो। वनमें द्रौपदी और भीम युद्धके लिये धर्मराजको बेतरह उत्तेजित करते हैं और मुँह आयी सुनाते हैं पर धर्मराज सत्यपर अटल हैं। वे कहते हैं-'बारह वर्ष वन और एक सालके अज्ञातवासकी मैंने जो शर्त स्वीकार की है, उसे मैं नहीं तोड़ सकता।'

मम प्रतिज्ञां च निबोध सत्यां

वृणे धर्मममृताज्जीविताच्च ।

राज्यं च पुत्राश्च यशो धनं च

सर्वं न सत्यस्य कलामुपैति ॥

"मेरी सत्य प्रतिज्ञाको सुनो; मैं धर्मको अमरता और जीवनसे श्रेष्ठ मानता हूँ। सत्यके सामने राज्य, पुत्र, यश और धन आदिका कोई मूल्य नहीं है।"

एक बार युद्धके समय द्रोणाचार्यवधके लिये असत्य बोलनेका काम पड़ा; पर धर्मराज शेषतक पूरा असत्य न रख सके, सत्य शब्द 'कुञ्जर' का उच्चारण हो ही गया। कैसी सत्यप्रियता है।

युधिष्ठिर महाराज निष्काम धर्मात्मा थे। एक बार उन्होंने अपने भाइयों और द्रौपदीसे कहा-'सुनो! मैं धर्मका पालन इसलिये नहीं करता कि मुझे उसका फल मिले; शास्त्रोंकी आज्ञा है, इसलिये वैसा आचरण करता हूँ। फलके लिये धर्माचरण करनेवाले सच्चे धार्मिक नहीं है, परंतु धर्म और उसके फलका लेन-देन करनेवाले व्यापारी हैं।'

वनमें यक्षरूप धर्मके प्रश्नोंका यथार्थ उत्तर देनेपर जब धर्म युधिष्ठिरसे कहने लगे कि 'तुम्हारे इन भाइयों में से तुम कहो उस एकको जीवित कर दूँ तब युधिष्ठिरने कहा- 'नकुलको जीवित कर दीजिये।' यक्षने कहा- 'तुम्हें कौरवोंसे लड़ना है, भीम और अर्जुन अत्यन्त बलवान् हैं; तुम उनमेंसे एकको न जिलाकर नकुलके लिये क्यों प्रार्थना करते हो?' युधिष्ठिरने कहा- 'मेरे दो माताएँ थीं-कुन्ती और माद्री कुन्तीका तो मैं एक पुत्र जीवित| माहीका भी एक रहना चाहिये। मुझे राज्यको परक नहीं है।' युधिष्ठिरकी समबुद्धि देखकर धर्मने अपना असली स्वरूप प्रकटकर सभी भाइयोंको जीवित कर दिया।

भगवान् श्रीकृष्णने जब वनमें उपदेश दिया, तब हाथ जोड़कर वे बोले-'केशव। निस्सन्देह पाण्डवोंकी आप ही गति हैं। हम सब आपकी ही शरण हैं, हमारे जीवनके अवलम्बन आप ही हैं।' कैसी अनन्यता है।

द्रौपदीसहित पाँचों पाण्डव हिमालय जाते हैं। एक | कुत्ता साथ है। द्रौपदी और चारों भाई गिर पड़े, इन्द्र रथ लेकर आते हैं और कहते हैं-'महाराज! रथपर सवार होकर सदेह स्वर्ग पधारिये!' धर्मराज कहते हैं, 'यह कुत्ता मेरे साथ आ रहा है. इसको भी साथ ले चलनेकी आज्ञा दें।' देवराज इन्द्रने कहा- 'धर्मराज! यह मोह कैसा! आप सिद्धि और अमरत्वको प्राप्त हो चुके हैं, कुत्तेको छोड़िये।' धर्मराजने कहा-'देवराज! ऐसा करना आयका धर्म नहीं है; जिस ऐश्चर्यके लिये अपने भक्तका त्याग करना पड़ता हो, वह मुझे नहीं चाहिये। स्वर्ग चाहे न मिले, पर इस भक्त कुत्तेको मैं नहीं त्याग सकता।' इतनेमें कुत्ता अदृश्य हो गया, साक्षात् धर्म प्रकट होकर बोले- 'राजन्! मैंने तुम्हारे सत्य और कर्तव्यकी निष्ठा देखनेके लिये ही ऐसा किया था। तुम परीक्षामें उत्तीर्ण हुए।'

