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श्रीहरिरामदासजी महाराज की मार्मिक कथा
श्रीहरिरामदासजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीहरिरामदासजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीहरिरामदासजी महाराज]- भक्तमाल


श्रीरामानन्दी वैष्णवसम्प्रदायान्तर्गत एक रामस्नेही नामकी शाखा मारवाड़प्रान्तमें प्रसिद्ध है। इसके आद्याचार्य श्रीहरिरामदासजी महाराज हुए। बीकानेरसे नौ कोस पूर्वमें। सिंहथल नामक गाँव है, वहाँ भाग्यचन्दजी जोशी नामक ब्राह्मणके घर आपका प्रादुर्भाव हुआ था। विशुद्धबुद्धि होनेसे छोटी अवस्थामें ही ज्यौतिष, योग, वेदान्तादि शास्त्रोंमें आप कुशल हो गये। अनन्तर भक्ति, विरक्ति और उपरतिके तीव्र भावोंके कारण आप दुलचासर ग्राममें श्रीरामानन्दी वैष्णव महात्मा श्रीजैमलदासजी महाराजके शरणागत हुए। आपने संवत् 1700 वि0 आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशीको उनसे दीक्षा ली। पश्चात् आप श्रीगुरुदेवका आशीर्वाद प्राप्तकर सिंहथल पधारे। आप प्रतिदिन सन्ध्या होते ही सिंहथलसे सात कोस दुलचासर ग्राममें अपने गुरुदेवके पास चले जाते थे और रातभर सत्सङ्ग करके प्रातः सूर्योदयसे पहले वापस सिंहथल लौट आते थे। इस तरह छः महीने बीत गये। इसके बाद श्रीगुरुदेवकी विशेष आज्ञाके कारण आप प्रतिदिन न जाकर महीनेमें एक बार गुरुदर्शनार्थ पधारते रहे और कुछ ही दिनोंमें श्रीसद्गुरुकृपासे पूर्ण योगी हो गये। जीवोंके कल्याणार्थ आपने वेद, वेदान्त, उपनिषद् और योगशास्त्र के सिद्धान्तानुसार सारगर्भित अनुभवपूर्ण उपदेश दिये, जो 'वाणी' के रूपमें आज भी प्रचलित हैं। आपके सहस्रों शिष्य प्रशिष्य हुए तथा आपके जीवनमें अनेकों चमत्कार हुए, विस्तारभयसे यहाँ एक-दो ही लिखे जाते हैं।

स्थानीय स्वरूपसिंहजी नामक बारहट दैवयोगसे बहुत ही आर्थिक कष्टमें पड़कर श्रीमहाराजकी शरण हुए और आपकी दयासे उस संकटसे मुक्त होनेके साथ हीभक्ति के पात्र भी हो गये। इस विषयमें एक दोहा प्रचलित है-

गायी गुन गोविंद को, पायौं द्रव्य अमाप ।

आयौ साथ स्वरूप के, सदगुरु द्याल प्रताप ॥

एक बार प्रायः सव शिष्योंने आपके जीवित महोत्सवके लिये सं0 1834 वि0 चैत्र कृष्णा सप्तमीका दिन निश्चयकर सबको आमन्त्रित कर दिया। उत्सवको तैयारी होने लगी, परंतु उक्त निश्चित तिथिसे पंद्रह दिन पूर्व ही आप अचानक शरीर छोड़कर भगवद्धाम पधार गये। इससे शिष्योंको अत्यन्त दुःख हुआ। शिष्योंके दुःखसे करुणार्द्र होकर आप भगवान्से एक मासकी आज्ञा लेकर पुनः लौट आये । अव शिष्योंके आनन्दका पार नहीं रहा तथा सारे काम फिर धूमधाम से होने लगे। बहुत जनसमुदाय होनेसे, जिन्हें पानीका ठेका दिया था, वे पर्याप्त पानी नहीं पहुँचा सके। बीकानेरके गाँवोंमें जलका अभाव प्रसिद्ध है। लोग घबरा गये। तब शिष्योंकी प्रार्थनापर आश्वासन देते हुए आपने कहा- 'घबराओ नहीं, ईश्वर सव आवश्यकताओंकी पूर्ति अपने आप ही करेंगे।' इतना कहकर स्वयं अपनी कुटीमें ध्यानस्थ हो गये। एक-ही-दो घड़ीमें प्रभुकृपासे निर्मल आकाशमें मेघोंने आकर गर्जना की और चारों ओर जल ही जल कर दिया। बड़े आनन्दसे महोत्सवकी समाप्ति हुई और लोग अपने-अपने स्थानोंको चले गये। तब आपने पूर्व प्रतिज्ञाको यादकर सं0 1835 वि0 चैत्र शुक्ला सप्तमी शुक्रवारको तीन पहर पहले ही अन्त्येष्टि-क्रियाकी सब सामग्री मँगवा ली और निर्दिष्ट समयपर शरीर छोड़ दिया।



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sthaaneey svaroopasinhajee naamak baarahat daivayogase bahut hee aarthik kashtamen pada़kar shreemahaaraajakee sharan hue aur aapakee dayaase us sankatase mukt honeke saath heebhakti ke paatr bhee ho gaye. is vishayamen ek doha prachalit hai-

gaayee gun govind ko, paayaun dravy amaap .

aayau saath svaroop ke, sadaguru dyaal prataap ..

ek baar praayah sav shishyonne aapake jeevit mahotsavake liye san0 1834 vi0 chaitr krishna saptameeka din nishchayakar sabako aamantrit kar diyaa. utsavako taiyaaree hone lagee, parantu ukt nishchit tithise pandrah din poorv hee aap achaanak shareer chhoda़kar bhagavaddhaam padhaar gaye. isase shishyonko atyant duhkh huaa. shishyonke duhkhase karunaardr hokar aap bhagavaanse ek maasakee aajna lekar punah laut aaye . av shishyonke aanandaka paar naheen raha tatha saare kaam phir dhoomadhaam se hone lage. bahut janasamudaay honese, jinhen paaneeka theka diya tha, ve paryaapt paanee naheen pahuncha sake. beekaanerake gaanvonmen jalaka abhaav prasiddh hai. log ghabara gaye. tab shishyonkee praarthanaapar aashvaasan dete hue aapane kahaa- 'ghabaraao naheen, eeshvar sav aavashyakataaonkee poorti apane aap hee karenge.' itana kahakar svayan apanee kuteemen dhyaanasth ho gaye. eka-hee-do ghada़eemen prabhukripaase nirmal aakaashamen meghonne aakar garjana kee aur chaaron or jal hee jal kar diyaa. baड़e aanandase mahotsavakee samaapti huee aur log apane-apane sthaanonko chale gaye. tab aapane poorv pratijnaako yaadakar san0 1835 vi0 chaitr shukla saptamee shukravaarako teen pahar pahale hee antyeshti-kriyaakee sab saamagree mangava lee aur nirdisht samayapar shareer chhoda़ diyaa.

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