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'नासै रोग हरै सब पीरा

मेरे जीवनकी यह अद्भुत घटना दिनांक २५ अप्रैल सन् १९७३ ई० को रात्रिमें एक बजेके लगभग मेरी निद्रावस्थामें घटी थी। इसे अवढरदानी आशुतोष भगवान् शंकर तथा संकटमोचन श्रीहनुमानजी की पावन कृपाका विलक्षण एवं अपूर्व चमत्कार ही कहा जा सकता है

मेरी दाहिनी भुजामें लगभग आठ माससे बराबर पीड़ा रहती थी। हाथ ऊपर उठानेपर सीधा नहीं हो पाता था। अपनी इस बाहु- पीड़ाके कारण मैं अत्यन्त दुःखित था। मैंने आठ मासतक प्रायः सभी उपचार किये। अनेक आयुर्वेदिक औषधियोंका सेवन किया तथा विभिन्न तैलोंकी मालिश करायी। अनेक होम्योपैथी, यूनानी एवं एलोपैथी औषधियों एवं इंजेक्शनोंका प्रयोग किया। लगभग एक मासतक बिजलीका सेंक भी कराया, परंतु सब व्यर्थ रहा। मेरी बाहु पीड़ा एवं हाथ सीधा उठ पानेमें तनिक भी लाभ न हुआ। मेरा हाथ एक प्रकारसे बेकार सा हो गया था। इस हाथसे एक गिलास जल उठाने में भी मैं असमर्थ था। फतेहपुरके तत्कालीन सिविलसर्जन, जो एक सुयोग्य, कर्मठ एवं धर्मनिष्ठ चिकित्सक थे; अत्यन्त सहानुभूति, मनोयोग एवं परिश्रमसे मेरी दवा कर रहे थे। वे भी डॉक्टरी दवासे कोई लाभ होता न देखकर चिन्तित थे। उन्होंने मुझसे एक दिन कहा - 'मिश्रजी ! मेरा सुझाव है कि आप अब अपने हाथ तथा उसकी पीड़ाकी कोई भी दवा न करें, सभी दवाएँ बन्द कर दें। अपनेको ईश्वरके भरोसे छोड़ दें। वे प्रभु ही आपका कल्याण करेंगे।' बात मुझे भी जँची, मैंने उसी दिनसे अपनी बाहु- पीड़ाकी सभी दवाएँ बन्द कर दीं और अपनेको अवढरदानी भगवान् शंकर एवं संकटमोचन श्रीहनुमान्जीकी कृपापर छोड़ दिया। उनकी शरणमें जाकर नित्य शिव चालीसा एवं हनुमानचालीसाका पाठ करने लगा।

लगभग बीस दिनके पश्चात् अर्थात् घटनाकी रात्रिको लगभग दो बजेका समय था। मैं अपने कमरेमें सो रहा था, तभी मेरा दाहिना हाथ अनायास उठ गया और मैंने उठाकर उसे अपने सिरपर रख लिया। इससे पूर्व मैं अपने दाहिने हाथको सिरपर रखने में सर्वथा असमर्थ था। मेरी निद्रा इस अद्भुत चमत्कारको देखकर खुल गयी और लेटे हुए ही मैंने अपना हाथ ऊपर उठाया। वह सरलतासे सीधा ऊपर उठ गया और उसी क्षण मेरी बाहु पीड़ा भी समाप्त हो गयी।

मुझे पहले तो इस प्रकारसे अपना हाथ उठ जानेपर विश्वास नहीं हुआ। मैंने सोचा कि मैं कहीं स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ। मैंने चारपाईसे उठकर कमरेकी बिजली जलायी और अपने हाथको कई बार ऊपर-नीचे करके देखा, सचमुच पीड़ा अब बिलकुल समाप्त हो गयी थी। उपर्युक्त घटनाको रात्रिको मैं अपनी बाहुपा तथा हाथके न उठनेके कारण अत्यन्त दुःखित था । लगभग दस बजे रात्रितक कातर स्वरसे मैंने 'हनुमान चालीसा' एवं 'शिव चालीसा' का अत्यन्त दुःखित हृदयसे पाठ किया और उसके पश्चात् मैं किसी प्रकार सो गया। वैसे मुझको बाहु-पीड़ाके कारण उन दिनों रात्रिमें प्रायः नींद नहीं आती थी। इस घटनाके पश्चात् आजतक फिर मुझको बाहु-पीड़ा नहीं हुई। उस समय रात्रिमें ही मेरे मुखसे अनायास सूरदासजीके ये शब्द निकल पड़े-

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाइ

बहिरो सुनै, गूंग पुनि बोले, रंक चलै सिर छत्र धराई ॥

हरिः ॐ तत्सत् । हरिः ॐ तत्सत्!! हरिः ॐ तत्सत्!!!