इसके बाद धर्मराज साक्षात् धर्म और इन्द्रके साथ रथमें बैठकर स्वामेिं जाते हैं। वहाँ अपने भाइयों और द्रौपदीको न देखकर अकेले स्वर्गमें रहना पसंद नहीं करते। एक बार मिथ्याभाषणके कारण धर्मराजको मिथ्या नरक दिखलाया जाता है। उसमें ये सब भाइयोसहित द्रौपदीका कल्पित आर्तनाद सुनते हैं और वहीं नरकके दुःखोंमें रहना चाहते हैं। कहते हैं-'जहाँ मेरे भाई रहते हैं, मैं भी वहाँ रहूँगा।' इतनेमें प्रकाश छा जाता है, मायानिर्मित नरकयन्त्रणा अदृश्य हो जाती है, समस्त देवता प्रकट होते हैं और महाराज युधिष्ठिर अपने भ्राताओं सहित भगवान् श्रीकृष्णका दर्शन करते हैं। धन्य धर्मराज |



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sadaanadharmaah sajanaah sadaaraah

sabaandhavaastvachchharana hi paarthaah

(yudhishthira)

dharmaraaj yudhishthir paandavonmen sabase bada़e the. yudhishthir satyavaadee, dharmamoorti, saral, vinayee, mada-maana-mohavarjit, dambha-kaama-krodharahit, dayaalu, go-braahman pratipaalak, mahaan vidvaan, jnaanee, dhairyasampann, kshamaasheel, tapasvee, prajaavatsal, maatri-pitri-guru bhakt aur shreekrishnabhagavaan‌ke param bhakt the. dharmake anshase utpann honeke kaaran ve dharmake goodha़ tattvako khoob samajhate the. dharm aur satyakee sookshmatar bhaavanaaonka yadi paandavonmen kiseeke andar poora vikaas tha to vah dharmaraaj yudhishthiramen hee thaa. saty aur kshama to inake sahajaat sadgun the. bada़e-se-bada़e vikat prasangonmen inhonne saty aur kshamaako khoob nibaaha . draupadeeka vastr utar raha hai. bheema-arjun sareekhe yoddha bhaaee ishaara paate hee saare kurukulaka naash karaneko taiyaar hain. bheem vaakyaprahaar karate hue bhee bada़e bhaaeeke sankochase man masos rahe hain; parantu dharmaraaj dharmake liye chupachaap sab sun aur sah rahe hain !

nityashatru duryodhan apana aishvary dikhalaakar dil jalaaneke liye dvaitavanamen jaata hai. arjunaka mitr chitrasen gandharv kauravonkee baree neeyat jaanakar un sabako jeetakar striyonsahit kaid kar leta hai. yuddhase bhaage hue kauravonke amaaty yudhishthirakee sharan aate hain auraduryodhan tatha kurukulakaaminiyaanko chhuda़aaneke liye anurodh karate hain. bheem prasann hokar kahate hain-' achchha hua, hamaare karaneka kaam doosaronne hee kar daalaa! parantu dharmaraaj doosaree hee dhunamen hain, unhen bheemake vachan naheen suhaate; ve kahate hain-'bhaaee. yah samay kathor vachan kahaneka naheen hai. pratham to ye log hamaaree sharan aaye hain. bhayabheet aashritonkee raksha karana kshatriyonka kartavy hai: doosare apanee jaatimen aapasamen chaahe jitana kalah ho, jab koee baaharaka doosara aakar sataaye ya apamaan kare, tab usaka ham sabako avashy prateekaar karana chaahiye. hamaare bhaaiyon aur pavitr kurukulakee striyonko gandharv kaid karen aur ham baithe rahen, yah sarvatha anuchit hai.'

te shatan hi vayan panch parasparavivaadane .

paraistu vigrahe praapte vayan panchaadhikan shatam ..

