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भिक्षु श्रीअखण्डानन्दजी की मार्मिक कथा
भिक्षु श्रीअखण्डानन्दजी की अधबुत कहानी - Full Story of भिक्षु श्रीअखण्डानन्दजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भिक्षु श्रीअखण्डानन्दजी]- भक्तमाल


स्वामी अखण्डानन्दजी सच्चे त्यागी संन्यासी, कर्मसंल रहनेपर भी कर्मासक्ति तथा फलासक्तिसे रहित महात्मा थे। 'सस्तुं साहित्य वर्धक कार्यालय' की स्थापना करके गुजराती में आपने जो ज्ञानगङ्गा बहायी है, वह चिरकालतक सबको पवित्र करती रहेगी।

आपका जन्म बोरसद नामक गाँवमें वि0 संवत् 1930 में लोहाणा जातिमें हुआ था। आपके पिताका नाम श्रीजगजीवन नत्थुभाई ठक्कर था। इनका नाम लल्लूभाई था। इनके पिता लोहा, चीनी मिट्टीके बर्तन तथा अनाजका व्यापार करते थे। आपकी लड़कपनसे ही भजनमें बड़ी रुचि थी। व्यापारमें इनका मन ठीक नहीं। लगा, न गृहस्थीमें ही चित्तकी आसक्ति हुई। धीरे-धीरे संसारकी ओरसे विरक्ति बढ़ने लगी। ये साधुसङ्ग, भगवद्भजन, ईश्वरस्मरण, धार्मिक ग्रन्थोंके श्रवण-मनन और निदिध्यासनमें चित्त लगाने लगे। शेरखी निवासी वयोवृद्ध परमहंस जानकीदासजी महाराजके सत्सङ्गसे आपको स्फूर्ति मिली। अन्तमें इन्होंने संवत् 1960 की शिवरात्रिके दिन साबरमतीके तटपर स्वामीजी श्रीशिवानन्दजीसे विधिपूर्वक संन्यासकी दीक्षा ले ली।

असत् साहित्यका प्रचार और सद्ग्रन्थोंकी बहुमूल्यता देखकर इनके मनमें सस्ते मूल्यपर सद्ग्रन्थोंके प्रचारका विचार आया। इन्होंने सबसे पहले 'भागवत एकादश स्कन्ध' प्रकाशित करनेका विचार किया। अन्तमें 'सस्तुं साहित्य वर्धक कार्यालय' की शुभ स्थापना हुई। फिर तो गुजरातमें सत्साहित्यका घर-घर प्रचार हो गया। लगातार पैंतीस वर्षोंतक इन्होंने अटूट परिश्रम करके सत्साहित्यकाप्रकाशन तथा प्रचार किया।

लाखों रुपयोंके प्रकाशनका कार्य इनकी संस्थाके द्वारा हुआ। सस्ते मूल्यपर साहित्य प्रकाशित करनेपर भी संस्थामें लाखोंकी पूँजी हो गयी। ये ही उनके सर्वेसर्वा थे। परंतु ये अन्ततक संस्थासे धनके सम्बन्धमें वैसे ही निर्लिप्त रहे, जैसे जलमें कमल रहता है। ये अपने खान पानमें केवल पंद्रह रुपये मासिक खर्च करते थे।

संन्यासधर्म स्वीकार करनेके बाद स्वामीजीने अपने पूर्वाश्रमके लोगोंके साथ किसी प्रकारका सम्बन्ध नहीं रखा। कई वर्षोंके बाद इनके पुत्र मोतीलाल दर्शनार्थ आये। पर ये उनसे नहीं मिले। बहिन आयी तो उनसे भी मिलना अस्वीकार कर दिया।

'सस्तुं साहित्य वर्धक कार्यालय' की सेवाके अतिरिक्त इन्होंने तीर्थसेवन किया, साधुसङ्ग किया, अनेक लोकोपकारी संस्थाओंकी स्थापना और सहायता की। प्रयागमें 'गीताज्ञानयज्ञ' गीताप्रेस गोरखपुरके द्वारा करवाया। उसमें गुप्तरूपसे सहायता दी। इनकी लोकोपकारिणी क्रियाएँ बहुमुखी होती थीं।

स्वामीजीकी अनन्त गुणावलिमें प्रभुपरायणता, उदारता, भावुकता, उत्साहशीलता, कर्मशीलता, दक्षता, स्पष्टवादिता, सरलता, सुधारपरायणता, दीनवत्सलता, गुप्तदानशीलता, साधुप्रीति आदि गुण विशेष उल्लेख योग्य हैं।

