⮪ All भक्त चरित्र

साध्वी सखूबाई की मार्मिक कथा
साध्वी सखूबाई की अधबुत कहानी - Full Story of साध्वी सखूबाई (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [साध्वी सखूबाई]- भक्तमाल


महाराष्ट्रमें कृष्णा नदीके तटपर कऱ्हाड़ नामक एक स्थान है। वहाँ एक ब्राह्मण रहता था। उसके घरमें वह, उसकी स्त्री और पुत्र तथा साध्वी पुत्रवधूये चार प्राणी थे। ब्राह्मणकी पुत्रवधूका नाम सखूबाई था। सखूबाई जितनी ही अधिक भगवान्‌की भक्त, सुशीला, विनम्र और सरलहदया थी, उसके सास-ससुर और पति-- तीनों उतने ही दुष्ट, कर्कश, अभिमानी, कुटिल और कठोरहृदय थे। वे सखूको सतानेमें कुछ भी उठा नहीं रखते थे। तड़केसे लेकर रातको सबके सो जानेतक मशीनकी भाँति बिना विश्राम काम करनेपर भी सास उसे भरपेट खानेको भी नहीं देती थी। परंतु सखूबाई इसे भी भगवान्की दया समझकर अपने कर्तव्यके अनुसार अस्वस्थ हो जानेपर भी काम करती रहती। परंतु दुष्टा सास इतनेपर ही राजी न होती, वह उसे दो-चार लात घूँसे जमाये और उसकी तथा उसके माँ-बापको दस बीस बार गालियाँ सुनाये बिना सन्तुष्ट नहीं होती। परंतु सखू सासके सामने कुछ न बोलती, लोहूका घूंट पीकर रह जाती। वह इन दारुण दुःखोंको अपने कर्मोंका भोग और भगवान्का आशीर्वाद समझकर उन्हें सुखरूपमें परिणतकर सदा प्रसन्न रहती।

महाराष्ट्रमें पण्ढरपुर वैष्णवोंका प्रसिद्ध तीर्थ है। वहाँ प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ला एकादशीको बड़ा भारी मेला होता है। लाखों नर-नारी कीर्तन करते हुए भगवान् पण्ढरीनाथ के दर्शनार्थ दूर-दूरसे आते हैं। अबके भी कुछ यात्री कऱ्हाड़की तरफसे होकर पण्ढरपुरके मेलेमें जा रहे थे। सखू इस समय कृष्णा नदीपर जल भरने गयी थी। इन सबको जाते देखकर उसके मनमें भी श्रीपण्ढरीनाथके दर्शन करनेकी प्रबल इच्छा हुई। उसने सोचा कि सास ससुर आदिसे तो किसी तरह आज्ञा मिल नहीं सकती और पण्ढरपुर जाना निश्चित है; अतः क्यों न इसी मण्डलीके साथ चल पहूँ। वह उनके साथ हो ली। उसकी एक पड़ोसिनने यह सब समाचार उसकी दुष्टा सासको जा सुनाया। वह सुनते ही जहरीली नागिनकीतरह फुफकार मारकर उठी और अपने लड़केको सिखा पढ़ाकर सखूको मारते-पीटते घसीट लानेको भेजा। वह नदीतटपर पहुंचा और सखुको मार-पीटकर घर ले आया। अब तीनोंकी मन्त्रणाके अनुसार दो सप्ताहतक, जबतक कि पण्ढरपुरकी यात्रा होती है, सखूको बाँध रखने और कुछ भी खाने-पीनेको न देना निश्चित हुआ। उन्होंने सखुको रस्सीसे इतने जोरसे खींचकर बाँधा कि उसके सूखे शरीरमें गढ़े पड़ गये।

बन्धनमें पड़ी हुई भगवान् कातर स्वरसे प्रार्थना करने लगी- 'हे नाथ! मेरी यही इच्छा थी कि यदि एक बार भी इन नेत्रोंसे आपके चरणोंके दर्शन कर लेती तो सुखपूर्वक प्राण निकलते मेरे तो जो कुछ हैं सो आप ही हैं और मैं-भली-बुरी जैसी भी हूँ, आपकी ही हूँ। हे नाथ! क्या मेरी इतनी सी बात भी न सुनोगे, दयामय?' इस प्रकार बड़ी देरतक सखू प्रार्थना करती रही। भक्तके अन्तस्तलकी सच्ची पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती वह चाहे कितनी ही धीमी क्यों न हो, भेदकर भगवान्के कर्णछिद्रोंमें प्रवेश कर जाती है और उनके हृदयको उसी क्षण द्रवीभूत कर देती है।