[पं० श्रीदयाशंकरजी मिश्र 'सूर्य' ]



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'naasai rog harai sab peeraa

mere jeevanakee yah adbhut ghatana dinaank 25 aprail san 1973 ee0 ko raatrimen ek bajeke lagabhag meree nidraavasthaamen ghatee thee. ise avadharadaanee aashutosh bhagavaan shankar tatha sankatamochan shreehanumaanajee kee paavan kripaaka vilakshan evan apoorv chamatkaar hee kaha ja sakata hai

meree daahinee bhujaamen lagabhag aath maasase baraabar peeda़a rahatee thee. haath oopar uthaanepar seedha naheen ho paata thaa. apanee is baahu- peeda़aake kaaran main atyant duhkhit thaa. mainne aath maasatak praayah sabhee upachaar kiye. anek aayurvedik aushadhiyonka sevan kiya tatha vibhinn tailonkee maalish karaayee. anek homyopaithee, yoonaanee evan elopaithee aushadhiyon evan injekshanonka prayog kiyaa. lagabhag ek maasatak bijaleeka senk bhee karaaya, parantu sab vyarth rahaa. meree baahu peeda़a evan haath seedha uth paanemen tanik bhee laabh n huaa. mera haath ek prakaarase bekaar sa ho gaya thaa. is haathase ek gilaas jal uthaane men bhee main asamarth thaa. phatehapurake tatkaaleen sivilasarjan, jo ek suyogy, karmath evan dharmanishth chikitsak the; atyant sahaanubhooti, manoyog evan parishramase meree dava kar rahe the. ve bhee daॉktaree davaase koee laabh hota n dekhakar chintit the. unhonne mujhase ek din kaha - 'mishrajee ! mera sujhaav hai ki aap ab apane haath tatha usakee peeda़aakee koee bhee dava n karen, sabhee davaaen band kar den. apaneko eeshvarake bharose chhoda़ den. ve prabhu hee aapaka kalyaan karenge.' baat mujhe bhee janchee, mainne usee dinase apanee baahu- peeda़aakee sabhee davaaen band kar deen aur apaneko avadharadaanee bhagavaan shankar evan sankatamochan shreehanumaanjeekee kripaapar chhoda़ diyaa. unakee sharanamen jaakar nity shiv chaaleesa evan hanumaanachaaleesaaka paath karane lagaa.

lagabhag bees dinake pashchaat arthaat ghatanaakee raatriko lagabhag do bajeka samay thaa. main apane kamaremen so raha tha, tabhee mera daahina haath anaayaas uth gaya aur mainne uthaakar use apane sirapar rakh liyaa. isase poorv main apane daahine haathako sirapar rakhane men sarvatha asamarth thaa. meree nidra is adbhut chamatkaarako dekhakar khul gayee aur lete hue hee mainne apana haath oopar uthaayaa. vah saralataase seedha oopar uth gaya aur usee kshan meree baahu peeda़a bhee samaapt ho gayee.

mujhe pahale to is prakaarase apana haath uth jaanepar vishvaas naheen huaa. mainne socha ki main kaheen svapn to naheen dekh raha hoon. mainne chaarapaaeese uthakar kamarekee bijalee jalaayee aur apane haathako kaee baar oopara-neeche karake dekha, sachamuch peeda़a ab bilakul samaapt ho gayee thee. uparyukt ghatanaako raatriko main apanee baahupa tatha haathake n uthaneke kaaran atyant duhkhit tha . lagabhag das baje raatritak kaatar svarase mainne 'hanumaan chaaleesaa' evan 'shiv chaaleesaa' ka atyant duhkhit hridayase paath kiya aur usake pashchaat main kisee prakaar so gayaa. vaise mujhako baahu-peeda़aake kaaran un dinon raatrimen praayah neend naheen aatee thee. is ghatanaake pashchaat aajatak phir mujhako baahu-peeda़a naheen huee. us samay raatrimen hee mere mukhase anaayaas sooradaasajeeke ye shabd nikal pada़e-

jaakee kripa pangu giri langhe, andhe ko sab kuchh darasaai

bahiro sunai, goong puni bole, rank chalai sir chhatr dharaaee ..

harih oM tatsat . harih oM tatsat!! harih oM tatsat!!!

[pan0 shreedayaashankarajee mishr 'soorya' ]

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