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महात्मा श्रीमस्तरामजी महाराज की मार्मिक कथा
महात्मा श्रीमस्तरामजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of महात्मा श्रीमस्तरामजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महात्मा श्रीमस्तरामजी महाराज]- भक्तमाल


आप मारवाड़की ओरसे काठियावाड़ में आये थे और भावनगर राज्य तथा उसके आसपासके प्रदेशमें विचरण किया करते थे। वे मुश्किलमे एक जगह एक-दो दिन ठहरते थे उनके जीवन के प्रसङ्ग हो उनके उपदेश हैं।

एक दिन भावनगरकी एक गलीमें एक नीमके पेड़के नीचे उन्होंने आसन लगा रखा था। उनके पास एक लँगोटीके सिवा और कुछ न था। जाड़ेमें पौषकी रात्रि थी, कड़ाकेका जाड़ा पड़ रहा था। उसी समय रातकेनौ-दस बजे भावनगरके महाराज उधरसे निकले। उन्होंने महात्माका नंगे बदन जाड़ेसे ठिठुरते देखकर अपना दुशाला, जिसकी कीमत कम-से-कम छः-सात सौ रुपये थी, उड़ा दिया। मस्तरामने कहा- 'अच्छा, बेटे! तुम ऐसे ही करते रहो।' आधी रातको वे ओढ़कर सो गये। सबेरे चार-पाँच बजेका समय था, थोड़ा अँधेरा था; तभी दो चोर उधरसे निकले। उन्होंने सोचा- 'साधुके पास बढ़िया दुशाला है, इसे ले लेना चाहिये।' उन्होंनेदुशाला खींचा महाराजको नींद टूट गयी। उन्होंने हँसते हँसते कहा-'ले जाओ बेटे, ले जाओ। तुम भी ऐसे ही करते रहो।"

श्रीमस्तरामजी घूमते-फिरते एक गाँवमें पहुँचे वहाँके गिरासरदारने महाराजको भिक्षाके लिये निमन्त्रण दिया। और श्रद्धासे कड़ी रोटी खिलायी। गिरासरदारोंकी कड़ी इतनी बढ़िया होती थी कि बहुत दिनोंतक उसका स्वाद भुलाया नहीं जा सकता। महाराज भोजन करके दूसरे गाँव चले गये, पर जब भोजन करने बैठे, तब कढ़ी याद आ गयी। इस तरह बीस-पचीस दिनोंतक कढ़ी किसी तरह उनके मनसे नहीं निकली। उन्होंने उसे भुलानेके लिये बहुत प्रयत्न किया, पर वह भुलायी नहीं गयी। भोजन करने बैठते कि कढ़ी याद आ जाती। महाराजने सोचा- घर-द्वार, बाड़ी बंगले, मौज-मजे, स्त्री-पुत्र - सब कुछ छोड़ा; पर यह निगोड़ी कढ़ी कहाँसे पीछे पड़ गयी? बस, फिर उसी गाँवमें गये और गिरासरदारसे कहा कि 'मेरी इच्छा आज कढ़ी पीनेकी है। एक टोकनी भरकर कढ़ी बनवाओ और कुछ भी मत बनवाओ।" गिरासरदारने विचारा-ऐसा लगता है कि महाराजको कड़ी मुँह लग गयी है, इसीलिये लौट आये हैं। उसने बड़े प्रेमसे कढ़ी तथा दूसरी भोजनकी सामग्री तैयार करवायी और महाराजको जीमनेके लिये बुलवाया। महाराजने कहा-' और कुछ नहीं चाहिये। बस, कढ़ीकी टोकनी मेरे पास रख दो, मन होगा उतनी कड़ी पीऊँगा।' यों कहकर महाराज टोकनी मुँहमें लगाकर कड़ी पीने लगे। तीन-चार सेर कड़ी पेटमें चली गयी! पेट खूब इटकर भर गया, अब कढ़ीके लिये जगह न रही। तब उन्होंने अपने मनसे कहा-'कह रे मनवीं कड़ी पी ले क्यों नहीं पीता? रोज बड़ी याद करता था? पी ले. अच्छी तरहसे पी ले।' फिर सारी कढ़ी जोरसे पीने लगे। थोड़ी देरके बाद उल्टी हुई। उन्होंने टोकनीमें हो उल्टी कर दी। फिर कड़ी पीया, फिर उल्टी हुई। इस तरह पंद्रह-बोस बार पीते गये और उल्टी करते गये। अन्तमें कड़ीको जमीनपर पटककर लात मारकर बोले- 'चल री. निगोड़ी कड़ी। आज तू छूटी छूटी तो छूटी मगर जिंदगीभरके लिये छूट गयी।' इतना कहकर वे चलतेबने। फिर जीवनभर उनको कभी कढ़ी याद नहीं आयी।