सखूकी आर्त पुकारसे वैकुण्ठनाथका आसन हिल उठा। वे तुरंत एक सुन्दर स्त्रीका रूप धारणकर उसी क्षण सखूके पास जाकर बोले- 'बाई! मैं पण्ढरपुर जा रही हूँ, तू वहाँ नहीं चलेगी?' सखूने कहा 'बाई! मैं जाना तो चाहती हूँ, पर यहाँ बँध रही हूँ, मुझ पापिनीके भाग्यमें पण्ढरपुरकी यात्रा कहाँ है।' यह सुनकर उन स्त्रीवेषधारी भगवान्ने कहा-'बाई! मैं तेरी सदा सहचरी हूँ, तू उदास मत हो। तेरे बदले मैं यहाँ बँध जाती हूँ।' यह कहकर भगवान्ने तुरंत उसके बन्धन खोल दिये और उसे पण्ढरपुर पहुँचा दिया। आज सखूका केवल यही बन्धन नहीं खुला, उसके सारे बन्धन सदाके लिये खुल गये। वह मुक्त हो गयी।

सखूका वेष धारण किये नाथ बँधे हैं। सखूके सास ससुर आदि आते हैं और बुरा-भला कहकर चले जातेहैं और भगवान् भी सुशीला वधूकी तरह सब कुछ सह रहे हैं। इस प्रकार बँधे हुए पूरे पंद्रह दिन हो गये। सास ससुरका दिल तो इतनेपर भी नहीं पसीजा पर सखूके पतिके मनमें यह विचार आया कि पूरा एक पक्ष बिना कुछ खाये पीये बीत गया; कहीं यह मर गयी तो हमारी बड़ी फजीहत होगी। अतः यह पश्चात्ताप करता हुआ सखूवेषधारी भगवान्के पास पहुँचा और सारे बन्धन काटकर क्षमा प्रार्थना करके बड़े प्रेमसे स्नान- भोजन आदि करनेके लिये कहने लगा।

भगवान् भी ठीक पतिव्रता पत्नीकी भाँति सिर नीचा किये खड़े रहे। वह सखूके आनेके पहले ही अन्तर्धान होनेमें उसकी विपत्तिकी आशंकासे सखूके लौट आनेतक वहीं ठहरे रहे। उन्होंने स्नान करके रसोई बनायी और स्वयं अपने हाथसे तीनोंको भोजन कराया। आजके भोजनमें कुछ विलक्षण स्वाद था। भगवान्ने अपने सुन्दर व्यवहार और सेवासे सबको अपने अनुकूल बना लिया।

इधर सखूबाई पण्ढरपुर पहुँचकर भगवान् के दर्शन करके आनन्दसिन्धुमें डूब गयी। वह यह भूल गयी कि कोई दूसरी स्त्री उसकी जगह बँधी है। उसने प्रतिज्ञा कर ली कि जबतक इस शरीरमें प्राण हैं, मैं पण्ढरपुरकी सीमासे बाहर नहीं जाऊँगी। प्रेममुग्धा सखू भगवान् पाण्डुरंगके ध्यानमें संलग्न हो गयी, वह समाधिस्थ हो गयी। अन्तमें सखूके प्राण कलेवर छोड़कर निकल भागे और शरीर अचेतन होकर गिर पड़ा। दैवयोगसे कऱ्हाड़के निकटवर्ती किवल नामक ग्रामके एक ब्राह्मणने उसे पहचानकर अपने साथियोंको बुलाकर उसकी अन्त्येष्टि क्रिया की।