'aapasamen vivaad honepar ve sau bhaaee aur ham paanch bhaaee hain. parantu doosareeka saamana karaneke liye to hamen milakar ek sau paanch hona chaahiye.' yudhishthirane phir kaha, 'bhaaiyo. purushasinho. utho jaao! sharanaagatakee raksha aur kulake uddhaarake liye chaaron bhaaee jaao aur sheeghr kulakaaminiyonsahit duryodhanako chhuda़aakar laao.' kaisee ajaatashatruta, dharmapriyata aur neetijnata hai! dhany ajaatashatru dharmaraajake vachan sunakar arjun pratijna karate hain ki 'yadi duryodhanako un logonne shaanti aur premase naheen chhoda़a to-

ady gandharvaraajasy bhoomi: paasyati shonitam .

(mahaa0, vana0 34.3.21)

'aaj gandharvaraajake tapt rudhirase prithveekee pyaasabujhaayee jaayagee.' paraspar lada़kar doosaronko shakti badha़aanevaale
bhaaratavaasiyo! is charitrase shiksha grahan karo. vanamen draupadee aur bheem yuddhake liye dharmaraajako betarah uttejit karate hain aur munh aayee sunaate hain par dharmaraaj satyapar atal hain. ve kahate hain-'baarah varsh van aur ek saalake ajnaatavaasakee mainne jo shart sveekaar kee hai, use main naheen toda़ sakataa.'

mam pratijnaan ch nibodh satyaan

vrine dharmamamritaajjeevitaachch .

raajyan ch putraashch yasho dhanan cha

sarvan n satyasy kalaamupaiti ..

"meree saty pratijnaako suno; main dharmako amarata aur jeevanase shreshth maanata hoon. satyake saamane raajy, putr, yash aur dhan aadika koee mooly naheen hai."

ek baar yuddhake samay dronaachaaryavadhake liye asaty bolaneka kaam paड़aa; par dharmaraaj sheshatak poora asaty n rakh sake, saty shabd 'kunjara' ka uchchaaran ho hee gayaa. kaisee satyapriyata hai.

yudhishthir mahaaraaj nishkaam dharmaatma the. ek baar unhonne apane bhaaiyon aur draupadeese kahaa-'suno! main dharmaka paalan isaliye naheen karata ki mujhe usaka phal mile; shaastronkee aajna hai, isaliye vaisa aacharan karata hoon. phalake liye dharmaacharan karanevaale sachche dhaarmik naheen hai, parantu dharm aur usake phalaka lena-den karanevaale vyaapaaree hain.'

vanamen yaksharoop dharmake prashnonka yathaarth uttar denepar jab dharm yudhishthirase kahane lage ki 'tumhaare in bhaaiyon men se tum kaho us ekako jeevit kar doon tab yudhishthirane kahaa- 'nakulako jeevit kar deejiye.' yakshane kahaa- 'tumhen kauravonse lada़na hai, bheem aur arjun atyant balavaan hain; tum unamense ekako n jilaakar nakulake liye kyon praarthana karate ho?' yudhishthirane kahaa- 'mere do maataaen theen-kuntee aur maadree kunteeka to main ek putr jeevita| maaheeka bhee ek rahana chaahiye. mujhe raajyako parak naheen hai.' yudhishthirakee samabuddhi dekhakar dharmane apana asalee svaroop prakatakar sabhee bhaaiyonko jeevit kar diyaa.

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