वे कहा करते खाटा मीठा देखके जिभिया भर दे नीर।

तब लग जिंदा जानिये काया निपट कधीर ॥

एक धनी पुरुषने मनौती मानी थी कि 'मेरे लड़का पैदा होगा तो मैं महाराजको एक हजार रुपये भेंट करूंगा।' उसके घर लड़का पैदा हुआ। उसने रुपयेकी थैली ले जाकर महात्माजीके पैरोंपर डाल दी और कहा-'मेरी यह भेंट स्वीकार कीजिये।' महात्माने |कहा-'कैसी भेंट?'

धनी सेठने जबाब दिया- 'आपने मुझे पुत्र दिया है, उसकी।'

मस्तराम बोले—'वाह! मेरे यहाँ क्या लड़का बनानेका कोई कारखाना है? यह तो भगवान्‌की इच्छासे हुआ है। हम पैसोंका क्या करेंगे। किसी गरीबको दे दो।' सेठने कहा- 'महाराजजी! आपके पहननेके लिये तीन अंगुलकी लँगोटी भर है, फिर दूसरा गरीब मैं कहाँ मस्तरामजी आनन्दसे बोले- अरे भाई! तू क्या कहता है? मैं गरीब हूँ? जिसको किसी प्रकारकी भी इच्छा नहीं होती, वह शाहंशाह होता है। चाह नहीं, चिन्ता नहीं, मनवाँ बेपरवाह। जाको कछू न चाहिये, सो जग शाहंशाह ॥ फिकिर सभीको खा गया, फिकिर सभीका पीर फिकिरकी फाँकी जो करे, उसका नाम फकीर पेट समाता अन ले, देह समाता चीर। अधिक संग्रही ना बने, उसका नाम फकीर ॥

भाई हम तो मौजी फकीर हैं। हमें किस बातकी कमी है? जिसको इच्छा ही नहीं, उसको कैसी गरीबी। ठीक है, भाई ये रुपये किसी गरीबको जिसको जरूरत हो उसको दे दो।'

बातचीत हो ही रही थी कि इतनेमें भावनगरके राजा | मस्तरामजीके दर्शनके लिये आ पहुँचे। मस्तरामने कहा- 'लो भाई। यह सबसे बड़ा गरीब आ गया, इसको दे दो।" महाराजा हँसने लगे। 'क्यों महात्माजी मैं ही सबसे बढ़कर गरीब हूँ? मैं तो राजा हूँ।'महात्माजीने हँसकर कहा- 'क्यों नहीं। हजारों गाँव हैं, करोड़ोंकी सम्पत्ति है, फिर भी और अधिकके लिये इच्छा है; इसी कारण तुम गरीब हो।' महाराजा साहब हँसने लगे, और फिर वे रुपये साधु-संतोंके भंडारेमें खर्च किये गये।

एक दिन मस्तरामजी गलीमें धूनी लगाये बैठे थे, किसी भक्तका भेंट किया हुआ बढ़िया रेशमी वस्त्र पास पड़ा था। इतनेमें पास ही एक गधेको खड़ा देखा। उसकी पीठपर फोड़ा था और उसपर कौए चोंच मार रहे थे, उससे खून निकल रहा था। मस्तरामजीका हृदय भर आया - 'बेचारा कितना दुःखी हो रहा है!' बस, तुरंत ही पास पड़े हुए रेशमी कपड़ेको फाड़कर गधेकी पीठपर बाँध दिया और उसे आनन्दमें देखकर अपने भी हँसने लगे। बोले-'अब ये गधा भगवान् सुखी हुए।'

आपके हाथमें एक बड़ा फोड़ा हो गया और वह पककर फूट गया। खुला रहनेके कारण उसमें कीड़े पड़ गये। इस बातकी खबर वहाँके डाक्टरको लगी और वह महाराजके पास आकर देखकर बोला-'आपके हाथमें कीड़े पड़ गये हैं, इनको निकालना पड़ेगा।'

महाराजने कहा-'