अब जगन्माता श्रीरुक्मिणीजीने देखा कि यह तो यहाँ मर गयी और मेरे स्वामी इसकी जगह बहू बने बैठे हैं; मैं तो बेढब फैंसी यह विचारकर उन्होंने श्मशानमें जाकर सखूकी हड्डियाँ बटोरकर उसमें प्राण-सञ्चार कर दिया। सखू नवीन शरीरमें जीवित हो गयी। जो महामाया देवी समस्त ब्रह्माण्डकी रचना और उसका विनाश करतीहै, उसके लिये सखूको जीवित करना कौन बड़ी बात थी। उसे जीवित करके माताने कहा कि 'तेरी प्रतिज्ञा यही थी न कि तू अब इस देहसे पण्डरपुरसे बाहर न जायगी। तेरा वह शरीर तो जला दिया गया है। अब तू इस शरीरसे यात्रियोंके साथ घर लौट जा' सखूबाई यात्रियोंके साथ दो दिनमें कर्हाड़ पहुँच गयी। सखूका आना जानकर सखूवेषधारी भगवान् नदीतटपर घड़ा लेकर आ गये और सखके आते ही दो-चार मीठी-मीठी बातें बनाकर और घड़ा उसे देकर अदृश्य हो गये। सख् घड़ा लेकर घर आयी और अपने काममें लग गयी, परंतु अपने घरवालोंका स्वभावपरिवर्तन देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

कुछ दिनों बाद वह किवल गाँववाला ब्राह्मण जब सखूकी मृत्युका समाचार उसके घरपर देने आया और उसने सखुको घरमें काम करते देखा, तब उसके आश्चर्यका पारावार न रहा। उसने सखूके सास-ससुरको बाहर बुलाकर उनसे कहा- 'सखू तो पण्ढरपुरमें मर गयी, यह कहीं प्रेत बनकर तो तुम्हारे यहाँ नहीं आ गयी है?' सखूके ससुर और पतिने कहा- 'वह तो पण्डरपुर गयी ही नहीं, तुम ऐसी बात कैसे कर रहे हो।' ब्राह्मणके बहुत कहनेपर सखूको बुलाकर सब बातें पूछी गयीं। उसने भगवान्की सारी लीला कह सुनायी। सखूकी बात सुनकर सास-ससुर और पतिने बड़े पश्चात्तापके साथ कहा-'निश्चय ही यहाँ बँधनेवाली स्त्रीके रूपमें साक्षात् लक्ष्मीपति ही थे। हम बड़े नीच और कुटिल हैं जो हमने उन्हें इतने दिनोंतक बाँध रखा और उन्हें नाना प्रकारके क्लेश दिये।' तीनोंके हृदय बिलकुल शुद्ध हो हो चुके थे अब वे भगवान भजनमें लग गये और सका बड़ा ही उपकार मानकर उसका सम्मान करने लगे। इस प्रकार भगवान्की दयासे अपने सास-ससुर और पतिदेवको अनुकूल बनाकर सखूबाई जन्मभर उनकी सेवा करती रही और अपना सारा समय भगवान्‌ के नामस्मरण, ध्यान, भजन आदिमें बिताती रही।



You may also like these:

Bhakt Charitra डाकू भगत
Bhakt Charitra मीराँबाई


saadhvee sakhoobaaee ki marmik katha
saadhvee sakhoobaaee ki adhbut kahani - Full Story of saadhvee sakhoobaaee (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [saadhvee sakhoobaaee]- Bhaktmaal


mahaaraashtramen krishna nadeeke tatapar karhaada़ naamak ek sthaan hai. vahaan ek braahman rahata thaa. usake gharamen vah, usakee stree aur putr tatha saadhvee putravadhooye chaar praanee the. braahmanakee putravadhooka naam sakhoobaaee thaa. sakhoobaaee jitanee hee adhik bhagavaan‌kee bhakt, susheela, vinamr aur saralahadaya thee, usake saasa-sasur aur pati-- teenon utane hee dusht, karkash, abhimaanee, kutil aur kathorahriday the. ve sakhooko sataanemen kuchh bhee utha naheen rakhate the. taड़kese lekar raatako sabake so jaanetak masheenakee bhaanti bina vishraam kaam karanepar bhee saas use bharapet khaaneko bhee naheen detee thee. parantu sakhoobaaee ise bhee bhagavaankee daya samajhakar apane kartavyake anusaar asvasth ho jaanepar bhee kaam karatee rahatee. parantu dushta saas itanepar hee raajee n hotee, vah use do-chaar laat ghoonse jamaaye aur usakee tatha usake maan-baapako das bees baar gaaliyaan sunaaye bina santusht naheen hotee. parantu sakhoo saasake saamane kuchh n bolatee, lohooka ghoont peekar rah jaatee. vah in daarun duhkhonko apane karmonka bhog aur bhagavaanka aasheervaad samajhakar unhen sukharoopamen parinatakar sada prasann rahatee.