संवत् 1998 यानी सन् 1942 की तीसरी जनवरीको आप इस धराधामको त्यागकर परधाम सिधार गये। आपके सदृश कर्मशील परन्तु कर्मफलासक्ति-रहित संन्यासी महापुरुष बहुत कम देखनेमें आते हैं।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhikshu shreeakhandaanandajee]- Bhaktmaal


svaamee akhandaanandajee sachche tyaagee sannyaasee, karmasanl rahanepar bhee karmaasakti tatha phalaasaktise rahit mahaatma the. 'sastun saahity vardhak kaaryaalaya' kee sthaapana karake gujaraatee men aapane jo jnaanaganga bahaayee hai, vah chirakaalatak sabako pavitr karatee rahegee.

aapaka janm borasad naamak gaanvamen vi0 sanvat 1930 men lohaana jaatimen hua thaa. aapake pitaaka naam shreejagajeevan natthubhaaee thakkar thaa. inaka naam lalloobhaaee thaa. inake pita loha, cheenee mitteeke bartan tatha anaajaka vyaapaar karate the. aapakee lada़kapanase hee bhajanamen bada़ee ruchi thee. vyaapaaramen inaka man theek naheen. laga, n grihastheemen hee chittakee aasakti huee. dheere-dheere sansaarakee orase virakti badha़ne lagee. ye saadhusang, bhagavadbhajan, eeshvarasmaran, dhaarmik granthonke shravana-manan aur nididhyaasanamen chitt lagaane lage. sherakhee nivaasee vayovriddh paramahans jaanakeedaasajee mahaaraajake satsangase aapako sphoorti milee. antamen inhonne sanvat 1960 kee shivaraatrike din saabaramateeke tatapar svaameejee shreeshivaanandajeese vidhipoorvak sannyaasakee deeksha le lee.

asat saahityaka prachaar aur sadgranthonkee bahumoolyata dekhakar inake manamen saste moolyapar sadgranthonke prachaaraka vichaar aayaa. inhonne sabase pahale 'bhaagavat ekaadash skandha' prakaashit karaneka vichaar kiyaa. antamen 'sastun saahity vardhak kaaryaalaya' kee shubh sthaapana huee. phir to gujaraatamen satsaahityaka ghara-ghar prachaar ho gayaa. lagaataar paintees varshontak inhonne atoot parishram karake satsaahityakaaprakaashan tatha prachaar kiyaa.

laakhon rupayonke prakaashanaka kaary inakee sansthaake dvaara huaa. saste moolyapar saahity prakaashit karanepar bhee sansthaamen laakhonkee poonjee ho gayee. ye hee unake sarvesarva the. parantu ye antatak sansthaase dhanake sambandhamen vaise hee nirlipt rahe, jaise jalamen kamal rahata hai. ye apane khaan paanamen keval pandrah rupaye maasik kharch karate the.

sannyaasadharm sveekaar karaneke baad svaameejeene apane poorvaashramake logonke saath kisee prakaaraka sambandh naheen rakhaa. kaee varshonke baad inake putr moteelaal darshanaarth aaye. par ye unase naheen mile. bahin aayee to unase bhee milana asveekaar kar diyaa.

'sastun saahity vardhak kaaryaalaya' kee sevaake atirikt inhonne teerthasevan kiya, saadhusang kiya, anek lokopakaaree sansthaaonkee sthaapana aur sahaayata kee. prayaagamen 'geetaajnaanayajna' geetaapres gorakhapurake dvaara karavaayaa. usamen guptaroopase sahaayata dee. inakee lokopakaarinee kriyaaen bahumukhee hotee theen.

svaameejeekee anant gunaavalimen prabhuparaayanata, udaarata, bhaavukata, utsaahasheelata, karmasheelata, dakshata, spashtavaadita, saralata, sudhaaraparaayanata, deenavatsalata, guptadaanasheelata, saadhupreeti aadi gun vishesh ullekh yogy hain.

sanvat 1998 yaanee san 1942 kee teesaree janavareeko aap is dharaadhaamako tyaagakar paradhaam sidhaar gaye. aapake sadrish karmasheel parantu karmaphalaasakti-rahit sannyaasee mahaapurush bahut kam dekhanemen aate hain.

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