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भागवत महीपति की मार्मिक कथा
भागवत महीपति की अधबुत कहानी - Full Story of भागवत महीपति (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भागवत महीपति]- भक्तमाल


भागवत कवि महीपतिका जन्म ताहराबादमें सन् 1715 ई0 में हुआ था। उनके पिताका नाम दादोपंत था, वे मुगलराज्यके एक कर्मचारी थे। दादोपंत ऋग्वेदी वासिष्ठगोत्री ब्राह्मण थे। महीपति बाल्यावस्थासे ही सद्बुद्धिसम्पन्न थे, वे सुशील और सदाचारी तथा सुन्दर थे। उनका स्वभाव अति विनम्र था। बचपनसे ही उनके हृदयमें भक्तिकी लहर दौड़ा करती थी, वे अपने पिताके भक्तिभाव और आचार-विचारसे विशेष प्रभावित थे। पाँच वर्षकी ही अवस्थामें उन्होंने पण्ढरपुरके श्रीपाण्डुरंगके दर्शनकी इच्छा प्रकट की थी। उन्हें वहाँ जानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ भगवान्‌के दर्शन और पवित्र तीर्थक्षेत्रकी यात्रामें उन्हें अमित रस मिला।

वे बड़े होनेपर कभी-कभी ताहराबादके मुसलमान जागीरदारकी कचहरीमें जाया करते थे। एक बार उन्हें स्नान, भजन, ध्यान और पूजनमें कुछ विलम्ब हो गया; जागीरदारके सिपाही बुलाने आये। उनके व्यङ्ग कसनेपर महीपतिने कचहरीमें जाना छोड़ दिया। वे भगवान्‌को ही सब कुछ समझने लगे।

संत तुकाराम उनके दीक्षागुरु थे। उन्होंने महीपतिको स्वप्रमें दीक्षित किया था। महीपतिने उनके आदेशसे संतों और भक्तोंका चरित्र-वर्णन किया। उनकी कृपासे महीपतिकी काव्य -स्फूर्ति बढ़ गयी। महीपतिने अपने ग्रन्थोंमें स्थान स्थानपर तुकारामकी महिमा गायी है, उनके प्रति आभार और श्रद्धाके भाव प्रकट किये हैं। महीपतिने स्वीकार किया है कि गुरु तुकाराम और रुक्मिणीनाथकी कृपा, प्रसाद और प्रेरणासे ही मेरे ग्रन्थ पूर्ण हुए। महीपतिने सैकड़ों संत चरित्र लिखे। उन्होंने 37 सालकी अवस्था में 'भक्त- विजय' ग्रन्थ पूरा किया। संतोंके चमत्कारपूर्ण जीवनमें उनकी बड़ी आस्था और श्रद्धा थी। अपनी रचनाओंमें उन्होंने भक्ति रसका पारावार भर दिया है। उनके अभंग, ओवी और पद अत्यन्त सरस हैं। उनका विश्वास था कि मैं जो कुछ भी लिखता हूँ, वह सब पाण्डुरंगकी ही कृपाका फल है। उन्होंने किसी स्थलपर भी अपना अहङ्कार नहीं प्रकट किया। उनके 'संतलीलामृत' और 'भक्तलीलामृत' ग्रन्थ अत्यन्त भक्तिपूर्ण और सरस हैं।

वे भक्तिको भगवान्का ही स्वरूप मानते थे। उनका दृढ़ मत था कि भक्तिपूर्वक 'भक्त विजय' ग्रन्थका श्रवण भगवान्के साक्षात्कारका अमूल्य उपाय है। वे भगवान्‌की कृपाशक्तिके पूर्ण और अविचल विश्वासी थे। उनकी उक्ति है कि भगवान् अपने भक्तोंके चरित्रसे बहुत प्रेम करते हैं, भवसागरसे पार उतरनेमें भक्तचरित्र अमोघ सहायता करता है। उनकी भक्ति विट्ठलमें अडिग थी। 75 सालकी अवस्थामें सन् 1790 ई0 में उन्होंने समाधि ली।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhaagavat maheepati]- Bhaktmaal


bhaagavat kavi maheepatika janm taaharaabaadamen san 1715 ee0 men hua thaa. unake pitaaka naam daadopant tha, ve mugalaraajyake ek karmachaaree the. daadopant rigvedee vaasishthagotree braahman the. maheepati baalyaavasthaase hee sadbuddhisampann the, ve susheel aur sadaachaaree tatha sundar the. unaka svabhaav ati vinamr thaa. bachapanase hee unake hridayamen bhaktikee lahar dauda़a karatee thee, ve apane pitaake bhaktibhaav aur aachaara-vichaarase vishesh prabhaavit the. paanch varshakee hee avasthaamen unhonne pandharapurake shreepaandurangake darshanakee ichchha prakat kee thee. unhen vahaan jaaneka saubhaagy praapt hua bhagavaan‌ke darshan aur pavitr teerthakshetrakee yaatraamen unhen amit ras milaa.

ve bada़e honepar kabhee-kabhee taaharaabaadake musalamaan jaageeradaarakee kachahareemen jaaya karate the. ek baar unhen snaan, bhajan, dhyaan aur poojanamen kuchh vilamb ho gayaa; jaageeradaarake sipaahee bulaane aaye. unake vyang kasanepar maheepatine kachahareemen jaana chhoda़ diyaa. ve bhagavaan‌ko hee sab kuchh samajhane lage.

sant tukaaraam unake deekshaaguru the. unhonne maheepatiko svapramen deekshit kiya thaa. maheepatine unake aadeshase santon aur bhaktonka charitra-varnan kiyaa. unakee kripaase maheepatikee kaavy -sphoorti badha़ gayee. maheepatine apane granthonmen sthaan sthaanapar tukaaraamakee mahima gaayee hai, unake prati aabhaar aur shraddhaake bhaav prakat kiye hain. maheepatine sveekaar kiya hai ki guru tukaaraam aur rukmineenaathakee kripa, prasaad aur preranaase hee mere granth poorn hue. maheepatine saikada़on sant charitr likhe. unhonne 37 saalakee avastha men 'bhakta- vijaya' granth poora kiyaa. santonke chamatkaarapoorn jeevanamen unakee bada़ee aastha aur shraddha thee. apanee rachanaaonmen unhonne bhakti rasaka paaraavaar bhar diya hai. unake abhang, ovee aur pad atyant saras hain. unaka vishvaas tha ki main jo kuchh bhee likhata hoon, vah sab paandurangakee hee kripaaka phal hai. unhonne kisee sthalapar bhee apana ahankaar naheen prakat kiyaa. unake 'santaleelaamrita' aur 'bhaktaleelaamrita' granth atyant bhaktipoorn aur saras hain.

ve bhaktiko bhagavaanka hee svaroop maanate the. unaka dridha़ mat tha ki bhaktipoorvak 'bhakt vijaya' granthaka shravan bhagavaanke saakshaatkaaraka amooly upaay hai. ve bhagavaan‌kee kripaashaktike poorn aur avichal vishvaasee the. unakee ukti hai ki bhagavaan apane bhaktonke charitrase bahut prem karate hain, bhavasaagarase paar utaranemen bhaktacharitr amogh sahaayata karata hai. unakee bhakti vitthalamen adig thee. 75 saalakee avasthaamen san 1790 ee0 men unhonne samaadhi lee.

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