mahaaraashtramen pandharapur vaishnavonka prasiddh teerth hai. vahaan prativarsh aashaadha़ shukla ekaadasheeko bada़a bhaaree mela hota hai. laakhon nara-naaree keertan karate hue bhagavaan pandhareenaath ke darshanaarth doora-doorase aate hain. abake bhee kuchh yaatree karhaada़kee taraphase hokar pandharapurake melemen ja rahe the. sakhoo is samay krishna nadeepar jal bharane gayee thee. in sabako jaate dekhakar usake manamen bhee shreepandhareenaathake darshan karanekee prabal ichchha huee. usane socha ki saas sasur aadise to kisee tarah aajna mil naheen sakatee aur pandharapur jaana nishchit hai; atah kyon n isee mandaleeke saath chal pahoon. vah unake saath ho lee. usakee ek pada़osinane yah sab samaachaar usakee dushta saasako ja sunaayaa. vah sunate hee jahareelee naaginakeetarah phuphakaar maarakar uthee aur apane lada़keko sikha padha़aakar sakhooko maarate-peetate ghaseet laaneko bhejaa. vah nadeetatapar pahuncha aur sakhuko maara-peetakar ghar le aayaa. ab teenonkee mantranaake anusaar do saptaahatak, jabatak ki pandharapurakee yaatra hotee hai, sakhooko baandh rakhane aur kuchh bhee khaane-peeneko n dena nishchit huaa. unhonne sakhuko rasseese itane jorase kheenchakar baandha ki usake sookhe shareeramen gadha़e pada़ gaye.

bandhanamen pada़ee huee bhagavaan kaatar svarase praarthana karane lagee- 'he naatha! meree yahee ichchha thee ki yadi ek baar bhee in netronse aapake charanonke darshan kar letee to sukhapoorvak praan nikalate mere to jo kuchh hain so aap hee hain aur main-bhalee-buree jaisee bhee hoon, aapakee hee hoon. he naatha! kya meree itanee see baat bhee n sunoge, dayaamaya?' is prakaar bada़ee deratak sakhoo praarthana karatee rahee. bhaktake antastalakee sachchee pukaar kabhee vyarth naheen jaatee vah chaahe kitanee hee dheemee kyon n ho, bhedakar bhagavaanke karnachhidronmen pravesh kar jaatee hai aur unake hridayako usee kshan draveebhoot kar detee hai.

sakhookee aart pukaarase vaikunthanaathaka aasan hil uthaa. ve turant ek sundar streeka roop dhaaranakar usee kshan sakhooke paas jaakar bole- 'baaee! main pandharapur ja rahee hoon, too vahaan naheen chalegee?' sakhoone kaha 'baaee! main jaana to chaahatee hoon, par yahaan bandh rahee hoon, mujh paapineeke bhaagyamen pandharapurakee yaatra kahaan hai.' yah sunakar un streeveshadhaaree bhagavaanne kahaa-'baaee! main teree sada sahacharee hoon, too udaas mat ho. tere badale main yahaan bandh jaatee hoon.' yah kahakar bhagavaanne turant usake bandhan khol diye aur use pandharapur pahuncha diyaa. aaj sakhooka keval yahee bandhan naheen khula, usake saare bandhan sadaake liye khul gaye. vah mukt ho gayee.

sakhooka vesh dhaaran kiye naath bandhe hain. sakhooke saas sasur aadi aate hain aur buraa-bhala kahakar chale jaatehain aur bhagavaan bhee susheela vadhookee tarah sab kuchh sah rahe hain. is prakaar bandhe hue poore pandrah din ho gaye. saas sasuraka dil to itanepar bhee naheen paseeja par sakhooke patike manamen yah vichaar aaya ki poora ek paksh bina kuchh khaaye peeye beet gayaa; kaheen yah mar gayee to hamaaree bada़ee phajeehat hogee. atah yah pashchaattaap karata hua sakhooveshadhaaree bhagavaanke paas pahuncha aur saare bandhan kaatakar kshama praarthana karake bada़e premase snaana- bhojan aadi karaneke liye kahane lagaa.

bhagavaan bhee theek pativrata patneekee bhaanti sir neecha kiye khada़e rahe. vah sakhooke aaneke pahale hee antardhaan honemen usakee vipattikee aashankaase sakhooke laut aanetak vaheen thahare rahe. unhonne snaan karake rasoee banaayee aur svayan apane haathase teenonko bhojan karaayaa. aajake bhojanamen kuchh vilakshan svaad thaa. bhagavaanne apane sundar vyavahaar aur sevaase sabako apane anukool bana liyaa.

