⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भक्त प्रह्लादको भगवान्का प्रथम कृपास्पर्श

भागवतरत्न प्रह्लादकी विष्णुभक्तिसे परम अप्रसन्न उनके पिता दैत्यराज हिरण्यकशिपुने जब उन्हें भीषण यातनाएँ देकर मार डालनेका आदेश दिया, तब यातनाओंके क्रममें भी वे मात्र भगवान् विष्णुके ही शरणागत रहे तथा भावुक होकर उनकी स्तुति करने लगे। स्वयंको भगवत्कृपाके अयोग्य मानकर प्रह्लादजी अप्राप्तिके दुःखके कारण अत्यन्त कातर हो उठे। उनका चित्त उद्वेग एवं अनुतापके समुद्रमें डूब गया और वे मूच्छित | होकर गिर पड़े।

क्षणात्सर्वगतश्चतुर्भुजः शुभाकृतिर्भक्तजनैकवल्लभः । दुःस्थं तमाश्लिष्य सुधामयैर्भुजैस्तत्रैव भूपाविरभूद्दयानिधिः ॥ अथ

(नरसिंहपुराण ४३ ६१)

फिर तो क्षण भरमें ही भक्तजनोंके एकमात्र प्रियतम सर्वव्यापी कृपानिधान भगवान् विष्णु सुन्दर चतुर्भुजरूप धारण कर दुखी प्रह्लादको अमृतके समान सुखद स्पर्शवाली अपनी भुजाओंसे उठाकर गोदमें लगाते हुए वहाँ प्रकट हो गये।

भगवान्ने वात्सल्य भावसे गोदमें बिठाये अपने प्रिय भक्त प्रह्लादको भलीभाँति दुलारकर उन्हें आश्वस्त किया । प्रह्लादजीके हर्षका पार न था, वे भगवान्‌की पुनः स्तुति करने लगे। भगवान्ने उन्हें बारंबार वरदान देना चाहा, पर उन्होंने अविचल भक्ति ही देनेको कहा। भगवान् वर देकर अन्तर्धान हो गये ।

कालान्तरमें जब हिरण्यकशिपुने प्रह्लादके प्राण हरनेकी क्रूरतम चेष्टा की, तब परम प्रभु श्रीविष्णु स्तम्भको विदीर्ण करके नरसिंह रूपमें प्रकट हो गये और दुर्दान्त अभिमानी दैत्यके प्राण हरकर अपने प्रिय भक्तकी रक्षा की एवं पृथ्वीका भार कम किया। यह कथा तो पुराणों में सर्वत्र विस्तारसे वर्णित एवं प्रसिद्ध ही है।



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bhakt prahlaadako bhagavaanka pratham kripaasparsha

bhaagavataratn prahlaadakee vishnubhaktise param aprasann unake pita daityaraaj hiranyakashipune jab unhen bheeshan yaatanaaen dekar maar daalaneka aadesh diya, tab yaatanaaonke kramamen bhee ve maatr bhagavaan vishnuke hee sharanaagat rahe tatha bhaavuk hokar unakee stuti karane lage. svayanko bhagavatkripaake ayogy maanakar prahlaadajee apraaptike duhkhake kaaran atyant kaatar ho uthe. unaka chitt udveg evan anutaapake samudramen doob gaya aur ve moochchhit | hokar gir pada़e.

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(narasinhapuraan 43 61)

phir to kshan bharamen hee bhaktajanonke ekamaatr priyatam sarvavyaapee kripaanidhaan bhagavaan vishnu sundar chaturbhujaroop dhaaran kar dukhee prahlaadako amritake samaan sukhad sparshavaalee apanee bhujaaonse uthaakar godamen lagaate hue vahaan prakat ho gaye.

bhagavaanne vaatsaly bhaavase godamen bithaaye apane priy bhakt prahlaadako bhaleebhaanti dulaarakar unhen aashvast kiya . prahlaadajeeke harshaka paar n tha, ve bhagavaan‌kee punah stuti karane lage. bhagavaanne unhen baaranbaar varadaan dena chaaha, par unhonne avichal bhakti hee deneko kahaa. bhagavaan var dekar antardhaan ho gaye .

kaalaantaramen jab hiranyakashipune prahlaadake praan haranekee krooratam cheshta kee, tab param prabhu shreevishnu stambhako videern karake narasinh roopamen prakat ho gaye aur durdaant abhimaanee daityake praan harakar apane priy bhaktakee raksha kee evan prithveeka bhaar kam kiyaa. yah katha to puraanon men sarvatr vistaarase varnit evan prasiddh hee hai.

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