'भगवान्ने जब इनको मेरा मांसखानेके लिये रख छोड़ा है, तब इनको निकालना नहीं है।' इतनेमें चार-छ: कीड़े घावसे निकलकर नीचे गिर पड़े। 'अरे राम-राम! ये बेचारे भूखे रह जायेंगे' यों कहकर उनको उठाकर फिर घावमें डाल दिया।

डाक्टरने कहा—'महाराज ! इन कीड़ोंको नहीं निकालेंगे तो सारे शरीरको नुकसान पहुँचेगा।' महाराज बोले-'अरे भाई! क्या नुकसान पहुँचेगा। यह तो हमारे मालिककी मीठी दैन है। वे सुख भेजें, तब तो हम उसे खुशी-खुशी ले लें; और दुःख भेजनेपर उसे वापस लौटा दें? यही क्या सच्ची प्रीति है? हम तो दोनोंको समान अपनानेवाले हैं। देह छूट जाय तो क्या हर्ज है। उनकी दी हुई भेंट स्वीकार करके राम-राम करते हुए देह छोड़ देंगे।' कहा जाता है कि इसी पीड़ासे उनका भगवत्स्मरण करते करते बोटादमें ही देहान्त हुआ था।

एक पारसी गृहस्थने उनकी बड़ी सेवा की थी। उस पारसी गृहस्थसे यह लेखक मिला और उससे महाराजके सम्बन्धमें बहुत-सी बातें मालूम हुई। आज भी उनकी समाधिके ऊपर अखण्ड घीका दीप जलता है और आज भी उस समाधिके दर्शनसे नर-नारियोंको शान्ति मिलती है।



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aap maaravaada़kee orase kaathiyaavaada़ men aaye the aur bhaavanagar raajy tatha usake aasapaasake pradeshamen vicharan kiya karate the. ve mushkilame ek jagah eka-do din thaharate the unake jeevan ke prasang ho unake upadesh hain.

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ek dhanee purushane manautee maanee thee ki 'mere lada़ka paida hoga to main mahaaraajako ek hajaar rupaye bhent karoongaa.' usake ghar lada़ka paida huaa. usane rupayekee thailee le jaakar mahaatmaajeeke paironpar daal dee aur kahaa-'meree yah bhent sveekaar keejiye.' mahaatmaane |kahaa-'kaisee bhenta?'

dhanee sethane jabaab diyaa- 'aapane mujhe putr diya hai, usakee.'

mastaraam bole—'vaaha! mere yahaan kya lada़ka banaaneka koee kaarakhaana hai? yah to bhagavaan‌kee ichchhaase hua hai. ham paisonka kya karenge. kisee gareebako de do.' sethane kahaa- 'mahaaraajajee! aapake pahananeke liye teen angulakee langotee bhar hai, phir doosara gareeb main kahaan mastaraamajee aanandase bole- are bhaaee! too kya kahata hai? main gareeb hoon? jisako kisee prakaarakee bhee ichchha naheen hotee, vah shaahanshaah hota hai. chaah naheen, chinta naheen, manavaan beparavaaha. jaako kachhoo n chaahiye, so jag shaahanshaah .. phikir sabheeko kha gaya, phikir sabheeka peer phikirakee phaankee jo kare, usaka naam phakeer pet samaata an le, deh samaata cheera. adhik sangrahee na bane, usaka naam phakeer ..

bhaaee ham to maujee phakeer hain. hamen kis baatakee kamee hai? jisako ichchha hee naheen, usako kaisee gareebee. theek hai, bhaaee ye rupaye kisee gareebako jisako jaroorat ho usako de do.'

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ek paarasee grihasthane unakee bada़ee seva kee thee. us paarasee grihasthase yah lekhak mila aur usase mahaaraajake sambandhamen bahuta-see baaten maaloom huee. aaj bhee unakee samaadhike oopar akhand gheeka deep jalata hai aur aaj bhee us samaadhike darshanase nara-naariyonko shaanti milatee hai.

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मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥

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जब किया याद बना काम हमारा
चल एक बार खाटूवाले के द्वार,
तेरा हर एक काम सफल होगा,
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संकट में संसार भोले आ जाओ॥
यह लाला कहां से लाई है बता दे यशोदा
बता दे यशोदा मैया, बता दे यशोदा मैया,
लहर लहर लहराए रे, मेरे आँगन कि तुलसी
लहर लहर लहराए रे, मेरे आँगन कि तुलसी