idhar sakhoobaaee pandharapur pahunchakar bhagavaan ke darshan karake aanandasindhumen doob gayee. vah yah bhool gayee ki koee doosaree stree usakee jagah bandhee hai. usane pratijna kar lee ki jabatak is shareeramen praan hain, main pandharapurakee seemaase baahar naheen jaaoongee. premamugdha sakhoo bhagavaan paandurangake dhyaanamen sanlagn ho gayee, vah samaadhisth ho gayee. antamen sakhooke praan kalevar chhoda़kar nikal bhaage aur shareer achetan hokar gir pada़aa. daivayogase karhaada़ke nikatavartee kival naamak graamake ek braahmanane use pahachaanakar apane saathiyonko bulaakar usakee antyeshti kriya kee.

ab jaganmaata shreerukmineejeene dekha ki yah to yahaan mar gayee aur mere svaamee isakee jagah bahoo bane baithe hain; main to bedhab phainsee yah vichaarakar unhonne shmashaanamen jaakar sakhookee haddiyaan batorakar usamen praana-sanchaar kar diyaa. sakhoo naveen shareeramen jeevit ho gayee. jo mahaamaaya devee samast brahmaandakee rachana aur usaka vinaash karateehai, usake liye sakhooko jeevit karana kaun bada़ee baat thee. use jeevit karake maataane kaha ki 'teree pratijna yahee thee n ki too ab is dehase pandarapurase baahar n jaayagee. tera vah shareer to jala diya gaya hai. ab too is shareerase yaatriyonke saath ghar laut jaa' sakhoobaaee yaatriyonke saath do dinamen karhaada़ pahunch gayee. sakhooka aana jaanakar sakhooveshadhaaree bhagavaan nadeetatapar ghada़a lekar a gaye aur sakhake aate hee do-chaar meethee-meethee baaten banaakar aur ghada़a use dekar adrishy ho gaye. sakh ghaड़a lekar ghar aayee aur apane kaamamen lag gayee, parantu apane gharavaalonka svabhaavaparivartan dekhakar use bada़a aashchary huaa.

kuchh dinon baad vah kival gaanvavaala braahman jab sakhookee mrityuka samaachaar usake gharapar dene aaya aur usane sakhuko gharamen kaam karate dekha, tab usake aashcharyaka paaraavaar n rahaa. usane sakhooke saasa-sasurako baahar bulaakar unase kahaa- 'sakhoo to pandharapuramen mar gayee, yah kaheen pret banakar to tumhaare yahaan naheen a gayee hai?' sakhooke sasur aur patine kahaa- 'vah to pandarapur gayee hee naheen, tum aisee baat kaise kar rahe ho.' braahmanake bahut kahanepar sakhooko bulaakar sab baaten poochhee gayeen. usane bhagavaankee saaree leela kah sunaayee. sakhookee baat sunakar saasa-sasur aur patine bada़e pashchaattaapake saath kahaa-'nishchay hee yahaan bandhanevaalee streeke roopamen saakshaat lakshmeepati hee the. ham bada़e neech aur kutil hain jo hamane unhen itane dinontak baandh rakha aur unhen naana prakaarake klesh diye.' teenonke hriday bilakul shuddh ho ho chuke the ab ve bhagavaan bhajanamen lag gaye aur saka bada़a hee upakaar maanakar usaka sammaan karane lage. is prakaar bhagavaankee dayaase apane saasa-sasur aur patidevako anukool banaakar sakhoobaaee janmabhar unakee seva karatee rahee aur apana saara samay bhagavaan‌ ke naamasmaran, dhyaan, bhajan aadimen bitaatee rahee.

477 Views





Bhajan Lyrics View All

दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला

New Bhajan Lyrics View All

श्याम नाम जो नित जप ले, सारे दुखों को हर
ओ मेरे बाबा उन्हें तार दे...
कीर्तन में, कीर्तन में,
कीर्तन में सांवरिया आयो है,
दरबार, दरबार,
दरबार, सजा तेरा न्यारा
साथी भूल ना जाना,
श्री राघव के चरण पकड़कर,
सिद्धि के तुम ही तो हो दाता,
हमारे गणपति देवा,